सत्ता / गोपाल चौधरी
मैं हूँ सत्ता! मुझे जानते ही होंगे। अगर नहीं तो जान लीजिये। आप ने ही तो चुना है मुझे। आपको अपने बारे में बताने की जरूरत नहीं है। फिर भी इतना कहना है कि एक तो उसकी सत्ता है, ऊपरवाले की और दूसरी मेरी। यहाँ इस जमीन पर। कारत की सर जमी!
पर अगर जानना नहीं चाहते, तो भी जानने की आदत डाल लें। अब भी नहीं पहचाना? मैं केवल सत्ता वाली सत्ता नहीं हूँ। जो, वह कहते हैं न अंग्रेजी मे कि पूर्ण सत्ता पूर्ण रूप से खराब करती है। मैं तो वह वाली सत्ता हूँ जो देश में पहली बार इतना बड़ा जनादेश ले कर आया है और इस जनादेश का सम्मान करूंगा। सारे वादों को पूरा करूंगा। उनका दिल नहीं तोड़ूँगा जिन्होने मुझे इतने बहुमत से जीताया है। उनका विश्वास तो कभी नहीं तोड़ूँगा। हाँ अगर फिर भी टूट जाये तो इसमे क्या कर सकता हूँ।
भाइयों और बहनों! देवियों और सज्जनों! आपने देखा ही होगा मेरे आते ही कारत बदलने लगा है। एक नए कारत का आगाज हो रहा है! जब मुखड़ा ही इतना अच्छे दिन का सौगात लिए है, तो अंतरा कैसे होगा! ओ भाई! अब तो पहचान लिया होगा। अच्छे दिन? आ रहे हैं...सब बोलो ज़ोर से बोलो। स्वच्छता, जन धन, जगमग करती, नए करवटें लेती विदेश नीति। नोट बंदी पर थोड़ी तकलीफ हुई होगी। पर अब तो आराम हैं न! दवा चाहे कैसी भी हो, कड़वी तो होती है। थोड़ी बहुत।
पर आज मैं आपसे मुखातिब हूँ सत्ता की हैसियत से नहीं। न ही मेरा ऐसा कोई मकसद है। मैं तो बस एक व्यक्ति, एक शख्स की शख्सियत को लेकर आपके सामने हाजिर हुआ हूँ। इसने मुझे झकझोर कर रख दिया है।
सत्ता को पहली बार चुनौती इसी शख्स ने दी थी। किसी मकसद से नहीं, किसी दलगत राजनीति के तहत नहीं। ना ही किसी अभिमान या इगो ट्रिप के कारण। हालाकि पहले पहल मैंने सोचा, ये सारे कारण थे उसका मेरे से विरोध का। पर नहीं, बाद में एहसास हुआ। ये तो उसका देश, समाज और दुनिया के प्रति उसकी प्रतिबद्धता थी। सहज प्रेम था।
सब से पहली चुनौती अगर वह था, तो बाद में सबसे बड़ा सहारा भी बना। मुझे कोई संकोच या इगो प्रोबलम नहीं है। इस मामले। बाद में तो वह-वह मेरी सरकार, मेरी नीति व कार्यों का समर्थन करने लगा। देश-विदेश के अहम मुद्दों पर मदद करने लगा।
मैंने पब्लिक मे, जैसे अर्णव दा को, जब वे राष्ट्रपति पद की सेवा से निवृत हो रहे थे, तो उनके अहसानों, सुझावों और मार्ग-निर्देशिकाओं को स्वीकार किया था। वैसे ही इस कोपाल के बारे में खुलेआम घोषणा कर रहा हूँ।
भाइयो और बहनो! उसने मुझे बहुत वैचारिक और आत्मिक बल दिया। जब सब तरफ से मैं विरोधियो और षड्यंत्रकारियों से घिरा था, तब उसने मेरी मदद की थी। जैसे अर्णव दा के लिए किया था पब्लिक में घोषणा वैसे ही मैं उसके लिए भी करना चाहता हूँ। पर ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि वह किसी तरह की प्रशंसा नहीं चाहता। न नाम, धन और न ही यश।
वह तो मुझसे मिलना भी नहीं चाहता। मैंने कई बार कोशिश की। पर वह नहीं मिला। सभी मुझसे मिलने के लिए लालायित रहते। पता नहीं क्या-क्या हथकंडे अपनाते है! एक आप हैं जो मिलना नहीं चाहते। वरना सत्ता की एक झलक पाने के लिए, उसका साया, उसकी छत्रछाया में आने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते!
