श्रीदेवी के बहाने शोले और सेवन सामुराई / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :05 मार्च 2016
बोनी कपूर अपनी पत्नी श्रीदेवी को केंद्रीय भूमिका में लेकर 'मॉम' फिल्म बनाने जा रहे हैं। इंसानों की तरह पटकथाओं की भी कुंडली होती है। कोई एक दशक पूर्व 'मॉम' की पटकथा लिखी गई थी और फिल्म अब बनने जा रही है। प्रसिद्ध फिल्मकार आर. बाल्की ने अमिताभ बच्चन के साथ कुछ फिल्में बनाई हैं और उनकी पत्नी गौरी शिंदे ने श्रीदेवी अभिनीत 'इंग्लिश विंग्लिश' का निर्देशन किया था। इस फिल्म को दुनिया के अनेक देशों मंे सफलता के साथ प्रदर्शित किया गया। जापान में इस फिल्म ने भव्य व्यावसायिक सफलता भी प्राप्त की थी।
जापान में अनेक विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार हुए हैं और अकीरा कुरोसावा की 'सेवन सामुराई' से प्रेरित फिल्में अनेक देशों में बनी हैं। हमारी 'शोले' का मूल विचार भी 'सेवन सामुराई' से लिया गया है परंतु किसी भी फिल्म में 'सेवन सामुराई' का मूल संदेश प्रस्तुत नहीं हुआ। फिल्म की बुनावट भी देखिए कि फिल्म में प्रस्तुत 'गांव' सभ्यता का प्रतीक है और 'डाकू' बर्बरता के प्रतीक हैं। जब बर्बरता का सभ्यता पर आक्रमण होता है, तब वह अपनी रक्षा के लिए कानून के हाशिये पर खड़े मुजरिमों को आमंत्रित करती है गोयाकि असभ्यता से युद्ध करना 'सभ्यता' के बस में नहीं है और अपनी रक्षा के लिए उसे 'असभ्यता' से ही प्रार्थना करनी पड़ती है। क्या अकीरा कुरोसावा यह कहना चाहते थे कि सभ्य होने की प्रक्रिया में हम कमजोर हो जाते हैं? अकीरा कुरोसावा की फिल्म में यह खूब रेखांकित हुआ है कि जब सामुराई अपना काम पूरा करके लौट रहे थे तब एक सामुराई की प्रेमिका उसका हाथ झटककर अपने खेत में बोनी के लिए चली जाती है। पूरे क्लाइमैक्स में वर्षा हो रही है और बीज बोने का मौसम है। 'सभ्यता' की इस बुराई को प्रस्तुत किया गया है कि रक्षा हो जाने पर वह अपने स्वार्थ पर लौट आती है। स्पष्ट है कि टुच्चापन और स्वार्थ मनुष्य स्वभाव में इस तरह से शामिल हैं कि हटाए नहीं हटते। यह दार्शनिकता केवल 'सेवन सामुराई' में है और हमारी 'शोले' या 'मेरा गांव, मेरा देश' में यह गहराई नहीं है परंतु अकीरा कुरोसावा का मन्तव्य यही कड़वा यथार्थ रेखांकित करना था। अब अगर हमारे रमेश सिप्पी 'शोले' में हेमा मालिनी को क्लाइमैक्स में धर्मेंद्र को अनदेखा करते दिखाते तो फिल्म असफल हो जाती। रमेश सिप्पी कोई सामाजिक दस्तावेजनुमा फिल्म नहीं रचना चाहते थे। उनका मकसद सफलता पाने मात्र से था और वह उन्हें मिली भी है। बॉक्स ऑफिस पर 'शोले' इतनी बड़ी सफलता है कि आप व्यावसायिक सिनेमा को 'शोले' के पहले अौर 'शोेले' के बाद के दो खंडों में भी बांट सकते हैं। यह कई स्तरों पर किया जा सकता है, क्योंकि 'शोले' के एक्शन दृश्यों के लिए रमेश सिप्पी ने हॉलीवुड से विशेषज्ञ बुलाए थे।
शोले की रेल डकैती के दृश्य को विदेशी विशेषज्ञों ने रचा है। हॉलीवुड सिनेमा में रेल डकैती लगभग उतनी ही पुरानी है, जितनी कि सिनेमा विधा। गौरतलब है कि 'शोले' के रेल डकैती दृश्य से अधिक प्रभावोत्पादक दृश्य था दिलीप कुमार की 'गंगा जमुना' में और उसके लिए कोई विदेशी विशेषज्ञ नहीं बुलाया गया था। वह दिलीप कुमार और उनके कैमरामैन वी. बाबा साहेब का कमाल था। इसी तरह मुगल-ए-आजम के 'शीश महल' सेट को उनके कैमरामैन अारडी माथुर ने इतनी कुशलता से फिल्माया था कि विदेशी भी उनका हुनर मान गए थे। एक निष्णात तकनीशियन बिना आधुनिकतम सुविधाओं के भी अपने हुनर के दम पर इतिहास लिख देता है।
भारतीय सिनेमा पर उसके प्रारंभिक काल से ही अमेरिकन सिनेमा का असर रहा है। भारत के फिल्मकारों के लिए बेहतर होता यदि वे अमेरिका के बदले जापान के सिनेमा से जुड़ते। दरअसल, हमारे यहां सिनेमा विधा अंग्रेजों की दासता के समय पनपी, इसलिए वह पश्चिमोन्मुखी हो गई। हमारी संस्कृति की तरह जापान और चीन की संस्कृतियां भी अत्यंत पुरानी हैं परंतु अंतरराष्ट्रीय राजनीति का प्रभाव है कि हम अपने को पश्चिम के अधिक निकट समझते हैं। सिनेमा टेक्नोलॉजी के साथ ही आया है। टेक्नोलॉजी कभी अकेली नहीं आती।