श्रीदेवी : प्रकाशित पुस्तक और बायोपिक / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
श्रीदेवी : प्रकाशित पुस्तक और बायोपिक
प्रकाशन तिथि : 04 दिसम्बर 2019


सत्यार्थ नायक ने श्रीदेवी के जीवन और उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों पर एक किताब लिखी है, जिसके विमोचन समारोह में बोनी कपूर भावुक हो गए और दीपिका पादुकोण ने उन्हें ढांढस बंधाया। श्रीदेवी ने सात वर्ष की आयुु में 'जूली' नामक फिल्म में नायिका की छोटी बहन का पात्र अभिनीत किया था और अमोल पालेकर के साथ 'सोलहवां सावन' फिल्म में नायिका की भूमिका अभिनीत की। लेकिन उन्हें सफलता मिली फिल्म 'हिम्मतवाला' से। श्रीदेवी ने अपनी समकालीन जयाप्रदा के साथ 'तोहफा' में अभिनय किया था। यह फिल्म 'नजराना' का रीमेक थी। ज्ञातव्य है कि दो बहनों की इसी कथा से प्रेरित होकर 'बहारें फिर भी आएंगी' नामक फिल्म गुरु दत्त बना रहे थे, उनकी मृत्यु के बाद उनके भाई ने यह फिल्म पूरी की।

श्रीदेवी ने अपनी दूसरी पारी में गौरी शिंदे निर्देशित 'इंगलिश विंगलिश' तथा बोनी कपूर की 'मॉम' में अभिनय किया। दोनों सफल रहीं। ज्ञातव्य है कि "मॉम" के एक दृश्य में नायिका हिजड़ों की मदद से बेटी से दुष्कर्म करने वाले की हत्या करती है। यह संभव है कि पटकथा में यह प्रसंग श्रीदेवी ने सुझाया हो? एक बार खाकसार को फ्लाइट पकड़ने जाना था। उस समय केवल श्रीदेवी की ही कार उपलब्ध थी। ट्रैफिक सिग्नल पर कार के रुकते ही हिजड़े आर्थिक सहायता मांगने आए। ड्राइवर ने बताया कि श्रीदेवी हमेशा इस वर्ग के लोगों की भरपूर मदद करती थीं।

किसी पुरस्कार वितरण समारोह में श्रीदेवी को अपनी अभिनीत फिल्म का एक नृत्य प्रस्तुत करना था। उन्होंने पंद्रह दिन तक डांस मास्टर को घर बुलाकर इसका अभ्यास किया। अपने काम के प्रति समर्पण के कारण उन्होंने यह किया। अपना श्रेष्ठतम प्रस्तुुत करने के लिए वे हमेशा तत्पर रहती थीं। कोई भी काम किसी तरह निपटा देने की प्रवृत्ति उनमें नहीं थी। ज्ञातव्य है कि हेमा मालिनी, धर्मेंद्र और संजीव कुमार अभिनीत फिल्म 'सीता और गीता' से प्रेरित फिल्म 'चालबाज' में श्रीदेवी ने दोहरी भूमिका अभिनीत की थी। इस फिल्म में रजनीकांत और सनी देओल नायक थे। ताजा खबर यह है कि जुड़वां, हमशक्ल बहनों की इस कथा से प्रेरित फिल्म में तापसी पन्नू अभिनय करने जा रही हैं। सीता और गीता दिलीप कुमार अभिनीत 'राम और श्याम' से प्रेरित फिल्म है। राम और श्याम में दिलीप कुमार ने हमशक्ल जुड़वां भाइयों की भूमिका अदा की थी। दक्षिण भारत में बनी राम और श्याम महाराष्ट्र के एक फिल्मकार को समर्पित की गई थी। फिल्म उद्योग हमेशा संकीर्ण क्षेत्रीयता से मुक्त रहा है।

श्रीदेवी ने सात वर्ष की उम्र से मृत्युपर्यंत अभिनय किया। वे अनुशासित, परिश्रमी और सादा जीवन जीने वाली महिला थीं। उनकी माता ने श्रीदेवी की कमाई से चेनन्नई में विशाल संपत्ति खरीदी थी। आज के बाजार भाव से श्रीदेवी की संपत्ति पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक की है। बंगले की छत पर एक कांच का कमरा है। बरसात के समय उस कक्ष में बैठकर बिना भीगे मौसम का आनंद लिया जा सकता है। उनके श्वसुर सुरेंद्र कपूर का 75वां जन्मदिवस उस बंगले में मनाया गया था। उस दावत में रजनीकांत और कमल हासन मेहमानों की सेवा कर रहे थे। श्रीदेवी के प्रति उनके मन में इतना आदर था कि वे दावत में मेहमान नहीं वरन मेजबान का कार्य कर रहे थे। इस समय श्रीदेवी की पुत्री जाह्नवी अमेरिका में हैं, जहां उनकी छोटी बहन खुशी अभिनय व निर्देशन का प्रशिक्षण ले रही है। यह संभव है कि कुछ वर्ष बाद जाह्नवी 'श्रीदेवी बायोपिक' अभिनीत करें। बोनी कपूर दोनों बहनों को लेकर भी एक फिल्म बनाना चाहते हैं। श्रीदेवी के व्यक्तित्व की यह विशेषता रही कि उनके चेहरे पर बालसुलभ मासूमियत का भाव बना रहता था और देह मादक थी ही। फिल्मकार शेखर कपूर ने 'मि. इंडिया' में इस विशेषता को बखूबी प्रस्तुत किया। शास्त्रीय नृत्य का अभ्यास करने के कारण श्रीदेवी का अपने चेहरे और शरीर की मांसपेशियों पर पूर्ण नियंत्रण रहा। मेडिकल तथ्य है कि हर मांसपेशी का स्वतंत्र अस्तित्व होता है। इस स्वतंत्रता के कारण सहयोग से रहने में वे प्रशिक्षित होती हैं। इसे आप विविधता में एकता भी कह सकते हैं जो भारत का चरित्र भी रहा है। वर्तमान में इस मूलभूत चरित्र को बदलने का प्रयास किया जा रहा है। शरीर का अपना संविधान होता है।

भारतीय फिल्म उद्योग में देविका रानी से लेकर प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण तक विलक्षण कलाकार हुई हैं। सितारों के इस संसार में श्रीदेवी का अपना विशिष्ट स्थान है। वे इच्छाधारी कलाकार रही हैं और भूमिकाओं के बर्तन से छलक-छलक जाती प्रतीत होती रही हैं। श्रीदेवी का नशा शराब के नशे से अलग कुछ-कुछ भांग की तरह है। भांग के सेवन के बाद मनुष्य एक ही राग दोहराता है या ये कहें कि समय की पहाड़ियों से आवाज प्रतिध्वनित होकर बार-बार लौट आती है। श्रीदेवी एक ध्वनि या कहें अनुगूंज की तरह थीं और ध्वनि कभी मरती नहीं।