सच / पुष्पा सक्सेना

Gadya Kosh से
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कस्टम-क्लियरेंस के बाद बाहर आती शारदा की नजर गोरे चिट्टे लड़के के साथ कोने में खड़ी विन्नी पर पड़ी थी। लड़का बिन्नी को कमर से पकड़े था। दानों बातों में ऐसे मस्त थे कि फ्लाइट से उड़ी आ रही शारदा का मन बुझ सा गया। सोचा था विन्नी उनकी अगवानी के लिये आतुर होगी, माँ को देखते ही दौड़ी आयेगी। पूरे समय विन्नी के बारे में सोच-सोच उनका मन भरा आ रहा था। तीन साल बाद वह बेटी का मुंह देख सकेगी। वैसे इन तीन सालों में ऐसा कौन-सा दिन बीता होगा जब विन्नी याद न आयी हो। आज के दिन की शारदा ने पल-पल प्रतीक्षा की थी। अचानक विन्नी की दृष्टि मां पर पड़ी थी। लड़के का हाथ कमर से हटा वह शारदा की ओर दौड़ सी आयी।

‘हाय मम्मी! वेलकम इन यू.एस.! ये मेरा फ्रेंड, फ्रेडरिक, माई मॉम ! आओ मम्मी !’ मां के हाथ की ट्राली खुद ले विन्नी चल दी थी।

बिन्नी के उस व्यवहार ने शारदा को क्षुब्ध सा कर दिया। शुरू-शुरू में फोन पर घंटों बातें करने वाली विन्नी पिछले कुछ महीनों से बेहद व्यस्त रहने लगी थी। मां से बातें करने का जैसे समय ही नहीं रह गया था। पढ़ाई के बोझ के साथ घर के काम भी तो उसे ही निबटाने होते थे। शारदा का मन बेटी के लिये चिन्तित रहता। कित्ती दुबली हो गई है विन्नी। विन्नी के पीछे चल रही शारदा की दृष्टि विन्नी की छोटी सी पोनी टेल पर पड़ी थी।

‘हाय विन्नी! ये तेरे बालों को क्या हुआ?’ अचानक मुंह से निकल गया।

‘ओह ममी! पहले घर तो चलो, फिर पूरी तहकीकात कर लेना।’

फ्रेडरिक कार ले आया। शारदा के दोनों सू्टकेस पीछे डिक्की में रखवा, विन्नी फ्रेडरिक के साथ आगे बैठ गई। शारदा का जी चाह रहा था, बरसों की बिछड़ी बेटी को सीने से लगा लें, दुलार लें, पर वह तो जैसे दूसरी ही लड़की थी। साथ बैठे फ्रेडरिक से बातें करती, वह मां को भूल ही गई थी।

‘मम्मी, तीन सालों में तो तुम ज्यादा स्मार्ट हो गई हो। फ्रेडरिक, मेरी मां स्मार्ट हैं न?’ अचानक बिन्नी को मां की याद आ गई थी।

‘बहुत, अगर तुम्हें ऑब्जेक्शन न हो, तुम्हारी जगह उन्हें अपनी गर्ल-फ्रेंड बना लूं।’ दोनों की सम्मिलित हंसी पर शारदा के कान जल उठे। छिः ऐसी छिछोरी बात।

‘सुना मम्मी, फ्रेडरिक क्या कह रहा है।’ विन्नी ने अंग्रेजी में कहा था।

‘क्या तुम्हारी मम्मी अंग्रेजी समझती हैं?’

‘ओह यस। मेरी मम्मी स्कूल में टीचर हैं।’

‘रियली ?’ फ्रेडरिक की आँखों में आश्चर्य था।

अपार्टमंट के सामने कार रोक, फ्रेडरिक ने सूटकेस बाहर निकाले थे। विन्नी साथ में छोटी सी कार्ट भी लायी थी। कार्ट पर सूटकेस रख, विन्नी ने फ्रेडरिक को थैंक्स दिया था। बॉय कर फ्रेडरिक कार लेकर चला गया।

‘ये तेरा कैसा दोस्त है, विन्नी?’

‘दोस्त कैसे होते हैं ममी? हम दोनों ने साथ एम0एस0 किया, अब साथ ही जॉब लिया है।’

अपार्टमेंट पहॅंच शारदा ने चारों ओर दृष्टि डाली थी। विन्नी के एक कमरे का अपार्टमेंट काफी सुव्यवस्थित था। टी0वी0 पर शारदा और उसके पति का फोटो रखा था। उस फोटो को विन्नी यहां आते समय साथ ले आई थी। शारदा का मन संतोष से भर उठा। इत्ती सी लड़की घर-परिवार से दूर कैसे रहती होगी। फोटो के सहारे दिन काटना क्या आसान होता है? जी चाहा विन्नी को लिपटा ले, पर न जाने कैसा संकोच सा हो आया। तभी पीछे से आ, विन्नी उनके कंधे से लिपट गयी। बचपन से ये उसकी आदत थी, कहीं से भी आ, मां के पीछे से लिपट जाया करती। कभी तो वह चौंक उठा करती। शारदा की आंखों से आंसू बह निकले।

