शोक संवेदना या बधाई संदेश / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
”अम्माजी के बारे में सुनकर बहुत दु:ख हुआ| शहर के बाहर था इसलिये आ नहीं पाया|” मैं श्याम भाई के निवास पर उनकी माताजी की मृत्यु पर शोक संवेदना प्रकट करने पहुंचा था|
“किंतु उन्हें बहुत कष्ट था,आठ माह से पलंग पर पड़ी थीं” उन्होंने जबाब दिया|
”हमेशा चहकती रहतीं थीं,कितनी अच्छी बातें……सारगर्भित…कितना अपनापन होता था उनकी बातों में,कितना स्नेह…”मैंने आगे कहना चाहा|
“परंतु बहुत हल्ला करतीं थीं, दिन भर चाँव चाँव” वे बात काट कर बोले|
“उस कमरे की तो बात ही और थी जिसमें वे पूजा करती थीं, कितना पवित्र था वह कमरा, अगरबत्ती की भीनी खुशबू, घंटा आरती, कितना मन भावन था वह दृश्य जब वह ॐ जय जगदीश हरे की आरती गाती थीं” मैंने भावुक होकर कहा|
“वह तो ठीक है पर उस कमरे का उपयोग नहीं हो पा रहा था| अब पत्नी ने वहां ब्यूटी पार्लर खोल लिया है|” वह बोले|
मैं अवाक था और शायद गलती पर भी|शोक संवेदना के बदले बधाई संदेश देना था उनकी मां की मृत्यु पर|