संजोग / कन्हैयालाल भाटी

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खट .............खट .............खट .............

बारणौ बाज्यौ।

‘कुण हुसी ?’ कैंवता थकां सुमेर बारणौ खोल्यौ। पीरै गयोड़ी लुगाई नै पाछी आयोड़ी देख‘र बोल्यौ: ‘अरे तूं ?’

‘हां।’ कहपरी रतनी झट घर मांय बड़गी अर सीधी कमरै मांय गई। मांचै माथै पड़र रोवण लागगी।

सुमेर रै बात समझ में कोनी आई। उण बारणौ बदं कर्यौ। मांचै कनै थोेड़ी ताळ खड़ौ रैयौ। पछै मांचै माथै बैठ‘र नीचे झुकर रतनी रै मौरां माथै हाथ फैरण लाग्यौ। रतनी किŸाी भावुक है अर ईं रो काळजौ किŸाौ हिणौ है आ बात सुमरे जाणतौ हौ। थोड़ीताळ पछै रतनी रौ रोवणौ कम हुयौ जणा बो बोल्यौ, ‘रो मत रजु। पैलां आ बता कै हुयौ कांई है ?’

‘बबलूड़ै रै कारण म्हनै अेड़ौ-मोसौ सुणनौ पड़ियौ। रतनी आपरै मन री बात कैयी अर पछै होळै-होळै फीसती-फीसती पीरै में हुई सगळी बातां आपरै धणी नै सुणाय दी।

‘हं ...... तौ आ बात हुयी !’ रतनी बात पूरी करी जणां सुमेर अेक निसकारौ छौड्यौ अर थोड़ी ताळ तांई चुपचाप बैठ्यो रैयौ।

‘चुप्पी घणी ताळ तांई नीं टिकी।’

‘अचाणचूक बारणौ बाज्यौ।’

खट .............खट .............खट .............

‘कुण हुसी ?’ केवतौ सुमेर बारणौ खोळण नै उठियौ। उण बारणौ खोलियौ तौ सांम्हीं ‘सासू’ ऊभी दिसी।

‘रतनी अठै आई है कांई ?’ सासू रौ सवाल हौ।

‘हाँ है, मायनै है।’

रतनी री मां मांयनै गई। नानड़ियौ बबलूड़ौ साथै हौ। रतनी नै सूती देख‘र बा बोली। अरै तूं रोवै है ? इŸाी बुरी लागण आळी कांई बात ही ? गांव हुवै बठै टेंटीवाड़ौ तौ हुवै ई ? बा थारी छोटी बैन है। थनै बीरै कैयोड़ै री गिनार नीं करणी चाइजै। तूं अठै आयगी हर अर म्हैं तो बठै थनै सगळा जोवता रैया। पछै म्हनै लखायौ कै तूं अठै ई आई हुसी। म्हनै तौ कैवती। देख, ओ बबलूड़ौ मासी-मासी करतौ किŸाौ दोरौ हुयौ है।

म्हां कनै तो आवै कोनी ! केवै कै म्हनै तौ रतनी मासी ई चाइजै। देख तौ सरी औ रोय-रोयर मूंडौ ई खराब कर लियौ।

‘रतनी हाथ बबलूड़ै रै आगै कर्या तौ बबलूड़ौ ‘माछी’ कैय परौ रतनी सूं काठौ चिप गियौ।’

रतनी घड़ी अेक बीनै अेकटक देखती रैयी। पछै बीनै छाती सूं चेप लाड करण लागी।

‘टूं अठै टियां आई माछी ?’ बबलूड़ौ रतनी री हिचकी पकड़‘र बोल्यौ।

‘ईयां ई। थोड़ौ सौ‘क म्हारौ माथौ दुखै हौ नीं, जद।’

‘तौ लाऔ म्हैं दबा देवूं।’ बबलूड़ौ आपरा छोटा-छोटा हाथ रतनी रै माथै-माथै लेयगियौ अर कांई ठा कांई करण री मंसा में हाथां नै ऊंचा-नीचा करण लागौ। रतनी बीरा हाथ आपरै हाथां में लेवती बोली:

‘बस रै, अब मिट गियौ।’

‘तो चाल नीं घलै।’

‘चालसां, मां म्हैं आवूं।’ बबलूड़ै नै मां नै झिलावता रतनी कह्यौ अर पछै रतनी हाथ-मुंडा धोवण नै गई। हाथ-मुंडा धोया, बबलूड़ै रे खिंडयोड़ा केसां में हळकौ-हळकौ कांगसियो फेरियौ। रतनी सुमेर सांम्ही देख‘र होळै-सीक बोली:

‘म्हैं जाऊँ ?’

