सड़क आगे नहीं जाती / स्वदेश दीपक
आवाज कार या टैक्सी की है। अभी यहाँ से दूर है, लेकिन इसके पहुँचने का पता पहले से चल गया है, क्योंकि पहाड़ियों की गूँज ने इस आवाज को फुटबाल की छोटी-छोटी उछालों में आगे फेंका है। कार या टैक्सी होटल की तरफ ही आई है, क्योंकि सड़क इस होटल पर आ कर खत्म हो जाती है - द डेड एंड।
इस बीत गए मौसम में क्या कोई ठहरने आ रहा हैं? इस बार का सीजन तो बिलकुल बर्बाद रहा। गर्मियों का मौसम शुरू देर से हुआ और खत्म जल्दी हो गया। पहाड़ों के होटलों, दुकानदारों का सीजन तो सिर्फ चार महीने लगता है। इस बार वह भी नहीं लगा। मई तक तो मैदानों में बारिश होती रही, कोई यहाँ क्यों कर आएगा? इस बार की अनहोनी खबर यह भी है कि मई में यहाँ बरफ भी पड़ी। जून में लोग आना शुरू हुए तो दो हफ्ते बाद यहाँ बारिशें टूट पड़ीं। लोग लौट गए। मौसम की इस साजिश के खिलाफ अखबारों में लेख आए, खाली होटलों, दूकानों के फोटो छपे। लेकिन मौसम क्या कभी अखबारों से डरता है?
अब आवाज की फुटबाल उछल कर होटल के बड़े दरवाजे के अंदर आ गई। रिसैप्शन पर बैठे असिस्टेंट ने अपनी टाई ठीक की, जो पहले से ही ठीक है। मैनेजर होटल के सामने के बहुत बड़े मैदान में टहल रहा है - पेड़ों से गिरे पत्ते होटल के नौकरों से उठवाता हुआ। घास की हरी चादर पर एक एक पत्ता भी गिरा हुआ दिख जाए तो उसकी नाक चढ़ जाती है। सफाई उसका हठ, आब्सैशन है; क्योंकि रिटायर्ड सैनिक अफसर है। लेकिन न पेड़ उससे डरते हैं, न गिरते हुए पत्ते। वैसे इस बार मौसम से पहले ही पत्ते गिरना शुरू हो गए हैं, वर्ना सितंबर में तो यहाँ रंग-बिरंगे फूलों के झुंड शरारती खूबसूरत लड़कियों की तरह मटकते रहते हैं। लेकिन इस साल मौसम धोखा देने पर उतारू है।
टैक्सी है। होटल के पोर्च में रुकी। मैनेजर ने टैक्सी का नंबर देखा। इस प्रदेश की नहीं, दिल्ली की है। आमतौर पर लोग यहाँ तक बस में आते हैं, अड्डा कोई दो किलोमीटर दूर। वहाँ से टैक्सी लेते हैं; होटल तक आते हैं, और अपने रईस होने के भ्रम पर खुश होते हैं। इतनी दूर से जो लोग टैक्सी पर आए है, लगता है बहुत दिन ठहरेंगे।
पहले मर्द बाहर निकला, फिर उसने हाथ बढ़ा अंदर बैठी औरत का हाथ थामा, उसे बाहर निकाला। उसका हाथ छोड़ा, कंधे के पिछले हिस्से पर हाथ रखा, और उसे सहारा दे कर बरामदे के अंदर ले आया। मैनेजर भी टहलता हुआ अंदर आ गया। औरत के चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर अंदाजा लगाया कि पहली बार पहाड़ आई है, रास्ते में इसे जरूर उल्टियाँ आई होंगी। तभी इसकी साँस फूली हुई है। औरत सोफे पर आँखें बंद किए लेट गई।
जब से नया मैनेजर आया है उसकी आज्ञा है कि सैलानी जब रिसैप्शन में पहुँचे तो पहले उन्हें गर्म-गर्म चाय दी जाए, दूसरे होटलों की तरह नाम-पते वाला रजिस्टर उनके सामने न किया जाए। और वैसे भी यहाँ कितने सैलानी आते है? कोई शिमला तो है नहीं। न माल, न दुकानें, न चहल-पहल। सरकार ने दिवालिया हो गए महाराजा का महल खरीदा और उसे होटल में तबदील कर दिया। जवान-जोड़े तो शिमला जाएँगे। यहाँ आमतौर पर बड़ी-बड़ी कंपनियोंवाले आते हैं, पूरा आराम करने के लिए।
बैरा चाय की ट्रे ले कर इन दोनों के सामने खड़ा हुआ। मर्द ने अपना प्याला उठाया, घूँट लेने के लिए ऊपर किया, साथ के सोफे पर आँखें मूँद कर लेटी औरत को देखा और प्याला नीचे कर लिया। उसने अपनी छोटी उँगली से उस औरत की मोटी नाक के सिरे को छुआ। औरत ने आँखें खोलीं, 'क्या है' वाली निगाह से उसे देखा। मर्द ने छेड़नेवाली आवाज में कहा - 'चाय मेमसाहब', और प्याला उसकी ओर बढ़ा दिया। वह मुसकराई। उसका थका हुआ चेहरा एकदम धुल गया। और दोनों चाय पीने लग पड़े।
अब मैनेजर उनके पास पहुँचा, अपना परिचय दिया। वह आदमी मैनेजर की हैंडलनुमा मूँछों को देखता है और थोड़ा-सा हैरान होता है क्योंकि बड़ी मूँछें रखने का रिवाज अब इस देश में लगभग खत्म हो गया है। फिर होटल-बिजनेस में नई-पीढ़ी के लोग आ गए हैं, सफाचट चिकने-चुपड़े चेहरेवाले। मैनेजर ने बताया कि वह पहले सेना में मेजर था। रिटायर होने से पहले होटल-मैनेजमेंट का कोर्स कर लिया और यह नौकरी मिल गई। फिर सफाई पेश की, 'तीस साल हो गए इन मूँछों को पालते। अब साहब, नौकरी के पीछे मूँछें साफ कराना तो मुश्किल है न?'
दोनों चाय खत्म करते हैं। रिसैप्शनिस्ट उनके पास नाम-पता दर्ज करनेवाला रजिस्टर लाया। उस आदमी के हाथ में पैन पकड़ाया। वह रजिस्टर पर 'वर्मा' लिखता है, वापस पकड़ाता है। मैनेजर ने उसे देखा, साथ बैठी लड़की को देखा, रजिस्टर देखा। कहता कुछ नहीं। वह आदमी रजिस्टर फिर लेता है और एक वचन को बहुवचन में बदलता है; 'वर्माज' लिख कर रजिस्टर वापस कर दिया। मैनेजर समझ गया कि साथवाली लड़की वर्मा की पत्नी नहीं। चाहे उसने वर्मा को वर्माज बना दिया है।
लड़की उठी। कदम उठाती है, लड़खड़ाती है। इससे पहले कि नीचे गिरे वह आदमी झटके से उठा, उसे कंधों से पकड़ लिया -
'फिर आई?'
'हाँ नवीन' वह आदमी उसे दरवाजे से बाहर ले गया। कै करने की आवाजें अंदर तक आ रही हैं।
दोनों अंदर लौटे। वर्मा ने उसे लंबे सोफे पर लिटा दिया। लड़की जोर-जोर से साँसें ले रही है। वह मैनेजर से पूछता है -
'डाक्टर है?'
मैनेजर ने उसे बताया कि सीजन में होटल में डाक्टर होता है, लेकिन आजकल नहीं।
'लेकिन आप चिंता न करें। मेरी बेटी आजकल यहीं है, डाक्टर है', और उसने बैरे को अपनी डाक्टर बेटी को बुलाने के लिए कहा।
दो मिनट में मैनेजर की लड़की डाक्टरोंवाला बैग उठाए वहाँ आई। पीछे तितलियों की तरह मटकती दो बच्चियाँ, उसकी लड़कियाँ। पिता बेटी से उस आदमी का परिचय कराता है। नवीन वर्मा। मेरी बेटी - कपिला ग्रेवाल।
लड़की वर्मा को देखती है। चेहरा लाल सुर्ख है, गालों पर जैसे दहकते अंगारे रखे हों। कनपटियों के बाल बिलकुल सफेद - उसकी उमर की चुगली करते हुए। जरूर पचास के आसपास है। कपिला ने नोट किया कि वर्मा के ऊपरवाले होंठ पर, नाक के आसपास पसीना चमक रहा है। उसकी नब्ज देखने के लिए हाथ आगे बढ़ाया।
'अरे, यह नहीं। उधर', मैनेजर सोफे पर लेटी लड़की की ओर इशारा करता है। एक बच्ची ने माँ की ओर इशारा किया, दूसरी को कहा, 'माँ बुद्धू!' दोनों की हँसी कमरे में तैरी, फिर बड़े दरवाजे से बाहर निकल गई।
डाक्टर कपिला ने सोफे पर लेटी लड़की को देखा, वर्मा को देखा और फिर उस लड़की का हाथ अपने हाथ में ले लिया। हाथ बिलकुल ठंडा। बैग खोल कर रक्तचाप देखने का सामान बाहर निकाला।
एक बच्ची कहती है - 'कुर्ता मैं ऊपर करूँगी।'
दूसरी ने कहा, 'बाँह मैं पकड़ूँगी।'
और दोनों अपना काम शुरू कर देती हैं।
'आपका नाम क्या है?'
