सतरंगी - 1 / शुभम् श्रीवास्तव

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संजीदा–'तू कौनसी चौड़ में रहता है बे।'

संतोष बिल्कुल अपने नाम की तरह था संतोष। मध्यवर्गी घर का लड़का जिसे दीन-दुनिया से कोई मतलब नहीं था।

संतोष–'अपन ने कब तुझे चौड़ दिखाई.'

संजीदा–'देख में तेरे पास बात करने आई और तू है कि बोल के नहीं देता।'

संतोष–'मेरा मन मैं किसी से बात करूँ या ना करूँ।'

संजीदा–'ये चौड़ नहीं है तो और क्या है? सारे कॉलेज में एक भी लड़का नहीं होगा जो मेरे ठुमके पर ताली या सीटी ना बजाता हो। सब मेरे पास आकर मुझसे बात करना चाहते है, फ़ोन नंबर माँगते फिरते है और एक तू है जो मूँह बनाकर बैठा रहता है।'

संजीदा बला की खूबसूरत थी भी, आँखे नीली कद 5 फुट 5 इंच लगभग संतोष के बराबर ही आती थी। बाल सघन। पहली बार जो उसे देखता वह फिर उसी के इर्द-गिर्द मंडराता। संतोष का रूखापन उसे कोई चैलेंज से कम नहीं लग रहा था। जिसे वह जीतना चाहती थी।

नितिन जो कि संतोष का मित्र था मर्दों के बिल्कुल उलट कोमल-नाज़ुक कमसीन कली की तरह। चर्चा ये भी थी की वह गे था। जी हाँ उसका बोल-चाल ये सब बयान करता था। नितिन बोल पड़ा–'अरे! जाने भी दो इसे बाँके छोरे को कुछ तो हमारे लिए रहन दो।'

संजीदा संतोष के बेरुखी से पहले ही भन्ना रखी थी उसपर नितिन के बोल ने आग में घी का काम किया। उसने तिलमिला कर नितिन से बोला–'तो तू लेता है कि देता है या फिर यह लेता है। जो तू इसकी इतनी तरफ़दारी कर रहा है बे छक्के.'

नितिन को दो पल के लिए बुरा लगा फिर भी उसने इसे मज़ाक की तरह लिया और बोला–'तुम भी शिरकत कर सकती हो हमारी पार्टी में।'

इतने में मानवेंद्र जो की संजीदा का पक्का दोस्त था वार्तालाप में उछलकरबोलता है–'वाइब्रेटर लाऊँ या डिलडो'

'खैर मेरा नाग तेरे अंदर की हवसको शांत कर देगा और संतोष को पूरा संतोष भी मिलेगा। पूर्ण आत्म चरम सुख भी मिलेगा।'

ये सुनकर संजीदा जोर-जोर से हँसने लगी। नितिन अब बुरी तरीके से रोने लगा। यह सब होता देख संतोष को गुस्सा आया उसने मानवेंद्र की दाहिनी आँख पर घूँसा मारा। इतने में वह संभलता संतोष ने दाई लात उठाकर उसकी छाती पर दी मारी और यह सब दो सेकंड से भी कम क्षणों में हुआ। उसके ऊपर चढकर घूँसे ही घूँसे बजाने लगा। मानवेंद्र ने भी मारने की कोशिश की लेकिन नीचे दबे होने के कारण सारे वार संतोष तक नहीं पहुँच रहे थे। लोगों ने छुटाने की कोशिश की तब जाकर मामला शांत हुआ। हाँफते हुए संतोष ने बोला–'क्यों तेरे अंदर का नाग और तू इतनी जल्दी ठंडे पढ़ गए.' फिर संजीदा की तरफ मूँह कर उसने बोला–'लड़की थी बच गयी वरना कोई और होता तो अन्दर गाड़ देता जमीन के.'

उखड्ती साँसों को काबू में करने के लिए वह कैंटीन की तरफ गया नल से पानी पीने नितिन भी उसके पीछे हो लिया। '

नितिन–'अरे मेरे यार। मेरे हीरो क्या मस्त मार लगाईं तुमने।'

संतोष–'चुप–बिल्कुल चुप।'

नितिन–'अब मुझपर ना बरसो। चलो कैंटीन में कुछ मंगा कर खाते है।'

संतोष–'पैसे नहीं है अफरात के.'