‘कम ऑन मम्मी! ये क्या अब तो तुम मेरे पास हो।’ विन्नी ने प्यार से मां के आंसू पोंछ दिये।

‘यहां तू कित्ती अकेली है, विन्नी। यही सोचकर जी भर आया।’

‘यहां सब अकेले ही होते हैं मम्मी, कुछ दिन रहोगी तो यही जीवन रास आने लग जाएगा। किसी से कोई लेना-देना नहीं, अपने काम से मतलब रखो, बस। इंडिया में तो लोग अपनी जगह दूसरों पर ही निगाह रखते हैं।’

‘सो तो ठीक विन्नी, पर सात समुन्दर पार यहां अकेले डर नहीं लगता?’

‘वहां उतने अपनों के बीच तुम्हें डर नहीं लगता था, मम्मी? हमेशा सहमी ही तो रहती थीं।’ सीधे मां की आंखों में आंखे डाल, विन्नी ने सवाल किया था।

शारदा चुप रह गयी। प्यार से विन्नी ने मां को कंधों से पकड़ कर उठाया।

‘वो सामने बाथरूम है, हाथ-मुंह धो लो। तब-तक मैं खाना लगाती हूं।’

‘न - मैं कुछ खाऊंगी नहीं। तूने अभी तक कुछ नहीं खाया, विन्नी? तीन बज चुके हैं।’

‘मेरा खाना तो कब का हो चुका, मम्मी। एयरपोर्ट पर ही बर्गर ले लिये थे। फ्लाइट लेट थी न। वैसे भी अब इंडियन खाना छूट ही गया है, उन सब झंझटों के लिये टाइम ही कहां है?’

‘इसलिये इत्ती दुबली हो गई है। अब तीन महीने हाथ का बना खाना खिलाऊंगी।’

‘ओह नो वे। मम्मी यहां बेट-पुट ऑन करना बहुत आसान है, पर स्लिम होने के लिये ढेर सारे ,डॉलर्स चाहिये, मैं ऐसे ही ठीक हूं। हां बताओ तुम कैसी रहीं? विन्नी के स्वर में ममता छलक आयी थी।’

‘देख तो रही है, ठीक-ठाक हूं। घर में भी सभी ठीक हैं, तुझे याद करते हैं।’

‘झूठ क्यों बोलती हो मम्मी, मैं जानती हूं वहां मेरी याद कौन करता है। हां मेरी वजह से तुम्हें जरूर सबके ताने सुनने पड़ते होगें।’

‘क्यों तुमने क्या गलती की जो मैं ताने सुनूंगी।’

‘वाह। ये हुई न बात। लगता है मेरे पीछे मेरी मम्मी बहुत हिम्मती हो गई। आते समय चाचा क्या कुछ नहीं कह रहे थे।’

‘उन सब बातों को भूल जा, विन्नी। लालाजी क्या कम दुखी हैं, इकलौता बेटा आवारा निकल जाये, इससे बड़ा क्या दुख होगा। एक दिन तो कह रहे थे, विनोद की जगह उनकी लड़की होती तो अच्छा था।’

‘चलो उन्हें समझ तो आई, वर्ना चाचा और दादी हर वक्त तुम्हें, मेरे लड़की होने के ताने सुनाते रहते थे- तुम्हारे साथ मेरा भी बोझ पापा उन पर छोड़ गए। पुअर पापा ..................’

‘अब बस भी कर विन्नी, तेरे दिल में वो बातें अभी तक गड़ी हैं?’

‘उन्ही बातो ने तो मुझे यहां तक पहुंचाया है, मम्मी। जब-जब हमें बोझ कहा जाता मेरा मन तिलमिला उठता। सुमति मौसी ने अगर तुम्हें टीचर्स- ट्रेनिंग न दिलाई होती तो क्या हम उस कठघरे में बन्द, दम न तोड़ देते।’

‘छिः ऐसी अपशकुनी बातें मत कर, विन्नी। मेरा जी घबराता है।’

‘ओ के मम्मी तुम थोड़ा आराम करो तब तक मैं आफिस हो आती हूं।’

‘आज भी काम पर जाएगी? एक दिन रूक नहीं सकती?’

