षडयंत्र / संजय अविनाश

Gadya Kosh से
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"मेरा आदमी कैसे छुटेगा, इसपर आप सोचो। जब मेरा साथी रहेगा तो सब काम आसान होगा। निर्दोष व्यक्ति भी तो बाहर निकलकर अपना घर परिवार संभालेगा?"

कॉबिंग ऑपरेशन में पकड़ाये गये प्रतिबंधित सदस्यों के कमांडर ने फोन से सत्तारूढ़ मंत्री से कहा।

"भाई दूसरे लोगों की बात छोड़ो न! जहाँ तक अपनी बात है तो वह भी होगा, जेल की दीवार भी टूटेगी। ध्यान दोगे, एक भी पुलिसकर्मी की हत्या न हो पाए. बता दी जाएगी, किस जेल की दीवार कमजोर है... सांप भी और लाठी भी..."

मंत्री की बात समाप्त भी नहीं हो पाई कि कमांडर ने कहा, "मैं आपकी तरह शैतान नहीं हूँ, न ही अपने स्वार्थ के वश चलता हूँ। ऐसे कायरों के कारण ही हमारा देश आजाद होकर भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है... छोड़ो इन सब बातों को और मेरी मांगे पूरी करो। वरना, समझ ही रहे हो।"

"नहीं... भाई साब! ऐसा न करो। मैं आपकी मांगें पूरी करने की हरसंभव कोशिश करूँगा। पर, इस तरह नहीं। मेरी भी नीति का अवलोकन किया जाता है। मैं भी संविधान के अंतर्गत आता हूँ। बाकी पीछे वाला दरवाजा खुला रहेगा।"

मंत्री की बातें सुनकर कमांडर ने ठहाका लगाते हुए कहा, " मेरे लिए कोई दरवाजा बंद नहीं, अगर चाहूँ तो... और झटके के साथ फोन कट कर दिया।