'निम्मी।'
'बहुत बार वामिटिंग हुई क्या?'
'कालका से पहले शुरू हो गई थी। तीस-चालीस हो चुकी होंगी।'
कपिला ब्लड-प्रैशर देखती है, उसकी पतली-सी नाक सिकुड़ी, सख्त आवाज में वर्मा से पूछा -
'रास्ते में दवाई क्यों नहीं ली?'
वर्मा कोई जवाब नहीं देता। सिर नीचे झुका।
'आपको पता नहीं इसे कोई गर्म कपड़ा पहनने को देना था। कालका के बाद सर्दी नहीं लगी क्या?'
वर्मा अब भी कोई जवाब नहीं देता। दोनों बेटियाँ एक-दूसरे का हाथ पकड़े खड़ी हैं, माँ को डरी-डरी आँखों से देखतीं, उसके गुस्से से वाकिफ।
कपिला ने अपनी शाल उतारी। दोनों लड़कियाँ निम्मी के कंधों के नीचे हाथ रख उसे थोड़ा-सा ऊपर उठाती हैं, माँ शाल कस कर लपेट देती है।
'बहुत बीमार है क्या?' वर्मा की दबी आवाज।
'हाँ, बहुत बीमार है', कपिला की इल्जाम लगाती आवाज, 'ब्लड प्रैशर बिलकुल नीचे आ गया है। ग्लूकोस चढ़ाना होगा।'
वर्मा उठ कर सोफे के पास आया, निम्मी की आँखों को उँगली से बारी-बारी छूता है। उसने आँखें खोलीं। नवीन के ऊपरवाले होंठ पर आए पसीने को उँगली से साफ किया -
'प्लीज नवीन। डोंट वरी।'
मिस्टर नवीन, आप अपनी जगह बैठ जाएँ। डोंट डिस्टर्ब हर।' कपिला की आवाज कड़ी हो गई। दोनों लड़कियाँ फिर एक-दूसरे का हाथ पकड़ लेती हैं, डरी-डरी आँखों से नवीन वर्मा को देखती हुई। माँ इस पर बरसी की बरसी।
वह पहली बार सिर उठा कर कपिला को देखता है। उसका चेहरा कस गया, उसके गले की दाईं ओर की नस फड़क रही है, एक साँस चढ़े परिंदे के पेट की तरह। आँखें बंद लेटी निम्मी को कमरे में फैल रहे गुस्से की गंध आ गई। उसने आँखें खोली, नवीन के गले की फड़कती नस को देखा, लेटे-लेटे हाथ लंबा किया, नवीन की बाँह को छुआ और उसके गले की नस फड़कना बंद हो गई। गुस्सा किसी डरे हुए जानवर की तरह कमरे से बाहर निकल गया, लेकिन बाहर जाते-जाते कपिला को छू जरूर जाता है।
'कहाँ ठहरना पसंद करेंगे? होटल में या बाहर बनी काटेज में।' मैनेजर।
इससे पहले कि नवीन जवाब दे, कपिला अपने पिता को कहती है, लेटी लड़की की ओर इशारा करते हुए -
'निम्मी को तो पापा आज अपनी काटेज में रखना होगा। शी नीड्ज कान्स्टैंट केयर।'
नवीन और मैनेजर को समझ आ गया कि डाक्टर ने अपने पेशेंट का चार्ज सँभाल लिया। मैनेजर नवीन को बताता है कि काटेज दो कमरों की है, किचन भी है, चाहें तो खाना खुद पका सकते है। खाने की बात सुन कर लेटी लड़की बिना आँखें खोले बोली -
'मैं खाना-वाना नहीं पकाऊँगी।'
'खाना वगैरह होटल से भी मँगवा सकते हैं', मैनेजर।
कपिला ने बाप को घूरा। डपटा।
'डोंट बी सिल्ली पापा। आपको खाने की पड़ी है? इतनी समझ नहीं कि निम्मी से बिलकुल बात नहीं करनी। शीज वैरी सिक।
दादा को डाँट पड़ती देख कर दोनों बच्चियों ने एक-दूसरे का हाथ छोड़ दिया। हँसी की तितलियाँ फिर से उनके होंठों पर आ बैठती हैं। नवीन ने मैनेजर से पूछा -
'क्या आसपास कोई हास्पिटल है। अगर जरूरत पड़े...।'
मैनेजर उसे बताता है कि पास ही मिलिट्री स्कूल है। उनका अपना छोटा-सा हस्पताल है। जरूरत पड़ेगी तो वहाँ निम्मी को ले जा सकते हैं। फिर नवीन को हौसला देने के लिए कहा।
'कपिला एम.डी. है। मैडिकल अफसर है सिविल हास्पिटल में। शीज कैपेबल आव हैंडलिंग दिस केस'।
'अच्छा, निम्मी को काटेज में ले चलो पापा। मेरी तारीफें फिर कभी कर लेना।'
नवीन ने निम्मी के कंधे को छू कर उठने के लिए कहा। पूछा कि क्या डाक्टर की काटेज तक चल लेगी। वह 'हाँ' में सिर हिलाती है।
इन्हें चलना नहीं हैं, उठा कर ले चलिए। शीज वैरी वीक, गिर सकती हैं, फेंट हो सकती हैं', कपिला ने आज्ञा देनेवाली आवाज में कहा।
नवीन झुकता है, एक बाँह उसके कंधों के नीचे डालता है, निम्मी उसके दूसरे हाथ को पकड़ कर कहती है -
'नहीं। तुम मत उठाओ।'
नवीन ने उसके कंधों के नीचे से बाँह खींच ली।
इससे पहले कि बेटी फिर से फट पड़े, मेजर निम्मी को अपनी गोद में उठा लेता है, इतनी आसानी से जैसे वह कोई गु़ड़िया हो। दोनों बच्चियों ने ताली बजाई।
'ग्रैंडपा इज सुपरमैन, सुपरमैन, सुपरमैन', और अपने दादा के पीछे-पीछे भाग लेती हैं।
कपिला ने नवीन को नीचे से ऊपर तक देखा। बिलकुल स्वस्थ आदमी। कहीं पर भी रत्ती-भर फालतू मांस नहीं, जो अकसर इस उमर के आदमियों पर चढ़ जाता है। गालों पर दहकते अंगारे भी उसकी अच्छी सेहत की चुगली खाते हुए। इतना दमकता चेहरा डा. कपिला ने कम ही देखा है। फिर निम्मी ने उसे उठाने के लिए मना क्यों कर दिया? अपने के लिए इतना दर्द? इस लिजलिजे भावुक दर्द की बात मन में आते ही कपिला का चेहरा कठोर हो गया। नवीन ने उसके चेहरे पर के भावों से उसकी भावना को पढ़ लिया।
'डाक्टर कपिला। आप उसकी बात का पूरा मत मानें। शीज अ सिल्ली गर्ल।'
कपिला नवीन की कनपटी के सफेद बालों को देखती है, जैसे उसकी और निम्मी की आयु के अंतर को बताने के लिए -
'येस। शीज अ सिल्ली गर्ल।' और वह होटल के दरवाजे से बाहर निकल गई। अपनी काटेज की तरफ। पीछे-पीछे नवीन।
मेजर ने निम्मी को बैडरूम में लिटा दिया। लाल रंग का कंबल उसने गले तक ओढ़ा हुआ। लाल कंबल के कांट्रास्ट में निम्मी का चेहरा बिलकुल सफेद लग रहा है। नवीन के पैर दरवाजे पर ही जम गए। कपिला ने उसके चेहरे पर बैठे भय देखा। पहली बार हौसला देनेवाली आवाज में कहा -
'आप फिक्र मत करें। मैंने इंजैक्शन दे दिया है। अब कुछ घंटों तक सोई रहेंगी। कल शाम तक चलना-फिरना हो जाएगा।'
दोनों बच्चियाँ निम्मी के बिस्तर के पास रखे सोफे पर बैठीं। लगातार उसके सफेद पड़ गए चेहरे को देख रही हैं। एक कहती है -
'ममी, बिलकुल फेयरी है।'
दूसरी बोली, 'ममी, जल्दी ठीक हो जाएगी न?'
