संस्कार के बीज / अंजू खरबंदा
"मम्मा आज तो बड़ा ठंडा मौसम है। घर जाकर पनीर के पकौड़े बनाना!"
पीटीएम से लौटते हुए कपिल ने मीनाक्षी को कहा जो रिक्शा में बैठते ही सर्द हवा से ख़ुद को बचाते हुए शॉल को और भी अच्छे से जकड़ रही थी।
"अरे वाह! गुड आइडिया! साथ में गर्मा गर्म अदरक वाली चाय!"
"सोच कर ही मुँह में पानी आ गया!"
कपिल की इस बाल सुलभ अदा पर मीनाक्षी को हँसी आ गई।
"भैया! दो मिनट रिक्शा साईड पर रोक दीजिये, सामने दुकान से पनीर ले लूँ!"
पनीर लेकर मीनाक्षी वापिस आई तो उसके हाथ में एक दोना था जिस में पनीर के छोटे-छोटे टुकड़े थे और उस पर चाट मसाला छिड़का हुआ था!
"मम्मा ये क्या! अच्छा लगता है ऐसे रिक्शा में खाना!"
"बुद्धू ये तेरे लिये नहीं! रिक्शा वाले भैया के लिये है!"
कपिल ज़ोर से हँस पड़ा!
"क्या मम्मा आप भी!"
मीनाक्षी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा-
"जब मैं अपने पापा को ऐसा करते देखती थी तो मैं भी यूँ ही हँसा करती थी! उन्हें देखते-देखते मुझे पता ही नहीं चला कि कब मुझे भी आदत पड़ गई।"
"पर मम्मा...!"
"सच बताऊँ बेटा! मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है इससे!"
कहकर मीनाक्षी ने दुबारा कपिल की ओर देखा।
अब हँसी की जगह वहाँ चमक थी!