श्मशान घाट / एक्वेरियम / ममता व्यास
शमशान घाट के दरवाजे पर एक व्यक्ति टेबिल-कुर्सी जमाये बैठा था और जलने आई हुई सभी लाशों का नाम पता नोट कर रहा था। सभी लाशें बहुत ही डरी, सहमी और चिंतित थी। जलने से सभी को बहुत घबराहट हो रही थी। वह सभी मरना ही नहीं चाहती थी और अब तो जलना भी होगा ये सोच रो-रो कर, शमशान में बड़ा शोर कर रही थी।
तभी एक लाश हंसते हुए आई. उसकी हंसी से पूरा शमशान हिल गया रजिस्ट्रेशन करने वाला हैरानी से देखने लगा। न उस लाश के चेहरे पर मरने दु: ख था न जलने का खौफ। वह उसे देखता ही रह गया। उसकी हंसती आखों में मौत नहीं जीवन दिखता था। आखिर वह बोल पड़ा-"लाश होकर हंसती हो? क्या कमाल करती हो!"
बहुत देर तक अपलक निहारते हुए फिर उसने कहा-"तुम्हें इतनी जल्दी नहीं मरना था। मुझे तुमसे प्रेम हुआ जाता है।"
जवाब में लाश बहुत देर तक हंसती रही...
"कुछ बोलो भी...? अच्छा यही ही बता दो, तुम्हारी मौत किस वजह से हुई थी?"
"प्रेम की वजह से..."
"हा हा हा..." इस बात पर शमशान में पड़ी सभी लाशें रोना भूलकर हंसने लगी।
(ये प्रेम श्मशान में भी पीछा नहीं छोड़ता, है न ...)