सुमेर कीं नीं बोल्यौ पण रतनी आपरी मां अर बबलूड़ै सागै गई परी।

सुमेर तौ देखतौ ई रैयगियौ। थोड़ी ताळ कीं सोचा-विचारी पछै होळै सी‘क बोल्यौ ‘सासरौ अर पीरौ अेक ई बास-गुवाड़ में हुवै जणा केई टंटा हुवै। कमाल है बा आई, रोई अर गई परी !’

आपरी छोटी बैन मनोहरी रै बेटै बबलूड़ै माथै रतनी रौ हेत घणौ हौ। बबलूड़ै नै देखियां अणजाण रो ई रमावण रौ मन होवै। इसौ है बबलूड़ै रौ सुहावणौ चेहरौ। इण में हंसौड़ घणौ ई हौ। उणरी तोतळी बोली रतनी नै घणी मोवनी लागती। मासी-भाणजै रै बीच मां बेटे जैड़ौ संबंध भाग्य सूं ई देखण नै मिळै।

आपरी सबसूं छोटी बैन रूखमणी रै ब्यांव माथै रतनी मां रै अठै ही। मनोहरी आपरै तीन टाबरां-स्यामू, राधा अर बबलूड़ै नै साथै लै‘र आई ही। सगळां ई कुटुम्ब आळा भेळा हुया हा। अबार सगळा आप-आपरै काम में लाग्यौड़ा हा। रतनी रै खोळै में बैठ्यो बबलूड़ौ भांत-भांत री हेताळूं बात्यां सुणा‘र उणा सूं हेत करै हो। मनोहरी‘री अेक भाइली मनोहरी नै कह्या ‘भाईली मनोहरी, देख तो सरी, बबलूड़ौ आपरी मासी रै खोळै में कियां खेलै है ! जाणै आ ई इण री सागण मां हुवै। मनोहरी आ भलाई थारी बडी बहण है पर म्हारौ तो ओई कैवणौ है के ‘ई रै साथै घणौ ईयां रैवणौ चोखौ कोनी। नीं करै नारायण अर आ ‘कांई’ कर नांखै तो ? म्हैं थारी जगै होऊं तो इती घणी छूट देऊं ई कोनी।

‘जा जा गैली, थारौ काम कर, अर काम नीं हुवै तो थारै घरां जा। म्हारौ भाई थनै उडीकतौ हुवैला।’ कैवती मनोहरी आपरी भाईली री बात नै उड़ा दी।

अेक दिन भळै, बीरै घरै भेळा हुयेड़ै मांय सूं मनोहरी ने हितेच्छू बण‘र कह्यौ:

‘भाइली मनोहरी, थारै तीन-तीन टाबर हुया तो ई थारै में बुद्धि नीं आई। औ बबलूड़ौ थारौ बेटौ है कै रतनी रौ ? भाई म्हारी जिसी दानी लुगाई रौ केहणौ मान। इनै घणी छूट देवणी चोखी कोनी रैसी ‘इसी’ नै छोरौ नीं सूपणौ। कोई टूणा-टामका कर देसी तो ? थनै पछतावणौ पड़़सी।’ कैवतां बूढ़की छींकणी री मोटी चिमटी नाक में भरी अर आंख्यां मटकावती बोली: ‘भाई म्हारै कांई है ! म्हैं तो थारै भलै नै कैवूं हूँ कै ‘इसी’ रौ घणौ भरोसौ नीं करणो चाइजै।

‘मांजी थारी ई साठै बुद्धि नाठी है कांई ? म्हारी बहन नै म्हैं नी ओळखूं ? मनोहरी बठै सूं हंसती हंसती उठ‘र मांय गई परी।

