संगीतकार भंसाली का संगीत नौशाद साहब की याद दिलाता है / नवल किशोर व्यास

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संगीतकार भंसाली का संगीत नौशाद साहब की याद दिलाता है


इस साल की दो सबसे बड़ी फिल्मो के दो-दो गाने इंटरनेट पर रिलीज हुई है। केवल दो गाने इसलिए क्योंकि आजकल किसी फिल्म के गाने एक साथ कैसेट या सीडी में जारी नही होते। उन्हें इंटरनेट पर एक एक करके रिलीज किया जाता है। दोनों फिल्में बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित हैै। एक है संजय लीला भंसाली की पद्मावती और दूसरी शंकर की 2.0। भंसाली की फिल्म का संगीत भंसाली ने खुद ने दिया है और शंकर की फिल्म का संगीत रहमान ने। दोनो का संगीत बनावट में एक दूसरे का विलोम है। पद्मावती में चिर परिचित भंसाली अंदाज के ठेठ शास्त्रीय रागों पर आधारित धुनें है तो 2.0 में रहमान का आधुनिक टैक्नो संगीत। पद्मावती के दोनों गाने घुमर और एक दिल है का फ्लेवर भंसाली के पिछली फिल्मों के संगीत के दोहराव के बावजूद मीठापन और आराम लिए है। ये आराम अब बाकी फिल्मों में मिलना मुश्किल है। ये गजब बात है कि संजय लीला भंसाली संगीत सीखे हुए नही है और अपनी हर फिल्म में इतनी मुश्किल रागों पर आधारित संगीत दिए जा रहे है। कला में आकंठ डूबा आदमी कुछ भी कर सकता है। शंकर की फिल्म में रहमान का संगीत हर बार की तरह आगे का है। रिदम और अर्रेंगमेंटस एक बार फिर से जादुई है। रहमान का सम्मोहन बरकरार है, बशर्ते सुनने वाले इस तरह का संगीत पसन्द करते हो। भंसाली नौशाद शाहब की याद दिलाते है। आज नौशाद साहब जिन्दा होते तो भंसाली का इस्तकबाल किये बगैर नही रहते। भंसाली निर्देशन के साथ साथ संगीत में भी जादू जगा रहे है। पहले के कलाकारों का दिल बड़ा होता था। ये लोग अपनी पहल से अपना श्रेष्ठ देते थे और आगे बढ़कर दूसरे के श्रेष्ठता की रक्षा किया करते थे। आज ये बातें बेमानी है। इन्ही नौशाद साहब ने अपने से काफी जूनियर मदन मोहन की दो धुनों के की तारीफ में कहा था कि इस पर उनका सारा रचा संगीत कुर्बान।


कलाकारों के बड़े दिल दिखाने की बात से एक किस्सा और याद आता है। नौशाद साहब से ही जुड़ा है। फिल्म बैजू बावरा से। यह फिल्म बनी है हिन्दुस्तानी संगीत की एक अज़ीम शख्सियत बैजनाथ, यानी बैजू की ज़िंदगी पर, जो तानसेन के समकालीन थे, और एक किंवदन्ती के अनुसार उन्होंने अकबर के दरबार में आयोजित संगीत प्रतियोगिता में तानसेन को हराया था। फिल्म में शकील बदायूनी और नौशाद साहब का कमाल आज भी लोगों की ज़बान पर है। बैजू बावरा का किरदार निभाया था भारत भूषण ने और तानसेन बने थे गुज़रे ज़माने के गायक और अभिनेता सुरेन्द्र। तानसेन की शास्त्रीय गायकी को आवाज़ देने का जिम्मा दिया गया मशहूर और प्रतिष्ठित गायक उस्ताद अमीर खान साहब को, जो बड़ी मिन्नत-ओ-इसरार के बाद इसके लिए राजी हुए। बैजू पर फिल्माए गए लगभग सभी गाने फिल्म में मोहम्मद रफी साहब ने गाये। पर निर्देशक विजय भट्ट और नौशाद साहब उस वक़्त मुश्किल में पड़ गए, जब तानसेन और बैजू के मुकाबले वाला गाना ‘आज गावत मन मेरौ झूम के’ रिकोर्ड किया जाना था। तानसेन के किरदार वाला हिस्सा अमीर खान साहब गा रहे थे, और उन्हें बैजू से हारना था। अब समस्या यह थी कि ऐसा कौनसा गायक है, जो अमीर खान साहब को हराए। मुश्किल यह भी थी, कि खान साहब के सामने यह प्रस्ताव कैसे रखा जाये, कि उन्हें किसी गायक से संगीत प्रतियोगिता में किसी से हारना है। भट्ट साहब और नौशाद साहब की घबराहट बढ़ रही थी और कोई राह नहीं दिखाई दे रही थी। 


तो जनाब ऐसी मुश्किल में राह दिखाई ख़ुद उस्ताद अमीर खान साहब ने। अमीर खान साहब की महानता देखिये, कि उन्होंने ख़ुद ही आगे बढ़कर ऐसे गायक का नाम सुझाया, जिनसे हारने से उन्हें कोई गुरेज़ नहीं था। यहाँ यह बता देना ज़रूरी है, कि ये वो ज़माना था, जब उस्ताद अमीर खान साहब हिन्दुस्तानी मौसीक़ी के सबसे प्रतिष्ठित कलाकारों में से एक थे। तो उन्होंने नाम सुझाया पंडित डी.वी. पलुस्कर का, जो यूँ तो खां साहब से जूनियर थे, पर ग्वालियर घराने के एक रौशन नुमाइंदे थे। वे महान संगीतकार विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी के पुत्र थे। उस्ताद अमीर खान साहब को उनकी प्रतिभा पर पूरा भरोसा था और इस तरह एक संगीत का चमकता दमकता सितारा अपने से काफी जूनियर से हारता है। प्रतिस्पर्धा के बावजूद प्रतिभा को स्वीकार कर के उसे उचित स्थान दिलवाने में खान साहब ने फ़राग़दिली का मुज़ाहिरा किया। बैजू बावरा की रिलीज़ के केवल तीन साल बाद मात्र 34 साल की छोटी उम्र में महान गायक डी.वी. पलुस्कर साहब इस दुनिया से विदा हो गये और छोड़ गए अपने संगीत की विरासत और ये तमाम किस्से। 

भंसाली की पद्मावती और रहमान के 2.0 के बाकी गानो का इंतजार है।