सच्ची मित्रता क्या है-3 ? / ओशो
प्रवचनमाला
अभी हाल ही में मुझे चार पत्र मिले, जो विभिन्न अमेरिकन कैदियों के थे। जिसमें चारों कैदियों ने संन्यास लेने की इच्छा प्रगट की थी।इनमें से एक अमेरिकन कैदी पहले से ही मेरी पुस्तकें पढ़ता रहा था। जब मैं एक दिन के लिए जेल में था, तब से ही जेल के अधिकारियों के साथ-साथ कैदी भी मुझमें इच्छुक होने लगे थे। इसलिए उन्होंने मेरी पुस्तकें मंगवायी होंगी।
कैदी वे पुस्तकें पढ़ने लगा। हालांकि वह अमेरिकन था, जो उस जेल में पांच साल से था--उसने मुझे लिखा: "ओशो, आपकी पुस्तकें पढ़ते हुए, आपको टेलीविजन पर बोलते हुए देखना बहुत ही आंनद का अनुभव रहा है, और जब आप एक दिन के लिए जेल में थे, तब मैं भी उसी जेल में था और मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकता, जिस दिन मैं आपके साथ एक ही बैरक में था; वह दिन मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन बन गया। तब से ही मैं अपने भीतर बहुत कुछ ऐसा लेकर चल रहां हूं जो आपके सामने व्यक्त करना चाहता हूं:आपने कोई अपराध नहीं किया और जिस क्षण मैंने आपको देखा तब से ही इस बात के लिए मैं पूरी तरह से आश्वस्त रहा हूं। पर ऐसा लगता है कि बिलकुल निर्दोष होना ही सबसे भंयकर अपराध है। क्योंकि जिस तरह से पूरे देश में आपको रेडियो और टेलीविजन पर बोलते हुए सब सुनने लगे थे और आपकी पुस्तकें पढ़ने लगे थे तब ऐसा लगने लगा कि आप पूरे अमेरिका में उसके राष्ट्रपति से भी अधिक महत्वपूर्ण बन गए हैं और इसी कारण से वे आपका कम्यून नष्ट करने को प्रेरित हुए और आपको बंदी बनाया, सिर्फ आपको अपमानित करने के लिए ।'
मैं यह जानकर आश्चर्यचकित रह गया कि किसी कैदी के पास भी इस तरह की अंतर्दृष्टि है।
वह यह कह रहा है कि आप जैसे व्यक्ति को निंदित किया जाना नियति है, क्योंकि आपके जैसे चैतन्य और शिखर पर पहुंचे व्यक्ति के सामने, कुछ महान और ताकतवर व्यक्ति भी बौने दिखाई देते है। यह आपकी गलती है--वह कह रहा है। अगर आप इतने सफल नहीं होते तो आपको अनदेखा किया जा सकता था और अगर आपका कम्यून इतना सफल नही होता तो कोई भी आपकी परवाह नहीं करता। बुद्धपुरुष का कोई मित्र नहीं होता, कोई शत्रु नहीं होता, केवल शुद्ध प्रेम होता है, जो किसी एक से संबंधित नहीं होता। और वह यह प्रेम हर उस हृदय में उंड़ेलने लगता है, जो उपलब्ध है। यही प्रामाणिक मैत्री है।
पर इस तरह का व्यक्ति बहुत से अहंकारों को चोट पहुंचाएगा, उन्हें आहत करेगा जो सोचते हैं कि वे बहुत ताकतवर और महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। इनमें हर वह व्यक्ति जिनमें बहुत से राष्टपति, प्रधानमंत्री, राजा और रानियों जैसे ताकतवर और महत्वपूर्ण व्यक्ति भी होंगे, वे तुरंत चिंतित और परेशान होंगे। कैसे एक साधारण व्यक्ति जिसके पास किसी भी तरह की ताकत नहीं है, अचानक ही लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया, उन व्यक्तियों से भी ज्यादा जिनके पास पद-प्रतिष्ठा और पैसा है। इस तरह के व्यक्ति को क्षमा नहीं किया जा सकता। उसे दंडित किया ही जाना चाहिए--चाहे उसने कोई अपराध किया हो अथवा नहीं। बुद्धत्व प्राप्त व्यक्ति से कोई अपराध नहीं होता--यह बिलकुल असंभव है। लेकिन निर्दोष होना, मैत्रीपूर्ण होना, अकारण सबके प्रति प्रेम का भाव रखना और स्वयं होना ही बहुत व्यक्तियों के अहं को आपके प्रति उकसाने के लिए प्रर्याप्त है।
तो जब मैं कहता हूं कि बुद्धपुरुष के शत्रु नहीं होते, तो मेरा मतलब है कि उसकी ओर से उसका कोई शत्रु नहीं। पर दूसरी ओर से, जितनी उसकी ऊंचाई होगी उतनी ज्यादा लोगों की शत्रुता होगी, उतना ज्यादा द्वेष होगा, उतनी ज्यादा निंदा होगी। ऐसा सदियों से होता रहा है।
अभी निर्वाणो मुझे कह रही थी कि जिस दिन मुझे चालीस लाख डालर का दंड किया गया, लगभग आधे करोड़ रुपयों से भी ज्यादा, और यह भलीभांति जानते हुए कि मेरे पास एक पैसा भी नहीं है... निर्वाणो को अपने पक्ष में काम कर रहे वकील ने कहा-उन्होंने फिर ऐसा किया। उसने पूछा,
" यह तुम क्या कह रहे हो? और उसने कहा: हां, उन्होंने दुबारा ऐसा किया। उन्होंने फिर जीसस को सूली पर लटकाया, उन्होने दुबारा उसे दंडित किया जो बिलकुल ही निर्दोष है, पर उसकी निर्दोषता से उनके अहं को चोट पहुंचती है। केवल बौद्धिक समझ ही पर्याप्त नहीं होगी, हां, थोड़ी बहुत बौद्धिक समझ ठीक है, क्योंकि इससे तुम्हें अस्तित्वगत अनुभव मिलेगा। लेकिन तुम्हें प्रेम की उस अपरिसीम मिठास, सौंदर्य, भगवत्ता और सत्य का पूर्ण स्वाद केवल अनुभव से ही मिलेगा।