संजय दत्त की रिहाई व टूटी तलवारों की मूठ / जयप्रकाश चौकसे

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संजय दत्त की रिहाई व टूटी तलवारों की मूठ
प्रकाशन तिथि :12 जनवरी 2016


खबर है कि संजय दत्त वल्द सुनील दत्त, माता नरगिस 27 फरवरी को जेल से आजाद होंगे। उनकी तीन माह की सजा जेल में उनके सद्‌व्यवहार के लिए माफ की जा रही है। आश्चर्य है कि जो आदमी आपराधिक व्यवहार के कारण जेल गया, उसे जेल में सद‌्‌व्यवहार के कारण छोड़ा जा रहा है। जेल न हुई, चरित्र की रसायनशाला हुई कि काला डाला और गोरा निकाला। व्यवहार में धारणा यह है कि जेल वह स्कूल है, जहां आठवीं फेल जेल से निकलकर अपराध में स्नातक हो जाता है। अर्थात छोटा अपराधी, बड़ा अपराधी बनकर निकलता है। आदर्श जेल पर शांताराम ने गांधीवादी फिल्म 'दो आंखें बारह हाथ' बनाई थी। इसी मूल विचार का एक अलग स्वरूप राजेश खन्ना अभिनीत 'दुश्मन' थी, जिसमें एक्सीडेंट में मरे व्यक्ति के परिवार की सेवा सजा के रूप में ट्रक ड्राइवर को दी जाती है। दरअसल, दंड विधान और न्याय प्रक्रिया पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं। एक नाटक में पादरी के घर से चांदी के सामान चुराने वाला व्यक्ति पकड़कर पादरी के पास लाते हैं, तो पादरी कहता है कि ये चांदी के बरतन स्वयं उसने अपनी इच्छा से इसे दिए थे कि वह इस पूंजी से कोई व्यवसाय शुरू करे। इस पर सोहराब मोदी ने 'कुंदन' नामक फिल्म बनाई थी। इस धारा में रायपुर के संजीव बख्शी का उपन्यास 'झूलन कांदा' एक विश्व स्तर का महान उपन्यास है। रूसी दोस्तावस्की की 'क्राइम एंड पनिशमेंट' इस क्षेत्र की श्रेष्ठतम रचना है। जब यह रूस में धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ, तो उनकी रॉयल्टी उन महाजनों को दी जाती थी, जिनसे लेखक ने कर्ज लिया था। 'क्राइम एंड पनिशमेंट' पर रूस, अमेरिका में फिल्में बनी हैं और भारत में रमेश सहगल ने राजकपूर अभिनीत 'फिर सुबह होगी' बनाई थी।

ओ'हेनरी का नाम विलियम सिडनी पोर्टर था और बैंक में फ्रॉड के कारण जेल गए, जहां उनके सहृदय जेलर का नाम ओ'हेनरी था और इसी नाम से उन्होंने सैकड़ों कहानियां लिखीं, जिनके दृश्य अनेक भारतीय फिल्मकारों ने चुराए हैं। अपराध आदम अवस्था से मनुष्य जीवन का हिस्सा रहा है। भारत में जेल के साथ जाने कैसे एक रोमांटिक छवि जुड़ गई है। हमारे महान नेता स्वतंत्रता संग्राम में जेल गए। नेहरू ने जेल में ही 'ग्लिमसेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' और 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' लिखी। जेल में उनके पास कोई संदर्भ ग्रंथ नहीं थे, परन्तु ये कालजयी महान किताबें दुनियाभर में पाठ्यक्रम में शामिल हैं। आज उसी महान नेहरू की छवि खंडित करने का अपराध अनेक अल्प बुद्धि लोग कर रहे हैं। कुछ दिन पूर्व ही व्यापमं घोटाले के आरोपी एक नेताजी जेल से निकले तो हजारों की भीड़ उनके स्वागत के लिए तैयार खड़ी थी। जेल और अपराध को हमने गरिमामय कर दिया है। कातिलों की रिहाई के भी जश्न होते हैं और क्यों न हों, जब हम गोडसे का मंदिर बनाने जा रहे हैं! जेल के प्रति हमारे आदर का कारण संभवत: यह है कि हमारे भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भी जेल में हुआ था। अमेरिका में कुछ दिन पूर्व ही अदालत से बरी हुआ एक खिलाड़ी जब घर आया, तो सारे कर्मचारी नौकरी छोड़ गए थे और कोई रेस्तरां उनका टेबल आरक्षण स्वीकार नहीं करता था। इस तरह का दंड जागरूक समाज ही दे सकता है और हमारे समाज का विवरण धर्मवीर भारती की पंक्तियों 'हम सबके माथे पर दाग, हम सबकी आत्मा में झूठ, हम सब सैनिक अपराजेय, हमारे हाथों में टूटी तलवारों की मूठ' में है। संजय को उनके पिता ने बाल ठाकरे की सहायता से टाडा से मुक्त कराया था, जबकि उन दिनों अनगिनत लोगों का कहना था कि आरडीएक्स संजय की जानकारी और सहमति से उनके बंगले में रखा गया था। आप इसे अफवाह भी मान सकते हैं। कहा जाता है कि किशोर अवस्था में उन्होंने पाली हिल की सड़कों पर हवाई फायर भी किए थे। पिता की ख्याति से वह बच गए। काला हिरण मारने के प्रकरण को भी सुनील दत्त ने दबा दिया। संजय के अवचेतन में कहीं सुनील अभिनीत 'मदर इंडिया' का पात्र बिरजू बैठा है और यह वह बिरजू है, जिसे 'मदर इंडिया' की तरह मां ने गोली नहीं मारी वरन् गोद में पाला। पात्र निर्मम हो सकते हैं, मां हमेशा दिव्य रहती है। आखिर रावण व हिटलर भी किसी मां का गोद में पले हैं और ऐसा भी नहीं कि उसने पालने को ह लात मारकर तोड़ दिया था।

बहरहाल, संजय जेल से रिहा होंगे, तो फूलों से सजी कारों के कारवां में घर आएंगे। पत्रकार टूट पड़ेंगे, टेलीविजन पर आणविक विस्फोट होगा और अनेक निर्माता अनुबंध लिए उनके पीछे दौड़ेंगे। दर्शक भी उनकी नई फिल्मों को खूब देखेंगे। तलवारों की मूठ लिए भारत के लोग यही करते हैं और करते रहेंगे।