'बक-बक मत करो। बाहर जा कर खेलो। डोंट डिस्टर्ब हर।'
दोनो बच्चियाँ बाहर भाग गईं।
मेजर नवीन को चाय पी कर जाने के लिए कहता है। वहीं से अपनी बेटी को आवाज दी कि चाय के लिए उसका इंतलार हो रहा है। कपिला ने पाँच मिनट में आने के लिए कहा।
'आपकी बेटी है गुस्सेवाली।'
'नवीन साहब, सिर्फ फौजी की बेटी नहीं, फौजी की बीवी भी। हुक्म चलाने की आदत इसे शुरू से है,' आखरी बात करते हुए मेजर की आवाज कहीं दब-सी गई। नवीन को लगा, कोई दुखदायी बात है या होनेवाली है। मेजर ने खुद की बात आगे बढ़ाई -
'कपिला का हस्बैंड एयरफोर्स में विंग कमांडर है। डैकोरेटड अफसर। वह भी बहुत तेज नेचर का है, और...,' उसकी बात पूरी करने से पहले कपिला चाय ट्रे ले कर अंदर आई। पिता को बात बीच में ही छोड़ते सुन लिया।
'क्यों पापा? फिर ले बैठे मेरा और उसका किस्सा। आपको हर किसी से...।'
'नहीं बेटे! मैं तो कुछ नहीं कह रहा था। बस नवीन साहब को बता रहा था कि ग्रेवाल एयरफोर्स में है।' नवीन ने भी उनकी बात ठीक होने की गवाही में सिर हिला दिया। कपिला ने चाय प्यालों में डाली।
'डाक्टर कपिला। एक बात कहूँ? मर्दों की थोड़ी बहुत चापलूसी करनी चाहिए। चाहे ऊपर से ही। अ पैपर्ड हस्बैंड इज अ हैपी हस्बैंड।'
कपिला बताती है कि ग्रेवाल आदमी नहीं, ग्रनेड है। पिन निकला-कि-निकला और फटा-कि-फटा। आज शाम आ रहा है। घर में एक साल से तनाव। शायद अब डाईवोर्स ही हो जाए।
'देखो डाक्टर। आदमी कार चला रहा हो तो अपने को थोड़ा ऊँचा महसूस करता है। फिर आपका पति तो फाइटर-पाइलेट है। सारे आसमान का मालिक होना कहीं तो हमें ऐरोगेंट बनाएगा ही। ऐसे मर्दों की थोड़ी-सी खुशामद करके उन्हें खुश रखते हैं। लैट हिम फील सुपीरियर।'
इससे पहले कि कपिला बोले मेजर साहब ने जवाब दिया -
'इसमें और बच्चों में उसकी जान है। लेकिन बेटी है कि नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देती...।'
'हाँ, आपको और गैरी को सारे कसूर मुझमें ही दिखते हैं। और वह जब पीना शुरू करता है...'
नवीन ने उसे समझाया, 'वैसे मेरा कोई हक तो नहीं आपको समझाने का। लेकिन सारे झगड़ों की जड़ बीवी की यह जिद होती है कि वह पति को पूरे-का पूरा बदल कर रहेगी। कोई जैसा भी है, थोड़ा-बहुत ताल-मेल के साथ अगर उसे हम वैसा ही रहने दें तो दूसरे की ईगो हर्ट नहीं होती। वह ड्रिंक करता है न? ठीक! आज आए तो अपने हाथ से पैग बना कर देना। देखना पिएगा भी कम और कितना खुश भी होगा।'
कपिला पहली बार मुसकराई।
'आपका मतलब है कि सारे मर्द बेवकूफ होते हैं।'
बच्चियाँ भाग कर अंदर आ गईं। नवीन की कुर्सी के पास खड़ीं। एक-दूसरे की ओर देखते, पहले तुम पूछोवाले भाव से। एक ने दूसरी को कुहनी मारी।
'अंकल, आप क्या करते हैं?'
'अंकल, आपके पास कार है?'
'अंकल, आपको प्लेन उड़ाना आता है?'
'अंकल, आप टेनिस खेलते हैं?'
कपिला डपटती है।
'स्टाप इट। इतने सवाल एक बार ही नहीं पूछे जाते।'
नवीन उन्हें बताता है -
'नहीं बेटी, मुझे प्लेन उड़ाना नहीं आता।'
'ओ! माई पापा इज द बैस्ट फाइटर पायलेट।'
'न बेटे! मुझे लड़ना भी नहीं आता। आइ एम नो फाइटर।' यह बात नवीन ने उदास-सी आवाज में कही। उठा।
मेजर भी उठा, 'चलिए, आपको काटेज दिखा दूँ।'
शाम को नवीन मेजर साहब की काटेज में आया। कपिला ने बताया कि निम्मी की हालत जल्दी से सुधर रही है। थोड़ी-सी खिचड़ी दी थी, उसके पेट में टिक गई। वामिटिंग नहीं हुई। कल तक चल फिर लेगी। फिर वह उसे बैडरूप में ले गई। निम्मी आँखें मूँदे लेटी है, सुबहवाला लाल कंबल ओढ़े हुए। उसका चेहरा उतना सफेद नहीं दिख रहा जितना सुबह था। नवीन ने उसकी आँखों को उँगली से छुआ। वह पहले मुसकराई, फिर आँखें खोली। कपिला पहली बार नोट करती है कि निम्मी का एक दाँत टेढ़ा है। निचले होंठ से बाहर निकलता हुआ। इससे पहले कि नवीन कुछ पूछे, निम्मी बोली -
'तुम बहुत परेशान मत होना। डाक्टर कपिला कहती हैं कल तक ठीक हो जाऊँगी।'
इस एक वाक्य को बोलते हुए वह थक गई। फिर से आँखें मूँद ली। कपिला को फिर गुस्सा आ गया। कैसी लड़की है? बीमार खुद है और एक स्वस्थ आदमी को हौसला दे रही है। इन दोनों में क्या संबंध है? पापा बता चुके हैं कि निम्मी नवीन की पत्नी नहीं। दोनों की आयु में बीस साल का अंतर तो जरूर होगा। नवीन भी ऐयाश किस्म का मर्द नहीं लगता कि किसी ऐसी-वैसी लड़की को चंद दिन मौज-मस्ती के लिए यहाँ लाया हो। तो क्या दोनों शादी की सोच रहे हैं? सवाल इतने सारे हैं, लेकिन जवाब तो नहीं पूछे जा सकते। फिर पापा ने बताया था कि इस तरह के 'जोड़े' अकसर होटलों में आते रहते हैं। होटलवालों को कोई भी सवाल न पूछने की आदत हो जाती है।
काटेज के गेट के अंदर कार दाखिल होने की आवाज आई। अंदर का रास्ता सिर्फ पचास मीटर लंबा। फिर बिल्कुल नब्बे के कोण पर फिर दाएँ मुड़ता है, सिर्फ दस मीटर के लिए। इस कोण फिर दाएँ मुड़ता है, आगे पोर्च। गाड़ी खड़ी करने के लिए। नवीन जानता है कि पोर्च तक पहुँचने के लिए कार की गति कम-से-कम तीन बार बढ़ने की आवाज आती है, इंजन किसी घायल जानवर की तरह दहाड़ता है। नवीन का शरीर कस गया। कार जरूर रास्ते के किनारे लगी बाड़ को तोड़ती हुई नीचे खड्ड में गिरेगी। वह लगभग भागता हुआ बरामदे में पहुँचता है। कार ने एक तरफ के दो पहियों पर नब्बे के कोणवाला दूसरा मोड़ काटा, झटके के साथ पोर्च के नीचे पहुँचती है और इंजन एक लंबी दहाड़ के साथ खामोश हो गया। नवीन देखता है कि बच्चियों के चेहरे पर डर का नामोनिशान नहीं। इससे पहले कि उनका पिता कार के बाहर निकले वह दोनों कार का दरवाजा खोल कर अगली सीट पर कूद गईं। पिता की गोद में पहले चढ़ने की होड़ लग गई। ग्रेवाल दोनों बच्चियों को एक साथ उठा कर नीचे उतरा। वह उसकी बाँहों से लटक रही है। कपिला उसे एक ठंडी - 'हैल्लो' करती है, वह इतनी ही ठंडी 'हैल्लो' जवाब में देता है।
'पापा, रास्ते में कितनी बार रुके?' एक बच्ची।
'दो बार।'
'क्यों?' दूसरी बच्ची।
'वन्स फार पी एंड वन्स फार टी।'
'थके तो नहीं?' दोनों बच्चियाँ।