उन्हीं दिनों की बात जब नया-नया सत्ता संभाला था। हर तरफ कितना विरोध हुआ! इसने भी किया। पर रचनात्मक व सृर्जनात्म्क विरोध। केवल विरोध के लिए ही विरोध नहीं होता उसका! जैसा कि अन्य कर रहे होते। वह तो देश और समाज के पति प्रतिबद्धता दिखाते हुए रचनात्मक और वैधानिक विरोध कर रहा होता। इससे मैं काफी कुछ सीखा और जाना, तथा इसे कार्यान्वित करने की भी कोशिश की।
हालाकि पहले तो मेरा और मेरे मंत्रोमंडल के मंत्रियों का सोशल मीडिया पर जाना मुश्किल कर दिया था। वह ऐसा विरोध करता, कुछ ऐसा कह देता की हमे वहाँ से जाना पड़ता! मैंने उसे खोजने की खूब कोशिश की। उसको ट्रैक और ट्रएप करने के लिए क्या-क्या नहीं किया।
सभी सोश्ल मीडिया पर ट्रैकिंग सॉफ्टवेर बनवा कर डाले गए। ट्रोल्लिंग, ट्रेलिङ्ग, लोकशन पता करने की कोशिशें की जाने लगीं। आईपी एड्रैस आदि सभी छान मारे। पर वह कही नहीं मिला। पुलिस, खुफिया तंत्र, सोशल मीडिया के सीईओ को जासूस बना कर छोड़ा। फिर भी नहीं मिला। एक कमसिन आर जे, एक स्मार्ट महिला ज्योतिषी को भी उसके पीछे लगाया। पर वह तो किसी के झांसे में नहीं आता। पता नहीं किस मिट्टी का बना हुआ है!
बिग ब्रदर इज वाचिंग के जमाने मे, तकनलाजी और तकनीक के इस युग, इतने विशेष और गहन चौकसी के बावजूद भी वह हमारी पकड़ में नहीं आया। एक दिन हमारे प्रतिद्वंदी, फांग्रेस पार्टी विरोधी उसके क्वित को देखा। मैं और कमित शाह उसे फालों करने लगे। हमने तो सोचा था, चलो हमारा समर्थक बन जाएगा और अपने डीपी पर लगा देगा: ' प्रौड टु बी फॉलोड बाइ सत्ता और कामित शाह।
पर उसकी हिमाकत तो देखिये! वह नहीं चाहता होता कि हम उसको फॉलो करें। हम जिसे फॉलो करते है, वह तर जात है इस वर्चुअल और नॉन-वर्चुयल दुनिया मे और कोपाल ने ऐसा क्वित किया कि क्वित्तर के उसके अकाउंट से मुझे और कमित शाह को जाना पड़ा! उसने कहा था: ' बाइ-बाइ पॉलिटिकल क्वीत। सत्ता एंड कमित शाह इज फॉलोइंग मी।
उसके अकाउंट को ओबाबा और उसके सलाहकर फॉलो कर रहे होते। पूरी दुनिया में खबर फैल गई। कारत में अभिव्यक्ति की स्वतनतरता पर ऐसे भी रोक लगाई जाती है। उन्होने री-क्वीत कर इसे दुनिया के सारे हिस्से में प्रचारित कर दिया।
यही पर तो मेरे लंबे हाथ बंध जाते हैं! उसे दुनिया की नामी-गिरामी हस्तियाँ, प्रेसीडेंट और राष्ट्राध्यक्ष फॉलो कर रहे होते। नहीं तो कब का उसे दबोचे होता! पर वह वैसे भी तो हाथ नहीं आ पा रहा होता। अभी तक उसका लोकेशन तक नहीं पता चल पाया है! उस पर से ओबाबा आ रहा है। 26 फरवरी के अवसर पर। पूरी दुनिया को कारत की शक्ति का अंदाजा लग जाएगा।
पर वह कहीं ऐसा वैसा न बोल दे जैसा कि कसिया के प्रेसिडेंट, कुटीन के आने पर बोला था: 'कुटीन साहेब! प्लीज टीच कारतीयन रुलिङ्ग एलिट एज़ हाउ टु कंट्रोल ओलीगारकी अँड करतिए क्रोनी कपिटलिस्ट बाइ जेलिंग अँड एक्सिलिंग देम।'
पर मेरे डर को धता बताते हुए वह आया ही नहीं। फिर वह दिखा ही नहीं। शायद उसने मेरे मन की बात सुन ली थी। उस दिन मुझे बहुत अच्छा लगा जब उसने सोश्ल मीडिया पर आना बंद कर दिया और मैंने मन ही मन में उससे ये कहा कि कुछ दिनों के लिए वह ना आए और ऐसा ही हुआ। वह नहीं आया।
फिर जब आया तो मेरे कारण सबसे लड़ गया। उससे भी जिससे हम सोचते होते वह जुड़ा हुआ है। बहुत अच्छा लगा। सब जगह मेरी धूम मच गई। यहाँ तक कि के एस-एस के मुखयालया से बधाई मिलने लगी और विरोधियों को जीतने के लिए मुझे अलग से बधाई दी जाने लगी।
फिर तो वह मुझे प्रधानमंत्री पद की गरिमा पुनः बहाल करने के लिए धन्यवाद देने लगा। आपको तो पता ही होगा किस तरह मौन सिंह ने प्रधानमंती पद की गरिमा को गौण कर दिया था और कोनिया कांधी के यहाँ गिरवी रख दिया था और मेरा 55 इंच का सीना चौड़ा हो कर 58 हो जाता। उस पर से उसके 55 इंच वाले क्वित जो उसने क्वित्तर पर करना शुरू कर दिया था, उसने तो मुझे चारों खाने चित ही कर दिया! कसम माता भवानी की! फेंक नहीं रहा हूँ मैं!
