संदूक - 1 / ममता व्यास

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वह एक बहादुर और प्रतापी राजा था, संसार की सभी नायाब चीजों का शौकीन, जब-जब भी जिस राज्य को जीतने जाता। वहाँ की कोई अनोखी वस्तु ले ही आता। उसके पास कई बेशकीमती हथियार, हीरे-जवाहरात, अनोखे झूमर, कई उच्च कोटि के अरेबियन घोड़े, हाथी और कई शिकारी कुत्तों सहित सुन्दर बोलने वालीं चिडिय़ाएँ, सुगन्धित इत्र, सुगन्धित फूलों की कई प्रजातियाँ थीं। उसके पास कई सुन्दर स्त्रियाँ भी थीं, लेकिन वे सभी उसके राजमहल की शोभा मात्र थीं। उसे ख़ुद ही नहीं पता था कि उसके राजमहल में कितनी दुर्लभ वस्तुएँ हैं। बस जहाँ भी जाता, उस स्थान की सबसे सुन्दर वस्तु ले आता और खजाने में रख देता। इस बार उसने सुना कि मध्य भारत के किशनगढ़ नामक स्थान पर बहुत सुन्दर बाघ पाए जाते हैं। इस बार उसने अपने सेनापति से विमर्श करके मध्य भारत के जंगलों में शिकार करने की सोची और लाव-लश्कर लेकर जंगलों की तरफ़ रुख किया। उस रात राजा का लाव-लश्कर एक आदिवासी इलाके में ठहरा हुआ था, तभी सेनापति ने राजा से कहा "महाराज कल सुबह ही हम चरणगंगा नदी (जो पास में ही बहती थी) में स्नान करके शिकार पर चलेंगे। अभी आप विश्राम कीजिये।" इसके बाद सेनापति जंगल के आसपास का मुआयना करने में व्यस्त हो गए।

राजा अपने मंत्रियों के साथ जब विश्राम कर रहा था, तभी देखा कि एक विचित्र-सी गंध उसे महसूस हो रही है। उसने जब अन्य लोगों से पूछा तो वे सब भी बोल उठे कि "एक मदहोश करने वाली गंध आ तो रही है।" एक ऐसी सुगंध जो धीरे-धीरे मदहोश करके दूसरी दुनिया में ले जाती थी। राजा के सेनापति ने आकर सभी को समझाया कि इन जंगलों में महुआ के ही वृक्ष लगे हुए हैं, संभवत: ये नशीली सुगंध उन्हीं पेड़ों से आ रही होगी। "

राजा रातभर उस विचित्र सुगंध की गिरफ्त में रहा। सुबह होते ही राजा शिकार पर निकल गया और दिनभर बाघों का पीछा करता रहा। उन महुआ के जंगलों में राजा को कल रात जैसी कोई सुगंध महसूस नहीं हुई, लेकिन ज्यों-ज्यों रात गहराने लगी पागल कर देनी वाली सुगंध ने उसे फिर आ घेरा। इस बार राजा अपने विश्रामस्थल से उठा और उस सुगंध का पीछा करते हुए चल दिया। वह सुगंध उसे नदी किनारे तक ले गयी। चरणगंगा नदी पर कोई सुन्दर युवती दीपक रखने आई थी। ज्यों-ज्यों राजा उस युवती के नज़दीक जा रहा था, वह गंध तीव्र होती जा रही थी। अब राजा व्याकुल हो गया और युवती के सामने जाकर घोड़ा रोक दिया। "कौन हो तुम और क्या तुम मुझे बता सकती हो इन घने जंगलों में ये विचित्र-सी सुगंध किस चीज की है? कोई जड़ी-बूटी या कोई फूल, क्या है ये?" राजा ने एक सांस में कई सवाल कर दिए।

युवती राजा कि इस व्याकुलता पर तनिक मुस्काई और बोली "ये विचित्र-सी सुगंध मेरी ही देह से आती है और रोज़ रात मैं इस नदी पर यहाँ दीपक रखने आती हूँ।" कहकर युवती चल दी।

