संजय लीला भंसाली की 'पद्‌मावती' / जयप्रकाश चौकसे

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संजय लीला भंसाली की 'पद्‌मावती'
प्रकाशन तिथि :22 अगस्त 2016


संजय लीला भंसाली की आगामी फिल्म इतिहास प्रेरित 'रानी पद्मावती' है, जिनके रूप की प्रशंसा सुनकर अलाउद्‌दीन खिलजी ने आक्रमण कर दिया था। पहले उसे आईने में रानी पद्मावती की झलक दिखाई गई थी, क्योंकि इसी शर्त पर वह आक्रमण रोक देने का वादा कर चुका था परंतु रानी पद्मावती का सौंदर्य उसके सीने में मीठी छुरी-सा उतर चुका था। अत: इसे राज हड़पने की कथा के बदले एक तरफा विफल प्रेम-कथा भी माना जा सकता है। रानी पद्मावती ने हार की कगार पर पहुंचते ही जौहर कर लिया था। जौहर महान राजपूत परम्परा रही है। यह सती प्रथा का ही अलग रूप है। दुश्मन के हाथ जीवित अवस्था में नहीं लगना और मृत देह को भी अपमान से बचाने के लिए जौहर किया जाता था। ज़र, ज़ोरू और ज़मीन के लिए ही युद्ध किए जाते हैं परंतु बेलगाम महत्वाकांक्षा भी एक कारण है। मैक्सिम गोर्की का कथन था कि सारे युद्ध स्त्री की छाती पर ही लड़े जाते हैं।

विघटन के पूर्व सोवियत रूस में अनेक महान फिल्में बनाई गईं और विश्वयुद्ध में सबसे अधिक रूसी लोग ही मारे गए हैं। इसी कारण रूस में महान युद्ध फिल्मों का निर्माण भी हुआ है। फिल्म प्रेमियों की एक पीढ़ी 'बैलेड ऑफ ए सोल्जर' और 'क्रेन्स आर फ्लाइंग' की शपथ खाती रही है। 'बैलेड ऑफ ए सोल्जर' में तो वीरता प्रदर्शन के एवज में गोल्ड मेडल या प्रमोशन के बदले सैनिक एक सप्ताह की छुट्टी मांगता है और उसके साथी उसके हाथ अपने परिजनों को पत्र भेजते हैं। इन संदेशों को पुहंचाने में ही सप्ताह बीत जाता है और जब वह अपने घर के निकट पहुंचा ही है कि उसे वापस ले जाने के लिए फौज की गाड़ी आ जाती है गोयाकि वह अपने घर जा ही नहीं पाया और न ही परिजनों से मिल पाया। युद्ध की क्रूरता पर इससे महान टिप्पणी क्या हो सकती है? अपनी यात्रा में वह अपने मित्र सैनिक का पत्र उसकी पत्नी को देने जाता है तो ज्ञात होता है कि वह जीवन यापन के लिए अपना शरीर बेचती है, क्योंकि उसे लाम पर गए अपने पति के बीमार माता-पिता की सेवा करनी है। क्या अब आप इस स्त्री को प्रेम में धोखा देने का अपराधी मानेंगे? सैनिक यह भी देखता है कि वे दुश्मन के शहर नष्ट कर रहे हैं तो इधर उनके अपने घर भी नष्ट हो रहे हैं। इसीलिए एक अंग्रेज कवि ने लिखा है कि विक्टर (विजेता) विक्टिम (पराजित) बोथ ब्लीड ऑन अल्टार ऑफ वार अर्थात युद्ध की वेदी पर विजेता व पराजित दोनों ही बलि हो जाते हैं। युद्ध की विभीषिका को क्या खूब बयान किया है, 'गुजश्ता जंग में तो पैकर (शरीर) ही जले, अजब नहीं इस बार जल जाएं परछाइयां भी, गुजश्ता जंग में तो घर बार ही जले, अजब नहीं इस बार जल जाए तनहाइयां भी।'

संजय लीला भंसाली की फिल्म में रनवीर सिंह और दीपिका पादुकोण को लिया जाना लगभग तय है परंतु अभी विधिवत घोषणा नहीं हुई है। उनकी विगत फिल्म 'रासलीला' खूब चर्चित हुई, पसंद भी की गई परंतु भीतरी जानकार कहते हैं कि उसकी लागत ही बमुश्किल निकल पाई है। इतिहास प्रेरित फिल्में बनाने में बहुत धन लगता है, जूनियर कलाकार की भीड़ के लिए भी वस्त्र बनाने पड़ते हैं और युद्ध दृश्य शूट करना बहुत महंगा भी होता है। अत: रनवीर सिंह और दीपिका जैसे सितारों के फिल्म में होने के बाद भी इसका आर्थिक पक्ष खतरे से भरा हुआ है। रानी पद्मावती की कहानी का अंत भी त्रासदी है और इस तरह की फिल्मों में हास्य के दृश्य रचना कठिन होता है। मौत से आंखें चार करने वाला कोई भी योद्धा हंसोड़ व्यक्ति नहीं हो सकता। आप दर्द को कितना मनोरंजक बना सकते हैं। रानी पद्मावती के जौहर के तथ्य को अनछुआ नहीं रख सकते। अत: इस तरह की फिल्म पूंजी निवेशक के लिए आग से खेलने की तरह जोखिम का काम ही होता है।

हमने अपने इतिहास को भी रोमैंटीसाइज किया है और इसके बावजूद तथ्य हृदय विदारक है। इस तरह की फिल्म गढ़ने वाले के पास यही जज़्बा होना चाहिए, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, 'देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।' यह भी उड़ती खबर है कि दीपिका पादुकोण को विदेश से कुछ और फिल्म प्रस्ताव आए हैं, अत: उसके लिए दो सौ दिन भंसाली को आवंटित करना कठिन हो सकता है। भंसाली की शैली में धन और समय दोनों ही बहुत लगते हैं। विदेशों से प्रियंका चोपड़ा व दीपिका पादुकोण को प्रस्ताव आ रहे हैं परंतु शाहरुख, सलमान, रनवीर कपूर इत्यादि के पास ऐसे प्रस्ताव नहीं हं। हमारी महिला कलाकार ही एक्सपोर्ट मटेरियल हैं।