संगम के शहर की लड़की / दयानंद पाण्डेय
वह रास्ते में अचानक रुक गया। नजारा ही कुछ ऐसा था। एक बीस-बाइस साल की गोरी चिट्टी लड़की तेज-तेज चलती जा रही थी और उस के पीछे-पीछे एक पचास-पचपन साल का आदमी लगभग दौड़ता हुआ, ‘सुनो तो! मेरी बात तो सुनो।’ घिघियाता जा रहा था। साथ में एक सिपाही भी रायफल लिए उनके पीछे-पीछे, धीरे-धीरे चल रहा था। बिलकुल ख़ामोश अंदाज में। बिना कोई हस्तक्षेप किए। और वह, ‘सुनो तो, सुनो तो।’ घिघियाता ही जा रहा था। लेकिन लड़की उस की एक नहीं सुन रही थी। उस ने गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी की। फाटक खोल कर बाहर निकला। फाटक बंद कर टेक लगा कर खड़े-खड़े उन दोनों को देखने लगा। लड़की थी कि मान नहीं रही थी। और वह अधेड़ व्यक्ति था कि उसे छोड़ नहीं रहा था। मामला बढ़ते देख वह उन दोनों के पास पहुंचा। पूछा, ‘बात क्या है?’
‘क्या बताऊँ भइया, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।’ अधेड़ व्यक्ति ने लगभग हथियार डालते हुए कहा, ‘जरा आप ही समझाइए!’
‘आखि़र बात क्या है?’
‘मैं कह रहा हूं कि यह तलाक ले ले। लेकिन यह मान ही नहीं रही है!’
‘क्या बात कर रहे हैं?’ वह बोला, ‘आप ने इस से शादी की ही क्यों? शर्म नहीं आई आप को? आप की बेटी जैसी है!’
‘बेटी जैसी नहीं, बेटी ही है यह हमारी!’
‘ओह!’ वह बोला, ‘फिर किससे तलाक लेने को कह रहे हैं?’
‘इस के पति से।’ वह बोला, ‘लेकिन यह मान ही नहीं रही है।’
‘आप पिता हो कर भी बेटी से तलाक की बात क्यों कर रहे हैं?’
‘इस लिए कि इस की शादी ग़लत हो गई है।’
‘ग़लत हो गई मतलब?’
‘उस की एक बीवी पहले से ही है।’
‘तो उस से शादी की ही क्यों आपने?’
‘यही तो ग़लती हो गई।’
‘ओह! क्या आप को पहले से नहीं पता था?’
‘पता होता तो करता क्यों?’ माथे पर हाथ फेरते हुए वह बोला।
‘लड़का करता क्या है?’
‘कौन लड़का?’
‘मतलब आप का दामाद!’
‘रेलवे में अफसर है।’
‘मिला कैसे?’
‘विज्ञापन के थ्रू।’
‘आप ने कुछ जांच-पड़ताल नहीं की?’
‘की तो थी।’ वह बोला, ‘लेकिन चूंकि दहेज नहीं ले रहा था, इस लिए ज्यादा ठोंक-पीट नहीं की।’
‘वह रहने वाला कहां का है?’
‘गोंडा का।’
‘और आप लोग?’
‘इलाहाबाद के।’
‘किस जाति के हैं?’
‘ब्राह्मण।’
‘और वह?’
‘वह भी ब्राह्मण है।’
‘तलाक का मुकदमा दायर हो गया है?’
‘हां।’
‘किसने किया?’
‘लड़के ने ही।’
‘क्यों?’
‘अब वह अपने परिवार में लौटना चाहता है।’ वह बोला, ‘लौटना चाहता है क्या बल्कि लौट चुका है।’
‘तो यह कहां रह रही है?’ लड़की की ओर इंगित करते हुए उस ने पूछा।
‘मेरे साथ इलाहाबाद में।’
‘ओह!’ उस ने पूछा, ‘लड़के को आपने समझाया नहीं?’
‘वह अभी कहां है?’