‘मम्मी यहां हम हिन्दुस्तानी अपने को इसीलिये जमा पाए हैं, क्योंकि हम कड़ी मेहनत करते हैं। फ्रिज में ढेर सारे जूस हैं, जब जी चाहे ले लेना और हां टेबल पर इंडियन स्टोर्स की मिक्सचर मिठाइयां हैं। जानती हूं तुम्हें कभी भूख तो लगती नहीं, पर तुम यहां भूखी रहीं तो मैं मुश्किल में पड़ जाऊंगी।’

प्यार से मां की पीठ थपथपा विन्नी चली गई थी। विनती के पलंग पर लेटी शारदा के सामने पिछले पन्द्रह वर्ष सजीव हो उठे थे।

उच्च कोटि के ब्राह्मण परिवार में जन्में राजीव ने पड़ोस में रहने वाली शारदा से जब अपने विवाह की बात कही, तो पूरे घर में तूफान सा आ गया था। न सिर्फ आर्थिक दृष्टि से, जाति में भी शारदा का परिवार पिछड़ा हुआ था। राजीव की कालेज में नयी-नयी नौकरी लगी थी। विद्यार्थी जीवन में सभाओं में जाति-बन्धन, आर्थिक असमानता को उसने हमेशा देश के लिये अभिशाप माना। शारदा के निश्छल भोले सौंन्दर्य में उसे अपने संकल्प पूरे होते दिखाई दिये। माता-पिता की इच्छा के विरूद्ध उसने मंदिर में जाकर शारदा से विवाह किया था। शारदा ने ही जिद करके राजीव को माता-पिता से आशीर्वाद लेने उनके सामने ला खड़ा किया था। पिता ने क्रोध में पांव पीछे खींच, आशीर्वाद की जगह अपशब्द कहे थे। मां ने ऐसे बेटे की जगह निपूती रहने में सौभाग्य माना था। मां की वो बात कितनी जल्दी सच हो गई।

विवाह के एक वर्ष बाद विन्नी का जन्म हुआ था। राजीव की मां ने बेटी शब्द सुनते ही मुंह बिचका लिया था। दूसरे वर्ष ही राजीव की स्कूटर-दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। शारदा पर वज्रपात हुआ। वापस पिता के घर जाने का सवाल ही नहीं उठता था। क्लर्क भाई के अपने परिवार के अलावा माता-पिता का भी दायित्व था। ग्यारह माह की नन्हीं बेटी को सास के पावों पर रख, आंसुओं से उनके पांव धो डाले थे। आखिर समाज का भी तो कुछ ख्याल रखना पड़ता है, शारदा को उस घर में जगह जरूर मिल गई, पर उसकी स्थिति घर की नौकरानी से भी गई गुजरी थी। देवर संजीव की पत्नी और बच्चे तक उस पर हुक्म चलाते। बचपन से विन्नी ने मां को सबका अपमान-तिरस्कार झेलते देखा। बचपन में वह समझ नहीं पाती, दादी और बच्चों को दूध मिठाई देतीं, पर उसे क्यों रूखी रोटी थमा दी जाती। एक बार गुस्से में उसने दादी को दांतों से काट लिया था तब उस नन्हीं बच्ची की जिस बेरहमी से पिटाई की गई कि मुहल्ले वाले भी हाय-हाय कर उठे थे।

बचपन से अपने लिये अभागिन, कुलच्छनी शब्द सुनती-सुनती विन्नी जल्दी ही अपनी स्थिति समझ गई थी। वह सबसे अलग है क्योंकि उसके पिता नहीं हैं। मां की नियति उसे स्वीकार नहीं थी, पर वह विवश थी। रात में नन्हे हाथें से जब वह मां का बदन दबाने का प्रयास करती तो उसे सीने से लिपटा शारदा रो पड़ती। इतना ही अच्छा था कि श्वसुर ने विन्नी को स्कूल भेज दिया। अनपढ़ लड़की का ब्याह भी मुश्किल होता है। कुछ कर गुजरने का संकल्प ले विन्नी स्कूल जाती रही। हर परीक्षा में उसे प्रथम स्थान मिलता, घर के बच्चों के बीच ही नहीं, उनके मां-बाप की भी वह ईर्षा का पात्र बन ताने उलाहने सुनती बढ़ती गई। विन्नी मेधावी थी इसीलिये वह अपनी टीचर सुमति की फेवरिट छात्रा थी। । शारदा की दयनीय स्थिति ने सुमति को द्रवित कर दिया।

उन्होंने विन्नी के साथ अपने लिये मौसी का रिश्ता जोड़, शारदा को बहिन बना लिया। सुमति दीदी के प्रोत्साहन पर शारदा ने टीचर्स-ट्रेनिंग कालेज से पत्राचार पाठ्यक्रम द्वारा बी0एड0 की डिग्री ली थी। परीक्षा के परिणाम पर घर में काफी हो-हल्ला मचा था। सास चौंक गई थीं-

‘अरे ये तो बड़ी छुपी रूस्तम निकली, जाने अब क्या गुल खिलाए, भगवान जाने।’

‘अम्मा जी अब सम्हल के रहिये, भाई साहब की जगह यही हिस्सेदार बनेंगी।’ देवरानी सुनीता की ईर्षा उसके शब्दों में बज उठी थी।

शारदा की नौकरी की बात लेकर तो सभी नाराज हो उठे थे। संजीव दहाड़ा था - ‘हमारे खानदान की औरतें बाहर जाकर पैसा कमाएं, ये तो हमारे लिये मर-मिटने वाली बात हुई। भाभी ने घर से बाहर पांव निकाला तो इस घर में उनके लिये जगह नहीं है।’

