सतरंगी - 2 / शुभम् श्रीवास्तव

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6 सितंबर 2018

मैंने चैन की साँस ली। अब तक जो छुपाया था सबसे अब में खुल के बता सकता हूँ। हाँ, मैं क़ुईर हूँ। ऐसे परिवार से तालुक रखता हूँ जहाँ पर लव मैरिज करना लगभग नामुमकिन है। बिल तो पास हो गया। अब हम समाज की नज़रों में मुजरिम नहीं थे। लेकिन समाज अभी भी दो बयार मैं बह रहा था। एक पूर्व से पश्चिम की ओर जैसे गंगा और दूसरा पश्चिम से पूर्व की ओर जैसे नर्मदा। दोनों का अपना अस्तित्व है और एक दूसरे पर हावी ना होने देना ही लोकतंत्र है। खैर एक नई आई0डी0 बनाई सारे रिश्तेदारों से छुपकर। लोगो से मिला नर्मदा की सोच वाले। हम सब खुश हुए. एक नया घर मिला एक नया संसार। हम उस जगह से थे जहाँ आधी आबादी अभी नारीवाद के बारे में पूर्णरूप से सजग नहीं थी तो इतने तिलस्मी चीज़ को समझने में सदियाँ लगने वाली थी। खैर कोर्ट ने इसे प्राकृतिक माना यही सुकून देता है। मुझे इसपर राजनीति नहीं करनी मैं खुश हूँ अपना हक़ पाकर। मुझे कई मेरी सोच वाले दोस्त मिले जिनसे मैं बात कर सकता हूँ। खैर 26वा लग गया है और शादी की बात चलने लगी। रिश्ते ढूंढे जाने लगे। दूर-दूर से रिश्ते आने लगे खूबसूरत लड़की, पढ़ी लिखी, पैसे वाले घर की। एक के बाद एक को ना करने के बाद लोगों ने मुझे घमंडी समझा। कई लोगों ने अड़ियल। कितनो ने यह कहा कि 13 लाख कमाते हो 13 करोड़ नहीं तो अपनी अकढ़पन कम करो। शायद वह मुझे नहीं समझ सकते थे। में उन्हें समझाना भी नहीं चाहता था। यह मेरी ज़िन्दगी है। मेरे जूते वह नहीं पहन सकते और ना मैं उनके. जी हाँ मैं अमन जिसकी ज़िन्दगी में अमन नहीं है। चारो ओर उथल पुथल है। लफडो से भरी ज़िन्दगी एक इन्वेस्टमेंट बैंकर। कान में कुंडल नहीं पहन सकता। हाथ में नेल पोलिश नहीं लगा सकता। लोगो से ही काम निकलता है मेरा। कुछ आशाएँ दब जाएँगी शायद क्योकि कई बार रोटी और आकांक्षाए एक साथ नहीं चल सकती। एक को तोह घुटने टेकने पड़ते है। शनिवार ही हफ्ते का ऐसा दिन है जहाँ पर मैं खुल के सब कुछ कर सकता हूँ। कुछ सुकून के पल।

रंजीत-'अरे अमन किधर खोये हुए हो?'

अमन–'क्या बताए यार घर वाले शादी करवाना चाहते है। अजब ही लगी पड़ी है।'

रंजीत ने हँसकर कहा-'अरे मेरे शेर बस इतनी-सी बात। किसी मैट्रिमोनियल साइट पर रिस्ता डाल उसमें लिख की तू कुईर है। तेरे लिए क्या दिक्कत। दिक्कत तो हमें है जिन्हें लड़के-लडक़े में शादी करनी है या लड़की-लड़की में। तुम तो ऐश करो। सब कुछ ट्रांसपेरेंट रखना। भले ही शादी समाज की नज़रों में ठीक रहेगी पर तुम्हारी मौज कटेगी। क्या पूरी जाती में एक भी कुईर ना हो ऐसा हो सकता है क्या।'

अमन चौंककर बोला-' रे हलकट! ये किधर से आया तेरे भेजे में, क्या रापचिक आइडिया है। मौजा ही मौजा। दोनों ने रम मंगाई और पीने लगे। कुछ समय बाद दोनों कॉकटेल फ़िल्म के गाने पर थिरक रहे थे।

' जब यार करे परवाह मेरी, मुझे क्या परवाह इस दुनिया की, जग मुझपे लगाए पाबंदी, मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की।

तुम्हीं दिन चढ़े, तुम्हीं दिन ढले, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्हीं। '

नाच-नाच कर थक चुके दोनों रंजीत के घर गए. सुबह उठे तो एक साथ बेड पर पड़े थे।

'अबे कितनी बार हो चुका हैं ये हमारा?' अमन ने पूछा

रंजीत-'बड़े हराम हो साले, हाय किस हरजाई को दिल दे डाला मैंने।'

अमन-'चल-चल ड्रामे न कर।'

रंजीत-'6 बार। तेरी बीवी आएगी ना छमिये। तेरी बहुत लंका लगाएगी।'

अमन-'चल-चल' कहकर उठ गया और घर निकलने की तैयारी करने लगा।

रास्ते में उसने कई मैट्रीनमोनी वेबसाइट पर एका एक इस्तेहार डाल दिये।


डेटिंग साइट से करीब 2-3 महीने तक चली बहुतों नेना कर दी। फिर मिली चंचल नाम और स्वभाव दोनो से एक जैसी. खुशमिजाज और चटक चेहरे से लगता ही नहीं था कि वह इन सब में लिप्त हो।

घुंगराले बाल, सांवरी-सलोनी, स्टाइल सबसे अलग। पहली डेट स्टार-बक्स पर हुई.