‘अंदर कोर्ट में है।’
‘मैं उसे समझाने की कोशिश करूं?’
‘कोई फायदा नहीं।’ वह बोला, ‘अब समझाना ही है तो उसे नहीं, इसे समझाइए। वह इसे दुत्कार रहा है और यह उस के प्यार में पागल हुई जा रही है।’
‘कितने दिन दोनों साथ-साथ रहे?’
‘ज्यादा से ज्यादा दो-तीन महीने।’
‘शादी हुए कितने दिन हुए?’
‘यही कोई आठ महीने।’
‘बच्चे-वच्चे की संभावना तो नहीं है?’ उस ने लड़की के पिता के कान में फुसफुसा कर पूछा।
‘नहीं-नहीं।’
‘फिर तो ठीक है।’ उस ने पूछा, ‘क्या दोनों के साथ रहने की कोई संभावना नहीं है?’
‘अब लड़का रखने को ही तैयार नहीं है तो क्या करें?’
‘आखि़र दिक्कत क्या है?’
‘अब यह तो वही जाने।’
‘लड़की तलाक से मना क्यों कर रही है?’
‘यह उस के प्यार में पड़ गई है।’
‘क्या यह उसे पहले से जानती थी?’
‘नहीं साहब। हम इलाहाबाद में थे और वह लखनऊ में। जानने की कोई सूरत ही नहीं थी।’ लड़की का पिता बोला, ‘विज्ञापन के मार्फत जो भी पत्राचार-बातचीत हुई, मुझ से ही हुई।’
‘शादी बाजे-गाजे के साथ हुई या कोर्ट में?’
‘मंदिर में।’
‘लड़के की ओर से भी कोई था?’
‘उस के चार-छः दोस्त थे।’
‘क्यों उस के मां-बाप?’
‘उस ने बताया था कि मां-बाप से पटती नहीं है।’
‘और भाई-बहन, नाते-रिश्तेदार?’
‘कोई नहीं आया था।’
‘तो आप को खटका नहीं?’
‘खटका तो था।’ सिर खुजलाते हुए लड़की का पिता बोला, ‘चूंकि रेलवे की अच्छी नौकरी में था, दहेज नहीं ले रहा था इस लिए यह सब कुछ सूझ कर भी नहीं सूझा। क्या बताऊं!’
‘अच्छा चलिए कोर्ट में लड़के से बात करते हैं।’
‘वो मानेगा नहीं साहब।’ बड़ी देर से पास में खड़ा सिपाही रायफल पर टेक लिए हुए बहुत उदास स्वर में बोला, ‘पर आप भी ट्राई मार लीजिए।’
‘तुम क्या इनके रिश्तेदार हो या जानने वाले?’
‘नहीं साहब हम तो ड्यूटी पर हैं।’
‘तो अपनी ड्यूटी करो, यहां बीच में क्यों घुस रहे हो?’
‘हमारी ड्यूटी इन्हीं के साथ है साहब!’ सिपाही बोला, ‘हम इनकी रच्छा में हैं साहब!’
‘ओह! तो तुम भी इलाहाबाद से आए हो?’
