संपादकीय / जनवरी-मार्च 2012 / कथेसर
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म्हैं भौत बर सोचूं कै हर खेतर में पद पावण सारू डिप्लोमा रौ इंतजाम हुवै। ओ डिप्लोमा पावण सारू परीक्षा देवणी पड़ै। पास आवणो पड़ै। पछै पद रौ मालिक बणै। अर नांव आगै लागणो सरूं हुवै- डॉक्टर, वकील, अध्यापक, तहसीलदार, पटवारी.......।
पण अेक भौत ई ठाडै अर सै सूं ऊंचै ओहदै सारू आ व्यवस्था कोनी। साहितकार बणन सारू कोई परीक्षा नीं देवणी पड़ै। अर न ई इणरो कठै ई ट्रैनिंग सैंटर। तो पछै इण पद रो प्रमाण पत्र कुण जारी करै? ....अेकर म्हनै अेक जणै पूछ्यो- 'आप कवि लागग्या?' अण सरल, सहज अर भोळै-सै दीखण वाळै सवाल म्हनै झिंझोड़'र छोड दियो। म्हैं फगत नाड़ रै इसारै हामी भरी।
'कुण लगावै कवि?' उणरै अण दूजै सवाल म्हनैं बीस साल लारै लेय जाय'र पटक दियो। अर म्हारै साम्हीं हिन्दी री कविता प्रधान पत्रिका 'कृति ओर' रो चितराम मंडग्यो। जकी रा सम्पादक वरिष्ठ कवि विजेन्द्र हा। अर जठै सूं 'खेद सहित' रै ठप्पै साथै बीस-पच्चीस बारी म्हारी कवितावां पाछी आई ही। ....डाकियो जद बारणै बड़'र हेलो मारतो तो म्हारो काळजो फड़कै चढ जांवतो। अर जकी रो डर लागतो बा ई हो बैठती। 'कृति ओर' सूं पाछी भेज्योड़ी कवितावां रो घायल हुयोड़ो तार-तार लिफाफो म्हारै हाथां में धूजबो करतो अर डाकियो मुळक'र चल्यो जांवतो। आ मुळकाण म्हारै आर-पार हुय जांवती। म्हारै में बाकी नीं रैंवती। म्हैं फैल हुयोड़ै पढेसरी ज्यूं घणै दिनां तांई अणमणो रैंवतो। जोड़ायत पूछती- 'थे आजकाल फीका क्यूं रैवौ?' जी में आंवती- कैयद्यूं फैल हुग्यो।
कैवण रो मतलब बो म्हारो हिमतान हो। फैल हुवणै नै म्हैं चुनौती समझ चौगणी मैणत करतो। ईयां करतां-करतां सेवट म्हैं 'कृति ओर' मांय छपण लागग्यो। पत्रिका म्हानै कबूलण लागगी। अठै तांई कै सम्पादक जी कवितावां री मांग करण लागग्या। म्हनै पत्रिका री तरफ सूं कवि रो सर्टिफिकेट मिलग्यो। म्हैं कवि लागग्यो।
तो उण भोळै सै दीखण वाळै सवाल म्हारी आ अवधारणा तोड़ दी कै साहित्यकार रै पद सारू कोई इन्स्टीट्यूट नीं है। ट्रैनिंग सैंटर नीं है। अर ओ पद पावण सारू कोई परीक्षा नीं देवणी पड़ै। जे गौर सूं सोचां तो ठाह लागै कै ओ पद पावण सारू तो भौत करड़ी परीक्षा सूं गुजरणों पड़ै। अर उणरी परीक्षा रा केन्द्र है साहित्यिक पत्र-पत्रिकावां। पण सर्त आ कै अै केन्द्र ईमानदार, निष्पक्ष अर शॉर्टकट, जोड़तोड़ अर सम्बन्धां री बुराई सूं बारै हुवै। पत्रिका लेखक त्यार करण रो सैं सूं सबळो संस्थान हुवै।
'कथेसर' रो पैलो अंक आपरै हाथां में है। किसो'क लाग्यो, इणरो पडूत्तर तो आपरी पारखी निजरां अर पछै कागदां सूं ई मिलसी। आगलै अंक सूं आपरा कागद भी छाप्या जायसी। 'कथेसर' सारू आपरा घणमोला सुझावां री उडीक रैसी। आपरो रचनात्मक सैयोग बरोबर मिलतो रैसी, अैड़ी आस है। हां, इतरो भरोसो अवस दिराऊं कै कहाणी प्रमुख आ पत्रिका फगत प्रकासन मंच ई नीं होवैला जद कै आ नुंवा कहाणीकार ईज त्यार करैला। अन्त में सत्यनारायण सोनी री खिमता अर हूंस नै निवण करूं जकी रै बूतै ओ बीड़ो चाब्यो है। सोनी कथेसर री रीढ है। अर आ सोनी री ई योजना है। जुझारू विनोद स्वामी तो पत्रिका रै संघर्ष रो हड़मान है ईज। जै राजस्थान, जै राजस्थानी॥
-रामस्वरूप किसान