संबंधों की अनिवार्यता / परंतप मिश्र
हमारे दैनिक जीवन में हम प्रतिदिन कुछ नया सीखते हैं। बनते और बिगड़ते सम्बन्ध लोगों की मनोवृति की अनुकूलता, विचारों की स्वीकार्यता, प्रारब्ध कर्म, आचार-विचार, परिस्थिति और समाज का परिणाम है।
हमारा प्रयास अपने सम्बंधो को जीवित रखने का होना चाहिए। सम्बन्ध जो बने वह सहेज लेने चाहिए। आदर और सम्मान परस्पर होना चाहिए। दैनिक जीवन के सम्बंधो की अपनी एक दुनियाँ है। जहाँ अमूल्य अनुभवों के फल लगते हैं, जो हमारे सम्पूर्ण जीवन की उपलब्धि है।
सामान्य जीवन चर्या में बहुत से ऐसे अवसर आते हैं जब हमारे सबंध प्रभावित होते हैं। जहाँ प्रीतिकर परिणाम देने वाले अनुभव सुख की अनुभूति दे जाते हैं तो वहीं मन के अनुकूल परिणाम न प्राप्त होने पर कुछ कटु अनुभव भी होते हैं। परन्तु वह भी जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। सभी का अपना महत्त्व है। अगर ऐसा न हो तो जीवन नीरस-सा लगने लगेगा इसलिए दोनों प्रकार के अनुभव जीवन के अनुभवों की रंगोली है।
हमारे सम्बन्ध कभी परिस्तिथि विशेष, तर्क–वितर्क, संदेह, आत्मश्लाघा अथवा स्वार्थ से प्रभावित होकर टूट जाते हैं और हम अपना साथी और एक सम्बन्ध को खो देते हैं। जिसको कभी अंकुरित किया गया होता है, अपनेपन के जल से सींच कर। उसकी टहनियों और फूल पत्तियों की भी परवाह नहीं करते जो कभी आनंदित करते थे अपने सुरभित वायु से। दुष्परिणाम स्वरूप सम्बन्धों के वृक्ष में जब फल, जो बस प्रस्फुटित होने को था पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाता। सम्पूर्ण समाज के कल्याण का संदेश देने की उपलब्धि से पूर्व पतित हो जाता है।
संदेह और मतभिन्नता कि सम्भावना प्राकृतिक है। जिसको वार्ता और स्वीकार्यता से हल किया जा सकता है। विचारों में भिन्नता एक सामान्य क्रिया है, परन्तु सभी विचार एक सोच का परिणाम हैं। मस्तिष्क में विचारों की एक अनवरत शृंखला यात्रा करती है, सोते और जागते। विवेक के द्वारा हम अपने विचारों को संयमित करते हैं।
सभी सम्बंधो का सविवेक आदर करते हुए जीवन के पथ पर अग्रसर होना समाज की गतिशीलता का परिणाम है। समबन्ध एक उपलब्धि है प्रेम की और जीवन की नियति भी। प्रेम शब्द बड़ा ही व्यापक है, जिसे आजकल संकुचित कर दिया गया है। वैसे प्रेम तो सम्बंधों की आधारशिला है, एक दूसरे के पूरक भी कहे जा सकते हैं। यहाँ पर सम्बंधो की चर्चा है अतः प्रेम की व्यापकता कि चर्चा फिर किसी दिन विस्तृत रूप से अपने मत को आओ लोगों के समक्ष रखूँगा।
निस्वार्थ और समर्पण प्रेम की सुंदरता का वातावरण तय करते हैं और समाज की समृद्धि का प्रतीक बन जाते है। यही सम्बंधों की नीव है। समय के इस काल चक्र में सब कुछ परिवर्तनशील है परन्तु कुछ चीजें ऐसी भी हैं जो समय से प्रभावित नहीं हैं, कालातीत हैं।
एक सफल सम्बन्ध बहुत सारे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रयासों का प्रतिफल होता है, जिसकी निरंतरता हमारे आपसी समझ पर निर्भर करती है। समय अथवा संदेह की एक ठोकर से इसको समाप्त नहीं करना चाहिए। किसी भी सम्बन्ध का निर्माण बहुत समय लेता है और विच्छेद एक पल में हो सकता है। अपनेपन की मिट्टी को जब हम त्याग के जल से गूंथ कर समर्पण के चाक पर व्यवहारिकता के कुशल हाथों से एक कच्चे घड़े जैसे एक सम्बन्ध को सँवारते हैं तो वह समय के लौ पर पक कर हमारे भावनाओं के जल को शीतल बना जाता है। मौसमी गर्मी के थपेड़ों और जलती हुई लू से सुरक्षित कर पुनः शक्ति का संचरण कर जाता है। इस अमृत जल पात्र को मानवता का सन्देश मानकर सुरक्षित रखें झूठे अहंकार की चोट से क्षतिग्रस्त न होने दें।
