सड़क के भीतर से निकले हाथ का अर्थ / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
सड़क के भीतर से निकले हाथ का अर्थ
प्रकाशन तिथि :26 सितम्बर 2015


सिनेमा के आविष्कार के कुछ वर्ष पश्चात ही 'कैबिनेट ऑफ डॉ. कालागैरी' नामक डरावनी फिल्म बन गई थी। 1924 में जब मनुष्य की करुणा के गायक चार्ली चैपलिन ने 'की स्टोन' कंपनी के लिए अपनी मौलिक अलसभोरनुमा फिल्में बनानी शुरू की, तब फिल्मकार पॉल वेगेनैर ने अपनी डरावनी फिल्म 'गोलेम' प्रदर्शित की, जिसकी कथा वह आधारभूमि है, जिस पर अनगिनत डरावनी हॉरर फिल्में बनी है। 'गोलेम' में पुरानी इमारत की खुदाई में भव्य मूर्ति के टूटने पर वह दैत्य में बदल जाती है और वह दैत्य भीषण नरसंहार करता है। इमारतों और वाहनों को बच्चों के खिलौनों की तरह फेंकता है और निरीह बच्चों को खिलौनों की तरह नष्ट करता है। उस अपराजेय दानव को एक सुंदर लड़की से प्रेम हो जाता है और वह लड़की उसे सेब खाने को देती है। प्रेम के नशे में गाफिल दैत्य की छाती से वह लड़की दो बटन निकाल देती है और वह दैत्य कण-कण बिखर जाता है।

संदेश यह है कि प्रेम नकारात्मकता को नष्ट कर देता है। 1933 मंे पहली बार 'किंगकांग' फिल्म की पटकथा पढ़कर निर्माता ने कहा कि इस पर अत्यंत सफल फिल्म बन सकती है, अगर हम इसमें कोई प्रेम-कथा ठंूस सकें। फिल्म की तीसरी सहायक ने सुझाव दिया कि उस विशाल वनमानुष को उस गोरी-चिट्‌टी लड़की से प्रेम हो जाए, जो एक दल की सदस्य है। यह दल वनमानुष को पकड़कर शहर ले जाना चाहता है ताकि उसे तमाशा बनाकर पैसा कमाया जा सके। वह सब जो तर्कसम्मत है और विज्ञान के सिद्धांत पर खरा उतरता है, उस वैचारिक आधुनिकता के खिलाफ डरावनी हॉरर फिल्में विद्रोह करती है और विचारहीनता के एक अन्यायपूर्ण हिंसक संसार को जन्म देती है। इस तरह की फिल्मों की भी कई श्रेणियां हैं, जिसमें विज्ञान फंतासी भी आती है। एक श्रेणी को जर्मन गॉथिक सिनेमा भी कहते हैं। भूत-प्रेत का सिनेमा भी होता है और फ्रेंकस्टाइन नामक मनुष्य का रक्त पीने वाले प्राणी का सिनेमा भी होता है। इन फिल्मों की एक सतह दार्शनिकता का स्पर्श लिए होती है मसलन 'मि जैकिल एंड हाइड' में दिन के समय सौम्य दिखने वाला व्यक्ति रात में शैतान बन जाता है। हर व्यक्ति के हृदय के कुरुक्षेत्र में अच्छाई और बुराई की जंग सतत जारी रहती है, जिसे इस्लामिक साहित्य में 'हमजाद अवधारणा' कहते हैं।

हॉरर फिल्मों की एक श्रेणी में उस भविष्य की कल्पना है, जिसमें मनुष्य मशीन द्वारा शोषित है। इस श्रेणी की महान फिल्म 'स्पेस ओडेसी 2000' है। गौरतलब है कि भविष्य की कल्पना वाली सारी फिल्मों में ऐसे देश या विश्व का आकल्पन है, जिसका शासक तानाशाह है या सर्वशक्तिमान टोटेलिटेरियन व्यक्ति हैं, जिसे तमाशे रचने का बड़ा शौक है। यहां तक कि वुडी एलेन जैसे हास्य के आवरण में व्यंग्य फिल्में बनाने वाले ने भी भविष्य आकल्पन की अपनी फिल्म 'स्लीपर 1973' में भी मशीन शासित मानवीय जीवन के राजनीतिक शासक को एक मूर्ख तानाशाह के रूप में प्रस्तुत किया है।

वर्ष 1972 में प्रदर्शित 'साइलेंट रनिंग' में वृक्षविहीन एवं सूखी नदियों के संसार का आकल्पन है, जिसका राजनीतिक शासक तानाशाह ही है। विकास की योजना के तहत सारे वृक्ष काट दिए गए हैं, बांध की अस्वाभाविक ऊंचाइयों ने नदियों को सूखा दिया है। इस फिल्म में प्रस्तुत भयावह संसार के सिर के ऊपर एक लटकती सतह है, जिसमें वृक्ष हैं, नदियां हैं परंतु कोई सीमेंट की इमारत नहीं गोयाकि स्वर्ग और नर्क दोनों का आकल्पन है। यह कितने आश्चर्य की बात है कि पश्चिमी दुनिया की सर्वकालिक सफलतम फिल्मों में डरावनी हॉरर फिल्मों की संख्या सबसे अधिक है और इस श्रेणी में विज्ञान फंतासी फिल्में भी शामिल हैं।

हमारे भारत में मायथालॉजिकल फिल्मों में कुछ डरावने दृश्य होते हैं परंतु एक स्वतंत्र विधा के रूप में एनए अंसारी की कंपनी 'बुंदेलखंड फिल्म्स' ने ढेरो हॉरर फिल्में बनाई हैं। उनके साथ ही रामसे बंधुओं ने इस विधा में अत्यंत सफल फिल्में रची हैं। विज्ञान फंतासी की हमारी सर्वश्रेष्ठ फिल्म बोनी कपूर और शेखर कपूर की 'मिस्टर इंडिया' है और इसकी जमीन भी पांचवें दशक में बनी 'मि. एक्स इन बॉम्बे' नामक फिल्म थी।

बहरहाल, कुछ दिन पूर्व ही खबर प्रकाशित हुई थी कि सड़क के किनारे एक हाथ बाहर आ गया। यह हॉरर फिल्म का शॉट लगता है परंतु यथार्थ जीवन में एक भूखाव्यक्ति सड़क पर बेहोश पड़ा था और विकास के नशे में चूर लोगों ने उस पर डामर, गिट्‌टी डालकर बुलडोजर चला दिया। सड़क किनारे नमी वाली जमीन से अभागे का हाथ ऊपर आ गया तब सड़क खोदकर मृत कुचली हुई देह निकाली गई। वह हाथ हमारे देश की असली कहानी कह रहा है, वह हाथ भविष्य का संकेत है।