सच्चे जीवन अनुभवों की कहानियाँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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त्रिवेणी एक्सप्रेस (कहानी-संग्रह) : कमलेश भट्ट 'कमल' , प्रकाशकः अयन प्रकाशन 1 / 20 महरौली, नई दिल्ली-30,पृष्ठः 136, मूल्यः चालीस रुपये

त्रिवेणी एक्सप्रेस कमलेश भट्ट 'कमल' की 14 कहानियों का संग्रह है। सीधे-सादे ढंग से, लोगों के बीच से उठाए कथासूत्र को भट्ट जी कहानी का आकार प्रदार करने में समर्थ हैं। दरअसल हमारे आसपास ऐसा रोजमर्रा घटता रहता है, लेकिन हम उस क्षण या घटना से प्रभावित होकर दूसरे ही पल अपनी जड़ता की स्थिति को ओढ़ लेते हैं। भट्ट जी की चिन्ता इस जड़ता को तोड़ने की है। आम आदमी की विवशता, परिस्थितिजन्य दुर्बलता की पर्तें खोलकर भट्ट जी बड़ी सादगी से अपनी बात कह जाते हैं।

'चोर' काहानी में लेखक ने दर्शाया है कि एक ओर नथुआ जैसे गरीब हैं जो शोषण की चक्की में पिसते रहते हैं। मार खाना, भूखों मरना और चोरी करना इनकी विवशता हो जाती है। ठाकुर की पुलिस के साथ भी मिलीभगत रहती है। हाड़तोड़ परिश्रम करके भूखों मरने वाला चोर है या उसके श्रम पर पलने वाला-कहानी यह कठोर प्रश्न पीछे छोड़ जाती है।
'बुखार' संघर्षों में जीने वाली सुखिया की दुःख-गाथा है। विधवा सुखिया अपना सतीत्व बचाने के लिए मजदूरी करके अपना पेट भरती है। शोषकों की भीड़ में एक चेहरा 'पड़ाइन' का भी है। वह सुखिया के प्रति सहानुभूति रखती है। सुखिया का बेटा नंदू बुखार में मर जाता है। दूसरा बेटा सन्तू इस घटना से बेख़बर कटोरे के पेंदे में लगे भात को पोंछकर चाटने में जुटा था। निम्नमर्ग की विवशता, करुणा की सफल अभिव्यक्ति। यह कहानी अन्त तक बाँधे रखने में समर्थ है।
'बौनापन' एक नेपाली किशोर संजू पर केन्द्रित है। लेखक ने संजू के चरित्र को हर कोण से उभारा है-उसके हृदय की निश्छलता, कठोर परिश्रम करने की क्षमता, मालिक के परिार को अपना परिवार समझकर आत्मीय व्यवहार करना। संजू चुपचाप लाटरी के टिकट बेच कर घर पैसे भेजने का उपक्रम करता है। मालिक उसे आबारागर्द समझ कर पीट देते हैं। वास्तविकता जान लेने पर अपना बौनापन महसूस करते हैं। इस कहानी में संजू का चरित्र छाया रहता है।
'गृहलक्ष्मी' मुन्ना मिस्त्री के उतार-चढ़ाव भरे जीवन का लेखा जोखा है। पहला बेटा शादी के बाद घर छोड़ जाता है। दूसरा बेटा नंदू शादी के बाद कुसंगति में पड़ जाता है। मिस्त्री से कहासुनी के बाद घर छोड़कर जाना चाहता है। उसकी पत्नी पारिवारिक मर्यादा को बचाने का प्रयास करती है। संघर्षशील मिस्त्री हारकर दोनों को जाने से रोक लेता है। बहू के उज्ज्वल चरित्र से मिस्त्री को सुकून मिलता है।

'आँगन का सूरज' एक श्रेष्ठ कहानी है। संतानहीन कम्मो के चरित्र की विभिन्न कमजोरियाँ अपने मातृत्व का दर्द छिपाए हैं। वात्सल्य का यह अभाव कबरी गाय के बछड़े पर केन्द्रित हो जाता है। बछड़े के मरने पर कम्मो की मनःस्थिति आकुलता में घिर जाती है। देवर नरेश के बेटे, दीपू को देखने के लिए कम्मो आँगन के बीच खिंची दीवार से ईंटे खिसकाना शुरू कर देती है। इसी ललक में वह चोट खा जाती है। लेखक ने ईर्ष्या और वात्सल्य के अन्तर्द्वल्द्व को बहुत बारीकी से व्यंजित किया है।