जो पल कभी सुखद था वह स्यात दुखद हो जाता है। पल तो समय की एक इकाई है, क्योंकि समय तो पलों में जीता है। परन्तु इसकी पुनरावृति नहीं होती जो समय एक पल में व्यतीत हो जाता है, वह कभी वापस नहीं आता। केवल स्मृतियाँ ही शेष रह जाती हैं। अतः हर पल को एक जीवन की तरह जीना ही जीवन की कला है। जीवन के हर एक पलों को पूर्णता से विस्तारित कर सम्बन्धों को पुष्ट करते जाना है।
दैनिक जीवन में विचार विनिमय और मतभिन्नता का समावेश होता है तो कुछ नया सीखने को भी मिलता है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी मानसिक स्थिति है और विचार उसके परिणाम। यह आवश्यक नहीं की किसी के सभी विचार आपके लिए ग्राह्य हों अथवा आपके अनुकूल हों या उनमें समानता हो पर मध्यम पथ का अनुसरण सह-जीवन के लिए उपयुक्त होता है।
सम्बंधो को मतभिन्नता से न तोड़ें। मत में भिन्नता स्वाभाविक है परन्तु मन भिन्नता कभी न करें। मतभेद हो सकते हैं लेकिन मन भेद नहीं होना चाहिए। परस्पर सम्बन्ध श्रेष्ठता कि सिद्धि के लिए नहीं स्वीकार्यता के लिए होता है, किसी पर विजय प्राप्त करने के लिए नहीं उससे हार कर अपनी जीत का मार्ग भी प्रशस्त किया जा सकता है। शक्ति बंधनें में है बिखरने में नहीं। कितने ही तरह के धागे अपनी भिन्नता को भूलकर एक मज़बूत डोर का निर्माण कर जाते हैं।
एक सफल अथवा असफल सम्बन्ध अदृश्य रूप से कई जन्मों तक की यात्रा करता है और हमारे जीवन में कहीं न कहीं किसी मोड़ पर खड़ा मिलता है। यह भी एक मनोविज्ञान का विषय है कि जब हम किसी से अटूट सम्बन्ध रखते हैं तो हमारे बीच एक अदृश्य तार जुड़ जाते हैं। दैनिक जीवन में हम इसका अनुभव कर पाते है। जैसे किसी का स्मरण करते ही उसका भी प्रस्तुत होना। मन की तरंगें आपस में भावों को प्रवाह देती हैं। यहाँ तक की किसी का अच्छा लगना और बुरा लगना भी पूर्व की क्रियाओं का परिणाम ही होता है।
मेरे जीवन की एक अद्भुत घटना स्मरण करता हूँ तो आँसू रोक नहीं पाता हूँ। मेरी दादी को मैं बहुत प्रेम करता था और वह भी मुझसे उतना ही स्नेह करती थीं। उनकी उम्र लगभग 90 वर्ष की रही होगी और अस्वस्थता के कारण कोलकाता अस्पताल में भर्ती किया गया। मैं उस समय अहमदाबाद में था बहुत ही व्यथित था, यह सब सुनकर। न जाने कब एक झपकी लग गयी थी और मैंने ऐसा अनुभव किया कि वह मेरे समक्ष खड़ी हैं। अर्धचेतना में ही मैं सोचने लगा कि दादी तो कोलकाता में बीमार हैं। पर उनको समक्ष देखकर रोते हुए उनसे लिपट गया। उन्होंने भी मुझे सहलाकर बैठाया और कहा "कुछ खाए पीये हो की नहीं, कैसी हालत बना रखी है, बहुत कमजोर हो गये हो। अपना काम खतम करके आओ मैं तुम्हारा घर पर इन्तजार करती हूँ।" इतना कहकर उन्होंने अपना हाथ छुड़ा लिया था और मैं जाग गया। चारो तरफ़ देखा गालों पर आंसूओं की नमी देख लोग समझाने लगे। कुछ पल के बाद ही मेरे पिता जी ने उनके दिवंगत होने की सूचना दी। मैंने परिक्षण कर देखा तो उनके स्वर्गवास का समय और मेरे स्वप्न का समय एक ही था। मेरे लिए मेरे सम्बन्ध मेरा सबकुछ हैं इसमें मेरे लोग मेरी स्मृतियाँ निवास करती हैं।
संसार की सुंदर फुलवारी में जीवन के सुगंधित पुष्पों पर सुशोभित गुणों के परागकण से सम्बन्धों के बहुरंगी तितलियों का सामाजिक सौन्दर्य पोषित होता है।