संजय लीला भंसाली और उनकी नायिकाएं / जयप्रकाश चौकसे

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संजय लीला भंसाली और उनकी नायिकाएं
प्रकाशन तिथि : 23 अक्तूबर 2013


संजय लीला भंसाली की नई फिल्म के लिए करीना कपूर अनुबंधित कर ली गई हैं। ज्ञातव्य है कि भंसाली ने पहले इतिहास की पृ़ष्ठभूमि पर 'बाजीराव मस्तानी' में सलमान खान के साथ करीना कपूर की घोषणा की थी। उन्होंने 'राम लीला' में भी करीना कपूर को लेने की भरसक कोशिश की थी। इसी तरह अपनी पहली फिल्म 'खामोशी' के लिए उन दिनों की शिखर सितारा माधुरी दीक्षित को लेने की कोशिश की थी और बाद में 'हम दिल दे चुके सनम' में भी माधुरी दीक्षित को लेने के प्रयास में विफल हो गए थे। बाद में जब माधुरी अपेक्षाकृत ढलान पर थीं और भंसाली शिखर की ओर जा रहे थे तब 'देवदास' में 'चंद्रमुखी' की भूमिका माधुरी ने अभिनीत की। ऐश्वर्या राय बच्चन के साथ भंसाली तीन फिल्म कर चुके हैं।

अब तक संजय लीला भंसाली की सभी नायिकाएं सुंदर एवं प्रतिभाशाली रही हैं - मनीषा कोइराला, ऐश्वर्या राय, माधुरी दीक्षित और दीपिका पादुकोण। उन्हें नायिकाओं को अपने सुंदरतम रूप में प्रस्तुत करने में महारत हासिल है। हर फिल्म में नायिका का पहला दृश्य ही उसे दर्शकों के हृदय में उतर जाने में सहायता करता है। प्राय: इस तरह के फिल्मकार से उनकी नायिकाओं को प्रेम हो जाता है जो संभवत: स्वयं की अभूतपूर्व छवियों से होता है और वे इसे फिल्मकार से प्यार समझ बैठती हैं। यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि संजय लीला भंसाली अब तक अविवाहित हैं। उनका नृत्य निर्देशिका वैभवी से प्यार और शादी के चर्चे जरूर हुए थे।

संजय को उनके पिता की असमय मृत्यु के बाद उनकी मां लीला भंसाली ने पाला है। ज्ञातव्य है कि रंगमंच पर लीला भंसाली नृत्य-दृश्य का संयोजन करती थीं। संजय अपनी मां का इतना अधिक सम्मान करते हैं कि उन्होंने मां का नाम अपने नाम के साथ जोड़ लिया है। नैराश्य के शिकार शराब में दर्द की दवा खोजने वाले पात्र 'देवदास' की फिल्म उन्होंने अपने पिता को समर्पित की थी और यह संभव है कि समर्पण भी उन्होंने अपनी मां को प्रसन्न करने के लिए किया हो। प्राय: पुत्र अपने असफल पिता के प्रति उतने सहृदय नहीं होते और यूं भी बच्चों पर मां का ही प्रभाव अमिट होता है और यह कई बार इतना अधिक होता है कि वे अपनी पत्नी भी मां की छाया में ढली पाना चाहते हैं। प्राय: सृजनशील लोगों का कल्पना संसार उनकी मां की स्मृतियों के रेशों से बुना होता है और अनेक रचनाओं का जन्म भी इसी स्रोत से होता है। कई बार स्मृति के अंधे कुएं से बचपन में सुनी ध्वनियां गूंजती है। यादों की झिलमिल में मां 'स्थायी' की तरह दोहराई जाती है।

बहरहाल, संजय लीला भंसाली की सृजन प्रक्रिया में संगीत का भी बहुत महत्व है और उनकी फिल्में ऑपेरानुमा ही होती हैं। ज्ञातव्य है कि 'देवदास' के नृत्य गीत दृश्यों से प्रभावित होकर ही पेरिस में भंसाली को एक ऑपेरा के निर्देशन का अवसर मिला था। पूना संंस्थान से प्रशिक्षित होकर लौटने पर विनोद चोपड़ा ने उन्हें '१९४२ ए लव स्टोरी' के गीतों को डायरेक्ट करने का अवसर दिया था। 'रामलीला' के संगीत में उनकी पिछली फिल्मों के गीतों का प्रभाव स्पष्ट सुनाई पड़ता है। उनकी विगत फिल्मों के संगीत सृजन में उन्होंने अन्य संगीतकारों के साथ मिलकर काम किया था। इस बार उन्होंने स्वयं ही किया है।

भारतीय सिनेमा में ऐसे फिल्मकारों की पुरानी परंपरा रही है जिन्हें संगीत सृजन तथा उसके छायांकन में महारत हासिल थी। इस विषय में प्राय: राजकपूर, गुरुदत्त और विजय आनंद का नाम आदर से लिया जाता है। राज खोसला का प्रभाव विजय आनंद पर रहा है। ज्ञातव्य है कि राज खोसला गुरुदत्त के सहायक रहे हैं। संजय लीला भंसाली इस मामले में शांताराम से भी बहुत प्रभावित हैं परंतु सबसे अधिक उनकी मां का ही प्रभाव है।