'अब तुम चुप करोगी कि नहीं? आते ही अटैक कर दिया', कपिला की डाँट। ग्रेवाल नवीन की ओर देख रहा है। कपिला परिचय कराती है, सिर्फ नाम का - 'नवीन वर्मा।' ग्रेवाल के चेहरे पर कुछ न सूझने का भाव। यह नया आदमी कौन है? इस घर में क्यों कर? कपिला उसे मुँह धोने के लिए अंदर आने को कहती है। नवीन जानता है वह ग्रेवाल को उसके बारे में, निम्मी के बारे में, जितना वह जानती है, उतना अंदर जा कर बताएगी। लेकिन कपिला उनके बारे में जानती ही कितना है? एक अधेड़ उम्र मर्द। और लड़की-सी दिखनेवाली बाईस साल की औरत।
ग्रेवाल मुँह धो कर बैठक में आ गया। अच्छी-खासी ठंड हो रही हे लेकिन उसने सिर्फ सफेद स्पोर्टस शर्ट डाल रखी है। उसकी गर्दन ऊपर की तरफ लगातार उठी रहती है, आँखें भी लगातार दाएँ-बाएँ घूमतीं। शत्रु की खोज करते वैमानिक की आँखें। मेजर साहब अंदर आए। ग्रेवाल और वह जफ्फी डाल कर मिले। नवीन को कहीं हैरानी-सी हुई कि दामाद और ससुर कैसे खुल कर मिल रहे हैं, दोस्तों की तरह। और पति-पत्नी की मुलाकात कितनी ठंडी थी, अजनबियों की-सी।
'गैरी तुम थक गए होंगे, इतनी लंबी ड्राइव की है। मैं तुम्हारे लिए ड्रिंक लाती हूँ। आपके लिए भी बनाऊँ पापा, 'कपिला यह कह कर अंदर गई, ड्रिंक बनाने के लिए। ग्रेवाल का चेहरा एकदम चौंका हुआ। फिर इस चौंकाहट की जगह मुसकान ले लेती है।
'पापा, यह इस घर में रेव्युलेशन तो नहीं आ गई?' जवाब में मेजर साहब नवीन की ओर देख कर हलका हँसते हैं। कपिला ट्रे में ग्लास और बोतल रख कर अंदर आई।
'पहले तुम्हारी पेशेंट से मिले लें स्वीट हार्ट, फिर पिएँगे', ग्रेवाल अंदर जाने के लिए उठा, सब लोग उसके साथ बैडरूम में आए। इतने सारे कदमों की आवाज सुन कर निम्मी आँखें खोलती है, स्पोर्टस शर्ट पहने आदमी को देखा, समझ गई कपिला का पति है। उसे भी पता है कि ग्रेवाल ने आज आना था। आ गया।
'हैल्लो स्वीट हार्ट, मैं गैरी हूँ, तुम मरीजों की तरह लेटी क्यों हो? चलो उठो। सबके साथ ड्राइंग रूम में बैठो।'
'गैरी। यह सचमुच बीमार हैा इसे लेटने दो। बी.पी. बहुत नीचे आ गया है। अभी चल नहीं सकती', कपिला ने उसे समझाया।
'वट नानसेंस, चल नहीं सकती तो उठा कर ले चलते हैं, 'गैरी ने निम्मी को कंबल समेत उठाया और बैठक में ले आया। बच्चियाँ ताली पीट रही हैं, 'पापा सुपरमैन, पापा सुपरमैन!' कपिला सोफे के बाजू पर दो तकिए लगाती है, गैरी ने निम्मी को सोफे पर अधलेटा लेटाया। वह पहली बार निम्मी के सफेद पड़ गए चेहरे को देखता है, बिलकुल ढीले पड़ गए जिस्म को देखता है, और कपिला से कहता है -
'इसे हस्पताल दाखिल करवा दो, एटवंस। मैं फोन कर शिमला के कमांड हास्पिटल से एंबुलेंस मँगवाता हूँ। वहाँ का सी.ओ. मेरा दोस्त है। तुम भी साथ चलो। रास्ते में जरूरत न पड़ जाए।'
'रिलेक्स गैरी। क्यों भूल जाते हो कि मैं भी डाक्टर हूँ। निम्मी कल तक ठीक हो जाएगी।'
'नो। शीज वैरी सिक।' आवाज में तनाव।
'अच्छा बाबा। तुम शिमला फोन मिला लो। मैं डाक्टर को फोन पर इसकी हालत समझा दूँगी। वह कहेंगे तो इसे वहाँ चलेंगे?' मनानेवाली आवाज में कपिला जवाब देती है। गैरी के चेहरे पर फिर से चौंकाहट। यह कपिला ने इतनी जल्दी बहस बंद करनी कब से शुरू कर दी? वह खुश हुआ। घर में सचमुच क्रांति आ गई।
'आपके लिए भी ड्रिंक बनाऊँ नवीन साहब', कपिला ने पूछा? नवीन निम्मी की तरफ देख रहा है। वह आँखें खोलती है, नवीन को सवालिया निगाहों को देखा -
'ले लो। लेकिन बहुत कम लेना।'
'स्वीट हार्ट, तुम भी थोड़ी-सी ले लो। बी.पी. के लिए रामबाण दवाई है।' गैरी निम्मी को छेड़ता है।
मेजर साहब ने बेटी को कहा, 'कपिला मेरे लिए डबल लार्ज बनाना। यह स्माल के नखरे आजकल के फौजियों को मुबारक।'
दोनों बच्चियाँ निम्मी के पास बैठी हैं। उसका माथा छू कर एक-दूसरे को बता रही हैं कि फीवर तो है नहीं। फिर ममी इसे दवाई क्यों पिलाए जा रही है? गैरी के ग्लास होंठों तक पहुँचने से पहले वह बच्ची बोली -
'पापा स्टैचू।' गैरी का हाथ वहीं थम गया। वह बिना हिले-डुले बैठा रहा।
'ममा से पूछ लिया।' दूसरी बच्ची। गैरी आँखें नीची करता है, 'हाँ' के जवाब में।
'ओपन,' दोनों बच्चियों ने एक साथ बोला। मेजर साहब ने बताया -
'अरे भाई, अब खेलना भी अंग्रेजी में हो गया। पता है हमारे वक्त इस खेल को कैसे खेलते थे? 'मूर्ति' कहने पर रुक जाते थे और 'खुल जा' कहने पर हिलते थे।
निम्मी ने तकियों से सिर उठाया, बैठना चाहती है। गैरी एक कदम में उसके पास पहुँचा, सिर के नीचे हाथ रख कर तकिए निकाले और निम्मी का सिर सोफा-बैक के साथ टिका दिया। नवीन हैरान। यह कैसा फाइटर पायलेट है जो जरा-सी बीमारी से इतनी जल्दी घबरा जाता है? इस आदमी का झगड़ा क्यों कर किसी भी औरत से हो सकता है? खास कर अपनी बीवी से। उसका अंदाजा ठीक था। हठ करने की आदत कपिला की है और 'न' सुनने की आदत गैरी की नहीं। यह 'हाँ' और 'न' एक शीतयुद्ध में बदल गया है।
'नवीन, अब ठीक हूँ। हम अपनी काटेज में चलेंगे।' निम्मी ने घर का नक्शा देख लिया है। दो बैडरूम। और फिर ग्रेवाल इतने दिन बाद आया...।
'डोंट टाक नानसेंस स्वीट हार्ट। तुम तब तक इसी काटेज में रहोगी जब तक कपिला इजाजत नहीं देती। आल्वेज ओबे यूअर डाक्टर एंड सीओ।'
'हमारा कोई हनीमून नहीं। दो बच्चियाँ हैं। हाँ, अगर तुम नवीन के बिना...' कपिला उसकी बात बीच में काटती है -
'उतर आए अपनी बदमाशियों पर! बच्चियों का खयाल तो कर लिया करो।'
'मैने तो कुछ नहीं कहा', हाथ उठा कर बचाव करता ग्रेवाल।
'हाँ, पापा ने तो कुछ नहीं कहा', हाथ उठा कर बचाव करती दोनों बच्चियाँ।
'एक-एक और हो जाए गैरी!' मेजर साहब की सलाह।
'नो पापा। और नहीं। खाना खाते हैं। लैट निम्मी टेक रेस्ट।' ग्रेवाल का जवाब सुन कर अब कपिला के चेहरे पर चौंकाहट। बच्चियाँ पापा को कार में राउंड देने के लिए कहती हैं। ग्रेवाल उनके साथ बाहर निकला।
'नवीन साहब! आपने ठीक सलाह दी थी। थोड़ी-सी खुशामद में गैरी कितना खुश है। चार-पाँच पैग रोज पीता है, आज एक के बाद ही न कर दी। थैंक्स! यू हैव सेव्ड अवर मैरिज।'
जवाब निम्मी देती है -
'हाँ, नवीन को दूसरों को बचाना खूब आता है', कपिला फैसला नहीं कर पा रही कि निम्मी के इस वाक्य में व्यंग्य है या उदासी। इन दोनों के बीच कहीं अदृश्य दीवार है जरूर। नवीन दुनिया देखा-मर्द है। फिर इस दीवार के पार छलाँग क्यों नहीं लगाता? निम्मी के पास क्यों नहीं पहुँच जाता?
