संगीत, सिनेमा और सांप / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :16 जुलाई 2016
शुक्रवार को नई फिल्मों का प्रदर्शन प्रारंभ होता है। 'शोले' के साथ ही 'जय संतोषी मां' का प्रदर्शन हुआ और लागत के हिसाब से उसकी कमाई 'शोले' से अधिक हुई है। इसके निर्माता को फुटपाथ पर किताबें बेचने वालों की एक दुकान से संतोषी मां की पुस्तक मिली थी और फिल्म के प्रदर्शन के बाद संतोषी मां का उपवास करने वालों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई। ज्ञातव्य है कि फिल्मों का प्रदर्शन शुक्रवार से ही वीकेंड का फायदा उठाने के लिए होता है। भारत में कथा फिल्मों का निर्माण ही 'राजा हरिश्चंद्र' नामक मायथोलॉजी से हुआ था और आधा दर्जन दशकों बाद फिल्म के माध्यम से मायथोलॉजी का तब तक गुमशुदा स्वरूप पुन: स्थापित हुआ। अत: फिल्म उद्योग ने मायथोलॉजी से जो पाया था, वह उसे लौटा भी दिया। इस तरह हिसाब बराबर हो गया। ज्ञातव्य है कि फिल्म 'जय संतोषी मां' के कस्बों में प्रदर्शन के समय अनेक दर्शक चप्पल-जूते सिनेमाघर के बाहर ही उतार देते थे, मानो वे एक मंदिर में प्रवेश कर रहे हों। फिल्मों को लेकर किवदंतियां इस तरह भी गढ़ी गई हैं कि एस. मुखर्जी की 'नागिन' में बीन बजने वाले दृश्य के समय एक सांप सिनेमाघर में आ गया और परदे के सामने डोलने लगा, जबकि सांप सुनने में असमर्थ होता है। वह बीन बजाने वाले के सामने डोलता है, वह बीन बजाने वाले की हिलती गर्दन और फूलते गालों का अनुकरण कर रहा होता है। उस दौर में कल्याणजी ने विदेश से क्ले-वायलिन नामक वाद्ययंत्र आयात किया था, जो हार्मोनियम की तरह होता है और इसी से बीन की वह ध्वनि पैदा की गई थी। क्ले-वायलिन पर विविध वाद्य यंत्रों की ध्वनि निकाली जा सकती है। ज्ञातव्य है कि मुखर्जी की 'नागिन' के संगीतकार हेमंत कुमार थे और कल्याणजी भाई मात्र एक वादक थे।
कुछ गुणी लोग अपने मुंह से विविध वाद्य यंत्रों की ध्वनि निकालते हैं और इस विद्या को बीट-बॉक्सिंग कहते हैं। कल्याणजी, भाई शंकर जयकिशन की रिकॉर्डिंग में वादक के रूप में काम करते थे। दरअसल वादक किसी एक संगीतकार से बंधे नहीं होते, परंतु अरेंजर संगीतकार के साथ बंधा होता है। अरेंजर का पद महत्वपूर्ण है। यही व्यक्ति गीत की स्वरलिपी को वादकों में बांटता है और उन्हें रिहर्सल भी कराता है। इसी तरह, संगीतकार के रूप में कल्याणजी भाई ने सफलता मिलने के कुछ वर्ष पश्चात अपने भाई आनंदजी को भी अपने साथ जोड़ लिया। दोनों ही भाई गुणी हैं, साथ ही चुटकुले सुनाने में उन्हें महारत हासिल रही है। इन दोनों की तरह ही लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल भी पहले वादक ही थे। एक लंबे दौर तक लगभग सौ या सवा सौ वादक रिकॉर्डिंग में बुलाए जाते थे। कुछ वर्ष पूर्व ऐसी मशीनें आ गईं जिन पर किसी भी वाद्य यंत्र की ध्वनि उत्पन्न की जा सकती है। टेक्नोलॉजी के इस कदम के बाद आजकल बमुश्किल दर्जनभर वादकों के साथ गीत रिकॉर्ड किया जाता है। इस मशीन में इतने तार लगे होते हैं कि संगीतकार इलेक्ट्रिशियन की तरह नजर आता है। कम्प्यूटर जनित ध्वनियों के कारण वादक घर बैठ गए हैं। उनमें से कुछ अन्य व्यवसाय में चले गए हैं। कम्प्यूटर जनित ध्वनि के आगमन के बाद आज आप शहनाई वादक खोजने निकलो तो कठिनाई से मिलते हैं। भारतीय फिल्म संगीत को टेक्नोलॉजी ने इस तरह हानि पहुंचाई है। आज तो दस बाय दस के कमरे में रिकॉर्डिंग की जा सकती है।
टेक्नोलॉजी गर्भवती सर्पणी की तरह एक कतार में अनेक अंडे देती है और वापसी में भूखी होने के कारण अपने ही अंडे खाने लगती है। तेज हवा के कारण कतार से लुढ़के हुए दो-चार अंडे ही बच पाते हैं। प्रकृति के इस नियम के कारण सांपों की संख्या सीमित है अन्यथा मनुष्यों से अधिक सांप होते, परंतु कुछ मनुष्यों की विचार प्रक्रिया में सांप से अधिक घातक जहर होता है। कुछ मनुष्यों की जबान में जहर होता है, जबकि 90 प्रतिशत सांप जहरीले नहीं होते। मनुष्य में जहर नहीं होने का इतना बड़ा प्रतिशत नहीं है। सांप के जहर का इलाज है, परंतु जहरीले मनुष्य के काटे का इलाज नहीं है। कुछ सांप के दो मुंह होते हैं और कुछ मनुष्य भी मुखौटे बदलते हैं। रावण के दस सिर केवल मनुष्य के मस्तिष्क के भीतर छुपे विभिन्न मनुष्यों का प्रतीक मात्र है।