दोनों मिले।

चंचल ने पूछा-'तुम्हें कब पता चला ...की तुम।'

अमन-'अरे। चटक मिज़ाज लड़की के आज लफ्ज़ खो गए. बताता हूँ जब 10वी में था तो पहला प्यार हुआ वह भी एक लड़के से मुझे उस वक़्त कुछ समझ नहीं आया। फिर समय बीत ता गया धीरे-धीरे नेट पर खोजा जाना कि क्या होता है, यह सब देखते ही देखते हो चला। तुमनें कब महसूस किया कि तुम बाइसेक्सयूएल हो?'

चंचल-'मैं ना डरती किसी से आखिर है तू इंसान ही खा थोड़े जाएगा। हाँ बचपन से है 11वी में एक लड़की पटाई 12वी में लड़का। लेकिन कॉलेज में कसम से तेरे जैसे को मैं पूछती भी ना थी। ये तो घरवाले शादी के लिए परेशान कर रहे हैं इसलिए तेरे दोहरे आना पड़ा।'

अमन-'वो! वो! वो! मैम फुल्ल सविंग में आ गई.'

चंचल-'ये कुत्तों की तरह का भेजा मत खा' वो! वो! वो! 'और ये फेवरेट वाला कुछ भीना पूछना इधर कसम से बोर होरे ली मैं। सब डाल रखा है मैंने अपना फेसबुक और इंस्टा पर तेरा मैंने पढ़ लिया है। उम्मीद है तूने मेरा पढ़ा ही होगा।'

अमन-'हाँ मोहतरमा साहिब। पर मुझे कुछ बोलने मिलेगा'

चंचल-'रे छोकरे मैंने कब रोका बोल-बोल।'

अमन-'तुम्हें मुझ में अब तक क्या पसंद आया?'

चंचल-'तू सोना मुंडा है देखा जो तुझे यार दिल में बजी गिटार। तेरे से पहली बार चैट करी तब से ही लगाव हो गया था। पूरा पति मटीरियल है। शांत सा। ज़्यादा मेहनत भी नहीं लगनी। हाँ एक और बात तेरे होंठ की बाई तरफ ऊपर और नीचे तिल है जो बड़ा सेक्सी लगता है और तारीफ न होती मुझ से मेरे बारे में भी तो कुछ बोल।'

अमन की आँखे अचंभे मैं बड़ी हो गई.

'मेरी पूरी ज़िन्दगी में मुझे लड़की या लड़के ने इस कदर स्कैन नहीं किया'-अमन ने मन में बोला।

चंचल-'हाँ हाँ अब तेरी बारी बोल-बोल।'

अमन अब विकल हो गया।

कुछ अच्छा निकले इसलिए बोला-'अभी स्कैन कर रहा हूँ।'

चंचल-'ओ! हो! देखो मगर प्यार से।'

अमन मुस्का कर कहता है-'तुम्हारी नीली आँखे, तुम्हारे चलने का तरीका, हर पाँच मिनट में यू बाँलो पर हाथ फेरना और ब्यूटी स्पॉट पर तिल। कितने ही मर मिटे होंगे तुझ पर।'

चंचल-'भाई-वाह'

एक चटक मिज़ाज और दूसरा शांत स्वभाव दोनों में गहन मित्रता हो गई. शादी की ज़रूरत थी एक जाति के भी ज़रूरत भी और समझदारी भी ऐसे कारनामे 21 वी सदी में ही हो सकते थे।

10 महीने बाद

चंचल-'अच्छा शादी से पहले के कुछ रूल्स।'

अमन-'जी महारानी साहिबा बोले।'

चंचल-'हम दोनों घर में आधा-आधा पैसा मिलाएंगे।'

अमन-'ज़रूर इससे अच्छा क्या होगा?'