निम्मी अब ठीक हो गई। दो दिन से अपनी काटेज में। नवीन के पास। बच्चियाँ सारा दिन अब उनकी काटेज में भटकती रहती हैं, क्योंकि निम्मी उन्हें फेयरी लगती है। कपिला ने गैरी से पूछा जरूर है कि इतनी कम उम्र की लड़की इतनी बड़ी उम्र के आदमी से क्यों कर जुड़ गई है। गैरी क्या बताए? प्रेम एक रहस्य है। एक मिस्ट्री! क्या इस रहस्य को कभी कोई बूझ पाया है? जो सब कुछ होता है उस सब कुछ का कार्य-कारण संबंध हमें हमेशा पता लग जाता है क्या? एक आत्मा से दो लंबे हाथ बाहर निकलते हैं और दूसरी आत्मा के बाहर निकल आए हाथों को पकड़ लेते हैं। क्या यही प्रेम-रहस्य होता है? हाँ शायद! यह भी नहीं?
शाम को कपिला, गैरी और बच्चियाँ उनकी काटेज में आईं। निम्मी ने जींस के साथ खादी का गेरुआ कुर्ता पहन रखा है। कानों में जो टाप्स हैं उन पर लगे पत्थर भी इसी रंग के। चेहरे की सफेदी अब पीले मोतियों की पीली आभा में बदल गई है। उसे देख कर कपिला के मन में जो पहला शब्द आया, वह है 'जोगन'।
बैठक की खिड़की बाहर की तरफ खुली है। कपिला को लगा यह लड़की, जिसका नाम निम्मी है, कभी किसी क्षण भी, इस खिड़की से बाहर निकल जाएगी। फिर वापस नहीं आएगी। वह आगे बढ़ कर खिड़की बंद कर देती है।
'खिड़की क्यों बंद कर दी ममा', एक बची।
'हवा तो है नहीं', दूसरी बच्ची।
'नहीं। निम्मी अभी कमजोर है। ठंड लग जाएगी', कपिला ने झूठी वजह बताई। गैरी ने नवीन के दहकते अंगारे जैसे सुर्ख चेहरे को देखा, निम्मी के मोतिया रंग को देखा।
'नवीन साहब! थोड़ी-सी लाली बेचारी निम्मी को भी दे दें। लगता है आप सारा खयाल सिर्फ अपनी सेहत का रखते हैं', उसकी बात सुन कर दोनों मुसकराए। लेकिन निम्मी की मुसकान उसके चेहरे की तरह ही पीली। गैरी को हैरानी हुई कि अपने किसी की तारीफ सुन कर भी यह लड़की चमकीली हँसी क्यों नहीं हँसती? होटल फोन करके चाय मँगवाई गई। नवीन हर बार अपनी नाक के निचले हिस्से को तर्जनी से छूता है। यह उसकी आदत है। दोनों बच्चियाँ अब इंतजार में है कि वह नाक का निचला हिस्सा छुए। उसकी उँगली नाक के पास पहुँची। दोनों ने साथ-साथ कहा, 'स्टैचू।' नवीन की उँगली नाक पर थम गई।
'क्या नाक पर फोड़ा है?' एक बच्ची
'क्या नाक पर खुजली होती है?' दूसरी बच्ची।
नवीन 'न' की मुद्रा में आँखें हिलाता है।
'तो 'ओपन'। अंकल अब फिर नाक को उँगली लगाओगे तो हम स्टैचू कर देंगे', एक बच्ची।
'हाँ, बुरी आदत होती है', दूसरी बच्ची।
चाय पीने के बाद सब बाहर निकले टहलने के लिए। कपिला निम्मी को शाल ओढ़ने के लिए कहती है। अभी वह कमजोर है। ध्यान रखना चाहिए। होटल का लान फिर सूखे पत्तों से ढक गया। हालाँकि मेजर साहब दिन में दो बार लान साफ करवाते हैं। लेकिन सूखे पत्ते नीचे गिरने से बाज नहीं आते, क्योंकि वह मेजर साहब से डरते नहीं। बच्चियाँ पत्तों पर दौड़ रही हैं। चर्र-चर्र की आवाज के पीछे भागती हुई।
'नवीन साहब! आप काम क्या करते हैं', बातचीत शुरू करने के लिए कपिला ने पूछा।
'यह कुछ नहीं करते', जवाब निम्मी देती है। बातचीत फिर बंद। नवीन जरा तेज चल रहा है। निम्मी ने उसकी बाँह को उँगली से छू कर कहा -
'आहिस्ता चला करो। थक जाओगे।'
कपिला को फिर निम्मी पर गुस्सा आ गया। यह लड़की खुद बीमार है और हर वक्त चिंता इसे नवीन की लगी रहती है। प्रेम क्या हमें दूसरे का गुलाम बना देता है? हमारा अपना कुछ भी नहीं रहता, जो कुछ रह जाता है सिर्फ दूसरे का? लान के किनारे पर दो बैंच। एक पर गैरी और कपिला बैठ गए, एक पर नवीन और निम्मी। कपिला ने बताया कि लान के इस किनारे को 'टू बेंचिज' कहते हैं।
'क्यों?' निम्मी पूछती है।
'पता नहीं, सच है कि कहानी। लेकिन यहाँ के लोग कहते हैं कि सच है। उन दिनों यह होटल नहीं था, महाराजा का पैलेस था। देखभाल के लिए महाराजा ने एक अंग्रेज रखा था। उसकी एक लड़की थी - वायला। पास ही छावनी है न। अंग्रेजों ने हर पहाड़ी जगह पर छोटी-छोटी छावनियाँ बनाई थीं ताकि गर्मियों में वहाँ रहा जा सके। 1940 की गर्मियों में एक रेजिमेंट यहाँ आई। वायला की एक अफसर से दोस्ती हुई जो प्यार में बदल गई। दोनों रोज शाम यहाँ बैंचों पर बैठते थे। रेजीमेंट युद्ध में हिस्सा लेने के लिए अफ्रीका चली गई। महीने बाद तार आया कि वायला का दोस्त मिसिंग है। या मारा गया होगा, या युद्धबंदी बन गया होगा। वायला ने रेडक्रास वालों को खत लिखे। खत आया कि किसी भी जर्मन जेल में यह बंदी नहीं। जरूर युद्ध में मारा गया होगा।'
'फिर?'
'लेकिन वायला नहीं मानी। उसे पक्का था कि वह मरा नहीं। वार खत्म हो गई। युद्धबंदी लौट आए। वह नहीं आया।'
'फिर?'
