श्रुति से पन्नों तक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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आकाशवाणी वार्त्ताएँः विविध प्रसंग (सम्पादक द्वय) डॉ.कौशल नन्दन गोस्वामी एवं डॉ.शरण शुक्ल प्रकाशक: मंजुश्री प्रकाशन, प्राध्यापक निवास उपाधि महाविद्यालय परिसर पीलीभत, मूल्य: पचास रुपये, पृष्ठ: 112, संस्करणः 1992

इस संकलन में आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारित डॉ.कौशल नन्दन गोस्वामी, डॉ.शम्भुशरण शुक्ल, श्रीमती मंजु शुक्ल, श्रीमती मीना गोस्वामी और डॉ.रमेश चन्द्र जोशी की वैविध्यपूर्ण 27 वर्त्ताएँ संगृहीत हैं।

तात्कालिक प्रभाव इस प्रसारण माध्यम की विशिष्टता है। तो समय-सीमा इसका बंधन। अच्छी वार्त्ता के लिए ज़रूरी है-स्पष्टता एवं बोधगम्यता, निर्धारित अवधि में विषय की सारगर्भित प्रस्तुति, जटिल विषय को भी रोचक एवं ग्राह्य बनाने की कला। प्रसारण के पश्चात् ये श्रम साध्य वार्त्ताएँ गुम होकर रह जाती है। सम्पादक द्वय ने प्रकाशन कराकर इन्हें उन लोगों के लिए भी सुलभ कराया है, जो सुन नहीं सके थे या जिन्हें विशिष्ट संदर्भ हेतु इन वार्त्ताओं की आवश्यकता हो सकती है।

वार्त्ताओं के चयन में विविधता का ध्यान रखा है, ताकि प्रत्येक वर्ग का पाठक इनका आस्वाद ग्रहण कर सके। डॉ.शुक्ल की सात वार्त्ताओं में 'कर्मयोगी श्रीकृष्ण' , 'नयी कविता और रस' अपेक्षाकृत सुगठित एवं सुनियोजित हैं। कृष्ण के चरित्र में अन्य महापुरुषों की अपेक्षा अधिक विरोधाभास है। वे निष्काम कर्म में विश्वास रखते हैं। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर कृष्ण सबकी जूठी पत्तलें उठाते हैं। महाभारत के युद्ध के समय दिवसावसान पर जब दूसरे लोग संध्या-उपासना करते हैं, उस समय श्रीकृष्ण घोड़ों को पानी पिलाते, खरहरा करते हैं। कृष्ण का यह चरित्र सच्चे कर्मयोगी का उदाहरण है। इस वार्त्ता में डॉ.शुक्ल का अध्यवसाय प्रकट होात है। 'नयी कविता और रस' में डॉ.शुक्ल ने रस की आधारभूमि भाव और विचार का विश्लेषण किया है। जहाँ तक 'नयी कविता' के नामकरण का प्रश्न है, अज्ञेय जी ने 1952 में आकाशवाणी से प्रसारित अपनी वार्त्ता में इस शब्द का प्रयोग किया था। मुक्तिबोध ने अपने एक लेख में 'सह-अनुभूति' को महत्त्व प्रदान किया। वार्त्ताकार द्वारा अपने मत की पुष्टि के लिए दिए गए देवराज दिनेश और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं के उदाहरण विशेष प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं। 'निराकार ब्रह्म के उपासक-कबीर' में अपने मत की पुष्टि विभिन्न उदाहरणों से करके वार्त्ता को सहज एवं रोचक बनाया हैं 'बापू काव्य-एक विवेचन' विवेचन का सरलीकरण बनकर रह गया है। 'वर्तमान सामाजिक स्थिति में साहित्य की भूमिका' वार्त्ता में दो कहानियों का संदर्भ देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर पाए हैं। उपन्यास, नाटक, कविता, कहानी से अनेकानेक उदाहरण दिए जा सकते थे। उपर्युक्त उदाहरणों के अभाव में वार्त्ता प्रभावशाली नहीं बन पाई है।

