संस्कृति व सिनेमा में विविधता अपराजेय / जयप्रकाश चौकसे

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संस्कृति व सिनेमा में विविधता अपराजेय
प्रकाशन तिथि :06 फरवरी 2017


स्वतंत्रता संग्राम के समय हुकूमत-ए-बरतानिया के सेन्सर बोर्ड का काम केवल देशभक्ति प्रदर्शित करने वाले दृश्यों को हटाने का था। उस दौर में चुंबन के दृश्य प्रतिबंधित नहीं थे। भारतीय फिल्मकारों ने पतली गली से देशभक्ति को भी प्रदर्शित किया। आज़ादी के बाद मोरारजी देसाई ने भारत की उदात्त संस्कृति की अपनी संकीर्ण परिभाषा के तहत फिल्मों में चुंबन के दृश्य प्रतिबंधित कर दिए। पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल से 1951 में पहला अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव आयोजित हुआ और हमारे फिल्मकारों ने हॉलीवुड के परे यूरोप, चीन और जापान की फिल्में देखीं। यूरोप के नवयथार्थादी सिनेमा से हमारा परिचय हुआ और बिमल रॉय ने 'दो बीघा जमीन' का निर्माण किया और राज कपूर ने 'बूट पॉलिश' तथा 'जागते रहो' का निर्माण किया। जिया सरहदी और इस्मत चुगताई भी नवयथार्थवाद से प्रभावित हुईं और बलराज साहनी अभिनीत 'हम लोग' जैसी फिल्म का निर्माण हुआ। सत्यजीत राय ने 'पाथेर पांचाली' के निर्माण से अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में तहलका मचा दिया। उनकी 'अपु त्रिवेणी' खूब प्रशंसित हुई। इन लहरों का कोई प्रभाव दक्षिण भारत के फिल्मकारों पर नहीं हुआ और वे अपने मनोरंजन फॉर्मूले पर डटे रहे परंतु मलयाली भाषा का सिनेमा इसका अपवाद रहा अौर वहां 'चेम्मीन' जैसी सार्थक फिल्म का निर्माण हुआ परंतु साथ ही 'हर नाइट्स' जैसी 'नीले फीते' की रचना भी होती रही। केरल की मिक्सी मोटा और पतला दोनों ही पीसती रही है।

तमिल-तेलुगु भाषाई फिल्में आज भी 'मनोरंजन के लिए मनोरंजन' के अपने चिरंतन आदर्श पर टिकी हुई हैं। भारत की सबसे अधिक बजट की 'चंद्रलेखा' वहां आज़ादी के बाद ही के वर्ष में बनी है और आज वे 'बाहुबली' का दूसरा भाग बना चुके हैं, जिसकी संभावित आय पांच सौ करोड़ रुपए बताई जा रही है। गौरतलब है कि दक्षिण से ही कॉमिक्स 'अमर चित्रकथा' की रचना प्रारंभ हुई और 'बाहुबली' अमर चित्रकथा तथा हिंदी में प्रकाशित 'चंद्रकांता संतती' तथा ' भूतनाथ' का ही मिश्रण है। फिल्म टेक्नोलॉजी के विकास का लाभ 'बाहुबली' को मिला है। यह तय है कि बाहुबली की तरह का पलायनवादी सिनेमा यथार्थवाद को समाप्त कर देगा। बाजार शासित कालखंड में सामाजिक प्रतिबद्धता वाले सिनेमा को समाप्त करने के प्रयास हो रहे हैं और इसका सीधा संबंध विश्व में 'लेफ्ट धारा' को समाप्त करने से जुड़ा है। राइट विंग राजनीति लंबे समय से इसका इंतजार कर रही थी कि साहित्य, सिनेमा व कला क्षेत्र पर उसका कब्जा हो। वाम पंथ पर चहुं ओर से आक्रमण हो रहे हैं। यह सब संकेत है कि राइट बनाम लेफ्ट का यह आर्मगेडान अर्थात निर्णायक युद्ध है।

क्या बाजार कभी ऐसे मनुष्यों की रचना करने में सफल होगा, जिसमें कोई करुणा न हो, कोई मानवीय संवेदना ही न हो गोयाकि रोबो की तर्ज पर इंसान गढ़े जाएं? क्या प प्रेम शारीरिकता व मांसलता में सिमटकर रह जाएगा? चौकोर पत्थरों और सीमेंट की जुड़ाई से फुटपाथ बनाया जाता है परंतु इस मजबूत जुड़ाई में सुई बराबर जगह रिक्त छूट जाती है और उसी में कोंपल उग जाती है। ठीक इसी तरह आज के नैराश्य में भी सुई बराबर छेद है और आशा की कोंपल वहीं से उगेगी। मनुष्य अत्यंत विषम परिस्थितियों में जीते हुए भी स्वप्न देख लेता है और इन्हीं सपनों से फिर नया सृजन होकर रहेगा। आज हमें खूब खाने की ओर धकेला जा रहा है, फैशन की रंगीनियों में भरमाया जा रहा है गोयाकि हर क्षेत्र में ऑरजी तक पहुंचाया जा रहा है, जिसका अर्थ है कि आवश्यकता से अधिक खाने के बाद भी व्यंजन की लालसा बनी रही तो व्यक्ति मुंह में उंगली डालकर खाया हुआ वमन करे ताकि पेट खाली हो तथा हम कुछ और भकोस सकें। इसी ऑरजी को हर क्षेत्र में प्रवेश दिलाया जा राह है परंतु मानव केवल भकोसने और वमन करने का काम नहीं करता।

मनुष्य के अवचेतन में हमेशा नया कुछ करने का भाव कायम रहता है। बाहुबली अतिरेक वाला सिनेमा है और इसका सीमातीत अतिरेक ही इसे एक दिन मार देगा। मनोरंजन चक्र हमेशा घूमता रहता है और दर्शक इस अतिरेक से भी मुक्ति चाहेगा। मोरारजी ने अंग्रेजों के खिलाफ तना संघर्ष नहीं किया, जितना फिल्म में चुंबन दृश्य का किया और आज 'रंगून' में गीत है- 'इश्क किया अंग्रेजी में, खुल्लम खुल्ला दो ओंठों का जाम पिया अंग्रेजी में सॉरी सॉरी कहते इश्क किया अंग्रेजी में।' यह संकेत उस ओर भी है जब हिंदुस्तानी फिल्मों में चुंबन के दृश्य प्रतिबंधित थे परंतु विदेशी फिल्मों में उन्हें वही सेन्सर बोर्ड कायम रहने देता था। कालचक्र पूरी तरह घूम गया है और 'रंगून' का यह गीत लोकप्रियता के शिखर पर है। स्पष्ट है कि बाहुबली के धुआंधार में भी मासूम शरारतों वाली फिल्में बनती रहेंगी और सफल होती रहेंगी गोयाकि हम कभी बाहुबली के आतंक में मासूम शरारत करने से बाज़ नहीं आएंगे। हमारे देश और उसके मनोरंजन में विविधता हमेशा रहेगी और एक ही रंग में रंगे की प्रतिक्रियावादी ताकतें कामयाब नहीं होगी।