सच्चाई का दीया / सरस्वती माथुर
"प्रोफ़ाइल तो बड़ा अच्छा है पर आपने अपना जन्मस्थान नहीं लिखा?" नौकरी के इंटरव्यू के दौरान बोर्ड ने रामदीन से पूछा
"सर मुझे एक कचरा बीनने वाली देवी स्वरूपा मैया ने पाल पोस कर बड़ा किया है, इस क़ाबिल बनाया है कि आप विद्वानों के सामने बैठा हूँ।"
"ओह -- पर शहर तो होगा ना, जहाँ आप कचरे में मिले? "
"मैं रेल के डिब्बे की एक सीट के नीचे एक अख़बार में लिपटा साफ़ सफ़ाई की प्रक्रिया के दौरान मैया को मिला -जहाँ वो काग़ज़ बीनने गयीं थीं, स्टेशन के फुटपाथ पर एक तंबू डाल कर मैया बंजारन की तरह रहती थी व हर दो महीने बाद वह शहर बदल लेती थीं। स्टेशन पर काफ़ी रद्दी व प्लास्टिक मिल जाता था।उसे कबाड़ी को बेच कर वो हम दोनों का पेट पालती थी। कैसे बताऊँ किस शहर का निवासी हूँ, बस यह जानता हूँ कि इंसान हूँ। "
इंटरव्यू बोर्ड के अधिकारियों ने सीधे उस आत्मविश्वासी नवयुवक की आँखों में जलता सच्चाई का दिया देखा और बिना कोई और प्रश्न पूछे उसे नौकरी के लिये चुन लिया।