श्रीमती सत्यजीत राय की आत्मकथा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 नवम्बर 2012
सत्यजीत राय की पत्नी बिजोया राय ने 'मानिक एंड आई' नामक किताब लिखी है, जिसे पेंगुइन बुक्स ने इसी वर्ष प्रकाशित किया है। राय महोदय के करीबी लोग उन्हें मानिक कहकर पुकारते थे। बिजोया ने कुछ फिल्मों में अभिनय किया है। मुंबई में उन्होंने 'मशाल' और 'रजनी' में अभिनय किया। राय महोदय की मां इस शादी का विरोध करती रहीं, परंतु पुत्र के इस निश्चय ने उन्हें झुका दिया कि वे या तो बिजोया से विवाह करेंगे या ताउम्र कुंआरे रहेंगे। यह तथ्य कुछ फिल्मी-सा ध्वनित होता है, परंतु उनकी मां अपने इकलौते बेटे के जीवन को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानती थीं और राज्य का बंटवारा वे कैसे पसंद करतीं। इसी तरह साहिर की मां उन्हें लेकर इतनी अधिक पजेसिव थीं कि उन्होंने उनकी प्रेमिकाओं को बड़े जतन से उनसे दूर रखा। सीमातीत स्नेह एक अजीब किस्म के भय को जन्म देता है, जो उस व्यक्ति के मार्ग में बाधा बन जाता है, जिसे आप प्यार करते हैं। रिश्तों में कुछ समीकरण विरोधाभासी लगते हैं, क्योंकि मनुष्य-मन विचित्र बुनावट का नमूना है।
बिजोया राय की आत्मकथा ६१५ पृष्ठों की है और सत्यजीत राय से उनके बचपन की मित्रता से लेकर राय महोदय की मृत्यु तक का विशद विवरण प्रस्तुत करती है और इसका आधार है उनकी डायरियां। वे अपनी भूमिका में लिखती हैं कि उनकी कुछ डायरियां मकान बदलते समय गुम हो गईं। पुस्तक से हमें सत्यजीत राय की रुचियों और प्रतिभा के विकास का कुछ ज्ञान प्राप्त होता है। हम उनके संघर्ष का अनुमान लगा सकते हैं। अपनी पहली फिल्म बनाने के लिए राय दंपती ने अपनी अनेक प्रिय वस्तुओं को बेचा। उन दिनों राय महोदय नौकरी करते थे और शनिवार-इतवार की छुट्टियों में ही शूटिंग करते थे, अर्थात वे सप्ताहांत फिल्मकार थे।
राय महोदय पर मेरी सैटन ने वर्षों पूर्व किताब लिखी थी, परंतु उसका विषय सत्यजीत राय की सृजन प्रक्रिया था। वह उनके जीवन के सारे घटनाक्रम का वर्णन नहीं था, जैसे कि यह किताब है। परंतु क्या दोनों किताबों के पढऩे से हम राय महोदय के विषय में सब कुछ जान जाते हैं? उनके स्थिर छायाकार निमाई ने भी एक किताब लिखी है। गौरतलब यह है कि किसी भी व्यक्ति के आप कितने ही निकट हों, उसे पूरी तरह नहीं जान पाते। यह तो दूर की बात है, सच तो यह है कि व्यक्ति स्वयं को भी कहां जान पाता है। प्रेम करने वाला व्यक्ति तो कभी तटस्थ होकर लिख ही नहीं सकता। प्रेम के नजरिये से लिखी किताब आपको प्रेम की अनुभूति से परिचित कराती है, परंतु व्यक्ति के अवचेतन की सारी तस्वीर कभी साफ नहीं उभरती। मकड़ी के जाले या रेशम के कीड़े की बुनावट समझी जा सकती है, यहां तक कि द्रोणाचार्य के चक्रव्यूह को भी समझा जा सकता है,
परंतु मनुष्य का अवचेतन अत्यंत दुरूह होता है और सृजनधर्मी का अवचेतन तो इतनी बड़ी अंधकारमय गुफा होती है कि वहां व्यक्तिगत मुलाकातों के जुगनू राह नहीं दिखा सकते।
किसी भी सृजनधर्मी के व्यक्तिगत जीवन या अंतरंग रिश्तों से बेहतर है कि उसकी कृति को समझने का प्रयास करें और इससे भी जरूरी यह समझना है कि उसके कार्य का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा। दरअसल मनुष्य के हर कार्य से अनेक लोग प्रभावित होते हैं। सत्यजीत राय के सिनेमा ने भारत के अनेक फिल्मकारों को प्रभावित किया और अनगिनत आम दर्शकों ने उनकी फिल्मों को देखने के बाद स्वयं में कुछ परिवर्तन होने महसूस किए।
यह सौभाग्य की बात है कि उनकी पत्नी ने डायरियों के आधार पर उनका जीवन-वृतांत प्रस्तुत किया है। उनकी फिल्मों पर अनगिनत लेख लिखे गए हैं, परंतु अनेक फिल्मकारों के बारे में हम कुछ भी नहीं जानते। हमारे फिल्मकारों ने भी अपनी सृजन प्रक्रिया के बारे में कुछ नहीं लिखा है। यहां तक कि कुछ गीत रिकॉर्ड हुए, छायांकन हुआ, परंतु प्रदर्शन पूर्व कुछ कारणों से वे हटा दिए गए। आज उनका कुछ अता-पता नहीं। भारत में सिनेमा का इतिहास लिखना अत्यंत कठिन है, क्योंकि फिल्म के अतिरिक्त कुछ भी उपलब्ध नहीं है। इस तथ्य के कारण श्रीमती बिजोया राय की किताब का महत्व बढ़ जाता है।