सचमुच का गुनाह / एस. मनोज
रामलाल की मृत्यु के बाद ज्ञानचंद कभी भी रामलाल के परिवार को भूल नहीं पाया। रामलाल और ज्ञानचंद दोनों बचपन के अभिन्न मित्र थे। एक सड़क हादसे में रामलाल की मृत्यु हो गई. उसके बाद रामलाल की पत्नी सावित्री देवी और बेटी शांभवी का जीवन यातना गृह के जीवन-सा हो गया। रामलाल की मृत्यु के बाद ज्ञानचंद कभी अपने आप को तैयार नहीं कर पाया कि वह रामलाल के परिवार के लिए क्या करे। उसकी पत्नी और उसकी बेटी के जीवन का सहारा बन जाए या बिना व्यक्तिगत संपर्क बनाए उन दोनों के लिए आर्थिक सहयोग करता रहे। या सब कुछ भूल कर अपना जीवन अपने ढंग से जीता रहे। ऐसे विचार उसके मन में लगातार चलते रहे और वह रामलाल के परिवार से मिलने में किसी अज्ञात भय से डरता रहा। रामलाल के परिवार से मिलने में उसे हमेशा लगता कि लोग क्या कहेंगे। वह रामलाल की पत्नी से मिलने क्यों जाता है। सामाजिक आलोचनाओं का डर ज्ञानचंद के ज्ञान को हर लेता और वह बालसखा रामलाल की किसी भी तरह की मदद नहीं कर पाता। बरसों बीत जाने के बाद जब रामलाल की बेटी की शादी तय हुई तो सावित्री देवी बेटी शांभवी के साथ ज्ञानचंद के घर आमंत्रण देने पहुंची और बेटी की शादी में आने का अनुरोध की। विशेष अनुरोध करने पर ज्ञानचंद ने कहा-हाँ हाँ! क्यों नहीं! बिटिया की शादी में तो अवश्य ही आऊंगा।
उलाहना भरे शब्दों में सावित्री देवी कटाक्ष करते हुए बोली-आपके ऊपर थोड़ा शक होता है। जब इतने दिनों तक किसी प्रकार की सुधि नहीं ले सके तो पता नहीं उस दिन भी आएंगे या नहीं। ज्ञानचंद अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा-पता नहीं किस भय से मेरे कदम इतने दिनों तक आपके चौखट नहीं लांग पाए. समाज की ओछी आलोचनाओं के डर से मेरे कदम कभी उधर नहीं बढ़ पाते। आपके घर की ओर कदम बढ़ाने से पहले ही मेरे मन में सौ सवाल उठने लगते और लगता कि लोग मेरी आलोचना करेंगे कि वह किसी बेवा के घर क्यों जा रहा है। वह और भी बहुत सारी सफाई देता रहा।
ज्ञानचंद की सारी बातों को ध्यान से सुनने के बाद शांभवी ने कहा-आपके बालसखा की बेवा और उसकी बेटी को आपके मदद की ज़रूरत थी। बिना किए हुए गुनाह की आलोचना से बचने के लिए क्या आपने सचमुच में गुनाह नहीं किया है?