संपादकीय / जुलाई-सितम्बर 2012 / कथेसर

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कीमिया किताब कियां लिखीजै? जद कोई लिखारो आपरी बेजोड़ खिमता रै पाण खुद रै देस अर काल नै बेजां कमा लेवै तो उणरी रचना किणी इलाकै विसेस री नीं रैय'र आखी धरती री हो जाया करै। आ सगति फगत उण रचनाकार मांय ई हुवै जकै कनै रचना रा सगळा औजार निजू अर घरू हुवै। कैय सकां कै मांग्योड़ै घीयां सूं किसा चूरमा बणै। खुद री भाषा, मुहावरै, आंटै अर अनुभव सूं खुद री जमीं अर समै नै दुहणियों रचनाकार ई देस अर काल री सींव तोड़ सकै। उणरी रचना ई जग-रचना बणै। जकै रचनाकार काल रै अेक खंड- छोटै-सै वर्तमान नै अर धरती रै अेक खंड- छोटै-सूं छोटै टुकड़ै नै खुद री छोटी सूं छोटी भासा अर चिन्तन सूं कमायो है, उणरी रचना ई अखंड काल, अखंड धरती, अखंड भासा अर अखंड चिन्तन हासिल करै। कैवण रो अरथ- समष्टि रै खातर व्यष्टि अर समग्रता रै वास्तै स्थानीयता जरूरी है। मतलब गांव अर ढाणी नै कमायनै दुनिया रो हो सकै, दुनिया नै कमाय दुनिया रो तो दूर, गांव अर ढाणी रो ई नीं हो सकै। ओ रचनाधर्मिता रो मिजाज है।

मौलिकता रचनाकार रो कोरो बहम अर कसूतो दम्भ है। उणरो ओ सोचणो कै वो अैड़ी जाणकारी का अबोट चीज पेस करै जकी पाठकां (लोगां) री जाणकारी में आयोड़ी ईज नीं हुवै, भोळप है। दुनिया री जाणकारी सूं अलायदा जाणकारी पेस करण री कोसीस ई तो लेखक नै अकैडमिक, दुरूह, नीरस अर उबाऊ बणावै। जकी चीज वजूद में ई नीं है, उणनै धकोधक आकार देवणों पाठक-वर्ग नै संकड़ो करणों है। अैड़ा रचनाकार पाठकां रो भरोसो नीं जीत सकै। साहित्य रै संदर्भ में रचना रो अरथ तो पुनर्सिरजण ई हुवै। चीजां नै दूसर सिरजणों। जकी चीज नै जाणतै थकां ई लोग नीं जाणै उण चीज सूं रूबरू कराणै रो सहज, सरल अर कलात्मक हुनर ई रचना हुया करै। आदमी रै भीतर री दुनिया बारै काढ'र उणरै साम्हीं ऊभी करणों ई सिरजण हुवै। जकी नै देख'र जे उणरै मूंडै सूं निकळै वाह! तो समझो, सिरजण सारथक। कीमिया किताब बा ई हुवै जकी पग-पग पर पाठक रै भीतर सूं ई चीजां काढ-काढ उणरै साम्हीं सजायबो करै। अर पाठक नै चूंटियो-सो चटायबो करै। जको सामान पाठक (लोगां) रै भीतर नीं हुवै मतलब जकी चीज रो वजूद ई नीं हुवै। उणनै पाठकां साम्हीं धरणों जादुई करामात हो सकै, सिरजण नीं।

सिरजण बाबत अेक बात और कैवणौं चावूं। दो दुनियावां रै बीच असहमति (नकार) रो नांव ई सिरजण है। आ असहमति जित्ती ई ठाडी हुसी, रचना उत्ती ई लांठी अर कीमिया हुसी। हर रचनाकार अेक दुनिया रचै। जथारथ री दुनिया सूं अळगी। खुद रै जथारथ री दुनिया। ओ खुद रो जथारथ दुनिया रै जथारथ सूं जित्तो ई अळगो अर बेमेळ हुसी, उणी अनुपात में दुनिया रो जथारथ आहत हुवैला। अर दुनिया रो जथारथ जित्तो ई आहत हुसी, रचना उणी अनुपात में बड़ी हुवैला। दुनिया रो ओ जथारथ ऊबड़-खाबड़ समाजू वैवस्था पर टिक्योड़ो हुवै। जद कै रचनाकार रो निजू जथारथ हमवार कर्योड़ी समतामूलक समाजू वैवस्था पर टिक्योड़ो हुवै। आ समाजू वैवस्था ई समाज रो सच हुवै। चौंकावण वाळो सच। जकै नै दुनियावी जथारथ रै नकार रै साथै-साथै उणरी बगावत रो ईज मुकाबलो करणो पड़ै। लेखक रै जथारथ अर दुनिया रै जथारथ मांय आ जंग लगोलग चालती रैवै। इण नै सिरजण अर समाज रो द्वंद्व ईज कैय सकां। इण जंग में जठै-जठै सिरजण जीततो जावै, बठै-बठै समाज उणनै कबूल करतो जावै। आ ई तो सिरजण रै जरियै क्रांति है। अर इणी सारू स्यात कोई लिखारो कलम चलावै।

जै राजस्थान, जै राजस्थानी।

रामस्वरूप किसान