'हम आजाद हो गए। वायला का पिता इंग्लैंड चला गया। लेकिन वह नहीं गई। रोज शाम को बेंच पर बैठ कर उसके लौटने का इंतजार करती थी। महाराजा ने उसके रहने के लिए एक काटेज दे दी थी। आजादी के बीस साल बाद तक जिंदा रही। सर्दियों की एक शाम बेंच पर ज्यों बैठी तो फिर उठी नहीं। सुबह उसका शरीर पूरा-का-पूरा बर्फ में दब गया था। यहीं पास ही उसकी कब्र है। तब से इस जगह का नाम टू बेंचिज पड़ गया।
निम्मी ने कस कर नवीन का हाथ पकड़ लिया। नवीन उसके कंधे को थपथपा रहा है। हौसला दे रहा है क्या? निम्मी का चेहरा फिर से सफेद पड़ना शुरू हो गया। कपिला ने उसकी नब्ज देखी। माथा छुआ। ठीक है। फिर यूँ एकदम इस लड़की का रंग क्यों उड़ जाता है? इसे कहीं कोई और बड़ी बीमारी तो नहीं?
'आप लोग कुछ दिन और क्यों नहीं ठहरते? अभी तो मौसम ठीक चल रहा है। फिर नीचे तो अच्छी-खासी गर्मी पड़ रही है,' ग्रेवाल ने उन्हें सलाह दी।
'नहीं। जाना जरूरी है।' निम्मी ने नवीन की तरफ देख कर कहा।
'क्यों? ऐसी कौन-सी बात है कि जाना जरूरी है', ग्रेवाल ने जिद की।
'हमारी शादी है। दस दिन बाद।' यह बात भी निम्मी ने नवीन की तरफ देख कर कही।
'देट काल्ज फार अ सेलिब्रेशन। आज नवीन साहब पिलाएँगे।'
कपिला को अब भी कहीं कोई हैरानी जरूर है कि दस दिन बाद की शादी की खबर देते हुए इस लड़की की आवाज में कोई खुशी नहीं थी। क्या कोई मजबूरी है? फिर उसने सिर झटक कर इस फिजूल बात को बाहर फेंक दिया। नवीन क्या ऐसा मर्द दिखता है जो किसी को मजबूर करे?
हवा ने छोटी-सी चुटकी काटी। सब अंदर जाने के लिए उठ खड़े हुए। बच्चियाँ दौड़ती हुई उनके पास आ रही हैं, सूखे पत्तों की चर्र-चर्र की आवाज उनके पीछे दौड़ रही है। वह रुकती है। आवाज भी रुक जाती है।
'सुनो, इनकी दस दिन बाद शादी है', ग्रेवाल बच्चियों को खबर देता है।
'ग्रेट। वी वांट अ पार्टी, पार्टी, पार्टी।' दोनों एक साथ बोलती हैं। एक साथ उछलती हैं। फिर वह निम्मी को सिर नीचे झुकाने के लिए कहती है। वह नीचे होती है। एक गाल पर एक बच्ची चूमती हे और दूसरे पर दूसरी। वह सिर ऊपर करती है, छेड़खानी करता हवा का झोंका उसके बालों को बिखरा कर, सीटी बजाते हुए आगे भाग जाता है। नवीन हाथ लंबा करता है। उसके बिखरे बालों को उसके कानों के पीछे खोंसता है। निम्मी का निचला होंठ शिशु-पक्षी-सा फड़फड़ाया, निचला दाँत चमका। उसने मुँह पर हाथ रखा। अब गले की हड्डी को उँगली से छूता है, इसका हिलना रोकने के लिए। निम्मी उसका हाथ परे झटक देती है। एक लंबी...' ओ...ओ...' की आवाज उसके होंठों की कैद से बाहर निकली भागी। हवा के कंधों पर बैठ पेड़ों पर चढ़ गई। निम्मी के कंधे जोर-जोर से हिल रहे हैं। आवाज रोकने के लिए मुँह पर दोनों हाथ रख लेती है और वहीं पत्तों पर बैठ जाती है। अब वह फूट-फूट कर रो रही है। बच्चियाँ डर कर वहाँ से भाग गईं। कपिला इंतजार कर रही है कि नवीन निम्मी को चुप कराएगा। लेकिन नहीं। वह अपनी जगह बिना हिले-डुले खड़ा है। उसने सिगरेट सुलगा ली। कपिला निम्मी के पास पत्तों पर बैठी, उसका सिर सहला रही है। कंधों का हिलना कम हो रहा है। अब बंद हो गया। उसने सिर ऊपर उठाया। आँसुओं से चेहरा धुल गया। कपिला का शरीर तना हुआ है। थोड़ा आगे को झुका गया, किसी मांस-भक्षी पक्षी की तरह, झपट्टा मारने के लिए तैयार। कुछ न कुछ हो कर रहेगा। वह गैरी के गुस्से को जानती है। लेकिन नवीन तो नहीं जानता।
'क्या बात है? निम्मी रो क्यों रहीं है?' गोली दागती ग्रेवाल की आवाज।
नवीन अब भी नीचे देख रहा है।
'मैं पूछता हूँ बात क्या है? वाई डोंट यू स्पीक? कोई डर है क्या?'
नवीन चुप। कपिला ने डरी हुई आवाज में कहा -
'छोड़ो गैरी।'
'छोड़ूँ। क्यों छोड़ूँ, यह मुझे कुछ बताते क्यों नहीं, किसी ने डराया है क्या? लैट मी नो। आईल फिक्स दैट बास्टर्ड!'
नवीन अब भी चुप। कपिला जानती है कि इसके बाद गैरी का हाथ उठ जाएगा। गुस्से में हमेशा अंधा हो जाता है। निम्मी उठी। गैरी के पास गई। उसका हाथ पकड़ कर कहा -
'हमें कुछ नहीं हुआ? पता नहीं क्यों रोना आ गया?' वह अब भी ग्रेवाल का हाथ पकड़े हुए है। उसका नीचे झुका शरीर सीधा हो गया। बाँहें ढीली हो गईं। अब वह झपट्टा मारने की मुद्रा में नहीं, डाइव बीच में ही तोड़ कर अपने आप में लौट आया है। गैरी और निम्मी ने धीरे-से चलना शुरू कर दिया। कपिला देखती है कि अब भी निम्मी ने गैरी का हाथ पकड़ रखा है। एक क्षण के लिए यह सोच कर उदास हो जाती है कि निम्मी को गैरी जैसा सशक्त पुरुष मिलना चाहिए था, और मिला तो नवीन...।
नवीन अब भी अपनी जगह खड़ा है। अँधेरा नीचे उतरना शुरू हो गया। इस उतरते अँधेरे में उसका चेहरा अंगारों की तरह दहक रहा है।
'चलें', कपिला ने हौले से कहा।
'हाँ, चलें', वह उसकी और बिना देखे जवाब देता है।
ग्रेवाल और निम्मी काटेज के बाहर खड़े उनका इंतजार कर रहे हैं। दोनों पास आए तो निम्मी ने कहा -
'हम आज रात इन्हें पार्टी दें?'
'हाँ, ठीक है। ग्रेवाल साहब से पूछ लो।'
'डोंट बी फार्मल नवीन? यह साहब कहाँ से आ गया? इसका मतलब मेरा ऊँचा बोलना बुरा लगा। प्लीज डोंट माइंड। शाऊट करना मेरी हाबी है। कपिला से पूछ लो।' निम्मी मुसकराती है, उसका निचला नोकीला दाँत चमकता है। कपिला हँस कर कहती है -
'गैरी को शाऊट करने की ही तनख्वाह मिलती है।'
'मेजर साहब और बच्चियों को भी हमारी तरफ से बुला लें। होटल में पार्टी करेंगे। क्यों नवीन?'
'हाँ, ठीक है।'
लेकिन कपिला को लगता है कि यह लोग पार्टी देने की बात पर खुश नहीं।
बच्चियाँ निम्मी के दाएँ-बाएँ बैठी हैं। कपिला ने उन्हें रोका भी कि नवीन को वहाँ बैठने दें। लेकिन नहीं। उनकी जिद थी कि बैठेंगी तो निम्मी के पास ही।
'हाय पापा! फेयरी लग रही है न', एक बच्ची।
'फेयरी नहीं। मरमेड', दूसरी बच्ची।
निम्मी ने जार्जेट की पीली साड़ी पहनी है, माथे पर सिंदूर की बड़ी-सी दहकती बिंदियाँ। कंधे तक के बालों को उसने कस कर कंघी की है, गालों के दोनों ओर हिलते पानी की काली झालर। थोड़ा-सा सिर हिलाती है तो पानी की काली झालर हिलती है, सिर रुकता है तो झालर भी रुक जाती है। शामवाली रुलाई ने उसकी आत्मा को धो दिया। अंदर का धुला होना चेहरे को भी कहीं धो गया। ग्रेवाल ने उसे छेड़ा -
'स्वीट हार्ट! अगर नवीन से तुम्हारी बात पक्की न होती तो मैं तुम्हें भगा ले जाता!'