‘मम्मी के लिये इस घर में जगह थी ही कब, चाचा?’ बारहवीं में पढ़ रही विन्नी के उस जवाब पर संजीव का खून खौल उठा था। विन्नी को चांटा मारने के लिये उठे हाथ स्वयं विन्नी ने पकड़ कर रोक दिया था। सारा घर स्तब्ध वह दृश्य देखता रह गया था।

क्रोध में हो रहे पागल संजीव ने घोषणा कर दी, अब उस घर में वह एक पल भी नहीं रूक सकते। शारदा ने हाथ जोड़ विन्नी की ओर से माफी मांगी थी।

‘उसे माफ कर दें लालाजी, आगे कभी ऐसी गलती नहीं होगी।’

‘मैंने कोई गलती नहीं की है, मम्मी। मेरे लिये तुम्हें किसी के सामने झुकने की जरूरत नहीं।’ तेजी से अपनी बात कह, विन्नी बाहर चली गयी थी।

दूसरे दिन सुमति दीदी ने शारदा के श्वसुर को अकेले में न जाने क्या समझाया कि शारदा को स्कूल में नौकरी की इजाजत मिल गयी थी।

पहले दिन स्कूल से वापिस लौटी शारदा को विन्नी ने बच्चे की तरह चिपटा लिया था।

‘आज से तुम्हारी मुक्ति की राह खुल गयी है, मम्मी। बधाई’

बारहवीं के बाद विन्नी को आई0आई0टी0 में जब दाखिला मिला तो संजीव और सुनीता ने मातम सा मना डाला। सबका लाड़ला विनोद दसवीं भी पास नहीं कर सका था। इंजीनियरिंग के बाद जब विन्नी को अमेरिका जाने का भूत सवार हुआ तो शारदा भी डर गयी थी। अनब्याही लड़की को सात समुन्दर पार भेजने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पर विन्नी थी कि शादी के नाम से हड़क जाती थी। सुमति दीदी ने ही फिर समझाया था- ‘उसका अपना भविष्य है शारदा, उसे जाने दे। शादी के बाद भी क्या मिल पाता है?’

विन्नी ने एक पैसा भी अपने एयर टिकट पर खर्च नहीं होने दिया। अपनी स्कॉलरशिप और टयूशन के पैसों को जोड़, उसने अपनी अमेरिका यात्रा की पूरी तैयारी कर ली। विन्नी को विदा करती शारदा टूट गयी थी। तब विन्नी ने दिलासा दिया था -

‘तुम हमेशा अपने को असहाय-निरूपाय समझती रहीं, मम्मी। आज से तुम कभी किसी के आगे सिर नहीं झुकाओगी। मैं जल्दी ही तुम्हें यहां से ले जाऊंगी। हमेशा याद रखो तुम, किसी पर निर्भर नहीं हो मम्मी।’ तब से आज तक तीन साल कैसे बीते, शारदा ही जानती है।

अपार्टमेंट का दरवाजा खोल, विन्नी अन्दर आ गयी।

‘हाय मम्मी! सो पाई या पुरानी यादों में जागती रहीं? विन्नी के उत्फुल्ल चेहरे को देख शारदा मुस्करा उठी थी।’

‘ये क्या अब तक तुमने कुछ नहीं खाया? टेबल पर सब सामान ज्यों का त्यों सजा देख, विन्नी नाराज हो उठी थी’

‘अब तू आ गयी, मेरा पेट भर गया।’

‘ओह ! नो मम्मी, यहां कोरी भावुकता से पेट नहीं भरा जा सकता। वन हैज टु बी प्रैक्टिकल, तुम वहां सबके नाज नखरे उठाती थीं, यहां किसी के पास किसी के लिये टाइम नहीं। अगर खुद अपने को न देखो तो गये काम से।’

‘मेरे लिये भी तेरे पास टाइम नहीं है, विन्नी?’

‘शायद है, शायद नहीं .......................’

‘मतलब?’

‘यहां रहोगी तो खुद समझ जाओगी। अच्छा अब जल्दी से तैयार हो जाओ, डिनर पर फ्रेडरिक आ रहा है।’

‘क्या साड़ी बदल लूं, विन्नी?’

‘अरे नहीं मम्मी, बस जरा बाल-वाल ठीक कर लो, ताकि मेरी मम्मी लगो-रामपुर की शारदा नहीं ........’ अंतिम बात कहते विन्नी का स्वर सख्त हो आया था।

‘तू रामपुर कभी नहीं भूल पाएगी, विन्नी?’

तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी। दरवाजा खोल फ्रेडरिक के ‘हाय’ का शारदा को कोई जवाब नहीं सूझा था, बस अपने में और सिमट सी गयी थी।

‘ओह फ्रेडरिक ! यू आर टू अर्ली।’

‘वापस चला जाऊं?’ फ्रेडरिक मुस्करा रहा था।

‘नहीं, अब आ गए हो तो कुछ हेल्प ही कर दो। टेबल का खाना गर्म करना है -’

फ्रेडरिक को डोंगे उठाते देख शारदा आगे आ गयी थी।

‘लाओ खाना मैं गर्म कर देती हूं।’

‘मम्मी आज तुम रेस्ट लो। वैसे रोज खाना गर्म करना फ्रेडरिक का काम है।’

शारदा ताज्जुब में थी। विन्नी साढ़े छह बजे काम से लौटी और सात बजे डिनर लेना है, वहां तो सबको खाते-खिलाते रोज रात के ग्यारह बजते थे। लाख समझाने पर भी विन्नी ने कभी मां के बिना खाना नहीं खाया, उसे डर रहता अगर उसने खाना खा लिया तो मां भूखी-ही सो जाएगी। जिद करके वह मां को एकाध रोटी ज्यादा ही खिला देती। नौकरी करने के बाद उसके पैसों से एक महरी रख ली गयी थी, सुबह की रोटियां भी शारदा की जगह, वही महरी सेक जाया करती। इस सुविधा के लिये भी विन्नी ही जिम्मेवार थी। शारदा की तो कुछ नया करने की हिम्मत ही नहीं थी, पर विन्नी अपने बाबा से कह आयी, मां को उतनी सुविधा का हक है और ये हक उन्हें ही दिलाना होगा। विन्नी के परीक्षा-परिणामों पर घर में उसके एक बाबा ही थे जो उसकी पीठ ठोंकते, दिवंगत पुत्र राजीव भी हमेशा परिक्षाओं में प्रथम आता रहा। अपने अंतिम समय में उन्हें विन्नी के प्रति अन्याय का बोध हो आया था। सम्पत्ति में से कुछ भाग विन्नी को भी देने की बात पर संजीव ने मुंह फुला लिया था। तब विन्नी ने ही बाबा’ को समझाया था -

‘आप मेरे लिये परेशान न हों, धन सम्पत्ति मेरे लिये कोई मायने नहीं रखता। मुझे विश्वास है, मेरे लिये कुछ भी अप्राप्य नहीं होगा।’

‘आओ मम्मी, डिनर इज रेडी।’

‘इतनी जल्दी डिनर लेने की मेरी आदत कहां है, विन्नी?’

‘ओह मम्मी ! सबसे पहले तो तुम्हे यहां रामपुर की आदतें ही बदलनी हैं। सुबह सात बजे आफिस जाना होता है, सिर्फ वीकेंड्स में ही रात को देर से सोया जाता है, बाकी दिन जल्दी न सोएं तो काम पर ही सो जाएंगे।’

खाना खाते समय फ्रेडरिक ने टी0वी0 पर कोई प्रोग्राम आ रहा था, शारदा ने उस पर दृष्टि जमा दी एक बारह वर्षीया लड़की का इन्टरव्यू चल रहा था, ढेर सारे दर्शकों के बीच वह लड़की अपने अनुभव बता रही थी, बारह वर्षो की उम्र में उसने बीस पुरूषों के साथ शारीरिक संपर्क बनाए थे, सबसे अधिक आनंद उसे मेक्सिकन और अफ़्रीकियों से मिला। अपनी बात कहती लड़की खिलखिला रही थी। दर्शको में से कुछ स्तब्ध थे, कुछ हंसी में उसका साथ दे रहे थे।

शारदा के मुंह का स्वाद कड़वा गया। वितृष्णा की लहर पूरे शरीर में व्याप्त गयी। फ्रेडरिक का ध्यान टी0 वी0 पर था, उसने धीमे से विन्नी से कुछ कहा, दोनों के चेहरों पर मुसकान थी। विन्नी ने फ्रेडरिक से कोई और चैनल लगाने को कह, माँ पर दृष्टि डाली थी। शारदा के चेहरे पर वह पूरी कहानी पढ़ गयी।

डिनर के बाद फ्रेडरिक ने वी0सी0आर0 पर कोई अंग्रेजी फिल्म लगाई थी। शारदा को याद आया एक बार पड़ोस के घर वी0सी0आर0 पर फिल्म देखने घर के सारे बच्चे गए थे। विन्नी को साथ जाते देख विनोद चिढ़ गया था।

‘ये भिखमंगन भी हमारे साथ जाएगी, तो हमारी सब हंसी उड़ाएंगे। जरा इसकी फ्राक तो देखा, दादी की पोटली से निकली नमूना है।’

उस दिन के बाद विन्नी कभी नहीं गयी। आज उसके पास अपना क्या कुछ नहीं है? पर इस देश के प्रति शारदा आश्वस्त नहीं हो पा रही थी, कहां ढकेल दिया उसने बेटी को, ऐसे नंगे कपड़ों में इतने खुले प्रोग्राम देख, क्या कोई सामान्य रह सकेगा? फिल्म के अश्लील दृश्यों को फ्रेडरिक के साथ विन्नी आराम से देख रही थी।

साढ़े दस बजते-बजते शारदा को नींद आने लगी थी।

‘विन्नी, मैं सोने जा रही हूं ...................’