चंचल-'हम दोनों कभी एक दूसरे की सेक्सुअलिटी का न तो रोड़ा बनेंगे। न कभी किसी और को इसके बारे में बताएंगे।'

अमन-'इसलिए ही तो हम संग है। अपने परिवार का काट रहे है।'

चंचल-'हाँ ठीक है तीसरा, कोई पार्टी-शॉर्टी पर रोक नहीं होंगी।'

अमन-'हाँ, चौथा की तुम्हारे घर वाले मेरे घर वाले और मेरे घरवाले तुम्हारे।'

चंचल-'हाँ, पाँचवा की अब कोई और रूल नहीं है।'

अमन-'चलो, बुरे काम एक साथ करे।'

8 महीने के बाद शादी हुई लेकिन सिर्फ़ नाम की दोनों ने एक-दूसरे की, आज़ादी में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। पार्टी, पब सब होता था कोई रोक नहीं। शादी के बीते हुए 5-6 महीने हुए ही थे। अब चंचल का मन बदलने लगा। उसे अमन का लेट आना पसंद नहीं था। वह हर बार पूछती किधर था। कोई लड़की या लड़का अमन के साथ दिखा नहीं कि चंचल की वहीं खोपड़ी सटक जाती।

अमन-'यार तुमहारे बदलते बर्ताव से परेशान हो गया हूँ। कसम से ये सब कब से होने लग गया हमारे बीच में।'

चंचल-'तुम्हें कुछ ज़िम्मेदारी तो होनीचाहिए. मैं सोचती हूँ अब आ रहे हो, अब आ रहे हो। मैं साथ मैं बैठकर भोजन खाना चाहती हूँ। यह सिर्फ़ हफ़्ते में 2-3 बार होता है।'

अमन-'यार बात करने के लिए दोस्त नहीं हैं क्या?'

चंचल-'दोस्त है पर मैं अपने पति वाले दोस्त को याद कर रहीं हूँ।'

अमन-'हुज़ूर शादी के बाहर की ज़िंदगी भी है और तुम्हें पता है मैं बैंकर हूँ। मेरा समय क्लाइंट फॉलोअप में जाता है।'

चंचल-'मुझे पता है तुम्हारा सारा फॉलोअप रोज़ नए लोग बिस्तर पर'।

अमन-'हमने तय किया था कि हम एक दूसरे की आज़ादी का रोड़ा नहीं बनेंगे और मैंने तुम्हें कब रोका एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर्स से जो तुम मुझे रोक रही हो।'

चंचल को गुस्सा आया उसने काँच का ग्लास उठाकर दीवार पर दे मारा।

चंचल-'मैं भी इंसान हूँ रोज तम्हारी राह तकती रहूँ यह मेरे बस का नहीं है।'

अमन-'गोश! यह ट्रेडिशनल शादीशुदा ज़िन्दगी वाली लड़ाई मुझसे नहीं होगी।'

चंचल-'मैं लड़ाई नहीं कर रहीं हूँ। मुझे अपनी बात पहली बार तुम्हें ज़िन्दगी में समझानी पढ़ रही है। मैंने कसम से शादी क्यों की।'

अमन को गुस्सा आ गया उसने तैश में आकर हाथ उठा दिया लेकिन चंचल को मारा नहीं।

चंचल सहम गई अब उसने झुंझुलाहट में भागकर बैडरूम में खुद को बंद करने की कोशिश की। अमन भी भागकर गया कि डर के मारे आत्महत्या ना कर ले चंचल। रूम में उसके दरवाज़ा लगाने से पहले घुसता है। फिर चंचल अमन की छाती पर दोनों हाथों से मारने की कोशिश करती है। अमन उसे संभालने की कोशिश करता है। फिर उसके माथे को चूमकर उसके होंठो को चूमता है। गले लगाकर कहता है कि यह हाथ हमेशा तुम्हे बचाने के लिए उठेंगे ना कि तुम्हें मारने के लिए.

चंचल ने आँसू पोछ कर बोला-'दम घोटेगा क्या मेरा छोड़'

अमन ने उसे छोड़ा तो चंचल ने कहा-'सुन साले इतनी आसानी से नहीं छोडूंगी। 7 दिन तू बाहर से खाना लाकर खाएगा। मैं ऑफिस से आकर तेरे लिए खाना पकाऊ ऊपर से तेरे नखरे ये नहीं चलेगा। चर्बी जो चढ़ी है तेरे खोपड़े में तेरे जब उतरेगी तब तुझे मेरी कीमत पता चलेगी।'

अमन-'मंजूर मालिकाए आज़म।'

चंचल हँस दी। फिर बोली-'मुझे हर प्लान में तेरे शामिल होना है और तू मेरे हर प्लान में शामिल होगा।'

अमन-'ठीक है लेकिन मैं तेरी किट्टी पार्टी मैं थोड़ी आने वाला।'

चंचल-'साले कितनो के साथ महीने भर में तू सोता है बता?'

अमन-'आपका पति स्टड है 50-60 में कम से कम मन भरेगा।'

चंचल-'चलबे।'

अमन-'मेरे 3 ही दोस्त है उन सबसे तुम मिल रखी हो।'

चंचल ने अमन की आँखों में देखा फिर उसके हाथ पर हाथ रखकर बोला-'तुम मेरी ज़रूरत हो।'

अमन ने उसे अपनी बाहों में भर के बोला-'तुम मेरी ज़िंदगी हो।'

इतने में चंचल का मोबाइल बजा-'उसकी चाची ने उसे जन्मदिन की बधाई दी।'

अमन भूल ही गया था कि चंचल का जन्मदिन है। अब उसे महसूस हुआ कि चंचल का गुस्सा जायज़ था।