संस्कार / सुषमा गुप्ता
दिमाग खराब है तुम्हारा ये क्या छोटी-छोटी धज्जियाँ खरीद लाई हो।”- अनुपमा आगबबूला हो उठी थी।
“अरे क्यों बच्ची पर चिल्ला रही हो भाग्यवान। कुछ दिन तो है बस हमारे पास।”
“चिल्लाऊँ नहीं तो क्या करूँ? आप ही देखिए क्या वाहियात कपड़े खरीदकर लाई है। ससुराल वाले शॉपिंग के लिए साथ ले गए थे। क्या सोचते होंगे हमारे बारे में, ये संस्कार दिए हमने!”
“ये क्या किया सरु? मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।”
“पापा आप भी मम्मी के साथ शुरू हो गए। ये उन्होंने खुद ही दिलवाए है। कहा, हमारा लाइफ स्टाइल ये ही है। खुद को अभी से ढाल लो और शेखर को भी ऐसे ही कपड़े पसंद है।”
अनुपमा कुछ पल स्तब्ध खड़ी, कभी उन कपड़ों को, कभी अपने पति को देखती रही। फिर एक गहरी साँस लेते हुए बोली–‘‘हाँ, तो ठीक ही तो कह रहे हैं वे लोग, जैसा देस- वैसा भेष। रहना तो वहीं है फिर।”
पापा जी चुपचाप टीवी के चैनल पलटने लगे।
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