‘हां, हुजूर।’
‘क्या आप की सुरक्षा को भी ख़तरा है?’ उस ने लड़की के पिता से पूछा।
‘असल में क्या हुआ कि लड़के ने जब हमारी बेटी को अपने घर से निकाल दिया, तो हमने उस के खिलाफ दहेज के मुकदमे की अर्जी थाने में दे दी। इलाहाबाद में ही। लड़का अरेस्ट हो गया। लेकिन फिर समझौता हो गया और लड़का उसी दिन छूट गया। लेकिन उस ने समझौते को माना नहीं और हमारी लड़की को अपने घर नहीं ले गया। हम फिर थाने गए। लेकिन थाने वाले माने नहीं। बोले तुम ड्रामा करते हो।’ यह बताते-बताते लड़की का पिता रो पड़ा। वह बताने लगा, ‘फिर हम फेमिली कोर्ट गए। मेंटीनेंस के लिए। इलाहाबाद में ही। लेकिन तब तक लड़के ने लखनऊ के फेमिली कोर्ट में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। आज दूसरी पेशी है। पहली पेशी में उस ने गालियां दीं हम बाप-बेटी को। मारने की धमकी दी। तो अब की इलाहाबाद से सुरक्षा-व्यवस्था ले कर चले ताकि कुछ अप्रिय न हो जाए।’ इधर लड़की का पिता बोलता जा रहा था उधर वह लड़की लगातार रोए जा रही थी। लग रहा था जैसे गंगा-जमुना में भारी बाढ़ आ गई हो। खूब चटक सिंदूर लगाए, फेमिली कोर्ट के अहाते के बाहर उस के आंसुओं की धारा शायद कोई संगम ही ढूंढ रही थी, जो उसे मिल नहीं रहा था। संगम के शहर की यह लड़की अपने पिता की मूर्खता, दहेज बचाने के लालच की यातना में, अपने पति से प्यार की याचना में ऐसे रोए जा रही थी, निःशब्द गोया किसी छलनी से आटा गिरा जा रहा हो, झर-झर, झर-झर। उसे कोई राह नहीं मिल रही थी। हालां कि वह बला की सुंदर थी, और उस की सुंदरता देख कर ही वह यहां रुका भी था। उसे नहीं मालूम था कि इस लड़की की जिंदगी में इतना बड़ा तूफान आया हुआ है। उस की अबोधता, मासूमियत, आंखों से लगातार बहते आंसू और माथे पर उस का चटक सिंदूर सब मिलजुल कर एक ऐसा कंट्रास्ट रच रहे थे कि बरगद के पेड़ के नीचे लग रहा था जैसे कोई नदी फूट पड़ेगी, आग की नदी। हां, उस के मन में तो आग की नदी ही हिलोरे मार रही थी। पिता की मूर्खता और पति की यातना में बिलबिलाई-तिलमिलाई वह लड़की किसी की बात को मानने को भी तैयार नहीं थी। उस की जिद थी और लगातार थी कि वह अपने पति के साथ ही रहेगी, चाहे जो हो जाए। ‘आप कुछ कोशिश क्यों नहीं करते?’ उस ने लड़की के पिता से मुखातिब हो कर कहा।
‘क्या करें? अब उस की पहली पत्नी लखनऊ में रहने लगी है उस के साथ।’
‘पहले नहीं रहती थी?’
‘नहीं।’
‘तो क्या हुआ? मैं फिर भी साथ रह लूंगी!’ लड़की रोती हुई बोली।
‘पर वह रखे तब तो?’
‘वह नहीं रखे, तब भी मैं रह लूंगी।’ वह अपने पिता और सिपाही की ओर देखती हुई बोली, ‘मुझे कोई मुकदमा, कोई तलाक नहीं चाहिए!’
‘क्यों? क्यों नहीं चाहिए?’ लड़की का पिता बिलबिलाया।
‘क्यों कि मैं उनके बिना रह नहीं सकती।’ वह बोली, ‘और मैं दूसरी शादी भी नहीं कर सकती जैसा कि आप चाहते हैं।’
‘हे भगवान! अब मैं क्या करूं?’ अपना सिर पकड़ कर जमीन पर बैठते हुए लड़की का पिता रो पड़ा। अभी तक तो सिर्फ लड़की रो रही थी, अब पिता भी रोने लगा। उस ने सिपाही की ओर देखा और लगा कि अब सिपाही भी रोने ही वाला है। अजब थी यह यातना। उसे लगा कि अब वह भी रो पड़ेगा। उस ने सिपाही की ओर देखा और पूछा, ‘तुम उस लड़के को पहचानते हो?’
‘हां हुजूर! लंबा सा है।’ वह रायफल संभालते हुए तेजी से फेमिली कोर्ट की ओर चला और बोला, ‘आइए!’
