सत्यजीत राय और वो ओस की बूंद / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 दिसम्बर 2021
1941 में अमेरिकन मोशन पिक्चर संगठन ने भारतीय फिल्मकार सत्यजीत राय को सिनेमा की आजीवन सेवा के लिए ऑस्कर पुरस्कार देने का निर्णय लिया। उन दिनों सत्यजीत बीमार थे और उनके लिए अमेरिका की यात्रा करना कठिन था। अतः एकेडमी के अध्यक्ष स्वयं कोलकाता आए और उन्होंने राय को ऑस्कर भेंट किया। ऑस्कर के लगभग 100 वर्ष के इतिहास में पहली बार इस तरह की घटना घटी। गौरतलब है कि राय की फिल्मों को दुनियाभर के फिल्मकारों से अधिक पुरस्कार मिले हैं। ज्ञातव्य है कि फ्रांस के जिस सिनेमाघर में पहली बार ‘पाथेर पांचाली’ का प्रदर्शन हुआ उस सिनेमाघर ने दशकों तक फिल्म का पोस्टर वहां लगाए रखा।
सत्यजीत, कोलकाता में एक बुक डिजाइनिंग के दफ्तर में नौकरी करते थे। उन्होंने अपनी पहली फिल्म की शूटिंग सिर्फ शनिवार और इतवार की छुट्टियों में की थी। फिल्म में स्वयं की बचत का धन लगाया। कुछ समय बाद उनका धन खत्म हो गया। उनके पिता, तत्कालीन बंगाल गवर्नर बी.सी.राय के मित्र थे। पिता का पत्र लेकर वे गवर्नर से मिले। वित्त विभाग को आदेश दिया गया कि सत्यजीत को आवश्यक धन दे दिया जाए। अफसर को लगा कि यह पैसा किसी सड़क के निर्माण के लिए दिया जा रहा है। वर्षों बाद सत्यजीत को सरकारी पत्र मिला कि वह सड़क कहां बनाई गई है? सत्यजीत ने स्पष्टीकरण दिया कि सरकार फिल्म मुनाफे में 50% की अधिकारी है और कालांतर में सरकार को अपनी रकम का हजार गुना मुनाफा फिल्म से प्राप्त हुआ। ऐसा पूंजी निवेश और मुनाफा कभी देखा नहीं गया।
सत्यजीत राय ने दूरदर्शन के लिए ओम पुरी अभिनीत फिल्म ‘सद्गति’ बनाई। ‘सद्गति’ मुंशी प्रेमचंद की कथा से प्रेरित है। ‘शतरंज के खिलाड़ी’ नामक सत्यजीत राय की हिंदी भाषा में बनी फिल्म भी प्रेमचंद की कथा से प्रेरित थी, जिसमें संजीव कुमार, सईद जाफरी और शबाना आजमी ने अभिनय किया था। सत्यजीत राय की ‘कंचनजंघा’ एकमात्र फिल्म है, जो किसी साहित्यिक कृति से प्रेरित नहीं है। राय, साहित्य की रचना की नई व्याख्या प्रस्तुत करते थे और इस प्रक्रिया में कई परिवर्तन भी होते थे। उनकी श्रेष्ठ माने जाने वाली फिल्म ‘चारुलाता’ में उन्होंने मूल कथा के अंत को ही बदल दिया था। राज कपूर के लिए राय, अपनी फिल्म ‘गुपी गाइन बाघा बाइन’ को हिंदी भाषा में बनाने के लिए राजी हुए थे। शैलेंद्र फिल्म के गीत और संवाद लिखने वाले थे। सत्यजीत राय इस फिल्म में बंगाली फिल्म कलाकारों को ही दोहराना चाहते थे लेकिन राज कपूर इसमें मुंबई के कलाकारों को लेना चाहते थे, इसलिए बात नहीं बनी। राय पर लिखी गई एक किताब में इसका पूरा विवरण प्रकाशित है।
एक बार सत्यजीत ने विदेश जाने के लिए सरकार से विदेशी मुद्रा के लिए आवेदन किया। इस घटना के पूर्व सत्यजीत तत्कालीन प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी को नेहरू पर वृत्त चित्र बनाने से इंकार कर चुके थे। अफसर को लगा कि सत्यजीत के विदेशी मुद्रा के आवेदन को अस्वीकार करने पर उन्हें सराहा जाएगा। दो दिन बाद इंदिरा गांधी को तथ्य मालूम हुआ तो उन्होंने अफसर को बहुत डांटा और सत्यजीत राय द्वारा मांगे गए धन से दुगना धन उन्हें देने की आज्ञा दी।
गोया की कुछ अफसरों की विचार प्रक्रिया सरकारी फाइल के लाल फीते से ही बंधी होती है। जब सत्यजीत राय 9 वर्ष के थे, तब उनकी माता उन्हें गुरु रवींद्र नाथ टैगोर से मिलवाने ले गईं। टैगोर ने उन्हें एक कविता लिख कर दी और कहा कि बड़े होने पर ही वे कविता समझ सकेंगे। टैगोर की कविता का अनुवाद इस तरह है कि ‘मैं हजारों मील चला, मैंने मनोरम पर्वत और वादियां देखीं, परंतु पास में रखे चावल के पत्ते पर ठहरी ओस की सुंदर बूंद को नहीं देख पाया।’ गोया की सत्यजीत राय ने मानवीय करुणा की उस ओस की बूंद को अपनी विचार प्रक्रिया में पाया और ताउम्र उसको पिया। वही मानवीय करुणा की ओस की बूंद उनकी फिल्मों में देखी जा सकती है।