बीयां तो मनोहरी गई परी पण बूढ़की मांजी रा बोल उण रै मन मांय सूं नीं निकळया। उण नै मन में लखायौ: ‘ईयां कियां है ? आ क्यूं केवै है ? म्हारी साथण पण कोई अेड़ी बात ई केवै ही। आज आ बूढ़की पण ईयां ई बोले। कांई आ रतनी बबलूड़ै रै टूणां-टमका करै है ? नां तो, आ बात किणी दिन नीं हुय सकै। आ अेकदम झूठी है। म्हैं म्हारी बहन नै ओळखूं हूँ। पाछी बीरै मन में बात आयी: पण कांई म्हैं साचो साच म्हारी बैन नै ओळखूं हूँ। कुण किनै ओळखै है ? किणी रै ई मन में कांई रमत चाल रैयी है इणरी किण नै ठा है ? कोई रै मन री बात कुण जाण सकै ? पण रतनी तो म्हारी सागी मां जाई बैन है। म्है तो बीरी ई गोद में मोटी हुई ही अर म्हारा दोनूं छोरा ई म्हारी तरह। ओ बबलूड़ौ पण उण रै खोळां में मोटो हो रैयौ है। इण में बैम करणै जिसौ है ई कांई ? पण ......पण नीं, म्हारै दो टाबरां सू उण नै बबलूड़ै पर घणौ ममताळू हेत है। घणी ई ममता हैं। मां नै आपरै टाबर पर हुवै बीती ममता है। आ ..... आ बात अेकदम साची है ? कांई बूढ़ी मांजी कैई बा साची हुसी ? रतनी कांई महरी आंख्यां में धूड़ नांखती हुसी ! कांई उणनै बबलूड़ै पर टूणां-टामका करणौ हुसी ? कांई दूजा कैयौ बो खोटौ हुसी ? पर खोटौ तो कियां हुवै ? कांई अेड़ौ देख्यौ हुसी जणा ई कैयौ हुसी नीं ? तो कांई ..... तो म्हारै बबलूड़ै नै बीरै कनै नीं जावण देवणो चाइजै ? कांई करूँ ? या पछै ?’

‘अे मां, आ देखौ नीं, सामूडौ म्हारौ गुड्डौ कोनी देवै। राधकी मनोहरी सूं फरियाद करी।

‘नीं मां म्है कोनी लियौ। ईण ई गुमायौ है अर म्हारौ नाम लेवै है।’ सामूडौ बचाव करियौ।

‘नीं मां, इण ई कठै लुकायौ है।’

‘नीं मां, म्हैं कोनी लुकायौ।’

‘अबै जाओ अठै सूं, जणा देखौ जणा लड़ता‘ई रेवौ। बारै रमौ, जावौ।’ मनोहरी बोली। बीरै मन में चालता विचारां री लड़ी टूटगी।

बा कमरै मांय कोई काम सूं गई जणा उण देख्यौ रतनी नींद में मुळकतै बबलूड़ै नै देख‘र बींरै कनै बैठगी ही। अेकाअेक हेत रौ उछाळौ आवता ई उण रै लाड सूं हाथ फेरण लागी। कांई ठा कियां बबलूड़ौ जागग्यौ हौ अर जोर-जोर सूं रौवण लाग्यौ हौ। बींरै कनै ई अेक मेहमान रौ झगडाळू टाबर सूतौ हौ। घणौ उधम अर कजियै पछै मुस्किल सूं सुतौ बौ टाबर जाग नीं जावै इण खातर रतनी रोवतै बबलूड़ै रै मुंडै माथै हाथ धरियौ अर छाती पर थपकियां देवती बीनै छांनौ राखण री कोसिस करण लागगी। मूंडै दबायोड़ै हाथ सूं बबलूड़ै ने अमूंझणी हुवी अर बो माथौ धुणावतो जोर-जोर सूं रोवण लाग्यौ।

बारणे रै बीच में ऊभी मनोहरी बबलूड़ै रौ मुंडौ हाथ सूं दबायोड़ौ देख‘र बा बोली: ‘कियां बड़ी बैनजी ? म्हारै छोरै पर कोई कामण करौ हौ कांई !’

‘कामण ! किसौ कामण ?’ रतनी अचाणचक ई बात सूं थोड़ीक घबरा‘र बोली।

‘अबै रैवण दै। थारी हुसियारी नै। म्हारै छोरै रौ गळौ टूपतां थनै सरम नीं आवै ?’

