संगीनों के साये में संगीत उत्सव / जयप्रकाश चौकसे

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संगीनों के साये में संगीत उत्सव
प्रकाशन तिथि : 07 सितम्बर 2013


आज श्रीनगर, कश्मीर के ऐतिहासिक शालीमार बाग के निकट अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संगीतज्ञ जूबिन मेहता का कार्यक्रम भारत में स्थित जर्मन एम्बेसी के सौजन्य से आयोजित किया गया है और विगत कुछ समय से इस कार्यक्रम का विरोध किया जा रहा है। कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठन इसके खिलाफ हैं। आश्चर्य की बात यह है कि कश्मीर के कुछ कवि भी इस कार्यक्रम के खिलाफ हैं, जबकि कश्मीर और केन्द्र सरकार जर्मन दूतावास द्वारा आयोजित कार्यक्रम को पूरी सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। पूरे क्षेत्र को लगभग फौजी छावनी में बदल दिया गया है और कमोबेश हथियारों के साये में संगीत गूंजेगा। संगीन और संगीत की दुश्मनी पुरानी है।

यहां जूबिन मेहता के विरोध का कारण संभवत: यह है कि इजरायल ने उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया है और भारतीय मूल के इस महान व्यक्ति को अमेरिकन नागरिकता प्राप्त है। 29 अप्रैल 1936 को मुंबई में जन्मे जूबिन मेहता युवा अवस्था में ही अमेरिका चले गए थे और उन्हें अत्यंत प्रतिभाशाली संगीत कंडक्टर माना जाता है तथा उनके जीवन और काम पर टैरी फेन्डर्स नामक फिल्मकार ने 'पोटे्रट ऑफ जूबिन मेहता' नामक पुरस्कार जीतने वाला वृत्तचित्र बनाया है। जूबिन मेहता ने पारसी धर्म से संबंधित एक फिल्म भी बनाई थी।

आतंकवादियों को उनका भारतीय मूल का अमेरिकन होना, साथ ही इजरायल का राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त होना अखर रहा है तो कोई उन्हें बताए कि जूबिन मेहता को टैगोर सम्मान के साथ ही सन 2008 में जापान की सरकार ने भी सम्मान दिया है और कैनेडी संस्कृति केन्द्र ने भी उन्हें उच्चतम सम्मान दिया है। सन 2011 में उन्हें हॉलीवुड के प्रसिद्ध गलियारे में दाखिल किया गया है। पश्चिम के शास्त्रीय संगीत की सघन जानकारी रखने वाले जूबिन मेहता का कार्यक्रम देखना एक रुहानी अनुभव है, संगीत संचालन के समय जूबिन मेहता का पूरा शरीर ही एक सिम्फनी बनकर आत्मा में समा जाता है। किसी शरीर को संगीत में ढलते देखना अविस्मरणीय अनुभव होता है और इसके लिए संगीत की समझ न भी हो तो भी महसूस किया जा सकता है। वे इतनी शिद्दत से ध्वनियों को महसूस करते हैं।

ज्ञातव्य है कि 2 जून 1988 को जूबिन मेहता मास्को में एक कार्यक्रम दे रहे थे, जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके परम मित्र राज कपूर की मृत्यु हो गई है। उन्होंने त्वरित एक रचना का सृजन किया और उसे राज कपूर सिम्फनी कहकर प्रस्तुत किया। अपनी हर मुंबई यात्रा में वे राज कपूर के घर आते थे। वे भी भोजन के वैसे ही अगाध प्रेमी हैं, जैसे कपूर परिवार रहा है। जूबिन मेहता को हरी मिर्च का शौक रहा है और एक छोटी, परंतु अत्यंत तीखी मिर्च वे अपने साथ ही रखते हैं। यह संयोग ही है कि अधिकांश संगीत प्रेमी भोजन के भी पे्रमी रहे हैं और शेक्सपीयर तो लिख भी चुके हैं- 'इफ म्यूजिक बी द फूड ऑफ लव, प्ले ऑन', यदि संगीत प्रेम की खुराक है या गिजा है तो सुर सजाते रहो। भोजन और संगीत दोनों में ही रस होता है। जिन पांच तत्वों से प्रकृति की रचना हुई है, उन्हीं पांच तत्वों से मनुष्य का शरीर भी बना है, परंतु धरती पर अग्नि और जल शत्रु हैं तो मनुष्य शरीर में उनमें मेल है। जब भूख की अग्नि प्रज्ज्वलित होती है, तब शरीर में रहने वाला जल पाचन क्रिया को सक्रिय करता है। इस मायने में धरती से ज्यादा महत्वपूर्ण मनुष्य का शरीर है, जिसमें विपरीत शक्तियों के सामंजस्य की ताकत है। आतंकवादियों के उस्ताद उन्हें कहते हैं कि इस्लाम में संगीत के लिए गुंजाइश नहीं है, जबकि अजान माधुर्य है। दुनिया में अनगिनत मुसलमान शास्त्रीय संगीत के साधक रहे हैं और आज भी साधना करते हैं। हर मुगल बादशाह के दरबार में गवैये और संगीतज्ञ होते थे। श्रीनगर का शालीमार बाग भी मुगल बादशाह जहांगीर का बनाया है और दरख्तों तथा पौधों को अक्षरों की तरह पढ़ें तो अद्भुत स्वरलिपि सामने आती है। संगीनें समाप्त हो सकती हैं, संगीत नहीं।

जूबिन मेहता को वर्ष 1966 में पद्म भूषण, वर्ष 2001 में पद्म विभूषण सम्मान से अलंकृत किया गया। साथ ही वर्ष 2013 में टैगोर सम्मान के लिए भी उन्हें चुना गया है।