संताप / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
जैवा लालजी मड़रोॅ केॅ घरोॅ सें निकालला के बाद एकदम अकेली पड़ी गेलै। कत्तेॅ मन लगावै के कोशिश करै, मन लागवेॅ नै करै। मन केॅ स्थिर करै लेली आवेॅ हुनी शिव के पूजा सें बचलोॅ समय दसगरदा कामोॅ में लगावेॅ लागलै। राजनीति में भी जादा रूचि लियेॅ लागलै। ई उ$ समय छेलै जबेॅ राजनीतिक घटनाक्रम बड़ी तेजी सें बदली रैल्होॅ छेलै आरो घर तेॅ घर छेलै। अच्छा खराब देखै, सुनै लेॅ पड़वेॅ करै। "वृन्दावन में रहना छौं तेॅ माधो-माधोॅ कहना छौं" के स्थिति जीवी रहलोॅ छेलै जैवा।
लालजी मड़रोॅ के सबसें बड़ोॅ गुण छेलै कोय भी परिवेश में अपना केॅ रमाय देना। वहाँ भी ठाठ-बाट सें रहेॅ लागलै। जहाँ राम वाहीं अयोध्या। असल ताप-संताप तेॅ जैवा भोगी रेल्होॅ छेलै। सब अपना-अपना कामोॅ में लागी गेलोॅ छेलै। खेती, बाल-बच्चा, गिरस्ती सें केकरोह जैवा केॅ देखै के समय नै छेलै। मतुर जीना तेॅ छेवेॅ करलेॅ। खाय-पीयै के कोय दिक्कत नै छेलै। सप्ताह में चार दिन कोय न कोय व्रत केॅ लैकेॅ उपासे रहै छेलै। अमरनाथ तीरथ सें एैला के बाद खाना भी अपन्हेॅ हाथोॅ सें बनाय केॅ खाय छेलै। शुद्ध शाकाहारी खाना, लहसून-पियाज केॅ छूना भी पाप। दूध के प्रयोग बेशी करै छेलै जैवा। भजन-किरतन में अपनां केॅ बहटारनें केन्होॅ केॅ जिनगी खेपी रेल्होॅ छेलै हुनी। भाय-भतीजा, पोता-पोती सें भरली जैवा केकरोह कन गपशपोॅ वास्तें जाय लेली आजाद छेलै। जहाँ जाय छेलै वाहीं आदर मिलै छेलै, बैठेॅ लेली उँच्चोॅ पीढ़ा मिलना ही मिलना छेलै।
सात साल बाद १९६२ के कातिक पूरनिमा के दिन लालजी मड़र बिना केकरोॅ सेवा-वरदास लेनें अनचोके प्राण छोड़ी केॅ स्वर्ग सिधारी गेलै। गंगा के बरारी घाट पर दाह संस्कार आरो बेटा सीनी ऐन्होॅ सराध करलकै कि इलाका में चरचा रो विषय छेलै। सात गाँव चुल्हिया लेवार नेतोॅ। सात मिठ्ठा, पूड़ी, बुनियां, सब्जी, रैता, दही, चीनी रोॅ धुरछक भोज।
पितरमिलौन के भियान केॅ फेरू पाँचू पंडितें नीलमोहन पंडिजी केॅ वहीं ठियां छेकनें छेलै, "की हो पंडिजी, खूब चललै उजरा, अलेरोॅ।"
"इलाका भरी रोॅ बाभन अधाय गेलै पाँचू। नेतलेॅ छेलै सवा सौ बराहमन आरो खैनें होतै तीन-चार सौ खाली बाभनें। मतुर तनियो टा कोय भाय के मुँह मलिन नै। दक्षिणा भी पान, सुपारी के साथ सभ्भेॅ हाथोॅ में एकेस-एकेश टाका। ऐन्होॅ भोज, ऐन्होॅ इन्तजाम अब तांय नै देखनें छेलां।" पंडिजी झोला संभारै में हरसकतोॅ होय रैल्होॅ छेलै। झोला पाँचू के देहरी पर राखी केॅ डाड़ोॅ सीधा करलकै आरो फेरू तनी केॅ खाड़ोॅ होतें बोललै, "अत्तेॅ खोली केॅ खिलैलकै तहियो ढ़ेरी बची गेलोॅ छै। बीस-बाइस हड़िया दही भंडारोॅ में बचलोॅ हम्में आँखी सें देखलियै।"