‘पण ....पण म्हैं किसा ....’

‘हां, थूं तो कांई कोनी करती। थूं तो घणी सूधी है नीं। अबै थूं घणी सयाणी मत बण, थूं म्हनै बणावण री घणी कोसिस मत कर ! म्है परतख देखूं हूं, अबै म्हनै ई बणावै अर ऊपर सूं भोळी बण रैयी है। अबै थूं ई बता कै औ खुद ई जागग्यौ हुवैला अर बिना मतबल ई रौवण लाग्यौ हुसी, तूं आई कैवणौ चावै है ?’

‘पण ......’

औ झगड़ौ सुण‘र थोड़ी ताळ में घर रा सगळा जणा बठै भेळा होय गिया। मनोहरी आपरै बबलूड़ै ने गोदी लियां ऊभी ही अर नंी सुण सकै जैड़ा बोल रतनी नै सुणावै ही।

‘मां, ई मनोहरी ने पाललौ। जियां मन में आवै बियां बोल री है। आ आपनै कांई समझै है ? इरै कांई औ नुवौ‘ई छोरौ है ?’ रतनी आपरी मां रै आगै फरियाद करी !

‘हां, हां। म्हारौ निरवाळौ ई है। जै इŸाौ ई घणौ रमावण रौ चाव है अर इŸाौ ई छोरै रो कोड है तो पछै थूं ई मां बणै नीं ? क्यूं अबार तक .....?’ मनोहरी काळजै में ठेस लागै वैड़ी बात कर बैठी ही।

‘मनोहरी, बात री कोई हद ई हुवै भलौ !’

‘हां, आ हद ई हुवी है नीं ? पंदरै-पंदरै बरस हुवण लाग्या है ब्याव हुयांनै अर अबार तांई थारी कूंख सूनी पड़ी है, इणी कारण दूजां रै टाबरां सूं थनै ईरखा ई हुवै नीं ?’

‘थनै ठा कांई है ! म्हनै तो म्हारै सूं ई घणौ औ बबलूड़ौ प्यारौ है।’

‘अबै थूं घणी हुसियारी रैवण दै, म्हनै थारी सगळी बातां रौ ठा पड़ग्यौ है। थंनै किणी जोगी-जोगण्यां कह्यौ हुसी कै अेक टाबर रौ भख देवणौ पड़सी जणा थांरी कूंख भरीजसी। थनै दूजौ कोई टाबर मिल्यो कोनी औ बबलूड़ौ ई मिल्यौ ?’

‘अबै थूं चुप होजा भलौ, घणी होयगी है ?’

‘नीं जणां थूं म्हारौ कांई कर लैसी ? अबै तो थूं चुप रैवण रौ केवै हैं नीं ? खुद री करतूत पकड़ीजगी इण खातर अबै थूं कैवै कांई ? औ तौ चौखौ हुयौ कै म्है बखतसर आयगी, नी जणा आज म्हारौ बबलूड़ौ तो ई दुनियां सूं चल्यौ जावतौ ? डाकण कठै री, बांझड़ी .....’

तड़न्न अेक थप्पड़ मनोहरी रै गाल माथै पड़ी। थप्पड़ रतनी ई मारियौ हौ। मनोहरी इण रौ बदळौ लेवण नै बीरै सांमी गई, पण पगा में बबलूड़ौ आयगियो अर बा पड़गी।

खड़ौ-खड़ौ बबलूड़ौ पड़ग्यौ हौ बीनैं मनोहरी खड़ौ कर रैयी ही इतरै रतनी दूजै कमरै में गई परी। रतनी बठै सूं गई परी ई कारण दूजा ई अेक-अेक कर खिंडण लाग्या। मनोहरी बबलूड़ै नै धमका रैयी ही।

‘खबरदार, जे अबै बीरै कनै गयौ तौ !’

‘तीरै खनै मां ?’

‘थारै मासी कनै।’

‘रटनी माछी कनै ?’ बा तो घणी छाणी है। म्हनै घणौ ई लाड करै है।’

‘बां थारौ लाड करतां-करतां ई थनै मार नाखै ली। बा तो डाकण है डाकण .......

