सच है क्या और झूठ है क्या? / जयप्रकाश चौकसे

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सच है क्या और झूठ है क्या?
प्रकाशन तिथि : 27 जुलाई 2019


अमेरिका के एक अखबार में लिखा है कि डोनाल्ड ट्रम्प एक दिन में 17 झूठ बोलते हैं। यथार्थ जीवन में 'सत्यमेव जयते' केवल सरकारी इमारतों पर लिखी एक इबारत मात्र रह गई है। सलीम-जावेद ने अपनी सफलता के दशक में केवल एक असफल फिल्म लिखी, जिसमें दोनों नायक अदालत में झूठे बयान देने का व्यवसाय करते हैं। फिल्म थी 'ईमान धरम'। सलीम साहब के मुताबिक उनकी फिल्म की असफलता का कारण यह था कि उनकी कथा के दांव-पेंच मध्यांतर तक समाप्त हो गए थे और मध्यांतर के बाद कथा का रबर खींचते-खींचते टूट गया था। श्रीलाल शुक्ल के 'राग दरबारी' में भी एक पात्र का व्यवसाय ही अदालत में झूठी गवाही देना है। यशपाल का उपन्यास 'झूठा सच' भी लोकप्रिय हुआ था। एक कहावत है कि रंगे हाथों पकड़े गए अर्थात अपराध करते समय ही पकड़े जाना। कुछ लोगों की विचार प्रक्रिया ऐसी बन जाती है कि झूठ बोले बिना उन्हें भोजन हजम नहीं होता। पेट में दर्द की हिलोरें चलती हैं और एक झूठ बोलते ही उनका उदर शांत हो जाता है। सच तो यह है कि मनुष्य सबसे अधिक झूठ स्वयं से बोलता है। हम बचपन में ही झूठ बोलना सीख जाते हैं। पाठशाला नहीं जाने के लिए पेट दर्द का झूठ बोला जाता है। शादी के समय दिए गए सात वचनों का पालन नहीं किया जाता।

झूठ के प्रकार रेखांकित करने के लिए भी रंग का सहारा लिया जाता है। मसलन सफेद झूठ बोलना। फिल्में भी श्वेत-श्याम व रंगीन रही हैं। अश्लील फिल्मों को नीली फिल्में कहते हैं। अश्लील फिल्में बनाना एक बड़ा व्यवसाय रहा है। स्वीडन में अश्लील फिल्म बनाने का उद्योग जायज है। सरकार की कोई बंदिश नहीं है। सरकार भी महत्वपूर्ण अवसरों पर 'व्हाइट पेपर' नामक झूठ का पुलिंदा प्रस्तुत करती है। कुछ रंग से संबंधित बातें जाने कैसे अवाम के अवचेतन में बैठ जाती है। मसलन 'झूठ बोले कौअा काटे, काले कौए से डरियो'। यूरोप में 'संगम' की शूटिंग की जा रही थी। राज कपूर को जगाने का काम राजेंद्र कुमार करते थे। एक दिन इसी प्रयास में उन्होंने कहा कि सुबह के आठ बज गए हैं, अब तो जागो मोहन प्यारे। उनींदे से राज कपूर ने कहा, 'राजिन्द्रे झूठ मत बोल।' उसी समय होटल के कमरे की बालकनी पर एक कौआ आकर बैठ गया। राजेन्द्र कुमार ने कहा,'झूठ बोले कौअा काटे'। इस घटना से प्रेरित गीत राज कपूर ने घटना के नौ वर्ष पश्चात बनाई 'बॉबी' में इस्तेमाल किया। दरअसल, फिल्म गीत के लोकप्रिय होने के लिए गीत के मुखड़े का आकर्षक होना आवश्यक है। अंतरे कभी याद नहीं रहते।

फिल्म 'संगम' के एक दृश्य में राज कपूर और वैजयंती माला अभिनीत पात्र हनीमून मनाने यूरोप जाते हैं। राज कपूर के इसरार करने पर राजेन्द्र कुमार वहां आते हैं। ज्ञातव्य है कि फिल्म में वैजयंती माला विवाह पूर्व राजेन्द्र कुमार से प्रेम करती थीं। राजेन्द्र कुमार के वहां आ जाने पर वैजयंती माला का संवाद है, 'ब्याहता स्त्री का जीवन रंगों की लकीर की तरह है, जो खेले तो तूफानों में और मिटे तो जैसे थी ही नहीं।' इस संवाद की अदायगी के समय परदे पर बिम्ब है इंद्रधनुष का जो जलप्रपात पर उभरा-सा दिखाई देता है।

राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म 'सच्चा झूठा' भी अत्यंत सफल रही थी। अकिरा कुरोसावा की कालजयी फिल्म 'राशोमन' में दुष्कर्म और हत्या की घटना के चार चश्मदीद गवाह हैं परंतु अदालत में दिए गए उनके बयानों से लगता है कि एक नहीं चार घटनाएं घटी हैं। कहीं कोई झूठ नहीं बोल रहा है। हर व्यक्ति यथार्थ को अपने नज़रिए से प्रस्तुत करता है। आपकी विचार प्रक्रिया के चश्मे से आप यथार्थ को देखते हैं। किसी को पानी का आधा गिलास खाली नज़र आता है और किसी को आधा गिलास भरा नज़र आता है। यूरोप में शीत ऋतु में बर्फ की चादर से धरती ढंक जाती है। पूनम की रात चमकती बर्फ के कारण उसे 'व्हाइट नाइट्स' कहते हैं। फ्योदोर दोस्तोवस्की की कथा 'व्हाइट नाइट्स' से प्रेरित होकर मनमोहन देसाई ने 'छलिया' नामक सफल फिल्म बनाई थी और इसी कथा से प्रेरित घोर असफल 'सांवरिया' संजय लीला भंसाली ने बनाई थी।

राज कपूर की फिल्म 'जागते रहो' का प्रारंभ ही इस गीत से होता है, 'ज़िंदगी एक ख्वाब है, ख्वाब में भला सच है क्या और झूठ है क्या, मय का एक कतरा पत्थर के होठों पर पड़ा और उसने भी कहा ज़िंदगी' ख्वाब है'। इस दृश्य में सड़क पर एक जगह संत कबीर की तस्वीर दिखाई देती है। कबीर के प्रभाव से जीवन में आज भी आशा कायम है।