संस्कार, प्रेम और देह की परिभाषा / जयप्रकाश चौकसे

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संस्कार, प्रेम और देह की परिभाषा
प्रकाशन तिथि : 16 नवम्बर 2018


सुरेखा सीकरी और नीना गुप्ता अभिनीत 'बधाई हो' में युवा प्रेमियों की भूमिकाएं सान्या मल्होत्रा और आयुष्मान खुराना ने अभिनीत की हैं। सुरेखा सीकरी और नीना गुप्ता टेलीविजन पर प्रसारित सीरियलों से लोकप्रिय हुई थीं। ये दोनों ही महिलाएं गैर-पारम्परिक जीवन जीती रहीं और उन्होंने कभी इस बात की फिक्र ही नहीं की कि लोग क्या कहेंगे। नीना गुप्ता को वेस्टइंडीज के क्रिकेट खिलाड़ी विवियन रिचर्ड्स से प्रेम हुआ और उन्होंने मसाबा नामक पुत्री को जन्म दिया, जिसने निर्माता मधु मंटेना से प्रेम विवाह किया। बहरहाल, पारम्परिक सोच से बंधे मुट्‌ठीभर लोग संस्कार के नाम पर प्रेम का विरोध करते हैं परंतु यह चतुर लोग संस्कार की दुहाई देते हुए संकीर्णता के दायरों को फैलाते हैं। महान आख्यानों की दुहाई पल-पल देते है और यह सब कूपमंडूकता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए किया जाता है। परम्परा और आख्यानों के नाम पर आधुनिकता को खारिज करते हैं। इन्हीं लोगों ने तर्क सम्मत विचार की हिमायत करने वाली आधुनिकता को फैशन कहकर बदनाम किया है। जींस या पतलून की घटती बढ़ती मोरी, ब्लाउज की बाहों का घटना-बढ़ना फैशन के तहत आता है। केवल तर्क सम्मत वैज्ञानिक विचार ही आधुनिकता है। गलत परिभाषित आख्यान बनाम आधुनिकता एक छद्‌म युद्ध है और इसे दहकाए रखना एक व्यवसाय है। जनमत भी एक मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट है। चंद मूड़मति लोग जोर-जोर से बोलते हैं और तमाशबीन अवाम ताली बजाता है। इस प्रक्रिया से तथाकथित लोकमत बनाया जाता है।

स्त्री की अदम्य शक्ति से भयभीत पुरुष ने बड़ी चालाकी से उसके लिए संस्कार नामक बेड़ियां गढ़ी हैं। हाल ही में बाघिन अवनि की हत्या भी एक षड्यंत्र था, जिसे उस बाजार ने रचा जो डोलोमाइट जैसे खनिज को प्राप्त करने के रास्ते में उस बाघिन अवनि से भयभीत था। वह तो जंगल व खनिज की रक्षा करती थी। दरअसल, उसके भय से खनिज प्राप्त करना कठिन हो गया। सीमेंट के जंगलों में इस तरह के वध नियमित रूप से किए जा रहे हैं। महाराष्ट्र में नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, कर्नाटक में एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्याएं भी इसी शृंखला का हिस्सा हैं। बाघिन की हत्या को जायज ठहराने के लिए इस झूठ को प्रचारित किया गया कि वह बाघिन मानव भक्षी हो चुकी थी। सच तो यह है कि व्यवस्था ही असली मानव भक्षी है। आख्यानों के दस्ताने पहने होने के कारण कातिल की उंगलियों के निशान नहीं मिलते। 'बधाई हो' फिल्म में अधेड़ अवस्था की नीना गुप्ता गर्भवती होती हैं। जवान पुत्रों की मां गर्भवती होती है। उसका पति उससे प्रेम करता है। वह एक जायज संतान को जन्म देने वाली है परंतु पारम्परिकता का तकाजा है कि उम्र के इस पड़ाव पर उसे नहीं वरन् उसकी बहू को गर्भवती होना चाहिए था।

प्रेम भावना देह के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। किसी विवाहित स्त्री का एक खास उम्र तक ही गर्भवती होने का स्वागत किया जाता है। इस तरह की तमाम सीमाएं मिथ्या हैं और स्त्री की सृजनात्मक कोख का अपमान है। फिल्म में नीना गुप्ता के गर्भवती होने पर उसका परिवार मिथ्या लज्जा महसूस करता है। मोहल्ला मखौल उड़ाता है। इस घटना का एक आणविक विकिरण यह होता है कि युवा प्रेमियों के बीच भी एक दीवार खड़ी हो जाती है।