‘हें.....मां, डाकण मतबल ?’

‘माथो थारौ। जे उण कनै जासी तो थनै मारियां बिनां नीं छोड़ै, हां ....।’ कैवती-कैवती मनोहरी दूजै कमरै में गई परी।

मनोहरी रै केयौड़ौ बांझड़ी रौ मोसौ रतनी रै काळजै में आर-पार उतरग्यौ हौ। जिन्दगी में बा कठैई, कदैई इण तरह अपमानित नी हुई ही, औ खौळतौ अपमान सहज नी हुयौ बींरौ मन अणमणो हुवण लाग्यौ हौ। इण खातर ई बा किणनै ई कैयां बिना आपरै घरै गई परी।

ब्याव रै दिन मां नै बुरौ नीं लागै ई कारण पाछी पिहर जाऊं, इण रै सिवाय मनोहरी हुवै जठै तक बी घर मांय पग नीं राखूं, इण निस्चै रै साथै रतनी आपरै घरां पाछी आयगी ही। पण बबलूड़ै रौ मन दुःखै ईसौ बा कांई करणौ चावती नीं ही। इणरै थकां मां खुद चला‘र मनावण नै आयगी ही इण खातर रतनी गई तो परी पण बींरी अर मनोहरी री आंख्यां अेक-दूजे सूं टकरागी ही, मतलब कै अबै बा सावचैती सूं रैवती ही। बबलूड़ौ रतनी नै अेक पल ई छोड़तौ नीं हौ पण मनोहरी दोनां नै अेकला छोड़ती नीं ही। आ बात रतनी जाणती ही। इण तरै ज्यूं-त्यूं कर‘र उण थोड़ा दिनां निकाळिया। ब्यांव हुग्यौ हौ अर बा आपरै घरां जावण खातर तैयार होई जणा बबलूड़ौ बीरैं साथ जावण सारूं घणौ ई आड़ौ मांडियौ पण मनोहरी बोली ई कोनी। घणकरौ मासी रै अठै ई रैवण आळै बबलूड़ै रै समझ में नीं आयौ कै बींरी मासी बीनै लियां बिना किया गई ! उण तूफान मचायौ उण रै मन में तूफान उठियौ। मनोहरी सूं कीं झगड़ौ पण बीरौ कांई हुयौ नीं। दो दिनां पछै मनोहरी बबलूड़ै नै लियां आपरै घरां गई। घरां गयां पछै बबलूड़ौ केई बार मासी रै कनै जावण री जिद करी, पण मां सूं बीनै मार, झिड़कियां सिवाय दूजौ की मिळयौ नीं। घर में बीनै चौखौ नीं लागतौ हौ। बीरौ मन कठै‘ई नीं लाग रैयौ हौ। बो रोजीनां आपरी रतनी मासी नै याद करतौ। बो याद करतौ रैवतौ अर रोवतौ रैवतौ। ज्यां-ज्यां रोवतौ अर बो सूखतौ जावतौ। घणीबार रतनी मासी रै घरां जावण तांई बो आपरी मां रै आगै दयावणौ मूंडौ बणा‘र गिड़गिड़ावतौ, विनती करतौ: ‘मां, चाल नीं रटनी माछी रै घलै।’ अर हेत मिलण रै बदळै थप्पड़, मुक्का लातां ई बीनै मिलती। औ ई मनोहरी रौ पडूŸार हौ !

कणै‘ई तो बबलूड़ौ खाणौ-पीणौ ई नीं करतौ। अबै बीनै बीरी भावण आळी खास चीज भावती कोनी। थोड़ौ-थोड़ौ भूखौ रैवण रै कारण बीरौ शरीर सूखण लाग्यौ हौ। दिनों-दिन रतनी मासी सूं मिळण अर खेलण री, बीरै साथै सुवण री अर चौखी-चौखी बातां सुणण‘री बीरी इंछा घणी हुयां करती ही। बां घणी इंछा हठ रै रूप में मूंडै माथै झलकती ही। अेक कांनी बालहठ हौ तो दूजौ कांनी स्त्री हठ। मनोहरी पण अबै बीनै घरै रै बारै निकळन कोनी देवती। आपरै बेटे‘रै ऊपर कडौ पहरौ राखीजतौ हौ। इण तरह स्त्री हठ अर बालहठ री गांठ बधती जा रैयी ही। दिन बीतता जा रैया हा।