'नवीन तो मुझे भगा नहीं रहा। आपको किसने रोका है', आज निम्मी छेड़छाड़ में हिस्सा ले रही है।
'पापा, आपके साथ क्यों भागेंगी? नवीन अंकल तो आपसे हैंडसम लग रहे हैं,' एक बच्ची।
'हाँ लग रहे हैं। बिलकुल मारलेन ब्रैंडो लग रहे हैं,' दूसरी बच्ची।
नवीन ने डबल ब्रेस्ट ब्लेजर पहना हुआ है, लाल पोल्का डाट्स की टाई के साथ। नीले ब्लेजर के कांट्रास्ट में उसके गालों के अंगारे पूरे जोबन पर दहक रहे हैं। काँच की खिड़की खड़की। निम्मी पूछती है कि क्या कोई बाहर खड़ा है खिड़की के पास? कपिला कहती है -
'नहीं। कोई नहीं। हवा है। अंदर आना चाहती है।'
'क्यों?' निम्मी जब क्यों कहती है तो उसकी एक आँख दूसरी आँख से बड़ी दिखने लगती है।
'क्योंकि बाहर उसे सर्दी लग रही है स्वीट हार्ट,' ग्रेवाल ने उसे फिर छेड़ा। हवा फिर खिड़की खटखटाती है। मेजर साहब ग्लास उठाते हैं, बच्चियाँ भी अपना-अपना स्वीट वाईनवाला ग्लास उठाती हैं। कपिला कहती है -
'फार अ वैरी-वैरी हैप्पी लाइफ आव निम्मी एंड नवीन।' यह सुन कर निम्मी हल्के से सिर झटकती है। एक तरफ की गाल पलभर के लिए चमक मारती है, फिर बाल वहाँ लंबे लेट जाते हैं।
ब्रास स्टैंड मे लगी मोमबत्तियों की रोशनी हिली। रोशनी का छोटा-सा टुकड़ा छलाँग लगा कर निम्मी के नाक के सिरे पर जा बैठा। रोशनी हिलना बंद होती है। नाक पर बैठा रोशनी का टुकड़ा छोटी-सी छलाँग लगाता है और अपने घर वापस आ जाता है। निम्मी नाक के सिरे को उँगली से छूती है, उसे वहाँ पर रोशनी बैठने का पता चल गया।
'नवीन साहब, आप बिल्कुल चुप है', ग्रेवाल।
'निम्मी पर से इनकी आँखें हिलें तों हमसे बात करें', कपिला छेड़ती है।
रिकार्ड प्लेयर पर सरोद की धुन बज रही है। आवाज उन सबको छूती है और फिर खिड़कियों की तरफ बढ़ जाती है। लेकिन खिड़कियाँ बंद हैं। हौले से दीवारों पर चढ़ती है और अधखुले रोशनदानों से बाहर निकल जाती है।
'आंटी, शादी के बाद कहाँ जाएँगे,' एक बच्ची।
'काश्मीर जाएँगे न', दूसरी बच्ची।
निम्मी नवीन के चेहरे पर निगाह टिकाती है। आँखें ऊपर उठा कर उसे भरपूर निगाहों से देखा। एक आँख दूसरी आँख से फिर बड़ी हो गई।
'हम अमेरिका जाएँगे।' कपिला को भ्रम होता है कि यह जवाब कुछ अतिरिक्त कठोर आवाज में निम्मी ने दिया। बच्चियों की बात का बुरा मान गई है क्या?
वेटर खाली ग्लास उठाता है। मेजर साहब उसे इशारे से और लाने के लिए कहते हैं। नवीन ने दूसरा ग्लास उठाया, निम्मी ने टोका -
'तुम और मत लो।'
'स्वीट हार्ट, डोंट बी मीन। लैट हिम एंज्वाय। शादी के बाद रोकने-टोकने का काम करना चाहिए। क्यों कपिला?'
'अच्छा तुम पीयो। आज यह बक-बक नहीं चलेगी।'
'हाँ नहीं चलेगी', एक बच्ची।
'बिलकुल नहीं चलेगी', दूसरी बच्ची।
'हाँ, आज मुझे मत रोको', नवीन एक ही घूँट में ग्लास खाली करता है, मेज पर रख देता है। ग्रेवाल और मेजर के भरे ग्लासों की तरफ सवालिया आँखों से देखता है कि इन्हें खत्म क्यों नहीं करते?
'आंटी को प्रेजेंट नहीं देंगे', एक बच्ची।
'हाँ, पापा ने मम्मी को दिया था', दूसरी बच्ची।
'मैं तो भूल ही गया था। अभी लाया।', नवीन ने बाहर निकलते हुए जवाब दिया।
निम्मी अब सिर नीचे झुकाए बैठी है। रोशनी का टुकड़ा उसके होंठों पर जा बैठा। निचला होंठ हिलता है, नोकीला दाँत चमकता है। कपिला को डर लगता है, कहीं फिर तो रोने नहीं लगी?
नवीन लौटा। उसके हाथ में मखमल का छोटा-सा डिब्बा। निम्मी के पास रखा।
बच्चियाँ डिब्बा खोलने के लिए कहती हैं। निम्मी उँगली से डिब्बे का ढक्कन ऊपर उठाती है। नैकलेस है। टाप्स है, अँगूठी है। लश्कारा पड़ता है। मोमबत्तियों की चमक मद्धिम पड़ गई।
'पर्ल है', एक बच्ची।
'नहीं डायमंड', दूसरी बच्ची।
'पन्ना है', कपिला उन्हें बताती है।
'अंकल, आप इन्हें पहला दो,' दोनों बच्चियाँ।
'पहनाना तो आपको ही चाहिए नवीन साहब', कपिला उसे समझाती है।
'छोड़ो! मैं खुद डाल लूँगी', निम्मी हार डालती है, अँगूठी डालती है, लेकिन टाप्स डालने में उसे मुश्किल हो रही है।
'हैल्प हर अंकल', दोनों बच्चियाँ। नवीन निम्मी के पास आया। उसके कान के बाल परे किए, टाप्स डाले।
'तुम्हारे कान तो बहुत छोटे हैं।
'यह बात तुम्हें दो साल बाद आज पता लगी', निम्मी का निचला होंठ फिर फड़का, दाँत फिर चमका। इससे पहले कि नवीन कुछ कहे, एक बच्ची -
'अंकल, गिव हर अ किस!'
'हाँ! पापा जब भी मम्मी को गिफ्ट देते हैं तो किस करते हैं।'
नवीन अपने होंठ निम्मी के माथे को छुआता है। 'स्टैचू', एक बच्ची ताली पीट कर कहती है। निम्मी के मेज पर रखे हाथ हौले से ऊपर उठते हैं, उन्हें नवीन के सिर के पिछले सिरे पर रखती है, सिर को जोर से अपने माथे पर दबाती है। 'ओपन', दूसरी बच्ची ताली पीटती है। निम्मी की आत्मा के दरवाजे खुलते हैं, एक लंबी साँस बाहर निकलती है। हाथ फिर से मेज पर रख देती है। नवीन अपनी कुर्सी पर लौटता है, ग्लास उठाता है।
'बस! और नहीं लेनी', निम्मी अपनी नाक से रोशनी को परे झटका कर कहती है।
'प्लीज डोंट स्टाप मी', नवीन की आवाज सख्त। कपिला धीरे-से ग्रेवाल को बताती है कि नवीन ड्रंक हो रहा है। उसकी आँखें झपक नहीं रहीं। ग्रेवाल को पीने का अभ्यास है। वह नवीन के तने हुए चेहरे को देखता है। उसे भी पता चल जाता है कि नवीन ड्रंक हो रहा है। नशे की पहली स्टेज में शरीर कस जाता है, आक्रमण की मुद्रा में। आखरी स्टेज में ढीला पड़ जाता है, पराजय की मुद्रा में। मेजर साहब वेटर को खाना लगाने के लिए कहते है। नवीन उन्हें घूर कर देखता है -
'नहीं! मैं नहीं खाऊँगा, और लूँगा।'
'ठीक है। इन सबको तो खाने दो। हम दोनों और ले लेंगे', ग्रेवाल जानता है कि जब कोई नशे में हो तो उसकी बात मान लेनी चाहिए।
निम्मी अब नवीन को घूर कर देख रही है। उसकी एक आँख दूसरी से बड़ी लग रही है। वह दबी लेकिन सख्त आवाज में सबको बताती है -
'हम कल वापस जाएँगे।'
नवीन खट से मेज पर ग्लास रखता है।
जवाब कपिला देती है, 'क्यों? आप लोग सात दिन के लिए आए थे। जल्दी क्या पड़ गई?