उस युवती की बात सुनकर राजा का सर चकराने लगा...देह से सुगंध? असंभव। ऐसा तो किसी धार्मिक पुस्तक में ही पढ़ा था कि किसी युग में किसी स्त्री की देह से मछली की गंध आती थी, लेकिन आज तो मैं इसे साक्षात् महसूस कर पा रहा हूँ। ये गंध तो बहुत ही मधुर और नशीली है। राजा का मन उस युवती को पाने के लिए मचल उठा और उसे लगा अब वह इस युवती के बिना नहीं जी सकेगा। युवती के प्रेम में डूबा राजा अब बाघों के शिकार को भूल ख़ुद उस सुगंध का शिकार हो चुका था। राजा महीनों तक उन जंगलों में पड़ा रहा। रोज़ शाम से वह नदी किनारे जाकर बैठ जाता और उस सुगंध में डूबा रहता। आखिरकार राजमहल से बुलावा आ गया और राजा ने जाने से पहले उस युवती के समक्ष प्रेम प्रस्ताव रख उसे विवाह के लिए मना लिया और अपने राजमहल में ले आया। राजा के राजमहल में सैकड़ों रानियाँ थीं लेकिन ये महारानी सभी में विशेष थी, ख़ास थी, इसकी विशेषता सभी से अलग थी। ईश्वर की बनाई अनुपम कृति और उसपर से सुगन्धित भी। जो देखता-सुनता, हैरत में पड़ जाता। राज्य की प्रजा महारानी की एक झलकभर देखने के लिए पागल हुई जाती थी। बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष एक बार उस मादक सुगंध को महसूस करना चाहते थे। महल की अन्य रानियाँ उदास थी, क्योंकि राजा अपनी इस नयी रानी से बहुत प्रेम करता था। उस मादक गंध से बौराया राजा अपना राजपाट भूल चुका था। अब वह हर समय विचित्र सुगंध के साए में गुजारता था। उस सुगंध से उसे बड़ा चैन मिलता था, बड़ी ही मीठी नींद आती थी। उस वक़्त राजा ख़ुद को दुनिया का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति समझता था। वह सोचता था ऐसी नायाब स्त्री तो किसी भी राजा के पास नहीं होगी और अपने भाग्य पर इतराता फिरता था। उसके दिन फूलों से भी हल्के और रातें रेशम-सी मुलायम हो गयी थी। वह कई महीनों तक अपने शयन कक्ष से बाहर नहीं आया। प्रधान सेवक के बहुत बुलाने पर एक दिन जब राजा अपने शयन कक्ष से बाहर निकला तो उसके होश उड़ गए। उसने महसूस किया कि उसकी प्रिय रानी की देह की सुगंध तो उसके शयन कक्ष से बाहर भी आ रही है। पहले तो वह अपनी ही बुद्धि पर हंस पड़ा कि उसे रानी के प्रेम और सुगंध ने कितना दीवाना बना दिया है कि जहाँ भी जाता हूँ, वह सुगंध पीछा करती है। कई दिन यूं ही इसी गफलत में गुजर गए।

नयी रानी जब भी अपनी दासियों के साथ स्नान करने जाती तो सरोवर का पानी महक उठता या बगीचे में फूल चुनने जाती तो फूल महकना भूल जाते। उसकी सुगंध पूरे राजमहल में फैल जाती। इस बात से राजा परेशान होने लगा था। वह अपनी रानी से बहुत प्रेम करता था। उसने अपनी रानी के लिए एक अलग सोने का महल बनवा दिया जो राजमहल से बहुत दूर था, लेकिन उसमें संसार के सारे सुख थे। सरोवर, बगीचे, मंदिर, सब उस सोने के महल के भीतर था। बस वह महल ही एक उजाड़ और सुनसान पहाड़ी पर बनवाया था ताकि वह सुगंध कहीं जा नहीं सके। रानी वहीं रहती थी अकेली, राजा हर पल उसके पास रहता था और अब राजा बहुत खुश था और चैन से था, लेकिन उसका ये चैन भी जल्दी ही छिन गया।

