सआदत हसन मंटो, मोतीलाल और श्याम / जयप्रकाश चौकसे

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सआदत हसन मंटो, मोतीलाल और श्याम
प्रकाशन तिथि :17 दिसम्बर 2016


'फायर' नामक फिल्म में शबाना आज़मी के साथ अंतरंगता प्रदर्शित करने वाली फिल्म में नंदिता दास ने प्रभावोत्पादक अभिनय किया था। गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगे पर उनकी मानवीय करुणा वाली फिल्म 'फिराक' भी बहुत सराही गई और अपनी अल्प लागत पर अच्छा-खासा मुनाफा भी कमा गई। विगत समय से वे सआदत हसन मंटो का बायोपिक बनाने की तैयारी कर रही हैं और नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने मंटो की भूमका अपने बाजार मेहनताने से कम राशि पर करने की रजामंदी देदी है। ज्ञातव्य है कि सआदत हसन मंटो के घनिष्टतम मित्र अभिनेता श्याम थे, जिनकी मृत्यु घुड़सवारी के दृश्य के फिल्मांकन के समय हो गई। उस फिल्म का नाम 'शबनम' था। वे देश के विभाजन के दिन थे और मंटों ने पाकिस्तान में बसने का फैसला किया, जिसका संभवत: यह कारण था कि उन्हीं दिनों अपने अभिन्न मित्र श्याम से उनका विवाद हुआ था और कुछ ही दिन बाद श्याम की मृत्यु हो गई। यह संभव है कि मंटो के मन में यह बात पैठ गई कि घुड़दौड़ के दृश्य के फिल्मांकन के समय श्याम के मन में मित्र से झगड़े का मलाल था और अनावश्यक अपराध बोध से ग्रसित श्याम से, जो यथार्थ जीवन में अच्छा-खासा घुड़सवार था, चूक हो गई। कुछ लोगों का खयाल है कि इसी दुर्घटना के कारण अवसाद से घिरे मंटो ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। कई बार यथार्थ घटनाओं के कल्पनातीत नतीजे निकलते हैं।

पाकिस्तान में सआदत हसन मंटो बहुत दु:खी हुए, क्योंकि उनके मित्र भारत में थे। कोई व्यक्ति मात्र किसी शहर के मोह में वहां नहीं बसता। वह उस शहर में रहना चाहता है, जहां उसके मित्र हों। गगनचुंबी संगमरमरी अट्टालिकाओं से शहर का मूल्यांकन करना गलत है। मित्रों से मुलाकात नियमित रूप से हो सके, इसलिए अादमी बसने के लिए शहर चुनता है। परिवार शिक्षा और इलाज की सहूलियतें देखकर शहर में बसते हैं। कोई व्यक्ति आगरा में ताजमहल के कारण नहीं बसता। वह वहां अपनी नूरजहां या मुमताज महल के लिए भी नहीं बसता, वह अपने मित्रों के कारण बसता है। हर मित्रता की दास्तां में कुछ दुश्मनी का भाव भी मौजूद होता है। इंग्लैंड का राजा हेनरी और उनके मित्र बैकेट की दास्तां इस क्षेत्र में बेमिसाल है और ऋषिकेश मुखर्जी ने इस पर 'नमकहलाल' नामक फिल्म भी बनाई थी। अंग्रेजी भाषा में बनी फिल्म 'बैकेट' में पीटर ओर टूल और रिचर्ड बर्टन ने काम किया था।

अमेरिका में दो नायकों की फिल्म बनाने में उतनी परेशानी नहीं होती, जितनी हमारे भारत महान में होती है। शाहरुख खान और सलमान खान एक ही फिल्म में अभिनय नहीं करते। इसका आर्थिक पक्ष यह है कि आजकल सितारा अपने मेहनताने के एवज में 40 प्रतिशत मुनाफा मांगता है। अब दो सितारों में 80 फीसदी मुनाफा चला जाए तो 20 फीसदी के लिए कौन निर्माता अपनी जान जोखिम में डालेगा। अगर सितारे साथ काम करना भी चाहें तो उनके चमचे यह नहीं होने देंगे, क्योंकि उनकी रोजी-रोटी तो दो सितारों की परस्पर दुश्मनी पर आधारित होती है। बहरहाल, सआदत हसन मंटो के मित्र सितारा श्याम की भूमिका के लिए नंदिता दास को अभिनेता नहीं मिल पा रहा है। नेताअों ने आपसी नफरत का ऐसा वातावरण रचा है कि नंदिता बोस पाकिस्तान से कलाकार नहीं ले सकती।

एक जमाने में चंद्रमोहन अौर मोतीलाल गहरे दोस्त थे। जब चंद्रमोहन की फिल्में पिटने लगीं तो तब उनकी आर्थिक हालत खस्ता हो गई। एक दिन मोतीलाल उनसे मिलने गए। चंद्रमोहन शराब पी रहे थे परंतु उन्होंने अपने अभिन्न मित्र मोतीलाल को शराब पीने के लिए आमंत्रित नहीं किया। अरसे बाद मोतीलाल को ज्ञात हुअा कि उन दिनों चंद्रमोहन धनाभाव के कारण देशी ठर्रा अपनी पुरानी महंगी शराब की खाली बोतलों में डालकर पीते थे ताकि उनकी छवि खराब न हो और देशी मिलाकर वे अपने मित्र मोतीलाल की सेहत से खिलवाड़ नहीं करना चाहते थे।

नंदिता दास को अपना श्याम नहीं मिल रहा है। वे चाहें तो स्वयं ही श्याम की भूमिका करें। ज्ञातव्य है कि शम्मी कपूर की पहली पत्नी गीता बाली फिल्मकार केदार शर्मा की शागिर्द थी और एक फिल्म में उनके लायक भूमिका नहीं थी तो उन्होंने पुरुष वेशभूषा धारण करके एक भूमिका निभा दी। वह फिल्म असफल ही इसलिए हुई कि दर्शक तो गीताबाली को पुरुष वेशभूषा में भी पहचान गए और उन्हें लगा क अंतिम रील में वह अपने स्वाभाविक रूप में आकर कथा को नया मोड़ देगी परंतु ऐसा कुछ हीं हुआ। ज्ञातव्य है कि उस फिल्म की नायिका माला सिन्हा थीं।

सारांश यह है कि मित्रता या गुरु के प्रति अत्यधिक आदर दिखाने से गुरु को हानि पहुंच सकती है, इसलिए कहते हैं कि नादां से दोस्ती जी का जंजाल। एक मूर्ख मित्र से बेहतर होता है एक बुद्धिमान शत्रु।