‘ओके गुड नाइट मॉम, सी यू टुमारो, फ्रेडरिक ने उसे विदा दे दी थी।’

पलंग पर लेटी शारदा से नींद कोसों दूर थी। अजीब सी बेचैनी उस पर हावी होती जा रही थी। विदेशी युवक के साथ विन्नी कैसी फिल्म देख रही है, सुमति दी ने न जाने कैसी सलाह दे डाली। भारत में जैसे-तैसे उसकी शादी हो-ही जाती। विन्नी के साथ पढ़ रहे नयन ने तो बाकायदा उससे शादी का प्रस्ताव भिजवाया था, पर विन्नी ने घर सिर पर उठा लिया था। शादी करने के लिये हामी भरना दूर, उस बारे में किसी से बात तक नहीं करने दी थी। न जाने लड़की क्या करे? कोई रोकने-टोकने वाला भी तो नहीं, पता नहीं फ्रेडरिक के साथ उसके सम्बन्ध किस सीमा तक हैं। भय से शारदा का रोम-रोम कांप उठा।

एक सप्ताह में शारदा ने अपने को उस माहौल में ढाल सा लिया था। शनिवार को विन्नी सुबह दस साढ़े दस बजे तक सोती रही। बेचारी लड़की को आराम के लिये बस वही एक दिन तो मिलता है, बाकी दिन तो दस-बारह घंटे की ड्यूटी रहती है। सोती विन्नी के माथे पर आयी लट जैसे ही शारदा ने हटानी चाही वह बुदबुदा उठी।

‘ओह फ्रेड ! सोने दो ........................’

शारदा बुत बन गयी। विन्नी फ्रेडरिक के साथ सोती रही है। अचानक जैसे विन्नी को स्थिति का मान हुआ, आंखे खोल मां के निष्प्रभ चेहरे को देख, वह हल्के से मुस्कराई थी

‘बस एक ही दिन तो मिलता है, मम्मी। तुम नाश्ता कर लो, मैं लंच ही लूंगी।’ सिर पर चादर तान विन्नी फिर सो गई थी।

शारदा तो जैसे काठ हो गई थी। इस लड़की को कितना सम्हाल के रखा और आज यहां ये क्या कर रही है। वर्षो के दिये मां के संस्कार तीन वर्षो में धो-पोंछ कर रख दिये।

बारह बजे के बाद ही विन्नी उठी थी। उठते ही शोर मचा दिया -

‘मम्मी ! आज मटर की तहरी बनाना। तुम्हारी तहरी खाए जमाना बीत गया है। हां ! तहरी ज्यादा बनाना फ्रेड भी आ रहा है।’

मां को कहने-सुनने का समय दिये बिना विन्नी ने बाथरूम बंद कर लिया था। शैम्पू किये बाहर निकली विन्नी एकदम ताजी लग रही थी। तहरी की खुशबू कमरे में फेल रही थी।

बर्तन लगाती शारदा ने सपाट आवाज में पूछा था -

‘फ्रेडरिक से तू शादी करेगी, विन्नी?’

‘क्या फ्रेड से शादी ................ क्यों? ऐसा क्यों सोचा, मम्मी?’

‘तेरे साथ उसके सम्बन्धों से तो ऐसा ही लगा, विन्नी।’

‘ओह मां ! तुम परेशान मत हो। तुम्हारी विन्नी अब बच्ची नहीं ...........’

‘बच्ची नहीं है, इसीलिये तो डरती हूं।’

‘क्यों मम्मी? जब बच्ची थी, तो डरने की बात नहीं थी?’

क्या मतलब? शारदा परेशान हो उठी।

‘यहां फ्रेड को देख तुम डर गयीं न मम्मी, पर यहां रामपुर जैसी बात नहीं है।’

मेरी इच्छा के विरूद्ध वह कुछ नहीं कर सकता।’

‘अगर तेरी रजामंदी हुई तो वह कुछ भी कर सकता है? शारदा का स्वर तनिक ऊंचा हो गया था।’

‘कूल मम्मी कूल। जानती हो मम्मी तुम्हारी कड़ी सुरक्षा में भी तुम्हारी बेटी ने क्या भुगता है?

‘जानती हूं तूने बहुत कष्ट उठाए, पर वो मेरी मजबूरी थी। बेटी।’

‘तुम कुछ नहीं जानती मम्मी, तुम्हारी बेटी ने क्या त्रासदी झेली है?’