पांँचू पंडित लालजी मड़रोॅ के लंगोटिया दोस्त छेलै। लालजी साथें बितैलोॅ एक-एक क्षण पाँचू केनां भूलतियै। तीक्खोॅ मोॅन होय गेलोॅ रहै पाँचू के, तीक्खोॅ बोली बोललै, "हाथ सूक्खा, बाभन भूक्खा" ग़लत कोय थोड़ेॅ कहनें छै। जीता जिनगी बापोॅ साथें की-की करलकै है सौसे गाँमें जानै छै। हौ रंग धरमी बापोॅ के गोड़ोॅ में तेल दैकेॅ दू मुट्ठी दाबनें तेॅ कहियो नै होतै चारोॅ भाय में सें कोय आरो मरला के बाद भोजोॅ के डंका पीटै छै। मरै समय में गंगाजल तेॅ ढ़ेर दियेॅ पारलकै कोय बेटा। जा पंडिजी, आय हम्में बहुत दुखी छियौं। गामों में सिरियों होयकेॅ की संदेश देलकै यें सीनी, यहेॅ नी कि जीता-जिनगी माय-बापोॅ केॅ उमर गिरला पर सेवा, आदर नै करी केॅ मारेॅ पीटें, कोचवास दही, खाय-पीयेॅ लेॅ नै दहीं आरो मरला के बाद । "
नीलमोहन पंडीजी पाँचू के ई रूप देखी केॅ सरधा भाव सें भरी गेलै। पाँचू के आँखी में जे लोर भरलोॅ छेले उ$ भरभराय केॅ गिरी गेलै। वै लोरोॅ केॅ पोछतें हुअें बोललै, "हमरा कन महिना में एक दिन कन्होॅ सें धुरलोॅ-फिरलोॅ एक्कोॅ पहर वास्तें मड़रजी आबिये जाय छेलै। पोता-पोती साथें खेलै-खाय लेली, ओकरा भरी आँख देखै लेली तरसतें, तड़पतें मरी गेलै बेचारा।"
आबेॅ पंडीजी लेली ठहरना मुसकिल होय गेलोॅ छेलै। उनकोॅ आँख लोराय गेलोॅ छेलै। नीलमोहन झा के गेला के बाद देर तांय पाँचू के बूढ़ी कनियैनी पाँचू केॅ समझाय-समझाय चूप करलकै।
"यहेॅ उ$ साल छेलै, दू-तीन महिना बादे चीनें अपना देशोॅ पर चढ़ाय करी देलकै आरो जवाहर लाल नेहरू के बुड़बकी भरलोॅ ग़लत नीति के कारण भारत के फौज जे मरलै, मरबेॅ करलै भारत के हजारोॅ वर्गकिलोमीटर जमीन पर चीनें कब्जा करी लेलकै। भगवान शिव रो निवास स्थल अमरनाथ, मानसरोवर, कैलास तांय हथियाय लेलकै। कश्मीर समस्या देनैं छेलै नेहरू भारत चीन सीमा विवाद भी दै देलकै।"
लंबा सांस लेलकै जैवा दी। हम्में चकित छेलियै देशोॅ लेली परिवार आरो आपनोॅ व्यक्तिगत दुख-सुख के अतिरिक्त एक दिल उनका भीतर धड़कतें रहलोॅ छै, ई जानी केॅ। पाश्चाताप में नेहरू के मरवोॅ, भारत पाक युद्ध, शास्त्राी जी के ताशकन्द में अनचोके मरबोॅ सें लैकेॅ १९७४ के जयप्रकाश आन्दोलन, इंदिरा गाँधी के इमरजेंसी तक रो चर्चा करतें हुअें हुनी कहलकै, "दूध, दही, घी रो कमी नै, खाय-पीयै में परहेज तनियो टा नै। उपरोॅ सें माँस, मछरी, नतीजा होलै पन्द्रह बीस बरसोॅ में चकरधर, गजाधर आरो किशोरी तीनोॅ मरी गेलै। अधिक भाय भी मरलै। छोटका सब पटापट खतम होलोॅ गेलै आरो हम्में अख्खज लागै छै कौआ रो जी खाय केॅ एैलोॅ छी। हमरा लेली मरन कहाँ छै, मरै के इंतजार में अब तांय बैठलोॅ छी।" आपनोॅ मरन के कामना करतें दीदी सहिये में कानै लागलोॅ छेलै।
