श्रम बनाम शर्म / ट्विंकल तोमर सिंह

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उन्हें हँसने की आवाज़ फिर से सुनाई दी। कई दिनों से ऐसा हो रहा था। थुलथुल काया के स्वामी बड़े साहब जैसे ही ट्रेडमिल पर पाँव धरते, किसी की खिल्ली उड़ाती हँसी की आवाज़ आती, जबकि कमरे में उनके सिवा कोई नहीं था। उनके फिटनेस ट्रेनर ने कहा था- आधे घण्टे रोजाना दौड़ना है, तो वे दौड़े जा रहे थे....दौड़े जा रहे थे....हाँफते जा रहे थे...मगर बढ़ा हुआ पेट था कि एक मिलीमीटर भी अपना व्यास कम करने तैयार नहीं था। हँसने की आवाज़ दुबारा आई। अबकी बार बड़े साहब से ध्यान से सामने देखा।

उनकी कोठी के सामने वाली ख़ाली जगह में एक इमारत उगाई जा रही थी। उनकी आलीशान कोठी की काँच की दीवारों के पार बड़े साहब को वहाँ कुछ मजदूर दिखाई दे रहे थे। वे दुबले- पतले मजदूर सिर पर ईटें ढोते हुए सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। साहब को भ्रम हुआ कि उन मजदूरों के पतले और पिचके पेट उनके बढ़े हुए पेट की मुँह दबाकर खिल्ली उड़ा रहे हैं। पसीना पोंछकर वे ट्रेडमिल पर दोबारा दौड़ने लगे। हँसी की आवाज़ उनके साउंड प्रूफ़ कमरे में और ज़ोर से गूँजने लगी।

-0-