श्रेणी वार्ता:लघुकथा

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लघुकथा

अनर्थ
चीख बहुत दूर दूर तक सुनी थी लोगों ने। चीखने के बाद तिवारी जी बाकायदा चिल्लाने लगे थे – अनर्थ....घोर अनर्थ.....महापाप...महापाप।
कुछ ही क्षणों में आ जुटी भीड़ को वहाँ ऐसा हौलनाक –सा कुछ भी घटित हुआ नहीं दिख रहा था। – क्या हुआ? हुआ क्या है?
काँपती काया और सूखते गले से बमुश्किल बोल पाए वह – यहाँ सामने की दुकान वाले ने भगवान जी की मूर्ति बीच सड़क पर दे मारी। टुकड़े–टुकड़े हुए पड़े हैं भगवान जी..... देखो।
फटे–पुराने कैलेण्डर और कागज वगैरह को झाड़ू से बाहर करता हुआ सामने वाली दुकान का मालिक दुकान के बाहर लोगों को जुटा देखकर सहम गया था। पहले इस दुकान का मालिक कोई हिन्दू था जो दो दिन पहले अपनी दुकान दूसरे धर्म के इस दुकानदार को बेच गया था। नया दुकानदार आज आकर इसकी साफ–सफाई कर रहा था।
फिर चीखे तिवारी जी – वो देखो भगवान जी के कैलेंडर को झाड़ू मार रहा है ये विधर्मी..... इधर भगवान जी के टुकड़े पैरों के नीचे आने लगे हैं.....
डरे सहमे दुकानदार ने कहा – माफ कीजिये – माफ कीजिए ... पैरों के नीचे कुछ नहीं आएगा.... मैं इस कचरे को इकट्ठा करके अग्नि के सुपुर्द कर दॅूगा...
– भगवान जी को कूड़ा कह रहा है? मारो साले को.....
लोगों की घृणा और गुस्सा दुकानदार पर उतरने लगा। लहुलुहान दुकानदार सड़क पर बिछा दिया गया। उसका लहू भगवान जी के टुकड़ों को भिगाने लगा था। उसकी दुकान को अग्नि के सुपुर्द कर दिया गया। आग फैलती जा रही थी। मामला धर्म का था। शटर गिरने लगे। भगदड़ मच गई।
दूसरे धर्म वालों के हत्थे न चढ़ जायें, सोचकर तिवारी जी भी उल्टे पांव घर की ओर दौड़ पड़े। पकड़ो–मारो का शोरगुल और धर्म के जयकारे और शोरगुल उनका पीछा कर रहा था।
दूसरे धर्म वालों के नारे की आवाजें नजदीक आती लगीं तो तिवारी जी और तेज दौड़ने लगे। टूटी हुई चप्पलें दौड़ने में रूकावट डालने लगीं तो उन्होंने चप्पल उतारकर फेंक दी और पूरा दम लगाकर नंगे पैर दौड़ने लगे।
अचानक उनके नंगे पैर में कोई चीज चुभी। तब तक वे घर के नजदीक पहुंच चुके थे। दर्द से बिलबिला उठे वे। झुककर उन्होंने वह चीज उठाई। किसी का गले में लटकने वाला बड़ा– सा लॉकेट था जिस पर भगवान जी की तस्वीर थी। एक हाथ से उन्होंने अपने पैर को सहलाया। दूसरे हाथ से भगवान जी के चित्र वाला लॉकेट सड़क पर दे मारा। लॉकेट लुढ़कता हुआ नाली में जा गिरा। इस बार तिवारी जी की चीखें नहीं निकली।
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झांकी (लघुकथा)

झांकी (लघुकथा)

-गंगा सहाय मीणा

12 साल का मोइन अपने अब्‍बू के साथ बडी जिद करने के बाद राजपथ, नई दिल्‍ली 26 जनवरी की झांकी देखने पहुंचा. उसको पूरा कार्यक्रम मजेदार लगा. सबसे आकर्षक लगी विभिन्‍न राज्‍यों और मंत्रालयों की झांकियां.

अब्‍बू ये क्‍या है? हिमाचल प्रदेश की झांकी देखकर उसने पूछा.

बेटा ये हिमाचल प्रदेश की झांकी है अब्‍बू बोला

.झांकी क्‍या होती है?

झांकी..... यानी किसी जगह की झलक.... यानी इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि वह राज्‍य कैसा होगा? झांकी उसकी तस्‍वीर पेश करती है. अब्‍बू ने पूरी कोशिश कर 'झांकी' को परिभाषित किया.

कुछ देर बाद दिल्‍ली की झांकी आई. अब्‍बू ने मोइन को बताया कि यह दिल्‍ली की झांकी है.

लेकिन यह तो अधूरी है... मोइन ने परेशान होते हुए कहा इसमें हमारी झुग्‍गी की तस्‍वीर नहीं है