जियां-जियां दिन बीतता गया बीयां-बीयां टाबर रौ मन बींरै आपरै घर सूं उठण लाग्यौ। रोजीनां खुस रैवण आळौ बबलूड़ौ आमण-दूमणौ रैवण लाग्यौ। बीरी हंसी तो कणैई गमगी ही। मन भावण हंसी तो बीरी कठैई अणदीठ हुयगी। बीरै शरीर री चंचलता कुमाळयगी। मनोहरी तो स्त्रीहठ रै बस में होय‘र बबलूड़ै नै हेत सूं बतलावती ई कोनी। दूजै कांनी बीरै सामने बालहठ हौ ? बबलूड़ै नै अबै बीरी मां अेक डरावण आळी प्राणी लागण लागगी ही। बबलूड़ौ तसियौ करतौ अर कींई खावतौ-पीवतौ कोनी, बीनै थोड़ौ-थोड़ौ ताव रैवण लाग्यौ। इण खातर उफतौड़ी मनोहरी थोड़ीक बेपरवाह रैयी अर बो तेज ताव रै पंजै में जकड़ीज गियौ अर बबलूड़ै रै पाणीझरौ हुग्यौ।

दिनों-दिन पाणीझरौ जोर पकड़तौ गियौ। बबलूड़ै री झुरती रट जिद पर चढ़ती गी। तेज ताव रै साथ बबलूड़ै री-आपरी मासी सूं मिलणै री घणी इंछ्या होड पर चढी ही।

सेवट अेक दिन रतनी मासी री माळा जपतौ-जपतौ ई बो मनोहरी रै घर सूं परलोक सिधारगियौ।

बबलूड़ै रै मरण रा समाचार सुणतां ई रतनी बेहोस हुयगी। बा घणी बगत तांई बेहोस रैयी। पछै तो दिन ई बीतण लाग्या। खाली। बबलूड़़ै री याद ई नीं भूली। दिन-रात रतनी रौ मन बबलूड़ै रै खातर झुरतौ रैवतौ। बब....लूड़ौ, बब....लूड़ौ, बब....लूड़ौ बींरौ काळजौ बराबर रट लगावतौ रैंवतौ।

बबलूड़ै रै रूप में छबी रतनी रै अंतस में मंडगी ही ? अबै वा कदेई मिटण आळी नीं ही।

आ कदैई नी मिटण आळी छबी कै चिमतकार सिरजण कर्यौ के बीनै पुकारै। आ तो कुण जाणै। पण थोड़ै ई बगत पछै औ चिमतकार सगळां देख्यौ !

बबलूड़ै री मौत रै ठीक दस महिना पछै रतनी री कोख हरी होई। बीं रै पन्द्रह बरस रै दांपत्य जीवण में जाणै चानणौ होयौ !

छोरौ कांई हौ, जाणै उणरै रूप में हूबहू बबलूड़ौ जलम्यौ हुवै।

हां जाणै बबलूड़ौ ई देख लौ, हू-ब-हू बबलूड़ौ। बो ई नाक-नक्सौ, बोही मोहरौ, बीसो ई सुहावणौ।

सारा पड़ौस अर सगा-सम्बन्धी ई सुअवसर पर रतनी रै घरां ई जा आया। सैं जणा खुषी प्रगट करी। मनोहरी नै ई जाणौ पड़ियौ। उण छोरै नै देखियौ। जाणै बीरौ ई बबलूड़ौ हौ ! जाणै रतनी बीरै ई छोरै नै खौस लियौ हुवै। या पछै शायद रतनी सूं नीं मिळण देवण री आपरी जिद सूं झगड़ नै बबलूड़ौ जाणै मां सूं बदळौ लियो हुवै।

सुमेर री घणी इंछा ही कै छोरै रौ नाम बबलूड़ौ ही राखौ। रतनी नै ई औ ई नाम जंचियौ हौ। पण औ नाम राखणै सूं मनोहरी रै घाव ऊपर लूण छिड़कणै जिसौ काम होवतौ। औ काम रतनी रै ममताळूं मन नै मंजूर नीं हो। घणी माथा-पच्ची पछै सेवट बींरौ नाम सूरज राखीजियौ।

