संतान / मृणाल आशुतोष

Gadya Kosh से
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बादल गरजने के साथ ही दिल की धड़कन तेज़ हो गयी। राम प्रसाद ने पत्नी की ओर देखा और पत्नी ने आशा भरी नजरों के साथ आकाश की ओर! कोई और दिन होता तो भगवान से मनाती कि जम कर बरसो और ख़ूब बरसो पर अभी...

ब्रह्म बाबा से लेकर छठी मैया तक, सबसे बारिश रोकने का गुहार लगा रही थी।

तीन दिन से बुखार में तप रहा था एकलौता बेटा! डॉक्टर से उसे दिखाकर अस्पताल से लौट रही थी रमसखिया। घर से एक कोस पहले ही उतार देता है टेम्पो। रास्ता है ही इतना अच्छा कि टेम्पो क्या रिक्शा वाला भी उधर नहीं जाना चाहता। पचास रुपये दे दो, तब भी नहीं।

घर की चिंता भी खाये जा रही थी। पता नहीं, कैसे होगी चारों बहन! हीरा और मोती भी मुँह उठाये बाट जोह रही होंगी।

"ला बौआ तो मुझे दे! और तेज़ चल वरना पक्का भींग जायेंगे।"

"भगवान एकाध घण्टे पानी रोक नहीं सकते क्या? अगर मेरे लाल को कुछ हो गया तो क्या करूंगी?"

तेज़ बूँदों का टपकना शुरू हो गया था। रामप्रसाद ने फटाक से कुर्ता खोलकर बेटे को लपेट लिया और दौड़ लगा दी।

अब बारिश की छींटे और तेज़ हो गयी। बच्चा रोने लगा। वह भगवान का नाम लेकर चीखा, "हे भगवान! पानी रोक दो।"

तभी उसे दरार वाली सूखी खेतें दिख गयीं जिनमें धान की फ़सल अपने मौत का इंतज़ार करती हुई नज़र आ रही थी।

एक पल को वह ठिठका और ...अबकी वह और ज़ोर से चीखा, "बरसो और बरसो और ख़ूब बरसो। बरसते रहो।"