डॉ.गोस्वामी की 11 वार्त्ताओं में 'अष्टछापीय कवि और संगीत' गंभीर विषय पर लिखी विशिष्ट वार्त्ता है। गायन, वादन और नृत्य-संगीत के इन तीनों अवयवों का उदाहरण सहित विवेचन प्रस्तुत किया है। 'समदर्शी संत रविदास' शोधपरक वार्त्ता है। इस वार्त्ता की प्रस्तुति में डॉ.गोस्वामी का गहन अध्ययन और मनन झलकता है। 'कविता का अस्तित्व आज के संदर्भ में' वार्त्ताकार समाज के साथ-साथ कविता में आए बदलाव को रेखांकित करता है। आज के आदमी में घर कर गए धूर्त्त पापपूर्ण पाखण्ड औार शोषण को बेनकाब करने में कविता सक्षम है। राजनीतिक क्षेत्र में फैली मूल्यहीनता को भी डॉ.गोस्वामी उभार सकते थे; लेकिन सरकारी माध्यमों की विवशता आड़े आ जाती है। 'नवें दशक की कहानियों में युग चेतना' वार्त्ता में समसामयिक जीवन की त्रासदी को बखूबी उभारा है। 'प्रेमचन्द की उपन्यास सर्जन प्रक्रिया' में प्रेमचन्द साहित्य में आए उत्तरोत्तर परिवर्तन को सोदाहरण एवं संक्षेप में प्रस्तुत किया है। उपन्यास 'आपका बंटी' का नायक 'बंटी' में डॉ.गोस्वामी ने बंटी की मानसिक उथल-पुथल के रेशे-रेशे को तन्मयता से उभारा है। यह वार्त्ता इतनी सहज बन पड़ी है कि इसे स्वतंत्र सर्जन का नाम दिया जा सकता है। प्राध्यापकीय अनुशीलन से हटकर डॉ.गोस्वामी ने बंटी को अपने मौलिक चिन्तन के साथ प्रस्तुत किया है। इसे उत्कृष्ट वार्त्ता की श्रेणी में रखा जा सकता है। इन्हीं वार्त्ताओं के साथ 'सबत्तरी' शैलेश मटियानी के उपन्यास तथा 'सोन मछली मन बसी' डॉ.रवींद्र भ्रमर के कविता संग्रही की सारगर्भित एवं सफल समीक्षाएँ हैं। ये समीक्षाएँ पुस्तकों के अन्तर्जगत् को पाठकों के समक्ष उद्घाटित करने में सक्षम हैं।

श्रीमती मंजु शुक्ल की चार वार्त्ताओं में 'उसका घर' की नायिका ऐलमा प्रमुख है। मेहरुन्निसा परवेज के उपन्यास 'उसका घर की नायिका ऐलमा के माध्यम से नारी की व्यथा कही है। आत्मीय पीड़ा के जबड़ों में पिसकर घुट-घुटकर जीवन जीने वाली ऐलमा के चरित्र की विशिष्टताओं एवं दुर्बलताओं का सफल विश्लेषण किया है।' महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य' में चाणक्य में व्यावहारिक बुद्धि एवं प्रखर कूटनीति का व्यवस्थित मूल्यांकन किया गया है।

डॉ.रमेश चन्द्र जोशी की तीन वार्त्ताओं में 'कत्यूरी कला' शोधपरक वार्त्ता है। कत्यूरी राजाओं के काल से चली आ रही इस कला का विशद विवेचन किया गया है। लोकगीत किसी भी समाज की धड़कन होते हैं। डॉ.जोशी ने 'कुमाऊँनी गीतों के माध्यम से अभिव्यंजित समाज की विसंगतियाँ' वर्त्ता में विभिन्न सामाजिक पर लोकगीतों में किए गए प्रहार की सफल प्रस्तुति की है।

एक छोटी-सी पुस्तक में एक साथ इतनी वैविध्यपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करना सराहनीय प्रयास है। आगामी संकलनों की शृंखला इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कार्य होगा। मुद्रण साफ-सुथरा एवं निर्दोष है।