नितिन–'उफ्फ। मैं भर देगा।'

दोनों ने छोले-चावल मँगवाए.

नितिन ने बताया की वह ऊँची सोसाइटी से है तो उसके परिवार की तरफ से ज़्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। उसे शुरू में दिक्कत आई पर वह अंत में अपने माता-पिता को मना लिया की वह अपनी ज़िन्दगी जीने को आज़ाद है। उसने संतोष से पूछना शुरू किया तब उसने कहानी बतानी शुरू की उसके जीवन में उसे सिर्फ़ 3 ही शौक थे पहला पढाई दूसरा क्रिकेट और तीसरा संगीत। आवाज़ भारी होने के कारण संगीतकार बनने के सपने चूर-चूर हो लिए, कद छोटा होने के कारण क्रिकेटर तो बनने से रहा अब सिर्फ़ पढाई ही एक मात्र रास्ता बचा था।

10वि ने दस्तक दी तो सोचा कि माँ-बाप का नाम रोशन करेगा पढ़-लिखकर।

मार्च में ही 3 ट्यूशन लगवा दिए विज्ञान, अंग्रेज़ी और गणित के. उसे लगता था कि इनमे अंक हासिल करना मुश्किल है।

सभी टीचर उसे विद्यालय में पढ़ाते थे उसे यकीन था कि टयूसन इनसे पढ़कर वह अच्छे अंक प्राप्त करेगा।

अंग्रेजी की क्लास शाम के 7: 30 बजे शुरू होती। अक्सर व्याकरण कमज़ोर होने के कारण धर लिया जाता। फिर खूब हँसी उड़ती उसकी। वहीँ उसके उलट एक लड़का धुऑंधार जवाब पर जवाब देता है। उसे एक पल को उससे जलन हुई. "उफ्फ! अमीर बाप की औलाद घर पर तो सभी अंग्रेज़ी बोलते होंगे इसके" संतोष के मन से निकला। तीन दिन बाद वह खुद को उसके पास बैठा पाता है। सरप्राइज टेस्ट था मरता क्या ना करता। 'यार 3सरे का उत्तर क्या है बताना ज़रा।' संतोष ने उस लड़के से बोला।

लड़के ने कुछ नहीं बोला सीधे कॉपी थोड़ी-सी साइड कर दी ताकि संतोष देख सके और अपना फिरसे लिखने लग गया। ऐसे रुख से संतोष झेप गया। उसे लगा था कि यह लड़का कुछ बोलेगा लेकिन हुआ कुछ नहीं वह उससे उसका नाम पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इस ज़माने में ना तो कोई स्मार्टफोन था ना ही फेसबुक का इतना चलन। चुप-चाप वह उत्तर टीपने लग गया।

समय के साथ उसमे चाह बढ़ने लगी उसके प्रति वह रोज उसके बगल बैठने लग गया। उससे इधर-उधर की बाते करता फिर मित्रता सघन होती चली गई.

जुलाई 2009

विद्यालय में विज्ञान का 8वा पाठ खुला नाम था 'प्रजनन प्रक्रिया'। उसे पढ़कर वह सोच में पढ़ गया। नेट पर गया तो खोजा क्यों उसे किसी पुरुष की तरफ आकर्षण हुआ और स्त्री की तरफ नहीं। डोनट में हॉट डॉग जाता है यहाँ तो दो-दो हॉट डॉग हो गए. शर्म से वह बेहाल हो गया खुदा से पूछा क्या बवाल है अपने अन्दर की बेचैनी छुपाने के लिए उसने धीरे-धीरे खुद को उस लड़के से अलग किया और बाद में उसने अपने टयूसन के दिन बदल लिए.