कोर्ट के बरामदे में वह लड़का मिल गया। लंबा सा। हैंडसम सा। लगभग तीसेक साल का। मतलब लड़की से लगभग आठ साल बड़ा।
‘हजूर!’ सिपाही लड़के से मुखातिब होता हुआ बोला, ‘ई साहब आप से बात करना चाहते हैं।’
‘बोलिए!’ वह उस की ओर तरेरता हुआ बोला।
‘आप जरा, इधर आएंगे!’ वह लड़की और लड़की के पिता की ओर दिखाता हुआ बोला।
‘नहीं, आप यहीं बताइए।’ वह धीरे से गुर्राया। आंखों में उस की बेतरह घृणा पसरी हुई थी।
‘अच्छा, वहां नहीं, न सही, इस तरफ आएंगे? जरा भीड़ से हट कर!’ वह एक दूसरा पेड़ उसे दिखाते हुए बोला।
‘नहीं, आप यहीं बताइए।’ वह बरामदे से जरा निकलता हुआ बोला।
‘चलिए यहीं बात करते हैं।’ उस ने बात शुरू की, ‘आख़िर आप को अपनी पत्नी से दिक्कत क्या है?’
‘कोई दिक्कत नहीं है।’ वह आंखें फैलाता हुआ बोला, ‘मैं अपनी पत्नी के साथ बाखुशी रह रहा हूं।’
‘मैं आप की पहली पत्नी की नहीं, दूसरी पत्नी की बात कर रहा हूं।’ वह उस की आंखों में आंखें डालता हुआ बोला, ‘आखि़र, उस को भी साथ रखने में दिक्क़त क्या है?’
‘दिक्कत यह है कि मुझे अपनी और अपनी बीवी-बच्चे की जान प्यारी है।’ वह लगभग चबाता हुआ बोला, ‘और यह हम लोगों की जान की दुश्मन है!’
‘वह कैसे?’
‘साथ रखेंगे तो यह हम सब को जहर दे देगी।’
‘क्या बात कर रहे हैं आप?’
‘बिलकुल ठीक कह रहा हूं।’ वह लगभग डपटता हुआ बोला, ‘समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है। बताइए भला, जिसने दहेज बचाने के लिए मैं शादीशुदा हूं जान कर भी, अपनी लड़की की शादी की, उसी ने दहेज लेने का मुकदमा मेरे खि़लाफ लिखवाने की कोशिश की। तो उस की लड़की कुछ भी कर सकती है।’
‘शादी के पहले उन को मालूम था कि आप शादीशुदा हैं?’
‘सब मालूम था।’
‘विज्ञापन किसने दिया था?’
‘मैंने दिया था।’
‘तो विज्ञापन में लिखा था कि आप शादीशुदा हैं?’
‘नहीं।’
‘यह तो चीटिंग हो गई?’
‘लेकिन बाद में मैं ने बता दिया था।’
‘क्या बता दिया था?’
‘यही कि पहली पत्नी से मेरी नहीं पटती, क्यों कि वह जाहिल है, इस लिए दूसरी शादी कर रहा हूं।’
‘और वह अब जाहिल नहीं रही? और पटने लगी?’
‘हां, अब पटने लगी क्यों कि वह धोखेबाज नहीं है इस की तरह। पहली पत्नी ने कोई रिपोर्ट नहीं लिखवाई इस की तरह। जब कि वह लिखवा सकती थी।’
‘हो सकता है जल्दबाजी में उस से कोई ग़लती हो गई हो?’ वह बोला, ‘पिता के कहने में आ गई हो।’
‘नहीं ऐसा नहीं है।’ मैं ने थाने में उस से कहा था, ‘देखो जिंदगी हमारी-तुम्हारी है, पढ़ी-लिखी समझदार हो, किसी के कहने में मत आओ। लेकिन इसने मेरी एक न सुनी और पुलिस मुझे बेइज्जत करती रही। वह बेइज्जती मैं नहीं भूल सकता।’
‘लेकिन वह कितनी अबोध और निर्दोष है!’
