संपादकीय / अप्रैल-जून 2012 / कथेसर
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कोई लिखारो क्यूं लिखै? इण सवाल रा अनेक जवाब हो सकै। पण सै सूं सांचो अर भरोसैमंद जवाब है कै बो पाठकां रै पढण सारू लिखै। बाकी जवाब तो इण जवाब री कूख सूं निपजै। जियां कोई कैवै कै बो कलम रै जरियै समाजू विकारां अर रोगां सूं लड़ै, कोई कैवै बो दुनिया बदळणी चावै, अर कोई कैवै बो खुद रै होणै नै लेखन रै जरियै प्रगटै। तो अै सगळा जवाब उण सांचै अर भरोसैमंद जवाब कै 'बो पाठकां रै पढण सारू लिखै' री कूख सूं जलम्योड़ा है। पण आं बीजै जवाबां रै जलमण री अेक सर्त है। अर बा आ है कै सांचो अर भरोसैमंद जवाब कूख बायरो नीं होणो चइयै। उण में मां बणण री खिमता होवणी चइज्यै। यानी कै पठनीयता। पठनीयता इण जवाब री कूख है। जकी सूं बाकी सारा जवाब जलमै। दुनिया में आधै सूं बेसी 'पढण सारू लिखूं' जवाब बांझड़ा ई हुवै। जकां रै बाकी जवाब नीं जलमै। अर जकां रै बाकी जवाब नीं जलमै बां जवाबां रै धणियां रो लिखणो-टेम अर दरख्तां री हत्या करणो है। ईं वास्तै किणी रचना नै पाठकां री खुराक बणावण सारू उणनै पठनीय बणाणो जरूरी है।
पठनीयता रो गुण सै सूं बडो गुण है। इणी गुण रै कारण किणी पोथी पर पाठक उरड़-उरड़ पड़ै। अर हालत आ होज्यै कै प्रकासक छापतो-छापतो आखतो हुज्यै, पण पाठक पढतो-पढतो नीं धापै। इण दौर में साहित्यिक सम्मेलनां अर गोष्ठियां मांय अमूमन अेक रूढ जुमलो सुणण नै मिलै कै इलेक्ट्रोनिक मीडिया प्रिंट मीडिया नै चरग्यो। म्हारै आ बात गळै नीं उतरै। कीमिया किताब नै तो आज ई पाठक ढूंढतो फिरै। अर कूटळै नै इलेक्ट्रोनिक मीडिया री पैदाइस सूं पैलां ई कोई नीं पढतो। किताब में पाठक पैदा करण री कूवत होणी चइयै। म्हारै हिसाब सूं किताब तीन भांत री हुवै। अेक नींद उडावण री, दूजी नींद लेवण री अर तीजी नींद मांय दखल देवतो बच्चै रै हाथ में देवण री। अठै म्हैं पैली भांत री किताब रो ई जिकर करणो चावूं। आ किताब अेक अैड़ी दुनिया रचै जकी में बड़्यां पछै पाठक रो निकळण नै जीव नीं करै। उण दुनिया रै कूंचै-कूंचै में पाठक अैड़ो रमै कै हमेस सारू उण रो वासिंदो बण्यो रैवणो चावै। कैवण रो मतलब बो किताब में अैड़ो रमज्यै कै उण नै किताब खत्म होवण रो डर सतावण लागज्यै। अर जद बो आपरै मन रै परबारै किताब री दुनिया सूं बारै आवै यानी जद किताब पूरी पढीजज्यै तो उण नै किताब सूं बारली दुनिया में कतैई नीं आवड़ै। बो घणै दिनां तांई चेताचूक अर अणमणो-सो रैवै। उणनै लागै जाणै उणरो कीं गमग्यो।
आ होवै किताब री ताकत। जकी यथास्थिति तोड़ै। अैड़ी रचना जीवनभर पाठक रै सागै रैवै। आ उण नै ताकत बगसै। अैड़ी किताब कियां लिखीज्यै? इण सवाल माथै आगलै अंक में बंतळ करस्यां। जै राजस्थान, जै राजस्थानी!
-रामस्वरूप किसान