बगत खिसकतौ जा रैयौ हौ। दिन अर महीना बीतता जा रैया हा अर बरस ई। आज सूरज रौ जळम दिन हौ। केई बरसां पछै मनोहरी रौ रतनी रै घरां जावण रौ घणौ मन हौ रैयौ हौ। उण रौ खास कारण हौ बो सूरज ! मनोहरी सूरज नै रमावण खातर घणी ई तरसती अर इणरै बावजूद बा इणनैं रमा नीं सकती। आ बात किŸाी अचरज आळी है ? बां किणी अग्यात डर सूं डरती ही। आज मनोहरी री मां बीरै अठै आई ही अर बठै सूं दोनूं जणियां टाबरां रै साथै रतनी रै घरां गयी।

सूरज रतनी रै खोळै में हौ। मनोहरी रै सांमी देखतां ई बो मुळकण लाग्यौ अर आपरा हाथ घणाई ऊंचा कर-कर आगै बधावण लागौ। मनोहरी तुरन्त ई बीनै आपरै खोळै में ले लियौ। बा आपरी छाती सूं चिपायर लाड करण लागी। बठैई बा अटक गयी अर बीनै लखायौ: ‘अबै म्हनै कांई हक है ?’ मनोहरी आपरै मन में सोच्यौ इयै पैलां तो बीरां नान्हां-नान्हां, मुळायम रेषम जिस्सां हाथ उण रै गालां रै अड़ाया, बीयै अेक टक सूरज रै सांमी देख्यौ। पछै अेके साथै चार-पांच बुक्का लिया अर छाती सूं चिपाय‘र रोवण लागगी, बा घणी ई रोई-बरसां रौ दबियोड़ौ रोज उण दिन आपरै मन री करी।

ओ दीठाव देख‘र मनोहरी री मां रौ हिवड़ौ उमड़ आयौ। उण‘री आंख्यां ई गळगळी हुयगी। अर गळगळापणौ आंसूड़ा नीं बण जावै इण खातर बा दूजै कमरै में गई परी।

रतनी री आंख्यां में हेत‘रौ झरणौ बह रैयौ हौ। बा मनोहरी रै मौरां माथै धीरै-धीरै हेताळू हाथ फैरण लागी। मनोहरी रौ हिवड़ौ कीं हळकौ हुयौ। रौवणौ रूक्यौ जणां रतनी बीनै कैयौ: ‘मनोहरी ओ कांई मूरखपणौ करै है ? अबै रोवणै सूं कांई फायदौ ? जिको हुवणौ हो बो हुयग्यो। औ थारौ ई है इयां समझै जणां तो थूं इणनै थारै कनै ई राख। पण उण बबलूड़ै री तरै भेजती ही बीयां इणनै कदैई-कदैई म्हारै घरां खेलण नै भेजती रैइजै। औ सूरज बबलूड़ै रौ ई रूप है नीं ?’

‘ओ: मां आ देख फळाणियौ म्हारौ गुडौ कोनी देवै।’ फलाणकी मनोहरी सूं दाद-पुकार करी।

‘नीं मां, म्हैं कोनी लियौ। इण खुद ई गमायौ है अर म्हारौ धिंगाणै ई नाम लेवै है’ फलांणिये बचाव करियौ !

‘नां मां इण कठैई लुकायौ है।’

‘नीं मां, म्है कोनी लुकोयौ।’

‘चलौ अबै झगड़णौ कोनी। अठै आवौ थानै भाड़ौ देऊं। कैवतां रतनी मनोहरी रै कानी अेक हेताळू मीट नाखी अर बा भाडौ लेवण ने दूजै कमरै में गयी। वे दोनूं छोरा मासी’र रै लारै दौड़यां-दौड़यां गयां

दूजै कमरै में बैठी मां आं सब बातां नै सुण रैयी ही। बींरै मन में अेक सवाल उठियौ: ‘किणरौ गुड्डौ गमियौ ? किण लुकायौ ? किण रै हाथ लाग्यौ। आ सगळी भगवान री माया है अर मन री लीला है। कांई साचाणी औ संजोग है ?