जादा उमर में आदमी निराशा, मतिभ्रम, मतिछीनता और विस्मृति के शिकार स्वाभाविक रूप सें होय जाय छै। बुढारी के ई सब लक्षण साफ देखावेॅ लागै छै। दीदी में भी ई सब लक्षण आबी गेलोॅ छेलै। हम्में दीदी केॅ समझैतें हुअें कहलियै, "दीदी, केकरोह चाहला सें कोय नै मरै छै। भगवानें जिनगी देनें छौं बढ़िया सें जीयोॅ।"
हमरा मसखरी सूझलै, "देखियौं तोरोॅ हाथोॅ के रेखा। की, की लिखलोॅ छौं।"
दीदी हाँसलै। हाँसै में उनकोॅ उजरोॅ साबूत दाँत झकझक देखाय गेलै। अब तांय एक्को दाँत बदरंग नै होलोॅ छेलै। बाँया तरोथोॅ हमरा आगू में बच्चा नांकी फैलाय देलकै, "तोंय अब तांय जे, जे कहनें छोॅ उ$ सच्चेॅ होलोॅ छै। अगरजानी छोॅ तोंय मासटर। रामलखनोॅ केॅ बाजा वाला जमीन में तोंय पैसा दै लेॅ नै कहै छेलोॅ। दस-पनरह हजार बूड़ी गेलोॅ।"
दीदी के बाजा नाम लेतैं हमरा याद एैलेॅ। यहेॅ साल भर पैन्हेॅ के बात छेकै। कोर्ट द्वारा वाजिब हक कानूनन जैवा देवी, पति स्व।कुलदीप यादव छेलवे करलै। सर्वे आरो चकबन्दी में भी इनको नामें कुलदीपोॅ के हिस्सा रोॅ सब जमीन लगभग चौदह बीघा होय गेलोॅ छेलै। लालजी मड़रोॅ के चारोॅ बेटा में एक छोटका रामलखन ही बचलोॅ छेलै। बांका सें एम.एल.ए लेली सोसलिस्ट पार्टी सें चुनाव लड़ीकेॅ दू दाफी हारी चुकलोॅ छेलै। जिला में धाक छेलै। कोर्ट-कचहरी करै छेलै। उनके झांसा में पड़ी केॅ दीदी पैसा देलेॅ रहै, लोभ तेॅ दीदी केॅ होइये गेलोॅ छेलै। मतुर सौसे गोतिया मिली गेलै। एक दिन ऐन्होॅ भी बितलै कि बांका में ही कचहरी सें आबै के रास्ता में दीदी केॅ जानै सें मारी देतियै। बदमास लागी गेलोॅ रहै, भगवानैं बचैलकेॅ उनका।
ओकरो बाद फेरू एैलोॅ छेलै दीदी हमरा ठियां आरो हम्में कहनें छेलियै, "दीदी, जे हम्में पैन्हेॅ कहनें छेलियौं, वहेॅ फेरू कहै छियौं। तोरा संपत्ति सें की काम? की करभोॅ चौदह बीघा खेत लैकेॅ तोंय। तोरोॅ ई संपत जहाँ जैतेॅ, बाजा रहौं या मिर्जापुर झगड़ा, कलह दुश्मनी छोड़ी केॅ तोरा दोसरोॅ कोय चीज प्राप्त नै होतौं।"
हमरा चूप देखी केॅ दीदी बोललै, "की सोचेॅ लागै छोॅ तोंय? देखोॅ न ई दुखिया के हाथ?"
"अभी सोलह-सतरह बरस तोरा कोय मारेॅ नै पारै।"
"सोलह-सतरह बरस।" आश्चर्य आरो दुखोॅ सें आँख फैली गेलै दीदी के, "स्वस्थ, नीरोग रहबै न हो। धिसट तेॅ नै लिखलोॅ छै।"
"सब काम पूरा करी केॅ चलतें-फिरतें ही मरभेॅ तोंय दीदी। चिन्ता नै करोॅ।" हमरोॅ बात सुनी केॅ दीदी खुश होय गेलै। रात होय रैल्होॅ छेलै। कुत्ता के झांव-झांव से गाँव के वातावरण डरावना होय गेलोॅ रहै। दीदी जाय लेली बौकड़ी हाथोॅ में लै लेनें छेलै। देखलियै पत्नी हुनका अरयातै लेली खाड़ी छेलै।