एक रोज़ राजा राजदरबार में बैठा कुछ कामकाज निपटा रहा था तभी उसने महसूस किया कि महारानी की देह की गंध पूरे राजदरबार में फैल रही थी और सभी मंत्री, दरबारी, अंगरक्षक और सैनिक सब दीवाने हुए जाते हैं उस सुगंध के। राजा घबरा गया। ये क्या हो रहा है रानी का महल तो इस राजमहल से कोसों दूर है और उस वीरान पहाड़ी से सुगंध यहाँ तक कैसे आ रही है। राजा सर पकड़कर बैठ गया। कैसे रोके उस ख़ुशबू को, कैसे चुप कराये उस बोलती सुगंध को, कैसे छिपाए उस महकते चन्दन को। राजा बिजली की गति से अपने घोड़े को लेकर दौड़ा और रानी के महल पहुँच गया। रानी आराम से सो रही थी, लेकिन उसकी देह की सुगंध रह-रहकर उठ रही थी। राजा कि आंखों में क्रोध की ज्वाला जल रही थी। उसने एक बार भी अपनी प्रिय रानी के सुन्दर मुख को नहीं देखा। अब राजा कि नींद जगरातों में बदल चुकी थी। आज जब उसे अहसास हुआ कि रानी की देह से उठने वाली सुगंध महल के बाहर भी जाती है, हर जगह व्याप्त है। वह आज पहली बार ख़ुद को दुनिया का सबसे बदकिस्मत राजा समझने लगा। राजा कि हालत देख महल की अन्य रानियाँ उस पर हंसती थीं। मज़ाक बनाती थीं।

रानी की ख़ुशबू अब मुसीबत बन चुकी थी। राजा पागल हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था वह इस समस्या से कैसे निपटे। उसने अपने सभी मित्रों, शुभचिंतकों से सलाह-मशविरा किया। अपनी विश्वस्त रानियों से पूछा। किसी ने कहा "उसे विष पिला दो।" किसी ने कहा "जहाँ से लाये थे वहीं छोड़ आओ।" किसी ने कहा "कांच का महल बनवाओ जिसमें हवा का प्रवेश ही न हो।" किसी ने कहा "पानी के भीतर तलघर बनाकर रख दो।"

राजा रानी को मारना नहीं चाहता था, क्योंकि वह उसे बहुत प्रेम करता था, जंगल में इसलिए नहीं छोड़ सकता था कि वह उसकी रानी थी, उसका मान, उसका सम्मान उसकी प्रतिष्ठा और एक बात ख़ास ये भी थी कि ऐसी नायाब स्त्री को क्या वह यूं ही छोड़ देता? कल वह किसी और राजा के पास न चली जाये, ये विचार भी उसे भयभीत करता था।

हर ख़ास और विशेष चीज अपनी खासियत की क़ीमत ज़रूर चुकाती है। दुनिया जिसे वरदान समझती है, उसके मूल में कौन-सा श्राप छिपा है ये कोई नहीं जानता। रानी का विशेष होना ही उसका विनाश बनता जा रहा था।

आखिरकार राजा ने महल के चारों तरफ़ एक कांच की ऊंची दीवार बनवाई और रानी को सौ तालों की क़ैद में रख दिया। रानी से किसी को मिलने की इजाज़त नहीं थी। वह दिनभर अपने महल में कैदियों की तरह सजा काट रही थी। रानी ने खाना-पीना बंद कर दिया। अब धीरे-धीरे उसकी देह से वह मादक सुगंध भी क्षीण होने लगी थी, लेकिन फिर भी राजा का अहंकार, उसका भय उसे जीने नहीं दे रहा था। जिस स्त्री को पाने के लिए वह एक रोज़ पागल हो गया था, आज उसी स्त्री ने एक बार फिर उसका जीना मुश्किल कर दिया था। आज फिर एक बार, उसी स्त्री ने उसे पागल कर दिया था। कई रातों से वह सोया नहीं, उसने भोजन नहीं किया, बस सर पकड़कर रोता रहता। हारकर उसने राजगुरु को बुलवाया और सारी व्यथा सुनाई।

"आप देख रहे हैं राजगुरु मैं कितना दुखी हूँ, आज तक जीवन में इतना दुखी कभी नहीं हुआ या तो मैं उस रानी की हत्या कर दूं या आत्महत्या कर लूं।" राजा रो पड़ा।