सबसे बड़ी बात यह हुई कि वह विदेश और घरेलू नीति पर मुझे अंतर्दृष्टि देने लगा। कई मामलों में तो उसने नयी दिशा और दशा प्रदान की। उसके कई क्वित के बाद मैंने काफी बड़े-बड़े अहम निर्णय लिए, विभिन्न मुद्दों पर। कई मामलों पर तो उसके विचार जानने को उत्सुक रहने लगा और बेसब्री से इंतजार करते होता उसके क्वितो का। मेरे अलावे देश विदेश के लोग विभिन्न मुद्दों और समस्याओ पर उसकी राय जानने की प्रतीक्षा करते होते।
पर अब वह क्वित्तर तथा अन्य फॉरम पर सरककर की सहायता करने लगा था। जहाँ कहीं मैं या सरकार फँसती होती, किसी मुद्दे पर उलझती होती, वह आ कर हमे उबार देता। बिहार चुनाव के समय तथा गाय के मुद्दे पर थोड़ा भड़का था। पर बाद में ठीक हो गया।
उसकी दूसरी खासियत थी उसके कहने की शैली। किसी बात को कहने, रखने का उसका अपना ही अंदाज़ होता और कुछ इस लहजे में बातों को रखता होता कि बरबस हंसी आ ही जाती। केकरीवाल और मौन सिंह पर उसके प्राक्कथन पर तो हंसते-हंसते पेट में बल पड़ जाते। मैं भी उसके मज़ाक पर सराहना किए बिना नहीं रह पाता। अपनी हँसती हुई तस्वीर पोस्ट कर देता क्वित्तर पर।
फिर उस दिन मुझे बहुत अच्छा लगा! जब पता चला कि कोपाल देश छोड़ कर चला गया है। पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। कई लोगों और एजेंसीयों से इसकी पुष्टि की। फिर कायमा के गानो और उसके रेडियो कार्यक्रमों के तमाम रिकॉर्डिंग भी छान मारे! तब जाकर थोड़ी राहत मिली। क्योंकि जाट मरा तो तभी समझा जाता है जब उसकी तेरहवीं हो जाती है और वह तो जाटों का जाट! चौधरी का चौधरी! पर अब वह देश में नहीं है।
वैसे तो वह हमारा समर्थक बन गया है। पर उसके के बारे ने कुछ भी नहीं कहा जा सकता। ऊंट किस करवट बैठेगा पता नहीं। वैसा ही कुछ है वो! उसके पास दो तीन मुद्दे ऐसे है जिस पर वह जन आंदोलन छेड सकता है! कभी भी। अगर चाहे तो मुझे भी किसी भी तरह की चुनौती दे सकता है।
हालाकि उसने खुले आम कहा हुआ है: वह केवल एक लेखक है और कुछ भी नही। उसने लोगों को भरोसा दिलाया है कि उसके विचरों और तेवर से डरने की जरूरत नहीं है। वह तो कलम का सिपाही है। पर भरोसा नहीं है उसका कि कब बंदूक उठा ले! क़ब कलम छोड़ के विरोध का तोप मुक़ाबिल कर दे!
पर सबसे सोचनीय बात है कि उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया। अब तक। उसका लोकशन तक पता नहीं चल पाया है!