‘क्या बात है विन्नी, साफ-साफ क्यों नहीं कहती’-शारदा डर सी गई।

‘साफ-साफ सुनना चाहती हो तो जान लो, दस साल की उम्र में विनोद ने मुझसे जबरदस्ती की थीं डराया था, अगर तुम्हें कुछ बताया तो तुम मार दी जाओगी। मैं तुम्हें खो नहीं सकती थी मम्मी।’ आक्रोश-अपमान से विन्नी का गला रूंध आया था।

शारदा फटी-फटी आंखो से ताकती रह गई। अपना सगा चचेरा भाई, बहिन के साथ .......... काश् धरती फट जाती। शारदा पर किसी की दृष्टि न पड़े इसके लिये हमेशा उसने अपने को कैद रखा, पर अपनी नन्ही बेटी की रक्षा न कर सकी।

‘मम्मी ........ तुम ठीक तो हो न?’ शारदा को कंधों से झकझोर विन्नी ने चैतन्य किया था।

‘मैं क्या करू।, विन्नी? शारदा रूआंसी थी।’

‘तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं मम्मी। वो हादसा गुजर चुका है, उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी, इसलिये मैं अपराध-बोध से मुक्त हूं। इस देश में बलात्कारी के प्रति घृणा रखी जाती है, जिसके साथ बलात्कार हुआ, वह सबकी सहानभूति पाती है।’

‘पर मैं इस बात को कैसे स्वीकार करूंगी, विन्नी?’ शारदा की आंखें छलछला आई।

‘मम्मी तुम स्वीकार करो या नहीं, मैने सच बता कर वर्षो के बोझ को सीने से उतार दिया है। सच मानो मम्मी मैं तुमसे भी मुंह चुराती थी। नौ दस वर्ष की बच्ची को दादी ने बेरहमी से झकझोर, थप्पड़ मारे थे। उतना गंदा काम करने के बाद मुझे जमीन में गड़ कर मर जाना चाहिये - हां यही कहा था दादी ने। मैं इतना डर गई ............ इतना रोई, पर तुम तक से कुछ न कह सकी। मेरी वह कुंठा यहां आकर दूर हो सकी मम्मी वर्ना, मैं हमेशा अपने को अपवित्र मानती रही ..............’

‘इसीलिये तू शादी के नाम से .....................’

‘हां मम्मी ! मुझे पुरूष जाति से नफरत हो गई। हम कहते हैं हमारे देश की संस्कृति पूज्य है, पर लड़कियों के लिये यहां क्या समानता मिल सकी है? बलात्कार के बाद कोई लड़की मुंह खोलने का साहस कर सकती है? दूसरों की तो बात ही छोड़ो, खुद उसके अपने ही उसे दोषी की नजर से देख, उसका जीना हराम कर देते है।’

‘हाय विन्नी, तूने इतना सहा और मुझे खबर भी नही।?’

‘खबर हो भी जाती तो क्या फर्क पड़ता, यही न कि तब तुम भी मेरे साथ अपराधी की तरह जीती।’

‘तू यहां खुश है, विन्नी?’

‘खुशी-नाखुशी मन की चीज है, मम्मी। अब मैं आत्मनिर्भर हूं, अच्छी कम्पनी में नौकरी है ...........’

‘अब भी तू शादी की नहीं सोचती, विन्नी?’

‘जिस दिन सोच लिया, कर डालूंगी। अब मैं समझदार हूँ, जान-परख कर ही निर्णय लूंगी। ये लो फ्रेडरिक आ गया। बातों में मेरी आज की लांड्री तो हो गई।’

फ्रेडरिक को तहरी की रेसिपी देती शारदा सकुचा रही थी। वह विदेशी युवक उस देशी तहरी को मन से खा रहा है, शारदा का मन तृप्त हो गया, इतने दिनों से वह फ्रेडरिक को देखती आ रही है, उसके आत्मविश्वासपूर्ण व्यक्तिव में सौजन्यता का समावेश था। शारदा उन दोनों के साथ कई पिकनिक स्पॉट्स, मंदिर हो आई थी। फ्रेडरिक के व्यवहार में कभी उच्छृंखलता नहीं दिखी, अब तो वह हाथ जोड़ उसे नमस्ते करता, ‘आप अच्छी तो हैं मम्मी’ कह, हाल पूछता, फिर भी उसे दामाद रूप् में शारदा स्वीकार नहीं कर पा रही थी। पता नहीं विन्नी के मन में क्या था?

शुक्रवार की रात मां से लिपट कर लेटी विन्नी को मां पर बड़ा दुलार आ रहा था। मां का माथा सहलाती विन्नी बातें किये जा रही थी, शनिवार के दिन उठने की कोई जल्दी नहीं होती -

‘सच कहो मम्मी, पापा के चले जाने के बाद तुम्हारे मन में फिर विवाह की इच्छा नहीं हुई।’

‘छिः क्या बकवास करती है? ऐसी बात सुनना भी पाप है।’

‘क्यों, मां?’

‘पति भगवान होता है, वही उसका सर्वस्व है, उसके बाद स्त्री का जीवन बस उसके स्मरण-पूजन में ही बीतता है।’

‘फिर शादी की जरूरत ही क्या है? किसी को भी भगवान मान लो और जीवन भर उसका स्मरण-पूजन करती रहो।’

‘सब स्त्रियां मीरा नहीं बन सकतीं ....................’

