संकेत / अनिल जनविजय
हूटर की गुरोहट सारे वातावरण पर छा गई थी। वह लंच का संकेत था। मज़दूर अपनी पोटलियाँ उठाए इधर-उधर फैल गए थे। मैं भी लंचबॉक्स लेकर पेड़ के नीचे चला आया। दो-तीन मजदूरिनें वहां पहले से ही बैठी थीं, अपने गन्दे-सन्दे बच्चों के साथ। पर उनमें से एक बच्चा मुझे बहुत अच्छा लगा। उसके हाथ में सूखी रोटी का एक टुकड़ा था, जो उसकी मां ने उसे थमा दिया था।
मेरे पेट में भी चूहों ने घमासान मचा रखा था। लंच-बॉक्स खोलकर खाने बैठ गया। मां ने आज मटर-पनीर की सब्जी भेजी थी, देशी घी के पराँठों के साथ। सुगन्ध से ही मुँह में पानी भर आया। वह बच्चा टुकर-टुकर मेरी ओर ताक रहा था। मैंने उसे रोटी का टुकड़ा दिखाया और अपने पास बुलाया। वह मचलने लगा था।
मैं फिर खाने में तल्लीन हो गया। न जाने कब वह बच्चा मेरे पास तक सरक आया था। अचानक ही उसने मेरे खाने पर झपट्टा मारा और सारा खाना ज़मीन पर जा गिरा। मैंने गुस्से से उसकी तरफ़ ताका और उसने सूखी रोटी का टुकड़ा मेरी तरफ़ बढ़ा दिया। हूटर फिर गुर्रा रहा था।