सत्यजीत रे : मानवीय करुणा के गायक / जयप्रकाश चौकसे

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सत्यजीत रे : मानवीय करुणा के गायक
प्रकाशन तिथि : 02 मई 2018

सत्यजीत रे का जन्म आज के दिन 1921 को हुआ गायोकि वे आज 97 वर्ष के होते। उन्होंने दो दर्जन फिल्मों के निर्माण के साथ ही कुछ वृत्त चित्र भी बनाए। बात बहुत पुरानी है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का यह अनुरोध उन्होंने ठुकरा दिया था कि वे पंडित जवाहरलाल नेहरू पर वृत्त चित्र बनाएं। कुछ समय बाद सत्यजीत रे को एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भाग लेने जाना था, जिसके लिए उन्होंने विदेशी मुद्रा के लिए आवेदन दिया। सचिव ने यह सोचकर इनकार कर दिया कि मेडम का निवेदन इस फिल्मकार ने अस्वीकार किया था। जब इंदिरा गांधी को तथ्य मालूम हुआ तो उन्होंने विदेशी मुद्रा का निवेदन स्वीकार किया और अपने सचिव को फटकार लगाई।

सत्यजीत रे ने निर्माणाधीन 'मेरा नाम जोकर' देखकर राज कपूर को सलाह दी कि फिल्म के पहले भाग को अंग्रेजी में 'डब' करके प्रदर्शित करें और भाग दो तथा तीन को रद्‌द कर दें। कमलेश्वर ने भी फिल्म की अपनी समीक्षा में लिखा था कि 'पहले भाग में राज कपूर दुनिया के तमाम फिल्मकारों को पीछे छोड़ देते हैं, दूसरे भाग में हांफते हुए नजर आते हैं और तीसरे भाग में वे स्वयं से भागकर दूर चले जाते हैं'। बहरहाल, नरगिस का जन्म भी 1921 में हुआ था। उनकी मां हिंदू थी और विवाह के बाद घर लौटती हुई बारात पर डाकुओं ने हमला किया, उनकी मां विधवा हो गई और डाकू उसे साथ ले गए। वे नदी के किनारे कपड़े धोने के लिए आतीं और कभी-कभी कुछ गुनगुनाती भी थीं। कुछ लोगों को उन पर दया आ गई और वे उन्हें कलकत्ता ले गए जहां वे गाने वाली बन गईं।

एक अमीर परिवार के सुपुत्र कलकत्ता से जहाज में बैठकर मेडिकल विज्ञान की शिक्षा पाने के लिए लंदन जाने वाले थे। जहाज को आने में देर लगी और वे वहां गए जहां उन्हें पहली नज़र में ही जद्दनबाई से प्रेम हो गया। उनका नाम मोहन बाबू था और नरगिस उन्हीं की बेटी थीं। जद्दनबाई फिल्मों में संगीत देने के लिए मुंबई आईं और मोहन बाबू उनके साथ थे। जद्दनबाई बहुत दबंग महिला थीं। नरगिस ने बाल कलाकार के रूप में कार्य शुरू किया और जवान होते ही उन्हें नायिका की भूमिकाएं मिल गईं।

बहरहाल, सत्यजीत रे पर लिखे लेख में इस संयोग से नरगिस का जिक्र आ गया कि उनका जन्म भी 1921 में हुआ है और दूसरा कारण यह है कि कालांतर में जब वे राज्यसभा में नामांकित हुईं तो जाने कैसे उन्होंने यह बयान दिया कि सत्यजीत रे अपनी फिल्मों में भारत की गरीबी दिखाते हैं जिस कारण विदेश में हमारी छवि खराब होती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस बयान से दुखी हुईं और बाद में नरगिस ने खेद भी प्रकट किया।

सत्यजीत रे एक कम्पनी में किताबों के कवर इत्यादि डिजाइन करते थे। इत्तेफाक देखिए कि नेहरू की 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' के पहले संस्करण का कवर सत्यजीत रे ने बनाया था। उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'पाथेर पांचाली', 'सांग ऑफ द रोड' शनिवार और इतवार की छुटि्टयों में शूट की, क्योंकि नौकरी छोड़ना उनके लिए कठिन था। इस तरह वे वीकेंड फिल्मकार रहे। पैसा खत्म होने पर शूटिंग रोक दी गई। उनके पिता ने बंगाल के गवर्नर को सिफारिशी पत्र लिखा और फिल्म पूरी करने के लिए उन्हें सरकारी धन प्राप्त हुआ। फिल्म किसी तरह से पूरी हुई और उसे कान्स फिल्म समारोह में भेजा गया जहां नए फिल्मकारों की फिल्म सुबह प्रदर्शित होती थी। जूरी मेम्बर रात की दावत के खुमार में सो गए परंतु एक सदस्य जागता रहा। उसका नाम था आन्द्रे वाजा (फिल्मकार वाज़दा अलग व्यक्ति हैं)। उसने सभी सदस्यों से निवेदन किया कि जलपान करके तरोताजा होकर इस फिल्म को देखें। यह एक विलक्षण फिल्म है। अत: फिल्म देखी गई और उसे सर्वस्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला।

कुछ समय बाद सरकार बदली और एक अफसर ने सत्यजीत रे को पत्र लिखा कि उन्हें सड़क बनाने के लिए जो धन दिया गया था, वह सड़क कहां बनाई गई है। यह अफसरशाही का एक और नमूना है। सत्यजीत रे ने उन्हें विस्तार से जवाब दिया कि वह सड़क नहीं फिल्म के लिए कर्ज लिया गया था। कालांतर में बंगाल सरकार को फिल्म के लाभांश के रूप में लगाए गए धन पर, पांच सौ गुना मुनाफा प्राप्त हुआ। 1992 में सत्यजीत रे बीमार हुए और अस्पताल में भर्ती किए गए। उस समय ऑस्कर पुरस्कार चयन समिति ने जीवन पर्यन्त सिनेमा की सेवा के लिए सत्यजीत रे को ऑस्कर देने का निर्णय किया। बीमारी की बात ज्ञात होते ही ऑस्कर अध्यक्ष भारत आए और कलकत्ता के अस्पताल कक्ष में ही सत्यजीत रे को ऑस्कर दिया गया। ऑस्कर इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ।

मानवीय करुणा के गायक सत्यजीत रे अपनी कला और सिने माध्यम के प्रति इतने सजग थे कि 'पाथेर पंचाली' के एक शॉट में ऐसा था कि भूखे बच्चे एक वृक्ष के नीचे सो रहे हैं और पत्तों से छनकर रोशनी उन पर पड़ रही है। फाइनल संपादन में सत्यजीत रे ने यह शॉट हटा दिया। उन्हें लगा कि शॉट छायावादी सौंदर्य से ओतप्रोत है, जबकि पूरी फिल्म यथार्थवादी है। साहित्य जगत में तो कवि छायावाद, रहस्यवाद और यथार्थवाद में कूदा-फांदी करते रहते हैं परंतु सेल्युलाइड के कवि सत्यजीत रे की निष्ठा बेदाग रही।

सत्यजीत रे की बंगाल में पड़े अकाल पर बनी फिल्म 'अशनी संकेत' में पूरी पृष्ठभूमि हरियाली से भरी है और लोग भूख से मर रहे हैं। उन्होंने यह संकेत दिया कि वह अकाल व्यापारियों द्वारा प्रायोजित था।