'नहीं, हम कल जाएँगे।'
'अंकल, आप रोको न' एक बच्ची।
'अंकल, आप कहो न', दूसरी बच्ची।
'नहीं! निम्मी जो बात कह दे उसे जरूर पूरी करती है।'
'स्वीट हार्ट, गुस्सा किस बात का है। अभी तो हमारी दोस्ती शुरू ही हुई है', ग्रेवाल कमरे में ठहर गए तनाव को बाहर धकेलने की कोशिश करता है।
'नहीं, हम कल जाएँगे। शादी की तैयारी भी तो करनी है', ग्रेवाल की बात का जवाब देते हुए निम्मी की आवाज सख्त नहीं है। नवीन, मेजर को कहता है, 'मेजर साहब आप हाँ में सिर हिलाते हैं। कपिला सोचती है कि नवीन, जिसने उसकी शादी टूटने से बचा ली है सिर्फ छोटी-सी सलाह दे कर, खुद क्यों कर निम्मी के साथ तालमेल से नहीं रह पा रहा। उसे पक्का है, निम्मी नवीन के पीने को ले कर नाराज हो गई है।
खाना खाते वक्त नवीन बिलकुल चुप है। निम्मी अपनी कुर्सी से उठी, उसके पास जा कर बैठ गई। उसके हाथ से ग्लास ले कर मेज पर रखा। टमाटर का टुकड़ा उठा कर उसके होंठों के पास ले गई -
'चलो! मुँह खोलो', नवीन मुँह खोलता है। निम्मी उसे टमाटर का टुकड़ा खिला कर कहती है, 'गुड ब्वाय', नवीन की हँसी निकल जाती है। कमरे में बैठा तनाव बड़े दरवाजे से बाहर निकल गया।
'सीज फायर', एक बच्ची।
'लड़ाई-लड़ाई बंद करो...', दूसरी बच्ची।
ग्रेवाल निम्मी को छेड़ता है -
'स्वीट हार्ट, अमेरिका से हनीमून मना कर जब वापस आओ तो मिलना जरूर।'
सब उठते है। नवीन के पाँव लड़खड़ाते हैं। मेजर अपनी बाँह के घेरे में उसके कंधों को लपेटता है, सहारा देता है। दोनों बच्चियाँ निम्मी का एक-एक हाथ पकड़े हुए है। सब बाहर निकले। मेजर और नवीन सबसे पीछे। कपिला को नवीन की आवाज साफ सुनाई दे रही है। पापा को कुछ बता रहा है, लेकिन शब्द सुनाई नहीं दे रहे? हवा उन्हें उड़ाए लिए जा रही है।
सुबह के दस बजे हैं। टैक्सी होटल के पोर्च में खड़ी है। नवीन और निम्मी अपनी काटेज से वहाँ आ रहे हैं। बच्चियाँ उनके साथ हैं। निम्मी ने फिर से जींस और गेरुआ कुर्ता पहन लिया है। नवीन ने शेव नहीं की। कपिला को लगता है कि रात के नशे की वजह से नवीन के गालों के अंगारे और सुर्ख हो गए हैं। वह टैक्सी का पिछला दरवाजा खोलता है। निम्मी अंदर बैठी। वह दरवाजा बंद कर देता है। कपिला ने सोचा, अभी दोनों के बीच गुस्से का प्रेत बैठा हुआ है। तभी नवीन उसके साथ नहीं बैठा, अगली सीट पर बैठेगा। निम्मी शीशा नीचे करती है, ग्रेवाल की ओर हाथ बढ़ाती है। मिलाती है।
'शाल ले लो', कपिला ने निम्मी को समझाया। कपिला पहली बार नोट करती है कि पापा टैक्सी से थोड़ी दूर खड़े हैं। अब इन्हें क्या हो गया? क्या इन लोगों को अलविदा नहीं कहेंगे?
नवीन कार के दरवाजे पर हाथ रखता है, निम्मी से पूछा, 'खत लिखोगी।'
निम्मी का निचला होंठ फड़कता है, दाँत चमकता है, 'नहीं' और वह खिड़की का शीशा ऊपर चढ़ा लेती है। नवीन ने ड्राइवर को पैसे दिए, और टैक्सी होटल के दरवाजे से बाहर निकल गई।
कपिला डर के मारे ग्रेवाल का हाथ पकड़ लेती है। फटी आँखों से पास खड़े नवीन को देख रही है। मेजर साहब पास आए, ग्रेवाल के हाथ से उसका हाथ छुड़ाते हैं -
'चलो बेटे, नवीन साहब को आराम करने दो।'
नवीन के कदम अपनी काटेज की ओर उठते हैं। दोनों बच्चियाँ पूछती हैं -
'अंकल, हम साथ चलें?' वह 'हाँ' में सिर हिलाता है। दोनों उसका एक-एक हाथ पकड़ लेती हैं। उसके साथ उसकी काटेज की तरफ जाती है।
मेजर साहब कपिला और ग्रेवाल को बताते हैं कि निम्मी की शादी नवीन से नहीं हो रही। जिससे हो रही है वह अमेरिका में डाक्टर है। नवीन ने रात को उन्हें सब कुछ बता दिया था। नवीन की पत्नी है, निम्मी जितनी उम्र की एक बेटी भी है। लेकिन फिर? कपिला के दिल में सवाल उठता है। पर वह पूछती नहीं। क्या सब सवालों का जवाब होता है? निम्मी तो कहती थी, दस दिन बाद हमारी शादी है। कपिला को अब याद आया कि निम्मी हमेशा हम बोलती है, मैं नहीं। सूखे पत्तों की चर्र-चर्र की आवाज आ रही है। दोनों बच्चियाँ नवीन की काटेज से अपनी काटेज की तरफ लौट रही हैं। वह हमेशा भागती हैं, चलती नहीं। दरवाजे पर खड़ी हैं। हाँफ रही हैं।
'अंकल नाराज हो गए', एक बच्ची।
'स्टैचू नहीं खेलते', दूसरी बच्ची।
कपिला खड़ी हो गई । चीख कर पूछा -
'हुआ क्या? ठीक से बताओ!
'अंकल ने छाती पर हाथ रखा। मैंने स्टैचू कहा।' एक बच्ची।
'मैने ओपन कहा। लेकिन वह हाथ उठा नहीं रहे।'
कपिला नवीन की काटेज की ओर भाग रही है। छोटे-छोटे दृश्य उसके चारों ओर उसके साथ भागते हुए। पहले दिन जब नवीन ने निम्मी को उठाना चाहा था तो निम्मी ने रोक क्यों दिया था? नवीन के चेहरे पर अंगारे क्यों दहकते थे? उसके ऊपरवाले होंठ पर हमेशा पसीना क्यों आया रहता है? निम्मी उसे धीरे चलने को क्यों कहती थी? साथ भागते दृश्यों में पहले पढ़ी टैनिसन की लाइन - मौत के भयावह गुलाब... नवीन को हार्ट अटैक... उसके अंदर का डाक्टर बताता है।
वह कमरे में पहुँचती है। सारे छोटे-छोटे दृश्य आपस में जुड़ गए और सोफे के पास गिरे नवीन के पास बैठ गए। ग्रेवाल उसका डाक्टरी बैग उठाए वहाँ पहुँच गया। बैग कपिला की तरफ बढ़ाया।
'नहीं, नवीन मर चुका है।'
'मैं कहता हूँ चेक करो। बको मत।' ग्रेवाल दहाड़ता है। मेजर साहब अंदर आते है। ग्रेवाल की बाँह पकड़ कर कहते हैं -
'ही इज डैड।'
नवीन की मुट्ठी में कागज का एक टुकड़ा। कपिला एक-एक करके उसकी कसी मुट्ठी की भरी हुई उँगलियाँ खोलती है, कागज का टुकड़ा बाहर निकालती है, पढ़ती है -
'मेरी बेटी को बुला लें...' इस वाक्य के आगे दिल्ली का टेलीफोन नंबर लिखा हुआ है।