संसार में भलाई अधिक है कि बुराई / बालकृष्ण भट्ट
एक हमारे मित्र का यह सिद्धांत कि सर्वथा न कुछ भला है न सर्वथा बुरा है, किंतु 9 और 7 भलाई और बुराई की कसौटी है। अर्थात जिसमें और जहाँ 9 आना भलाई का अंश है 7 आना बुराई का वह भला है और जिसमें भलाई केवल 7 आने है बुराई 9 आने वह बुरा है। तो अब देखना चाहिए संसार में भलाई का अंश विशेष है कि बुराई का? पाप अधिक है या पुण्य? स्वास्थ्य अधिक है या? आनंद और आमोद-प्रमोद अधिक है अथवा शोक और विषाद? धर्म रुचि अधिक है या पाप रुचि? चोर और बेईमान अधिक हैं या ईमानदार और पर धन को मिट्टी का ढेला समझने वाले? हिंसक और निठुर अधिक हैं या दयावान और पर दुखी दुखी? यद्यपि प्रत्येक मत और संप्रदाय के नेता जैसा हिंदुओं में ब्राह्मण मुसलमानों में मौलवी इसाइयों में पादरी साहब यही पुकार-पुकार कह रहे हैं और सिद्ध करते हैं कि पाप संसार में अधिक है। इस पाप के लिए यह दान करो तो पाप से छुट जाओगे नहीं तो नरक में जा गिरोगे। मौलवी लोग कहते हैं मुहम्मद साहब को अपना पेशवा मानोगे तो गुनह से छुटकारा पाओगे नहीं तो दोजख की आग में तुम्हारी रूह सदा के लिए पड़ी-पड़ी झुलसा करेगी। ऐसा ही पादरी साहब कहते हैं कि खुदाबंद प्रभु ईसा पर विश्वास लाओगे तो कयामत के दिन रिहाई पाओगे इत्यादि-इत्यादि। विविध संप्रदाय प्रवर्तक अलग-अलग अपनी-अपनी तान अलाप डेढ़ चावल की खिचड़ी जुदा-जुदा पका रहे हैं कि संसार में निरा पाप ही पाप है। इस कलियुग में पुण्य और धर्म कहीं-कहीं केवल नाम को बच रहा है। ये सब ऐसा कहा चाहे न कहें तो उनका भोजन कैसे चले और उन्हें पूछे कौन? जो अपने भाई तथा पड़ोसी को ठगते हैं, अनेक जाल और फरेब रचने में प्रवीण हैं, कानूनों के पेच समझने में चतुर अदालत में एक न एक नए तरह का मुकदमा दायर किया करते हैं उनकी संख्या संसार में अधिक है या उनकी जो निज परिश्रम से उपार्जन कर अपने घर गृहस्थी का काम चला रहे हैं? ईसा ने अपने शिष्यों को शिक्षा देने में एक ठौर कहा है वह रास्ता जो नरक को गई है बड़ी चौड़ी है और करोड़ों मनुष्य उस पर चलते हैं। हम कहेंगे सो नहीं जो मार्ग स्वर्ग जाने का है बड़ा चौड़ा सीधा और सरल है असंख्य मनुष्य उस पर चल स्वर्ग के साम्राज्य के अधिकारी हैं। जो पंथा नरक की है अत्यंत सकेती संकुचित टेढ़ी और अंधकार पूर्ण है। ऐसा ही कोई साहसी उस पर चल अपने को नरक का पाहुना बनाता है। युग धर्म इतना प्रभावशाली नहीं है जैसा भीरु हृदय हमारे पुराने लोग कलियुग है ऐसा बार-बार कह निश्चय किए बैठे हैं कि हम लोग नित्य-नित्य बिगड़ते ही जाएँगे, येन केन हम अपनी जिंदगी का दिन काट पूरा करें बस हो गया। हम उनसे केवल इतना ही पूछते हैं कि क्या अमेरिका और यूरोप के देशों में तथा हमारे पड़ोस ही में जापानीज हैं क्या वहाँ यह युग धर्म नहीं व्यापता? युग धर्म निगोड़ा भी क्या वही हते को हतता है? अकल घुन गई तो क्या हुआ पलित केश वयोवृद्ध होने से माननीय हैं, जो कहें चुप चाप सुन लेना ही पड़ता है। संसार में साधुभाव और भलाई स्वभावत: यदि अधिक न होती तो समाज एक दिन न चलती और यह जगत जीर्णारण्य हो गया होता। सौ मनुष्यों में 99 दुराचारी और पापी हैं केवल एक आदमी धर्मशील और सुकृती है तो उस एक के कारण सौ मनुष्यों की रक्षा करती है। तात्पर्य यह कि जब तक अणु मात्र भी भलाई का अंश किसी वस्तु या किसी व्यक्ति में रहता है तब तक सर्वांश उसका सत्यानाश ईश्वर नहीं करता। जब सोलहों आने बुराई देख लेता है तब उसे जड़ पेड़ से उच्छेद कर देता है। ब्रह्मास्मि कहने वाले अद्वैतवादियों का सिद्धांत है कि बुरा और भला दोनों एक सा है, न कुछ बुरा है न भला अपने को जो अनुकूल वह भला अपने को प्रतिकूल वह बुरा, पर यह उनका कथन बेबुनियाद सा मालूम होता है, जिस समय कोई रोग प्रजा में फैलता है तो वह मोसिम किसी को अनुकूल नहीं होता किंतु वैद्य और डाक्टरों को वही अनुकूल और लाभदायक है। डॉक्टर यही चाहते होंगे कि रोग की वृद्धि सदा ऐसा ही होती रहे तो हमारी जब भरी रहा करे। एक किसी खास आदमी या किसी खास फिरके वाले को अनुकूल वेदनीय तथा प्रतिकूल वेदनीय भला या बुरा होने का हेतु नहीं वरन इसमें भी यही 9 और 7 का क्रम उचित मालूम होता है। तस्मात यह सिद्ध हुआ कि भलाई का पलरा बुराई की अपेक्षा सदैव अधिक भारी रहता है। जब तक भलाई का पलरा भारी है तभी तक इस विश्व की अद्भुत रचना कायम है।