यह सुनकर नितिन हँसने लग गया।

नितिन–'भाई कमाल हो तुम, हॉट-डॉग, डोनट' हँसते-हँसते 2-3 मिनट हो गए फिर बोला कि 'भाई' तुम्हें नहीं छोड़ना चाहिए था, दुनिया में लगभग 500-600 प्रजाति और है जिसमें समलैंगिक रिश्ते बनते है। यह बिल्कुल प्राकृतिक है। '

संतोष–'हाँ, हाँ मुझे मत सिखा उस वक़्त इतना नेट वाला फ़ोन नहीं होता था ना ही इतनी जानकारी थी मीडिया में।'

नितिन–'तब तो तुमने पोर्न भी नहीं देखी होगी 10वी तक।'

संतोष–'जी हाँ।'

नितिन–'क्या पाक-साफ़ था वह प्यार तुम्हारा। हाय हमें नहीं कभी क्यों ऐसे।'

संतोष–'चल ज़्यादा मीठी बाते ना कर।'

नितिन झेपते हुए–'कभी किसी को छुआ भी है तुमने या फिर ऐसे ही ब्रह्मचर्य में बैठे हो?'

संतोष-'भाई तुमने तो सीधे-सीधे पूछ लिया पर एक बार मुझे एक लड़के ने पूछ लिया की लड़की के पास कितने छेद होते है और मैंने कह दिए दो। फिर सब हँस पड़े मैंने फिर सोचा क्या हुआ?'

इतने में फिर नितिन हँसा और बोला–'जोकर हो तुम बहुत बड़े।' साँसे इक्कठी कर उसने बोला 'अब पता है कि नहीं?'

संतोष– 'हम्म'

नितिन–'अब कैसे पता चला?'

संतोष–'मैं वर्जिन नहीं हूँ।'

नितिन–'अच्छा, तुम्हारा मनपसंद रंग कौनसा है?'

संतोष–'लाल और नीला, तुम्हारा?'

नितिन–'काला और फेवरेट पिक्चर?'

संतोष–'इमीटेशन गेम, तुम्हारी?'

नितिन–'टाइटैनिक।'

संतोष–'अब चले दिमाग खप रहा है मेरा।'

नितिन–'यार रुक मुझे कुछ पूछना है?'

संतोष–'हाँ, पूछ।'

नितिन–'तूने इतनी सोनी कुड़ी को ना क्यों किया?'

संतोष–'क्योंकि मुझे ऐसी लड़की पसंद है जो मर्दानाहो, जिसमे मर्दों वाले गुण हो, इंडिपेंडेंट लाइक दोमिनेटिंग लेस्बियन।'

नितिन–'पर तुम्हारा पहला प्यार तो एक लड़का था फिर?'

संतोष–'यार! ज़िन्दगी बहुत बड़ी है, जिम्मेदारी है और तुम सब पता नहीं कैसे हाँ कर देते हो, अभी तो मैं खुद से मिला नहीं किसी को कैसे हाँ कर दू।' संतोष उठकर चल देता है।

'तुम अच्छे से जानते हो तुम क्या चाहते हो जिस दिन तुम अपने आप से भागना बंद करोगे तब तुम्हें तुम्हारा प्यार मिलेगा।' नितिन ने उठ कर बोला।

संतोष–'तुम्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं है कि तुम किस रूढ़िवादी समाज का हिस्सा हो। इमीटेशन गेम मूवी देखो जो एलन ट्यूरिंग के साथ हुआ वह हमारे साथ भी हो सकता है। सो दूर रहना मुझसे और हाँ मैं स्ट्रैट हूँ अपने दिमाग में डाल लेना।'

नितिन–'चल बे झूठे याद रख मेरी बात मुझसे तू बचके भाग लेगा पर अपने आप से बचके भाग लेगा पर अपने आप से बचके नहीं भाग पाएगा।' संतोष ने घूमकर आँखे तरेर दी और वहाँ से चला गया। '

समय बीतता गया वह जब भी किसी को डेट करना चाहता हमेशा कुछ ना कुछ उसके भीतर ऐसा मचता की वह वहाँ से चला जाता। अब बात को 6 साल हो गए, हजारो कोशिशों के बाद भी कुछ ख़ास नहीं हो पाता घर वाले जब शादी की बात करते तब झेप जाता। सको लगता की लड़का भोला है पर लड़के का अंतर्मन व्यथित रहता ये सब सोच-सोचकर।

10 जनवरी, 2018

7 बजे सुबह उठकर संतोष का दिमाग चकराने लगा खाँसी आने लगी और उसमे से खून बहनें लगा।

