सत्यनाशी सेल्स टैक्स / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
सैकड़ों प्रकार के अप्रत्यक्ष करों से काम न चलने पर सरकार ने एक नए खतरनाक टैक्स को जन्म दिया है जिसे सेल्स टैक्स कहते हैं और जिसकी बाढ़ सुरसामुख की तरह हो रही है। यह हर चीज पर लगता है। शायद ही कोई वस्तु बची हो। इसका जहरीला असर जीवन के हर पहलू पर पड़ता है। क्योंकि जीवनोपयोगी सभी वस्तुएँ इसके पेट में आ जाती हैं। यही कारण है कि इसकी आय दिनोंदिन बढ़ती जाती है। इसमें धोखा देने की भी पूरी गुंजाइश है। इसीलिए चालाक बनिए रोज हजारों की खरीद-बिक्री करके भी सरकार को एँगूठा दिखा देते हैं। अफसरों की केवल थोड़ी-सी पूजा कर देते हैं। हाँ , ईमानदार लोग पिस जाते हैं , उनकी परेशानी बढ़ जाती है। अफसरों का गुस्सा भी उन्हीं पर उतरता है। अगर यह कर कायम रहा तो लोगों को तबाह कर देगा। इसीलिए इसका तो खासतौर से जोरदार विरोध होना चाहिए। अन्न पर अब तक यह न था। अब उस पर भी लगने को है। फिर तो किसानों को रुलाएगा।
बिहार सरकार को यदि रुपए की कमी है तो छोटानागपुर की कोयले , अबरक आदि की खानों पर कब्जा क्यों नहीं कर लेती ? बड़ी दिक्कत से अगले साल सब मिलाकर सरकारी आय प्राय: 24 करोड़ होगी। लेकिन सिर्फ छोटानागपुर की इन खानों से ही कमबेश उतनी ही आय फौरन होगी जो उत्तरोत्तर बढ़ेगी , ऐसा जानकारों का कहना है। फिर पैसे की कमी होगी ? क्या ? मगर इसमें पूँजीपतियों तथा नेहरू सरकार के रंज होने का खतरा जरूर है।