शौकीन का नया संस्करण / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 14 मार्च 2014
दशकों पूर्व बासू चटर्जी ने 'शौकीन' बनाई थी जिसमें तीन वृद्ध जीवन की संध्या में एक बार फिर सुबह के अनुभव से गुजरने के इरादे से 'गोवा' आते हैं और अपने आज तक मजबूत रहने के झूठे किस्से एक दूसरे को यह जानकर सुनाते हैं कि कोई यकीन नहीं कर रहा है। यह एक प्रकार से स्वयं को दिलासा देना है कि अभी खेल जारी है। वे जिस कन्या को लेकर अफसाने गढ़ रहे हैं, वह उनके युवा ड्राइवर से प्रेम करती है। फिल्म में ड्राइवर की भूमिका मिथुन चक्रवर्ती ने की थी परंतु कथा का मेरुदंड वे तीन बूढ़े ही थे और उनकी मित्रता फिल्म की सफलता की कुंजी थी। इस फिल्म को हिंदी साहित्य के महान गुलशेर शानी ने लिखा था। सारी ताजगी उनके द्वारा गढ़ी गई थी।
अब 'शौकीन' के नए संस्करण में मिथुन वाली भूमिका अक्षय कर रहे हैं और फिल्म बेची भी उनके दम पर जा रही है, अत: मूल के बूढ़ों वाला फोकस अब बदल दिया गया है। आप सितारा लेते ही कहानी की टोपी को सितारे के सिर की साइज का बना देते हैं और इसे सिनेमा वाले 'व्यावहारिकता' कहते हैं। सारे समझौते 'व्यावहारिकता' के नाम पर ही किए जाते हैं। दरअसल 'व्यावहारिकता' वह टोपी है जिसे दलबदलू पहनते हैं। 'शौकीन' के नए संस्करण की बात रूमी जाफरी ने प्रारंभ की थी परंतु निर्माता से मतभेद के कारण अब फिल्म को अभिषेक शर्मा कर रहे हैं, जिन्होंने 'तेरे बिन लादेन' नामक कल्ट फिल्म बनाई थी और इसका भाग दो भी बना चुके हैं। खेद की बात यह है कि नए संस्करण में गुलशेर शानी का उल्लेख भी नहीं है जबकि यह सामान्य समझदारी है कि मूल संस्करण के लेखक को स्मरण किया जाना चाहिए। मूल संस्करण में बूढ़ों की भूमिकाएं उत्पल दत्त, अशोक कुमार और ए.के. हंगल ने अभिनीत की थी और अब अनुपम खेर, बोमन इरानी कर रहे हैं तथा परेश रावल मोदी बायोपिक के कारण फिल्म छोड़ चुके हैं।
इसमें तीन वृद्ध अपने को ताकतवर प्रेमी सिद्ध करने के लिए झूठ बोलते हैं और इसी प्रकार का झूठ तीन युवा पात्र सई परांजपे की 'चश्मे बद्दूर' में बोलते हैं और महिला पात्र के गिर्द गढ़े झूठ पर ही पूरा ड्रामा आधारित होता है। परंतु समाज की संरचना इस प्रकार की है कि इस तरह के झूठ महिला को बदनाम कर देते हैं गोयाकि जो पुरुष के लिए अनुभव या पराक्रम है वह स्त्री के लिए शर्म बना दी गई है।
नए संस्करण में नरगिस फखरी काम करने जा रही थी परंतु अब उन्हें हॉलीवुड की एक फिल्म मिल गई है अत: उन्होंने 'शौकीन' छोड़ दी है और अब यामी गौतम से बात की जा रही है। यामी गौतम को 'विकी डोनर' में खूब सराहा गया था। निर्माता को अक्षय कुमार से डेट्स मिल गई है और इस समय का उपयोग करना आवश्यक है अन्यथा अक्षय कुमार से समय के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। फिल्म उद्योग इस तरह चलता है कि सफल सितारे की इच्छा के अनुरूप सारे काम करने पड़ते हैं। इस तरह की कार्यशैली में गुणवत्ता की उम्मीद कैसे की जा सकती है। सितारा एक टैक्सी है, उसमें बैठकर आप तय करें कि कहां जाना है या कोई और विचार करें तो भी उसका किराया मीटर चल रहा है और आपको हर क्षण के पैसे देने हैं। राज कपूर ने शशी कपूर को उनके शिखर दिनों में टैक्सी कहा था। उस दौर में एक शशी कपूर ही टैक्सी थे, अब तो सारे सितारे टैक्सी हैं। कुछ लोग तो अनुबंध पत्र में ही लिख देते हैं कि फिल्म की शूटिंग के लिए इतने दिन, डबिंग के लिए इतने दिन और प्रदर्शन पूर्व प्रचार के लिए समय सीमा तय हो जाती है। अतिरिक्त समय मांगने पर अतिरिक्त धन देना पड़ता है। अब क्रिएटिव काम समय-सारिणी के अनुरूप नहीं चलता। के. आसिफ को 'मुगले आजम' बनाने में दस वर्ष लग गए और बजट सैकडों गुना अधिक हो गया परंतु प्रदर्शन के सात दशक बाद भी लोग फिल्म को याद करते हैं। आज हर सितारे के साथ एक योग्य मैनेजर और प्रशिक्षित चार्टेड एकाउटेंट होते हैं और वे उसे बाजार का एक बिकाऊ ब्रांड बना देते हैं, परंतु ऐसे समय में भी बहल जैसे फिल्मकार 'क्वीन' बना लेते हैं, इम्तियाज अली 'हाइवे' रच लेते हैं। बाजार के लौह दुर्ग में भी कोई न कोई खिड़की खुली रह जाती है।