वहीँ चकराकर गिर गया। एक घंटे बाद होश आया तो अपने आप को बाथरूम में गिरा पाता है। माँ के साथ अस्पताल गया तो चिकित्सक से बताया क्षयरोग है। समय के साथ वह कमजोर होता चला जाएगा अगर ठीक से इलाज नहीं हुआ तो।

अगस्त, 2018

बीमारी अपने प्रचंड रूप पर पहुँच गई. जब क्लिनिक का इलाज असफल हुआ तो अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा बेहोसी की हालत में।

आँखे खुली तो सामने देखता है कि यह डॉक्टर कुछ जाना पहचाना लग रहा है मास्क लगे होने के कारण कुछ पूछ नहीं पाता है। हालत थोड़ी सुधरी तो डॉक्टर से सबसे पहले पूछा–'क्या तुम 10वी में बजाज सर के यहाँ पर अंग्रेज़ी पढते थे।'

डॉक्टर–'हाँ, पर तुम्हें कैसे पता।'

संतोष–'मैं भी वहाँ पढ़ता था। देखो दुनिया सच में बहुत छोटी कहाँ आकर मिले।'

डॉक्टर-'हाँ, मुझे भी तुम जाने–पहचाने लगे पर दिमाग में नहीं आया।'

संतोष–'नाम क्या है तुम्हारा?'

डॉक्टर– 'सुमित'

संतोष–'चलो, बढ़िया है।'

समय बीतता गया संतोष को लगा कि उसे बताया जाए या नहीं। समय और हालत साथ नहीं दी रहे थे। जैसे दीये की लौ प्रबल रूप से प्रज्वलित हो उठती है उसी प्रकार उसकी हालत भी पहले सुधरी फिर गिरने लगी।

5 सितंबर, 2018

हालत इतनी सीरियस हो गई की वह बेहोसी और बदहाली में रहना अक्सर चीज़े भूल जाने लगा। साँसे धीमी होने लगी और खून की उल्टी होने लगी। आज उसने ठान ली की मैं सुमित को बता के रहेगा अपने मन की बात।

12 बजे सुमित के चेक-अप के लिए आते ही उसने सुमित से बोला–'मैं तुमसे कहना चाहता हूँ।'

सुमित–'बोलो।'

संतोष–'तुम मेरा सबसे पहला प्यार थे। कई दिन तक मैं तुम्हारे बारे में सोचता रहता था। तुम तो डॉक्टर हो अब उम्मीद है तुम समझोगे की यह प्राकृतिक है।'

सुमित–'हम्म। मेरी शादी हो चुकी है अब।'

सुमित घबराया हुआ था उसके चेहरे पर विश्मय का भाव उत्पन्न होने लगा था। वह वहाँ से चला गया।

सितम्बर 6, 2018

संतोष की हालत अत्यंत नाजुक हो चली। वह अब सिर्फ़ अपनी माँ और सुमित को पहचान रहा था। सब उसकी यादों से मिट चुके थे। उसे अपनी ज़िन्दगी रिवाइंड मोड पर चलती हुई दिख रही थी। रह-रहकर बाते याद आती। हालत बिगडती देख सुमित ने उसे एक खुसखबरी सुनाने का फैसला लिया। वह सीधा संतोष के पास गया और बोला–

'सुनो आज सुप्रीम कोर्ट ने समलेंगिक सम्बंधो को क़ानूनी तौर पर मान्यता मिल गई है। अब कोई समलेंगिक अपराधी नहीं माना जाएगा।'

संतोष के चेहरे पर मुस्कान आई उसने अपना हाथ सुमित के हाथ में रख दिया।

संतोष–'सुनकर ख़ुशी हुई.'

सुमित ने उसकी आँखों में देखा फिर उसके होठ को चूम कर बोला–'प्यार प्यार है।'

संतोष ने आँखे बंद की उसके-उसके चेहरे पर विराना सुकून था। सुमित थोड़ी देर बाद वहाँ से चला गया रात के 3: 14 मिनट पर संतोष ने दम तोड़ दिया। डॉक्टर के ना होने के कारण किसी को उसके जाने का भान किसी को नहीं हो सका। नर्सो ने कोशिश की पर सफलता नहीं मिली।