नीना गुप्ता की ननद की बेटी के विवाह में शामिल होने परिवार जाता है परंतु विवाह की तमाम रस्मों के समय सभी लोग अधेड़ अवस्था की नीना गुप्ता के गर्भवती हो जाने का मखौल उड़ाते हैं। सारा विषभरा वार्तालाप फुसफुसाहटों के जाले बुनता है। वधू विदाई के समय अपनी नानी से कहती है कि अपने अमेरिका में ससुराल से नानी को फोन करेगी तो नानी कहती है कि इतने वर्षों तक मेरठ में रहते हुए तो उसने एक फोन अपनी उम्रदराज नानी को नहीं किया और विदाई के पावन अवसर पर लोक रिवाज का निर्वाह करते हुए फोन करने का झूठ कह रही है।

इसके पश्चात सुरेखा सीकरी तमाम रिश्तेदारों को आड़े हाथों लेती हैं। वह कहती हैं कि विगत वर्षों में वह प्राय: बीमार पड़ती रही हैं। कोई भी रिश्तेदार सेवा के लिए नहीं आया। क्या उम्रदराज की सेवा संस्कार नहीं है? उसकी बहू नीना गुप्ता ने उसकी सेवा की। उसने बिस्तर पर मल त्यागा तो उसकी बहू ने बिस्तर धोया, उसे नहलाया, उसकी मालिश की और नियमित रूप से दवाएं खिलाईं। उसने अपनी उम्रदराज बीमार सास को अपनी नन्ही बेटी की तरह रखा। इस तरह की सेवा ही असली संस्कार है और आज वह गर्भवती है तो यह लज्जा की बात नहीं हैं। प्रेम की तरह ही यह भी उसका जायज अधिकार है। संस्कार की दुहाई देने वाला कोई रिश्तेदार कभी सेवा के लिए नहीं प्रस्तुत हुआ।

वह अपनी बात को आगे बढ़ाती है कि जब उसके पति नीना गुप्ता को उसकी बहू के रूप में घर में लाए तब वे भविष्य में अपनी पत्नी की रक्षा का सबसे मजबूत कवच उसे प्रदान करके गए। ऐसी सेवाभावी अपने दायित्व का निर्वाह करने वाली बहू का अधेड़ अवस्था में गर्भवती हो जाना लज्जा की बात नहीं है, उसका मखौल उड़ाया जाना ही संस्कार हीनता है।

प्राय: युवा अवस्था को क्रांतिकारी विद्रोह की अवस्था माना जाता है परंतु इस फिल्म की उम्रदराज सुरेखा सीकरी अभिनीत पात्र अपनी बहू का बचाव करते हुए खोखले संस्कार के चीथड़े उड़ा देती है। इस तरह वह एंग्री ओल्ड वुमन हो जाती है। उसके इस रुख के बाद सारी बिरादरी का दृष्टिकोण बदल जाता है। फिल्म के युवा पात्र भी सही दृष्टिकोण स्वीकार करते हैं और तमाम छद्‌म मान्यताएं भंग हो जाती हैं।

'बधाई हो' एक अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक दस्तावेज का रूप ले लेती है। यह फिल्म अत्यंत मनोरंजक स्वरूप में प्रस्तुत की गई है। इसका महान संदेश इसे कभी बोझिल या भाषणबाजी नहीं होने देता। यह एक सच्ची सोद्देश्य मनोरंजक फिल्म है। सुरेखा सीकरी अपने किरदार को शीशम के वृक्ष की तरह बना देती हैं और नीना गुप्ता को नीम के दरख्त की तरह बना देती है। याद आती है महात्मा गांधी की टिप्पणी की विवाह दो आत्माओं का मिलन है, जो शरीर के माध्यम से होता है। जाने क्यों सदियों से आत्मा को गरिमामय और आत्मा के निवास शरीर को अपवित्र माना जाता है। देह मनुष्य की इच्छाओं, सपनों और भय को अभिव्यक्त करता है। मानव देह की त्वचा ताम्रपत्र की तरह पवित्र है। वृद्धावस्था में चेहरे पर उभरी झुर्रियां इबारतें हैं। अधिकांश शिक्षित लोग इन इबारतों को पढ़ नहीं पाते।