संपादकीय / दिसम्बर-जून2012 / कल के लिये
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डा. जय नारायण
साहित्य जगत में सैकडों कवियों लेखकों से संपर्क हुआ कुछ की कविताओं ने गहरा असर डाला इनमें मुक्तिबोध, नागार्जुन, धूमिल और रघुवीर सहाय प्रमुख हैं कुछ चिंतकों ने भी गहराई से प्रभावित किया । रामविलास शर्मा उनमें अग्रणी हें कुद उपन्याय और कहानियां भी स्मृति का अभिन्न अंग बनीं पर बचपन से जिसने मेरी चेतना को झकझोरा वे कबीर थे। मुझे याद आता है शायद सातवीं या आठवीं कक्षा में पढता थ कबीर की साखियां बिना किसी प्रयास के कंठस्थ हो जाती थी आप कह सकते हैं उनके ओज सत्य के प्रति आग्रह , दो टूक और खरी खरी कह देन का अंदाज इन सबने व्यापारी परिवार में उत्पन्न एक युवक को वैचारिक दृढता से लैस किया । मैं यह सब इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि जब अदम गोंडवी नाम के शायर से पहली बार मिला और उनकी कुछ गजलें सुनीं तो मुझे लगा कि कबीर के तेज का एक अंश बिजली की एक आक्रामक कौंध और साहस का एक गुंबद इस शख्श के भीतर कहीं छुपा हैं । आप कह सकते हैं कि यह आकर्षण क्रमशः सम्मोहन में बदल गया, संयोग से वे समीपवर्ती जनपद में रहते थे और मेरी एक आवाज पर मेरे पास चले आते थे। घर में घर वालों की तरह रहते बोलते बतियाते बीच बीच में एक लम्बी खामोशी ...कोई किताब उठाकर उसमें डूब जाते आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं उनके दिये संबोधन कानों में गूंज रहे हैं।................
'आदरणीय'.... 'मान्यवर' ....इन सम्बोधनों के साथ अब कोई नहीं बुलाएगा।
अक्सर वे बिना बताए गोंडा से बहराइच आते ओर एक तरंगित मस्ती और अत्मीय अधिकार के साथ बाहर बरामदे में ही इन संबोधनों से मुझे पुकारते, मुझे याद आता है वे कभी कालबेल नेही दबाते थे। एक आवाज पर अगर मैं न बोलूं तो.....................