'मूलमंत्र' की कथा नौकरी के लिए संघर्ष करते हुए आज के हर युवक की कथा है। उपेक्षाओं और उपालम्य की चक्की में पिसते हुए भी राजेश सफलता की ओर अग्रसर होता है। लेखक ने पिता नारायण की विवशता को सकारात्मक रूप प्रदान किया है।

'किसके लिए' की रूपा विभिन्न विरोधी परिस्थितियों में भी अपनी आस्था को जिलाए रखती है। यह सत्य घटना पर आधारित सशक्त कथा है। 'ललाइन' रेखाचित्र के शिल्प में लिखी चरित्रप्रधान कहानी है। लड़ाका ललाइन कुरैशी कि मकान में छुपे गुंडे से पिटकर भी नहीं डरती। भट्ट जी ने इस कहानी में सशक्त भाषा का प्रयोग किया है। 'बाल बच्चे' अत्यन्त साधारण घटना में छिपी संवेदना का चित्र है। चूहों को नष्ट करने पर उतारू बीवी के मन में चूहे के छोटे-छोटे बच्चे दया-भाव जाग्रत कर देते हैं।

'त्रिवेणी एक्सप्रेस' में लोगों के वाचिक अव्यवस्था-विरोध के निकम्मेपन पर व्यंग्य किया है। कर्त्तव्य परायण भइलाल रेलवे के ईंक्यावी बाबू के सिर पर बौखलाहट में ईंट मारकर अपना विरोध दर्ज करता है। कुछ इसे पागलपन कह देंगे लेकिन बदइंतजामी के तामइनाम पर उंगली नहीं उठाएँगे। बातों से दुनिया बदल देंगे लेकिन वास्तविक बदलाव से मुँह चुराएँगे।

मध्यमवर्गीय हो या निम्नवर्गीय, शोषण का शिकार कोई भी हो सकता है। वकीलों और उनके दलालों की सुड़पेंच, नोचखसोट में फँसे एक राजपत्रित ईमानदारी की छटपटाहट 'शिकार बनते हुए' कथा में सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हुई है, जो शोषण करने के अभ्यस्त हैं, वे बिना औपचारिक हुए खून चूसते रहते हैं।

'मुरली की आवाज' अभावग्रस्त कलाकार मुरली की साधारण कथा है। मनोरंजन के क्षेत्र में फैले प्रदूषण को दूर करने के लिए मुरली कटिबद्ध है। 'अर्थबोध' के सुराज काका अपना पूरा जीवन 'बाग' के लिए खपा देते हैं। जब पेड़ों पर फल आने बंद हो जाते हैं तो बिना कारण समझे सुराज काका पेड़ काटना शुरू कर देते हैं। भोला उन्हें रास्ते पर लाता है। यह कहानी आदर्शवाद से बोझिल हो गई है। 'भीड़' कहानी बेतरह बढ़ती आबादी के दुष्परिणामों का अहसास कराती है। कामता प्रसाद के परिवार पर गिरी गाज के कारण जनार्दन बाबू दायित्वबोध के कारण उसी भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं।

इन कहानियों में कलात्मक कौशल की पैंतरेबाजी भले ही न हो; परन्तु पठनीयता का गुण विद्यमान है। घटना और परिस्थितियों की विश्वसनीयता, उद्देश्यपरकता हर कहानी में मौजूद है। कहानियों के सारे पात्र संघर्षशील है। अच्छा-बुरा जैसाा भी जीवन मिला है, उससे पलायन क्या करना। यही भट्ट जी की कहानी-कला की विशिष्द्यटता है। क्षेत्रीय शब्दों का प्रयोग भाषा को ऊर्जा प्रदान करने वाला है। कहीं-कहीं वाक्य-रचना एवं शब्दविधान शिथिल है। डॉ. कमल किशोर गोयनका की भूमिका संग्रह को और भी महत्त्वपूर्ण बना देती है। पाठकों में इस संग्रह की पहचान बनेगी, ऐसा विश्वास किया जा सकताा है।

(विश्वमानव, 23 / 03 / 1991)