‘अगर इतनी अबोध और निर्दोष है तो आप खुद क्यों नहीं शादी कर लेते?’ वह उस की आंखों में आंखें डालते हुए बड़ी बदतमीजी से बोला, ‘आप ही कर लीजिए शादी। कर दीजिए उस का उद्धार!’
‘क्या बेवकूफी की बात कर रहे हो?’
‘बेवकूफी की बात मैं नहीं, आप कर रहे हैं। जब मैं ने एक बार कह दिया कि कोई समझौता नहीं हो सकता तो नहीं हो सकता।’
‘आप सरकारी नौकरी में हैं, आप जानते हैं कि अगर वह शिकायत कर दे आप के ऑफिस में तो आप की नौकरी भी जा सकती है।’
‘जानता हूं और अच्छी तरह जानता हूं कि वह कुछ भी नहीं कर सकती!’
‘क्यों नहीं कर सकती?’
‘क्यों कि इस मामले में कानून उस का साथ नहीं देता। अगर देता तो अब तक वह शिकायत कर चुकी होती।’
‘आप को उस की सुंदरता पर भी तरस नहीं आता?’
‘नहीं आता।’ वह बड़ी हिकारत से बोला, ‘वह सुंदर नहीं, विष कन्या है। जहर से भरा हुआ दिमाग़ है उस का।’
‘वह आप से बहुत प्यार करती है और कहती है कि आप के बिना रह नहीं सकती। आप के लिए अपने मां-बाप को भी छोड़ने को तैयार है।’
‘वह प्यार नहीं ड्रामा करती है। और बाप भी उस का बहुत धूर्त है।’
‘तो कोई गुंजाइश नहीं बनती? कोई रास्ता नहीं निकलता?’
‘बिलकुल नहीं।’
‘एक बार फिर से सोच कर देखिए। मेरा कहा मान लीजिए।’
‘इस मुद्दे पर तो मैं विधाता का भी कहना मानने वाला नहीं हूं। उस से कहिए जो करना हो कर ले!’
‘यह तो सरासर गुंडई है!’
‘जो भी है अब आप जाइए! मुझे कोई बात नहीं करनी है।’ कह कर उस ने हाथ जोड़ लिए। वह वापस लड़की और लड़की के पिता के पास आ गया। सिपाही भी साथ था। वह अचानक किचकिचा कर लड़की के पिता से मुखातिब होता हुआ बोला, ‘दूबे जी, अगर आप कहें तो कोर्ट के बाहर निकलते ही एही रायफल के कुंदा से साले को कूंच के रख दूं। आप की रच्छा में हई हूं। कह दूंगा कि आप पर हमला किया था। साले की सारी शेखी निकल जाएगी।’
‘कूंच दो साले को!’
‘नहीं कुछ मत करना!’ लड़की बिलबिलाती हुई बोली, ‘अगर उन को छुआ भी तो जान पर खेल जाऊंगी। गवाही भी दे दूंगी तुम लोगों के खि़लाफ!’
‘ओह! क्या करूं इस लड़की की समझ में नहीं आता! अभी दो और लड़कियां पड़ी हैं।’ लड़की का पिता मेरी ओर मुखातिब होता हुआ बोला, ‘समझाइए जरा इस को कि वह तलाक दे रहा है तो ले ले। फिर कहीं इस की दूसरी शादी कर दूंगा। बाकी दो और इस से छोटी हैं। यह ऐसे ही रहेगी तो उन की भी शादी में मुश्किल होगी। समझाइए भइया कुछ इस को समझाइए!’
‘अब मान जाओ बिटिया!’ सिपाही भी मनुहार करता हुआ बोला, ‘ऊ लवंडा मानने वाला है नहीं।’
‘आप लोगों को जो करना हो करिए, मुझे जो करना होगा मैं करूंगी।’ कहती हुई वह मेरी तरफ मुख़ातिब हुई, ‘प्लीज, अब आप भी जाइए!’ और वह फिर से रोने लगी।