‘हां अब हुई न ये बात। हर स्त्री के मन में स्वाभाविक आकांक्षाएं होती हैं, पर पति की मृत्यु के बाद उसे पहले जबरन सती बना दिया जाता था, आज भी पति- परमेश्वर के नाम पर उसे तपस्विनी बना देते हैं। हिपोक्रैसी।’

‘तुझसे बातें करके डर लगता है विन्नी, न जाने किस दुनियां की बातें करती है।’

‘डरो नहीं मम्मी। इस देश की बहुत आलोचना की जाती है, यहां की उच्छृंखलता की दुहाई दी जाती है, पर यहां औरत अपने औरत होने की सजा तो नहीं भुगतती .................’

‘औरत होना सजा है?’

‘इतना झेलकर भी तुम अपनी सजा स्वीकार नहीं कर पातीं, मम्मी? तेईस वर्ष की उम्र से तुम ये सजा भोग रही हो। तन-मन पर अंकुश लगाए, एक हमेशा के लिये चले गए नाम की माला जपना, क्या उम्र-कैद की सजा नहीं? तुमने अगर फिर शादी कर ली होती तो आज यूं अकेली न छूट जातीं। तुम्हारा दुख-दर्द, तुम्हारी विन्नी नहीं बांट पाएगी मां, कल को उसका अपना परिवार होगा, फिर क्या तुम वो अकेलापन झेल पाओगी?’

‘बस कर विन्नी, बस कर। यही पाप-कथा सुनाने के लिये यहां बुलाया था।’

‘नही मां तुम्हें जीवन के सच से परिचित कराना चाहती थी। जानती हो तुमसे बड़ी उम्र की औरतें भी यहां कोई न कोई साथी खोज लेती हैं, शारीरिक प्यास बुझाने के लिये नहीं, सुख-दुख का साथ पाने के लिये ...........’

तेरे इस देश में रोज शादी, रोज तलाक होते हैं। तुझे यहां भेजना ही गलती थी, तेरी मति भ्रष्ट हो गई है, विन्नी।’ शारदा उत्तेजित हो उठी थी।

‘माफ करना, मम्मी। तुम्हारी युगों की धारणाएं बदलने की मेरी कोशिश बेकार है। अब सो जाओ।’

अपनी बात खत्म कर विन्नी सो गई थी, पर शारदा की आंखों में अतीत जी उठा था। राजीव की मृत्यु के बाद उसके सहकर्मी सुधीर की शारदा के साथ ज्यादा ही सहानुभूति थी। राजीव के सामने भी वह शारदा की सादगी का बहुत बड़ा प्रशंसक था। मित्र मंडली में अपनी शादी की बात पर वह हमेशा कहता -

‘भई मेरी पसंद तो मेरा यार राजीव पहले ही ले उड़ा, अब डुप्लीकेट मिले तो शादी की बात सोची जा सकती है’

शारदा से कुछ कहने का साहस सुधीर भले ही न कर सका हो, पर उसके पिता के सामने उसने अपना प्रस्ताव रखा था। शारदा के साथ विन्नी को सहर्ष अपनाने की बात भी कही थी। पिता सोच में पड़ गए थे, मां और भाई के साथ शारदा ने भी उस प्रस्ताव को पूर्णतः नकार दिया था। घर के सभी लोग पुराने ख्यालों के थे, पर पिता आर्य समाजी विचारों के थे। उन्होंने मां को समझाना चाहा था -

‘शारदा की अभी उम्र ही क्या है, नन्हीं सी बच्ची के साथ उसकी कैसे कटेगी?’

उसके ससुराल वाले पहले ही उसे स्वीकार नहीं कर सके हैं, सुधीर हर तरह से अच्छा इंसान है।

‘दूसरी शादी की जगह मैं अपनी जान देना पसंद करूंगी, बाबूजी।’ शारदा उत्तेजित हो उठी थी।

शारदा की बातों पर बाबूजी मौन रह गए थे, पर अपने अंतिम दिनों तक वे अपनी गलती पर पछताते रहे। स्वंय शारदा ने क्या उस भूल को नहीं स्वीकारा था? श्वसुर घर से मिले अपमान, विन्नी की उपेक्षा-विरस्कार के समय उसके नयनों के समक्ष सुधीर का चेहरा सजीव हो उठता। काश उसने सुधीर से शादी कर ली होती।

अचानक अपने सोच पर शारदा चौंक उठी, वो क्या सोच रही थी। उम्र के इस पड़ाव पर वैसी बातें सोचना कितना अशोभनीय है। अब तो बस विन्नी की शादी हो जाए तो मुक्ति मिले, पर मुक्ति किससे चाहती है वह? विन्नी की शादी अभी तक उसके जीवन का पाथेय है, उसके बाद? उसके बाद क्या वह सचमुच एकदम निरूद्धेश्य-अकेली नहीं रह जाएगी? क्या विन्नी की वों बातें एकदम निरर्थक हैं? शारदा सोच में पड़ गई थी।