"राजन, आप बहुत बहादुर और महान राजा हैं, युद्ध के मैदान में दुश्मन आपके समक्ष ठहर नहीं पाते हैं। आप जिस वस्तु की इच्छा करें उसे पलक झपकते ही प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन...ये आपका रणक्षेत्र नहीं है राजन, आपने ये विवाह करने से पहले एक बार तो मुझसे पूछा होता, आप जानते हैं न सुगंध और प्रेम कभी तालों में बंद नहीं किये जा सकते। ये कभी छिपते नहीं, आपने चन्दन के वृक्ष को राजमहल में लगा लिया। उस वृक्ष को जंजीरें पहना दी, लेकिन उसकी सुगंध को कैसे रोकेंगे आप? आपकी कोई तलवार, कोई हथियार काम नहीं आयेगा।" कहकर राजगुरु गंभीर हो गए।

"मैंने आपको यहाँ समस्या के समाधान के लिए बुलाया है, मेरी पीड़ा कि व्याख्या के लिए नहीं।" राजा क्रोध में था।

"अब तो एक ही उपाय है राजन, आप उस सुगन्धित वृक्ष को जड़ से काट डालें।" डरते हुए राजगुरु बोले।

"नहीं राजगुरु, मैं अपनी प्रिय रानी की हत्या नहीं कर सकता। आप बतायें कि मैं ऐसा क्या उपाय करूं कि रानी मेरे महल में ही रहे और उसकी देह की जानलेवा सुगंध बाहर न जा सके, मैं उसे अपने पास, बहुत पास रखना चाहता हूँ।"

महाराज की बात सुनकर चतुर राजगुरु ने राजा को एक सलाह दी और उस पर तुरंत कार्यवाही होने लगी। राजा ने अपनी प्रिय रानी को उस दिन बुलाया और उसे बहुत चूमा और बोला, " मेरी प्यारी रानी, तुम्हारी देह की ये मादक सुगंध मुझे दीवाना बना देती है। तुम पर, तुम्हारी देह पर और तुम्हारी इस मादक सुगंध पर मेरा और

बस मेरा ही अधिकार है। ओ मेरी प्रिय रानी तुम कितनी खूबसूरत हो, मैं हमेशा के

लिए तुम्हें अपने पास रखना चाहता हूँ। " तुम्हें इस सोने के सन्दूक में सुरक्षित रखना चाहता हूँ।

रानी मुस्काई और डबडबाई आंखों से बोली, "राजा, उस सोने के राजमहल और इस सोने के संदूक, दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं है।" और वह ख़ुद ही जाकर संदूक में बैठ गयी। राजा ने अपनी जान से ज़्यादा प्यारी रानी को उसमें बंद कर दिया। अपने शयन कक्ष की ज़मीन में हजारों फीट गहरा गड्ढा खुदवाया और उस संदूक को गड्ढे में छिपा दिया। गड्ढे को मिट्टी से भरकर उस पर खूबसूरत संगमरमर का फ़र्श बनवा दिया। राजा अब उस खूबसूरत फ़र्श पर सोता था। उस फ़र्श पर अपनी उंगलियाँ फिराता था। उसे बेतहाशा चूमता था। उसे अब चैन की नींद आती थी और डरावने सपने भी नहीं आते थे। अब महल की दीवारें उस पर नहीं हंसती थीं। राजा अपनी प्रिय रानी को खोकर बहुत खुश था। वह खुश था उसने अपने कमरे में उस मादक ख़ुशबू को हमेशा के लिए क़ैद कर लिया था। अब वह बहुत चैन और सुकून में था। अब उस राजमहल में कोई सुगंध नहीं महकती थी। खो देने का सुख भी अपने आपमें कितना बड़ा होता है न ...राजा आज अपनी प्रिय रानी को खोकर भी बहुत खुश था। बहुत शांति थी उसके मन में कि अब उसकी रानी की सुगंध राजमहल से बाहर कभी नहीं जा सकेगी। कभी-कभी "पाने के सुख से बड़ा खोने का सुख" हो जाता है। राजा आज खोने के सुख से सुखी था।