संकट काल से नायक जन्मते हैं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 31 अक्टूबर 2018
आयुष्मान खुराना अभिनीत सारी फिल्मों ने सफलता प्राप्त की है। किसी दौर में फारुख शेख और अमोल पालेकर भी कम बजट में बनी फिल्मों में काम करते थे और उनकी फिल्मों की सफलता भी कुछ इसी तरह की थी। तीनों खान सितारे असफल फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। जैसे रेलगाड़ी के डिब्बे में 3 टियर कोच होते हैं। वैसे ही फिल्म उद्योग में कलाकारों के भी 3 टियर होते हैं। शिखर टियर पर खान विराजमान हैं, मध्य के स्थान पर अक्षय कुमार, अजय देवगन जमे हुए हैं और आयुष्मान खुराना नीचे से नंबर एक पायदान पर विराजे हैं। फिल्मों के बजट भी भव्य बजट, मध्यम बजट और अल्प बजट के रूप में वर्णित किए जाते हैं। सामाजिक सौद्देश्यता की मनोरंजक फिल्म 'सुई धागा' का व्यवसाय 100 करोड़ के नज़दीक पहुंच चुका है। हाल ही में 'बधाई हो' की सफलता भी उल्लेखनीय मानी जाती है।
अमोल पालेकर की अल्प बजट की फिल्मों की सफलता के कारण फिल्मों के निर्माता बलदेव राज चोपड़ा ने उनके साथ एक फिल्म बनाई थी। इसी तरह आयुष्मान खुराना को भी बड़े निर्माता आमंत्रित कर रहे हैं। नायिकाओं की श्रेणी में दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा और कैटरीना कैफ मौजूद हैं तो मध्यम श्रेणी में अनुष्का शर्मा मौजूद हैं, जिन्हें सलमान खान के साथ 'सुल्तान'में लिया गया था। भूमि पेडनेकर को भी व्यापक दर्शक वर्ग सराहता है और वे आयुष्मान खुराना की तरह ही सफलता अर्जित कर रही हैं। बॉक्स ऑफिस वजन लेने की मशीन की तरह है और सितारों का वजन मानदंड तय करता है। वरुण धवन अत्यंत लोकप्रिय सितारा हैं परंतु मध्यम बजट की 'बदलापुर' में उनका अभिनय बहुत सराहा गया था। इसी तरह नेताओं की भी श्रेणियां रही हैं। जवाहरलाल नेहरू के अंतिम वर्षों में मीडिया में 'नेहरू के बाद कौन?' पर बड़ी चिंता प्रकट की जाती थी परंतु छोटे कद के लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी संक्षिप्त पारी में नेहरू परम्परा को ही आगे बढ़ाया। इंदिरा गांधी के आगमन के समय उन्हें 'गूंगी गुड़िया' कहा जाता था परंतु बांग्लादेश के उदय के समय कहा गया कि उनके मंत्रिमंडल में वे ही एकमात्र पुरुष हैं।
इसी तरह आज एक खोखली चिंता यह व्यक्त की जा रही है कि वर्तमान हुक्मरान अव्यवस्था ही दे पाए हैं परंतु कोई विकल्प नहीं नज़र आता। सच्चाई तो यह है कि हर क्षेत्र में प्रतिभाशाली लोग हैं और परिस्थितियां स्वयं अपने लिए नेता को जन्म देती हैं। सारे राजनीतिक दलों में कुछ प्रतिभावान युवा नेता हैं और अवसर मिलते ही वे सक्षम विकल्प सिद्ध होंगे। दक्षिण भारत में किसने सोचा होगा कि रजनीकांत के कालखंड में ही 'बाहुबली' में प्रभास सामने आएंगे। उनका तो नाम भी किसी ने नहीं सुना था। उनके दृष्टिकोण का प्रमाण यह है कि सफलता के पीछे भागने वाले तथा सफल माने जाने वाले एक मुंबईया निर्माता ने प्रभास को अनुबंधित करना चाहा तो उन्होंने दो टूक जवाब दिया कि अभी तक उन्होंने ऐसी कोई महान फिल्म नहीं बनाई है कि प्रभास उनके लिए काम करे। वह निर्माता एक बड़े गुब्बारे की तरह गया था और प्रभास की सुई गड़ी तो उसकी हवा निकल गई और वह इस्तेमाल करके फेंके हुए रबर की तरह दिखने लगा।
आयुष्मान अच्छे गायक भी हैं और धुन बनाना भी उन्हें आता है। अपनी फिल्म 'विकी डोनर' के एक गीत की रचना भी उन्होंने की थी। आयुष्मान खुराना को विदेश से भी एक प्रस्ताव मिला है परंतु वे स्वदेश में ही जमे रहना चाहते हैं। फिल्म उद्योग में अविश्वसनीय घटनाएं घटित होती हैं। ताजा खबर यह है कि राज कपूर के छोटे सुपुत्र राजीव कपूर को आशुतोष गोवारिकर ने अपनी आगामी फिल्म के लिए अनुबंधित किया है।
ज्ञातव्य की राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' के पहले प्रदर्शन के बाद राजीव ने अनेक असफल फिल्मों में अभिनय किया है और जब वे अपने क्षेत्र में सारी उम्मीदे खो चुके थे तब आशुतोष गोवारिकर ने उन पर दांव खेला है। यह खबर प्रकाशित हो चुकी है कि आरके स्टूडियो को लगभग 300 करोड़ रुपए में गोदरेज ने खरीद लिया है। आरके स्टूडियो फिल्म विरासत रहा है, जिसके बेचे जाने की शुरुआत एक नन्हे दीप से हुई। किसी सीरियल में दीपावली के दृश्य के लिए अनेक दिये जलाए गए थे और शूटिंग समाप्त होने पर एक दिया बुझाना भूल गए और उससे लगी आग ने पूरे स्टूडियो को जला दिया। इस अग्निकांड के बाद ही कपूर भाइयों ने उसे बेचने का निश्चय किया। अगर कपूर बंधु अपने पिता की मृत्यु के बाद फिल्म निर्माण जारी रखते तो यह नौबत नहीं आती। प्रतिभा वंशानुगत नहीं है। महान शांताराम के पुत्र ने फिल्में नहीं बनाईं और स्टूडियो बंद हो गया। वहां बहुमंजिला इमारत बन गई हैं। मेहबूब स्टूडियो आज भी कायम है, क्योंकि मेहबूब खान अपनी वसीयत में यह लिख गए हैं कि स्टूडियो द्वारा अर्जित रकम पर उनके वंशजों का अधिकार होगा परंतु यह बेचा नहीं जा सकता। मेहबूब खान पढ़े-लिखे नहीं थे। कभी स्कूल नहीं गए परंतु उनके पास व्यावहारिक ज्ञान भी था और दूरदृष्टि भी थी। इतिहास लिखने के लिए पारम्परिक शिक्षा आवश्यक नहीं है।