संवाददाता / दीपक मशाल
नवरात्र के दिनों में भी कस्बे के इकलौते सिनेमाघर में चल रही अश्लील फिल्मों के फूहड़ पोस्टर हर दस कदम पर दिखने लगे थे। राह चलती लड़कियों-महिलाओं की असहज होती नज़रें शर्म से ज़मीन की तरफ देखने को मजबूर हो जातीं, शोहदों द्वारा छींटाकशी की हरकतें बढ़ने लगीं।
तंग आकर उसने और उसके कई दोस्तों ने मिलकर ऐसी फ़िल्में लगने के विरोध में आन्दोलन छेड़ने की ठानी। सबसे पहले चेतावनी के रूप में एक खबर बनाकर प्रसिद्द हिन्दी अखबार के नगर संवाददाता के कार्यालय पहुंचे।
हस्तलिखित खबर पढ़ कर संवाददाता भड़क उठा, “ऐसे ख़बरें लिखते हैं कहीं? कल के लौंडे अपने को पत्रकार समझने लगे हैं।”
फिर लड़कों के निवेदन करने पर पसीजते हुए कहा, “ठीक है, चलो अभी जाओ मैं इसको ढंग से खबर बना कर प्रेस में भेज दूंगा।”
दूसरे दिन अखबार में कस्बे के निश्चित पन्ने पर खबर इस तरह लगी थी- 'नवरात्रों के पावन समय में नगर में लग रही अश्लील फिल्मों के विरोध में कस्बे के युवकों ने एकजुट हो आन्दोलन करने की ठान ली है। उन्होंने आगे की योजना के लिए एक गुप्तस्थान पर मीटिंग रखी। मगर जीतोड़ मेहनत कर हमारे खोजी संवाददाता ने वो गुप्त ठिकाना ढूंढ ही लिया।।।'
बाकी खबर जस की तस थी।