सजीव / पद्मजा शर्मा
जिस जगह जाती हूँ, उसका सामान बिखरा हुआ मिलता है। उसने जिस चीज से काम लिया, लिया फिर वह चीज लावारिस की तरह पड़ी मिलती है। पेन से काम किया खुला छोड़ दिया। पूजा घर के बाहर खोली चप्पलें भी आपको उठानी पड़ेंगी। बदन पर लिपटा तौलिया कभी का फर्श पर धूल चाट रहा है। आपको ही बाथरूम में टांगना पड़ेगा या धूप में डालना होगा या धुलाई के लिए रखना होगा। उसके खाने-नाश्ते की प्लेटें भी कोई दूसरा ही रखे। इसी तरह रिश्ते भी उसने काम में लेकर छोड़ रखे हैं, जैसे पूजा घर के बाहर पड़ी चप्पलें, जैसे बदन से उतरा हुआ गीला तौलिया, जूठे बर्तन, खुला पैन।
खुले पैन को मैंने बंद कर दिया। जूठे बर्तन मैंने साफ कर दिए. चप्पलें यथास्थान मैंने रख दी। ये सब तो निर्जीव चीजें थीं। लेकिन जिन रिश्तों को वह काम लेकर छोड़ देता है उनका क्या? उन्हें तो उसे खुद ही सम्भालना पड़ेगा। वे तो सजीव हैं।